सन 2020, कारोबारी नज़रिये से एक ऐसा साल जिसने बड़े-बड़े उद्योगपतियों की कमर तोड़ दी। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हर औद्योगिक क्षेत्र में एक ऐसा भूचाल आया जिसके चलते अधिकतर उद्योगपतियों के कारोबार बिल्कुल ठप दिखाई दिये। इसका कारण था कोरोनावायरस। इस महामारी ने ना केवल उद्योगपतियों के कारोबारों में ताला लगा दिया बल्कि नौकरी पेशा लोगों की भी हंसती खेलती जिंदगी को इस पेंडमिक ने पटरी से उतार दिया।
लेकिन वहीं दूसरी ओर बहुत से लोगों का यह भी कहना है कि हमने इस दरमियान कारोबार से संबंधित कई तरह के तजुर्बे हासिल किए और इन 8 महीनों में काफ़ी कुछ नया करने और सीखने को मिला। बहुत से लोगों की तो इस महामारी के चलते लाइफ़ स्टाइल ही चेंज कर दी। भारत की बात करें तो यहाँ तो बहुत ही ज़्यादा प्रभाव देखने को मिला, क्योंकि जनसंख्या के हिसाब से भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जिसकी जनसँख्या और देशों से ज़्यादा है।
कोरोना महामारी के दौरान शुरुआती दौर में इस बीमारी को जितना ज़्यादा ख़तरनाक बताया गया, उसका असर पहले तीन महीने में तो बहुत ज़्यादा देखने को मिला। लेकिन बाद में जब लोग आर्थिक रूप से बहुत ज़्यादा टूट गए तो लोग इस बीमारी की गंभीरता को पहले जैसा नहीं मान ने को तैयार थे, जबकि मार्च 2020 से लेकर अगले चार पांच महीनों तक इस बीमारी को टीवी, रेडियो और विभिन्न सोशल मीडिया के प्लेटफ़ार्म के ज़रिये बहुत ज़्यादा ख़तरनाक रूप में दिखाया गया।
लेकिन बाद में आर्थिक रूप से कमज़ोर हो जाने पर लोगों का ध्यान इस बीमारी से हटकर अपने भविष्य की चिंता पर जा अटका। लेकिन बावजूद इसके, लोग बहुत ज़्यादा हेल्थ कॉन्शियस दिखाई देने लगे और इसका असर हमारे देश के हर राज्य में विभिन्न उद्योगों पर दिखाई दिया, ख़ासकर फू़ड इंडस्ट्री में तो बहुत ही ज़्यादा प्रभाव पड़ा।
मिसाल के तौर पर विभिन्न शहरों में हर गली नुक्कड़ पर पानी पुरी वाले दिखाई देते थे अब उनकी संख्या इसलिए कम हो गई क्योंकि कोरोना महामारी के चलते लोग बहुत ज़्यादा भयभीत थे, साथ ही वहम के शिकार भी.. जिसके कारण इन पानीपूरी विक्रेताओं की बिक्री पर काफ़ी असर पड़ा। यहां तक कि अनेक शहरों के पानीपुरी विक्रेताओं ने अपने इस छोटे से व्यवसाय को बंद तक कर दिया।
अब बात करते हैं हमारे देश के मिठाई एवं नमकीन विक्रेताओं की। कोरोना महामारी के दौर से पहले जिस तरह की बिक्री इन मिठाई एवं नमकीन विक्रेताओं की होती थी आज उनकी बिक्री उसके मुक़ाबले काफ़ी कम हो गई है। बहुत से हेल्थ कॉन्शियस लोग सिर्फ़ इसलिए मिठाई ख़रीदने से कतरा रहे हैं क्योंकि उन्हें ख़तरा है कि इसे बनाते वक़्त न जाने इन कारीगरों ने सफ़ाई का ध्यान रखा होगा कि नहीं, या उनमें से कोई कोरोना संक्रमित तो नहीं था। बस इस तरह के वहम के चलते लोग मिठाई और नमकीन विक्रेताओं के यहां से ख़रीदारी करने में संकोच कर रहे हैं ।
हालांकि यही लोग अन्य बहुत सी ऐसी चीजें ख़रीद रहे हैं जिनसे इन को ख़तरा हो सकता है लेकिन बस उस जगह उनका वहम शामिल नहीं है तो वहां की ख़रीदारी में इन्हें कोई दिक़्क़त नहीं है। हम जानते हैं कि भारत एक त्यौहार प्रधान देश है, हमारे इस भारत वर्ष में विभिन्न धर्मों के हर महीने दो या तीन त्यौहार होते ही हैं। इसके अलावा पूरे साल में कई राष्ट्रीय त्यौहार भी होते हैं जैसे कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, 2 अक्टूबर एवं बाल दिवस इत्यादि। इन सभी राष्ट्रीय एवं धार्मिक त्यौहारों पर मिठाई एवं नमकीन आदि का आदान-प्रदान बेहद प्रचलित है।
नमकीन केटेगरी की जहाँ तक बात है, नमकीन के व्यापार में ऑटोमेशन का इस्तेमाल होने से काफ़ी फ़ायदा हुआ है। बहुत से नमकीन के बड़े-बड़े व्यापारियों द्वारा विभिन्न तरह की आधुनिक मशीनों के ज़रिए ऑटोमेशन द्वारा नमकीन के व्यापार में काफ़ी वृद्धि हुई है। इसी कारण से मिठाई के व्यापार के इस घटते स्तर को देखते हुए देश के अनेक मिठाई विक्रेताओं का यह मानना है कि अगर वह भी नमकीन निर्माताओं की तरह आधुनिक मशीनों द्वारा ऑटोमेशन के ज़रिए मिठाई का निर्माण करेंगे तो इस क्षेत्र में भी एक नई क्रांति लाई जा सकती है और ग्राहकों के विश्वास को भी जीता जा सकता है क्योंकि आज के दौर में लोग मनुष्य से ज़्यादा मशीन पर भरोसा रखते हैं। देखा जाए तो किसी हद तक यह सही भी है क्योंकि ऑटोमेशन द्वारा सफ़ाई का स्तर और ज़्यादा बढ़ाया जा सकता है।
ऐसा नहीं कि लोग कारीगरों के हाथों से बनी मिठाई बिल्कुल पसंद नहीं कर रहे हैं, आज भी कला के क़दरदान लोग इसी देश में मौजूद हैं। आपने अक्सर सुना होगा की कुंजी लाल की मिठाई और नमकीन बहुत ही बढ़िया बनाई जाती है क्योंकि उनके कारीगरों के हाथों में जादू है।
बहुत से विक्रेताओं का यह भी मानना है कि भले ही कैसा भी मुश्किल दौर आ जाए, लेकिन अच्छे कारीगरों के हाथ में जो स्वाद है उसे लोग नहीं भूल सकते। वक़्ती तौर पर तो लोग थोड़ा परहेज़ कर सकते हैं लेकिन अच्छे कारीगरों के हाथ की बनी मिठाई वह खाना नहीं छोड़ेंगे। वहीं दूसरी और असमंजस यह भी बना हुआ है कि इतने बड़े व्यापार के निर्माण के लिए इक्विपमेंट्स को किस तरह से मैनेज किया जाए और इन नई मशीनों की ट्रेनिंग बड़े लेवल पर किस तरह से यहां से कारीगरों को दी जाए।
हालांकि कुछ बड़े मिठाई निर्माताओं को मैनपावर स्तर पर काफ़ी फ़ायदा पहुंच सकता है क्योंकि उनके कारीगरों की संख्या में काफ़ी कमी आई है और ऑटोमेशन से क्वालिटी भी मेन्टेन रहेगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या एक आम मिठाई कारोबारी इन महंगी मशीनों को ख़रीद पाएगा? ऑटोमेशन के इक्विपमेंट्स के लिए जो बड़े मशीन निर्माता हैं उनका यह भी कहना है कि आज भारत के हर शहर के हर गली नुक्कड़ में दो या चार मिठाई की दुकानें होती है, इन सभी को इतने बड़े स्तर पर मशीनें सप्लाई करना शुरुआती दौर में इसलिए भी संभव नहीं है कि उनकी क़ीमत शायद यह छोटे मिठाई वाले बर्दाश्त न कर सके। वही इतने बड़े स्तर पर मशीनों का निर्माण भी एक बड़ी पूंजी का निवेश का विषय है।
दरअसल यह अपनी-अपनी विचारधारा की बात है कि कुछ ऑटोमेशन को ज़्यादा ज़ोर देते हैं तो कहीं लोग कारीगरों के हाथ की बनी मिठाईयों को ही ज़्यादा पसंद करते हैं।
इस बारे में हमने बहुत से जाने-माने मिठाई एवं नमकीन विक्रेताओं एवं मशीन निर्माताओं से बातचीत की तो उन्होंने अलग-अलग तरह से अपने अपने विचार रखे, उन्हीं जाने-माने विक्रेताओं से हुई बातचीत की एक झलक हम आपके सामने भी पेश कर रहे हैं।
इस मामले में हमने सबसे पहले मिठाई एवं नमकीन उद्योग के विषेशज्ञ दीप्ता गुप्ता (Founder & CEO, Egremontz Business Solutions) से सवाल किया कि क्या मिठाई उद्योग में भी ऑटोमशन द्वारा एक रेवोलुशन लाया जा सकता है, तो उन्होंने बहोत विनम्रता से उत्तर दियाः
मिठाई इंडस्ट्री का ऑटोमेशन एक मुश्किल प्रोसेस है लेकिन यह असंभव भी नहीं है। लेकिन ऑटोमेशन की बात से पहले मिठाई की कुछ विषेशताओं का ज़िक्ऱ करना भी बहुत ज़रूरी है। वास्तव में मिठाई की सबसे बड़ी प्रॉब्लम उसकी शेल्फ़-लाइफ़ है। क्योंकि मिठाई की शेल्फ़- लाइफ़ 1 दिन से 15 दिन या बहुत से बहुत एक महीना होती है। जबकि कुछ आइटम में हम थोड़ा बहुत एक्सटेंड कर लेते हैं। जिसकी शेल्फ़-लाइफ़ नहीं होती उसे हम बड़े मार्केट में प्लेस नहीं कर सकते।
इन्नोवेशन और टेक्नोलॉजी मौजूद होने के बाद भी हम कुछ प्रोडक्टस की शेल्फ़-लाइफ़ को 45 दिन या 2 महीने तक ही कर पाने में सफ़ल हुए हंै। हाँ, कुछ प्रोडक्ट की शेल्फ-लाइफ़ हमने ज़रूर 8 से 9 महीने की है और जिन मिठाईयों की शेल्फ़-लाइफ़ 6 से 7 महीने की है उनका ऑटोमेशन पहले ही डेवलप हो चुका है या एक हद्द तक डेवेलोप कर सकते हैं।
मिठाई के मामले में दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि हमारे पास मिठाई की जो रेंज है और उसका जो आर्टिस्टिक-वे (Artitistic way)) में प्रेजेंटेशन है, वह ऑटोमेशन प्रोसेस से थोड़ा डिफ़िकल्ट हो जाता है क्योंकि मिठाई एक आर्टिस्टिक क्रिएशन (Artistic creation) है, हर एक कारीगर आर्टिस्ट की तरह होता है और वह अपनी कला को इस मिठाई के अंदर डालता है।
और उसकी प्रेजेंटेशन बिकती भी है ऐसा नहीं कि सभी मिठाईयों के साथ ऐसा है, जैसे बर्फ़ी या जितनी भी ट्रेडीशनल मिठाईयां हैं उन सबको हम ऑटोमेशन प्रोसेस में ले जा सकते हैं। लेकिन ज़रूरत है एक स्ट्रांग विल (strong will) की आखि़र यह काम करे कौन?
पहले मशीन बनाने वाला मशीन बनाए या पहले मशीन को इस्तेमाल करने वाला उसका आर्डर दे? समस्या यह है कि आखि़र रिस्क कौन उठाए, जो कि इंडस्ट्री में अभी एक बहुत बड़ा गैप है। अभी तक कोई भी मशीन मैन्युफ़ैक्चरर इतने बड़े मास लेवल (mass level) पर मशीनें नहीं बना रहा।
हालांकि पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ मशीन मैन्युफै़क्चरर ने छोटी-छोटी मशीनें बनाने कि कोशिश की है, उन्होंने काफ़ी कम प्राइस में यह मशीनें मार्केट में लॉंचं की हैं। कुछ जगह वह सफ़ल भी हुए हैं और कई जगह पर असफ़ल भी रहे हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने प्रयास तो किया ही है।
अगर पिछले कुछ साल में देखा जाए तो काफ़ी हद तक इस क्षेत्र में ऑटोमेशन बढ़ा है लेकिन बड़े पैमाने पर नहीं हुआ। उसका रीज़न है कि उस तरह की मशीनें अभी तक नहीं मिली। अभी आप यूं ही देख लीजिए कि मिठाई इंडस्ट्री की एक बहुत बड़ी समस्या है लड्डू बनाना। लड्डू की मशीन अभी तक नहीं बनाई गई है, दीपावली के टाइम में इन लड्डूओं को बनाने में 500 से 600 आदमी लगाए जाते हैं तब जाकर इनकी सप्लाई पूरी हो पाती है। लेकिन आज भी लड्डू बनाने का प्रोसेस मैनुअल ही हैं।
गुप्ता जी ने आगे हमें बताया कि लड्डू जैसी बेसिक समस्या पर भी हम आज तक विचार नहीं कर पा रहे हैं। सच बात तो यह है कि मिठाई उद्योग के डेवलपमेंट के बारे में हम सब ने सीरियसली सोचा ही नहीं और हमारा ध्यान मिठाई के लिए मशीन बनाने पर गया भी नहीं जबकि नमकीन की बात करें तो टेक्नोलॉजी वेस्टर्न थी और इस टेक्नोलॉजी को हमारे नमकीन वालों ने अडॉप्ट कर लिया। इसमें हमने क्वालिटी से भी कंप्रोमाइज़ किया क्योंकि अक्सर क्वालिटी बेहतर बन पाई और कभी बेहतर नहीं भी बनी।
इसलिए नमकीन का डेवलपमेंट आसान हो गया। इसके अलावा नमकीन के प्रोडक्ट में शेल्फ़-लाइफ़ भी थी इसलिए उसका ऑटोमेशन आसान हो गया।
फ़िलहाल मेरा सभी मशीन मैन्युफैक्चरर्स से अनुरोध है कि वह इस फ़ील्ड में आगे आएं और इन छोटी-छोटी समस्याओं का हल निकालें और छोटी बड़ी मशीनें बनाकर इस उद्योग के विकास को एक दिशा दें। इसके लिए मशीन मैन्युफै़क्चरर और मिठाई उद्योग के टॉप लोगों को आगे आना पड़ेगा। अगर कोशिश करेंगे तो सब कुछ संभव है, क्योंकि भारत की मिठाई इंडस्ट्री बहुत बड़ी है और बहुत बड़ा बिज़नेस भी है।
इसलिए मशीन मैन्युफ़ैक्चरर को यह सोचना चाहिए कि बहुत सी मशीनें बनाकर बड़ा प्रॉफ़िट ले सकते हैं, मेरा कहने का मतलब यह हुआ कि अगर कम प्रॉफ़िट वाली मशीने लेकर बल्क में बनाएंगे तो उन्हें बड़ा प्रॉफिट ही होगा। अंत में मैं बस यही रिक्वेस्ट करूंगा कि उन्हें यह काम करना चाहिए यानी कम प्रॉफ़िट लेकर वे समाज की सेवा तो करेंगे साथ ही मिठाई उद्योग का विकास भी करेंगे ।
स्टैंडर्ड मशीनरी के MD संजय कुमार से हमने मिठाई उद्योग में ऑटोमेशन के बारे में पूँछा तो उनका जवाब यह थाः
जहां तक ऑटोमेशन का सवाल है यह तो हम बहुत सालों से करते आ रहे हैं। मिठाई के ऑटोमेशन के लिए हमने कई साल पहले यूरोप की मशीनंे बेचीं हैं। सबसे पहले हमने काजू बर्फ़ी बनाने की मशीन मार्केट में बेची थी। एक्चुअली हमने मार्जीपान की मशीन कनवार्ट करके काजू बर्फ़ी बनाने के लिए बेची। उसके बाद हमने बहुत सी मशीनें सोन पापड़ी बनाने के लिए भी बेचीं। सोनपापड़ी आटोमेटिक मशीनों से ही बनती है और ये मशीनंे भी योरोप से ही आती हैं और हाल ही में हमने नागपुर के हल्दीराम को एक पैकिंग मशीन जो कि जर्मनी की बनी है, सप्लाई की है जिसमें उनकी एक ख़ास ऑरेंज बर्फ़ी की पैकिंग की जाती है। इस तरह से ऑटोमेशन मिठाईयों में काफ़ी चेंजेज़ ला रहा है और इन मशीनों की काफ़ी एडवांटेज भी हैं।
नोएडा से फेबकौन इंडिया के MD निशांत बंसल से जब हमने मिठाई सेक्टर में ऑटोमेशन लाने के बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ इस तरह रिप्लाई दीः “यह बहुत अच्छा सवाल है कि क्या ऑटोमेशन सिर्फ़ नमकीन, स्नैक्स और पैकेजिंग के क्षेत्र में ही हो सकता है या मिठाई सेक्टर में भी हो सकता है? निश्चित रूप से मिठाई हमारी फू़ड मार्किट की आज एक बहुत बड़ी कैटेगरी है, यह खुद में एक बहुत बड़ाSKU है, एक बिज़नेस वर्टिकल है। मिठाई एक इंडियन ट्रेडिशनल फू़ड है जो सबको पसंद आता है और आगे भी रहेगा।
एक्चुअली मिठाई हमारे कल्चर का और हमारी हेरिटेज का एक बहुत बड़ा हिस्सा है और इसमें बहुत वैरायटीज हैंः जैसे-जैसे स्नेक्स में ग्रोथ हुई है, ठीक उसी तरह से मिठाई में भी ग्रोथ हो रही है और जिस तरह कंज़यूंर्स में अवेयरनेस बड़ी है हाइजीन को लेकर, क्वालिटी को लेकर, कंसिस्टेंसी को लेकर, ठीक इसी तरह मिठाई की डिमांड भी बढ़ी है और साथ ही कस्टमर अवेयर भी हो रहा है कि उसको क्वालिटी प्रोडक्ट चाहिए। जिसके चलते जो मिठाई के निर्माता हैं वह भी काफ़ी गंभीर हैं कि उन्हें स्वादिष्ट और लाजवाब प्रोडक्ट बनाकर कस्टमर तक भेजा जाये, जो कि काफ़ी हाइजेनिक हो, शेप में हो, उसकी पैकिंग बहुत बढ़िया हो और लौंग शेल्फ़ लाइफ़ हो।
इन सब प्रोसेस में ऑटोमेशन की बहुत रिक्वायरमेंट होती है। क्योंकि यह सब कुछ मैनुअली पॉसिबल नहीं हो पाता। हम कारीगरों के थ्रू यह सब मिठाईयां बनाते हैं तो वही हर कारीगर का अपना एक अलग स्टाइल होता है और यह भी पता नहीं होता कि आज कौन सा कारीगर मौजूद हैः A है, B है या C है। इसलिए मिठाई के निर्माण में क्वालिटी या कंसिस्टेंसी के साथ कंप्रोमाइज़ के चांसेस बने रहते हैं। इन सब समस्याओं से निपटने के लिए फेबकौन इंडिया ने काफ़ी मेहनत की है और काफ़ी स्टडी करने के बाद इंडिया के नामचीन मिठाई निर्माताओं जैसे हल्दीराम, बीकाजी, बीकानो ग्रुप आदि अनेक टॉप चेहरों के साथ डिसकस किया और हमने मिठाई उद्योग में ऑटोमेशन के लिए भी काम किया है।
फेबकौन इंडिया एक जाना माना नाम है स्नैक्स फूड आटोमेशन और प्रोसेसिंग पैकेर्जिंग के लिए। इसके लिए पिछले कुछ सालों से हम मिठाईयों में भी काफ़ी एडवांसमेंट्स कर रहे हैं चाहे वह आटोमेटिक मिकसिंग हो, डोह की शीटिंग हो, या कटिंग हो, हालांकि कटिंग के लिए कोई ख़ास डेवलपमेंट अभी तक नहीं हो पाया है। आज की मिठाई की बात करें तो जितनी भी मिठाई बन रही हैं वह बर्फ़ी टाइप की यानि शीटेड होती हैं जिसकी कटिंग करना अपने आप में एक बहुत बड़ा चैलेंज है। जिसके लिए फ़ैबकाॅन ने जर्मनी के साथ टाईअप किया है।
मिठाई की कटिंग के लिए हमने पूरा ऑटोमेशन किया है इसके लिए हम अल्ट्रासोनिक वेव्ज़ यानी साउंड की वेव्ज़ के ज़रिए मिठाई की कटिंग करते हैं, चाहे वह किसी भी तरह की बर्फ़ी हो। यहां तक कि चाहे काजू कतली हो जो कटिंग में काफ़ी मुश्किल होती है।
उसको भी हमने बहुत ही बेहतरीन तरीक़े से अल्ट्रासोनिक वेव्ज़ के ज़रिए काटा है और इस तकनीक से हमारे कस्टमरज़ बेहद खुश हैं। इसके अलावा हमने ऑटोफ़ोर्मिंग के ज़रिए मिठाई के अलग अलग शेप देने की भी बेहतरीन कोशिश की है।
यह कहना सही है कि आज ऑटोमेशन एक बहुत बड़ी फ़ील्ड है। मिठाई मेकिंग में ऑटोमेशन की बहुत सख़्त ज़रूरत है ताकि हम अपने अपने प्रोडक्ट को पूरी दुनिया में पेश कर सकें और यह तभी पॉसिबल है जब हम बेहतरीन क्वालिटी और वॉल्यूम मार्केट में दे सकें। फेबकौन, ऑटोमेशन की दिशा में हर बेहतरीन और मुमकिन क़दम उठाने के लिए तैयार है अगर देश के बड़े फूड इंडस्ट्री के चेहरे उनके साथ हों।
फ़ूड इंडस्ट्री के एक बड़े चेहरा रमन दीवान, MD टोपलाइन इक्विपमेंट से भी हमने ऑटोमेशन के बारे में जानना चाहाः
रमन दीवान ने अपना नज़रिया कुछ इस तरह रखा मेरा ऐसा मानना है कि कुछ कारणवर्ष से मिठाई में नमकीन की तरह सेल्स एबिलिटी, एक्सपोज़र, डिस्ट्रीब्यूशन और ऑटोमेशन पॉसिबल नहीं है। और यही वजह है कि अगर मिठाईयों को ड।च् प्रोसेस के ज़रिए शेल्फ़- लाइफ़ बढ़ाने के लिए पैक भी करेंगे उसके बाद भी मिठाईयों की एक लिमिटेड रेंज ही मार्किट में पेश की जा सकेगी, क्योंकि शेल्फ़-लाइफ़ की गैर मौजूदगी में ज़्यादातर मिठाईयां मार्किट में फ्रे़श ही बेची जाती है।
जबकि नमकीन के क्षेत्र में देखा जाए तो ऑटोमेशन काफ़ी सक्सेस हो गया है लेकिन मिठाई में ऑटोमेशन नमकीन के बराबर होना काफ़ी मुश्किल है इसलिए नमकीन की तरह मिठाई में ऑटोमेशन अचीव नहीं किया जा सकता।
सीमा अत्रेाया, F&B Consultant हैं, जिनकी रिस्पोंसिबिलिटीज़ हैं, Quality, RnD, Supply Chain, Sustainability. उनसे भी हमने ऑटोमेशन के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कुछ इस तरह जवाब दिया…
मिठाई को आजकल कुटीर उद्योग के रूप में जाना जाता है जो कि इन दिनों एक सफ़लतम बिज़नेस के रूप में देखा जा रहा है। मिठाई उद्योग के ज़्यादातर मालिकों का यह मानना है कि मिठाई के बिजनेस की सफ़लता के लिए उसकी सुंदर पैकेजिंग, सुंदरता से उसका डिस्प्ले होना और बड़ी मात्रा में मिठाई का निर्माण आदि मुद्दों पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। अगर इसके वॉल्यूम पर ध्यान दिया जाए तो हम अपनी युवा पीढ़ी को और ज़्यादा इस उद्योग की तरफ़ आकर्षित कर सकते हैं। और इसके लिए ऑटोमेशन काफ़ी मददगार साबित हो सकता है।
ऑटोमेशन के बारे में जब हमने इंट्रालॉक्स के बिज़नेस डेवलपमेंट मैनेजर यश जोशी से बात की तो उन्होंने इस बारे में जो डिटेल में बतायाः
उत्पाद कंडीशनिंग के लिए इंट्रालॉक्स डायरेक्ट ड्राइव कम्पैक्ट स्पाइरल बैच प्रक्रिया से निरंतर प्रक्रिया की तरफ़ ले जाने में मदद करता है। वहीं देखा जाए तो कोविड-19 ने मिठाई एवं नमकीन उद्योग क्षेत्र के विकास में और ज़्यादा तेज़ी ला दी है। इस दौरान उपभोक्ताओं ने और ज़्यादा कन्वीनियंस स्नैक्स और फूड्स की डिमांड शुरू कर दी थी। ताकि वह अपने अपने घरों में इन स्नैक्स, फू़ड्स एवं मिठाई आदि का सेवन सुरक्षा यानी सेफ़्टी के साथ कर सकें और बाहर जाने से बचा जा सके।
ऐसा कहा जा सकता है कि यह पीरियड मिठाई एवं नमकीन उद्योग के निर्माताओं के लिए एक बेहतरीन अवसर रहा। हालांकि इस दौरान लॉकडाउन और लेबर इशयुस से संबंधित कई तरह के उत्पादन चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, साथ ही मिठाई क्षेत्र के अनेक निर्माता यह महसूस कर रहे हैं कि पुरानी उत्पादन प्रतिमान जो उनके पूर्वजों के व्यवसाय को स्थापित करने में मदद करते थे, वह आज के व्यवसाय में पर्याप्त लाभकारी साबित नहीं हो रहे हैं।
आज मिठाई निर्माताओं को यह रियलइज हुआ है कि पुरानी नीतियों से हटकर हमें नई टेक्नोलॉजी की तरफ़ जाना होगा और तभी विकास संभव हो सकेगा।
इसके लिए हमें ऑटोमशन का भी सहारा लेना पड़ सकता है और अपनी लेबर की संख्या को भी कम करना पड़ेगा। इसके लिए शुरुआती दौर में कुछ खर्चे होंगे लेकिन आगे चलकर यह लाभकारी साबित हो सकते हैं।
यश जोशी मानना है कि इसी तरह से अपनी प्रोडक्ट की क्वालिटी और सेफ़्टी को क़ायम रखा जा सकता है। मेरा मानना है कि ऑटोमेशन का सहारा लेना लाभकारी साबित होगा। वही उत्पाद कंडीशनिंग का अगर उदाहरण दें तो उसमें मिठाई फ्ऱीजिंग, कूलिंग शामिल है जहाँ इंट्रालोक्स हमारे स्पाइरल प्लेटफार्म के साथ महत्वपूर्ण मूल्यों को जोड़ने में सक्षम रहा है और ग्राहकों को बैच प्रक्रिया से निरंतर प्रक्रिया की तरफ़ ले जाने में मदद करता है। इसके कुछ लाभ इस तरह से हैं…
जैसे बेहतर उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्थिरता, कम समय में हाई प्रोडक्शन, फ़र्श की जगह का अनुकूलन, नो ट्रालीज़, नो लेबर, बेटर इनकम, बेहतर खाद्य सुरक्षा आदि।
ऑटोमशन के सिलसिले में जब हमने हीट एंड कंट्रोल के मनोज पॉल, ऑपरेशन्स कंट्री मैनेजर (इंडिया-साउथ एशिया) से जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने बहुत सरल शब्दों में अपना ये जवाब दियाः
जहां तक मेरा विचार है मिठाई सेक्टर को भी स्वचालित किया जा सकता है। एक विषेश प्रकार की मिठाई में ऑटोमशन की प्रमुख आवश्यक्ता होती है। मेरा ऐसा मानना है कि ऑटोमशन मशीनों का प्रोडक्शन मास स्केल पर होना चाहिये। हमने पहले से ही गुलाब जामुन बनाने की प्रक्रिया को ऑटोमेटिक कर दिया है, जो आज काफ़ी बड़ी मात्रा के साथ निर्मित किया जा रहा है।
जब हमने यह सवाल कंचन मेटल्स के MD संजीव गुप्ता से पूछा तो उन्होंने हमें बताया कि…
हाँ, ये सच है कि मिठाई उद्योग में पिछले एक साल से बदली परिस्थितियों के चलते ऑटोमेशन एक वास्तविक आवश्यक्ता बन चुका है। आप कोई भी सेगमेंट ले लीजिए, स्वचालन यानी ऑटोमशन निश्चित रूप से विभिन्न तरीक़ों से मिठाई इंडस्ट्री को कई लाभ पहुंचा सकता है।
दूसरी बात आती है गुणवत्ता में निरंतरता की, उत्पादकता में वृद्धि के अलावा, हाइजेनिक संचालन, मैनुअल लेबर का कम दख़ल, उत्पादन की कम लागत से इस केटेगरी में नए उत्पादों से एक नया रेवोलुशन लाया जा सकता है।
मिसाल के तौर पर गुलाब जामुन की फ्ऱाइंग और इस जैसी कितनी प्रक्रियाओं के लिए आटोमेशन, खोआ और मावा का उत्पादन करने के लिए दूध का पकाना जो एक मिठाई के लिए आवश्यक इनपुट हैं, यह सब पहले से ही विकसित हैं।
इस समय चुनौती मिल्क-बेस्ड मिठाई की शेल्फ़-लाइफ़ की है, ऑटोमेशन की नहीं। इसलिए कुछ मामलों में यह एक अड़चन हो सकती है।
हालाँकि अब फ्ऱोज़न सेगमेंट के साथ- मिठाई को भी फ्ऱीज़ किया जा रहा है और एक्सपोर्ट भी किया जा रहा हैस्वचालन के कारण ये नए व्यवसाय के अवसर हैं।
ज्ञात हो कि इस क्षेत्र में ऑटोमशन में निवेश करने वाले ब्रांड मालिकों को अच्छा लाभ मिल रहा है, और न केवल वॉल्यूम में, बल्कि भौगोलिक रूप से भी अपना व्यवसाय बढ़ा रहे हैं। हालाँकि, विशिष्ट स्वचालन आवश्यकताओं पर काम करने के लिए निर्माताओं ध् ब्रांड मालिकों और टेक्नोलॉजी ध् इक्विपमेंट सप्लायर्स के बीच गहरी साझेदारी होनी चाहिए, जैसा कि नमकीन उद्योग के लिए किया गया है।
मुझे यक़ीन है कि ऑटोमेशन से इस उद्योग में एक नई क्रांति लायी जा सकती है”।