मिठाई एंड नमकीन टाईम्स के भारतीय प्रादेशिक दुर्लक्षित मिठाईयों के इस महीने के सफ़र में आप सब का स्वागत है। बनारस से शुरू हुआ यह सफ़र नॉर्थ ईस्ट भारत से होते हुए आज भारत के उत्तरी क्षेत्र में आ गया है। जैसे के हमने पहले भी हमारे लेख में उल्लेख किया है की इस लेखमाला का उदेेश्य यही है की भारतीय राज्य की उन मिठाईयों का अनावरण करना, जिन्हें अन्य मिठाईयों की तुलना में उतनी सराहना, ग्लैमर और योग्य मंच और मान्यता नहीं मिली है, पर यह तभी संभव होगा जब हम भारतीय खुद हमारे अन्य राज्यों के खाद्य संस्कृति से उजागर होंगे और उन मिठाईयों को राष्ट्रीय स्तर पर लेके आएँगे। तभी आगे चल कर हम हमारी पारंपरिक प्रादेशिक मिठाईयों को विश्व स्तर पर भी रोशनी में ला सकते हैं। तो बस यही सोचकर आपको लेकर हम निकल पड़े हैं भारत के दुर्लक्षित मिठाई के सफर पर।
भारत के उत्तरी क्षेत्र के बारे में अगर हमें संक्षिप्त में कुछ कहना है तो स्कंद पुराण का आधार लेते हुए यही पंक्तियाँ याद आती है
“खण्डाः पंच हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥”
अर्थात् हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड हैं या कवि अमीर खुसरो की ये पंक्तियाँ “गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त, हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त“(अगर जमीं पर कहीं जन्नत है तो, यहीं है, यहीं है, यहीं है) इससे बेहतर शायद तारीफ़ के लफ़ज़ नहीं हैं हमारे पास। हिमाचल प्रदेश को तो फ्रूट बास्केट ऑफ़ इंडिया और उत्तराखंड को देवभूमि या तपोभूमि के नाम से भी जाना जाता है।
नैसर्गिक सौंदर्य और संपन्ता से इस क्षेत्र को कुदरत ने बेहद ही नवाज़ा है, पर यहाँ के खानपान भी उतने ही लज़ीज़ी और स्वास्थवर्धक हैं। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर यह भाग हिमालय की वादियों में बसा हुआ ऐसा क्षेत्र है जैसे मानो प्रकृति का अलौकिक भंडार है।
यहां की मिठाईयाँ तो यहाँ त्यौहारों का प्रतिक भी है। मिठाईयों को देखते ही उसको बनाने के पीछे का कारण यहाँ के लोगों को बिना बताये ही पता चल जाता है। हालाँकि, इन तीनों राज्यों की मिठाईयों का उल्लेख करेंगे तो यह लेखमाला बड़ी लम्बी बन जाएगी इसलिए इसे दो भागों में प्रकाशित करेंगे। इस भाग में आईये उत्तराखंड की मिठाईयों का ब्यौरा करते हैं।
हर राज्य के अपने विशेष व्यंजन होते हैं, जिसके बारे में अन्य राज्यों को पता नहीं होता जब तक वो अपने राज्य की देहलीज़ को पार न करें। आज जहाँ सोशल मीडिया की वजह से पूरी दुनिया से जुड़े रहने का एक माध्यम हमें मिला हैं, तो यह आसान हो गया है की एक दूसरे के
रहन-सहन, खान पान के बारे में अवगत हों। उत्तराखंड के मिठाईयों की अगर बात करें तो बाल मिठाई को राज्य स्तर पर पहचान मिली है, पर अन्य मिठाईयों के बारे में लोगों को इतना पता नहीं है। बाहरी और आर्टिफिशियल साम्रगी का कम से कम उपयोग करके पौष्टिक जैसे की गेहूँ-चावल का आटा, खोया, गुड़ आदि का उपयोग किया जाता है।
बाल मिठाई-उत्तराखंड की सिग्नेचर मिठाई है बाल मिठाई, अगर ऐसे हम कहें तो यह गलत न होगा। अल्मोड़ा की बाल मिठाई के नाम से जाने जानी वाली, चॉकलेट बर्फ़ी जैसे दिखने वाली यह मिठाई कोको बीन्स से नहीं बल्कि खोया से बनती है। यह भुने हुए खोय पर चीनी के छोटे -छोटे सफे़द नुक्तों के छिड़काव से बनाई जाती है, और दिखने में भूरे चॉकलेट जैसी ही होती है।
झंगोर की खीर-उत्तराखंड में खरीफ़ फ़सल में मंडुवा दूसरी और झंगोरा तीसरी मुख्य फ़सल है। मंडुवा और झंगोरा उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण परंपरागत फ़सलों में शामिल हैं और पौष्टिकता से भरपूर हैं। व्रत-त्यौहारों में पहाड़ी लोग झंगोरे की खीर ज़रूर खाते हैं। उनका लगाव इस खीर से इतना है की जब उत्तराखंड बनाने के लिए आंदोलन चल रहा था, तो गली-गली में नारा गूंजता था-‘मंडुवा, झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे’। यह खीर ज़्यादा गाढ़ी नहीं होनी चाहिए, अन्यथा ठंडी होने पर सख़्त हो जाती है और दूसरी ख़ास बात यह कि झंगोरे की खीर न ज़्यादा गर्म खानी चाहिए न ज़्यादा ठंडी।
अरसा और रोट: विवाह की रस्म तो इस सौगात के बिना पूरी ही नहीं मानी जाती। कलेऊ (गढ़वाल में शादी-ब्याह जैसे खुशी के मौकों पर मेहमानों को कलेऊ (पारंपरिक मिठाई) देने की अनूठी परंपरा है) में विभिन्न प्रकार की मिठाईयाँ होती हैं, जिन्हें विदाई के अवसर पर नाते-रिश्तेदारों को दिया जाता है। इन में सबसे लोकप्रिय है ष्अरसाष् और ष्रोटष्। ख़ास बात यह कि अरसा और रोट महीनों तक ख़राब नहीं होते। अरसा के बारे माना जाता है की 1100 साल से यह परंपरा चली आ रही है, जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा बद्री-केदारधाम में दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों की नियुक्ति के बाद वहां से नंबूदरी ब्राह्मण अरसा लेकर गढ़वाल आये। पहले इसका नाम अरसालु था जो फिर अपभ्रंष होकर अरसा हुआ। रोट एक तरह की कुकी (इपेबनपज) है जिसे स्थानीय बोली में रोटाना, रोट या रूटना कहते हैं। गेंहू का आटा, सौंफ़, गुड़, सूजी और दूध से यह कुकी बनाई जाती है और फिर तली जाती हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम, यात्रा के दौरान, मकरसंक्रांति और होली जैसे त्यौहार पर इसे बनाया जाता है।
गुजिया/ पहाड़ी हलवा: आटे से बने इस हलवे को आप पहाड़ी हलवा कह सकते हैं, हालाँकि, अन्य राज्यों में भी ऐसे हलवा बनता होगा पर यहाँ पर इसके बनाने की विधि और स्वाद पूर्णतः भिन्न है। होली पर गुजिया खाना तो सर्वमान्य है, उसी तरह उत्तराखंड में भी गुजिया बनाने का चलन है।
सिंघल मिठाई꞉ सूजी, दही और केले से बनी उत्तराखंड स्टाईल सिंघल रेसिपी हल्की मीठी फ्रिटर डिश है जिसे अदरक कि चाय या कहवा के साथ परोसा जाता है। यह एक कुमाऊंनी मीठा व्यंजन है जिसे नेपाल व देशों के अन्य राज्यों में भी आप सेल रोटी या शेल से जाना जाता है।
सिंगोरी / सिंगोड़ी: एक शंकु के आकार की मिठाई है जो विशेष रूप से भारत के कुमाऊं क्षेत्र में उपलब्ध है। क़लाकंद केक सामान दिखने वाली यह मिठाई खोय से बनायी जाती है और मालू के पत्ते में लपेट कर परोसी जाती है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सिंगोरी का उद्गम अल्मोड़ा का पुराना प्रान्त माना जाता है।
खेंचुवा: खेंचुवा एक प्रकार की हल्की तरल मिठाई है। इसकी विशेषता यह है कि यह लंबी खिंच जाती है, इसलिए इसको खेंचुवा मिठाई कहा जाता है। यह लगभग क़लाकंद मिठाई की तरह होती है। उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के डीडीहाटनगर की पहचान के रूप खेंचुवा मिठाई को कहा जा सकता है जिसको बनाने का श्रेय डीडीहाट के नेगी परिवार को जाता है जिसे उन्होंने 80 की दशक में बनाना शुरू किया था।
गुलगुले: गुलगुले जैसी मिठाई भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बनाई जाने वाली पारंपरिक मिठाई है। यह बाज़ारों में सबसे लोकप्रिय मिठाईयों में से एक है, इसे पारंपरिक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विशिष्ट उत्सव के अवसरों पर बनाया जाता है। गुलगुले एक रमणीय मिठाई है जो उत्तराखंडी व्यंजनों का सार समेटे हुए है। स्वाद और बनावट के अपने अनूठे संयोजन के साथ, यह मिठाई निश्चित रूप से आपकी लालसा को संतुष्ट करेगी और आपको पहाड़ों का स्वाद देगी। तो, अगली बार जब आप खुद को उत्तराखंड में पाएं, तो कुछ गुलगुले जरूर चखें और इस खूबसूरत राज्य के प्रामाणिक जायके का अनुभव करें।
तो यह थे उत्तराखंड के कुछ पारंपरिक मीठे व्यंजन जिसे हम थोड़ी कल्पकता और रचनात्मक के साथ नविनतम रूप देकर बाज़ारों में ला सकते हैं। वैसे भी आजकल अर्टिसनल मिठाईयों का ट्रेंड चल रहा है और हमारे पास तो हर एक राज्य की स्वादसंपदा भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। जरुरत है एक नये नज़र और उम्दा नवोत्पाद की।