सृजल गुप्ता , मधुरिमा स्वीट्स , लखनऊ से जो वर्तमान के नवयुवक हैं , अपने इस पैतृक व्यवसाय को किस तरह आगे बढ़ाया , अपने अनुभव को हमसे साझा करते हुए अपने ख़ास प्रोडक्ट के बारे में , जो कि उनके पूर्वजों के द्वारा प्रारम्भ किया गया था। उनके इस प्रोडक्ट की लोकप्रियता का एक छोटा सा प्रमाण यह है कि उनका यह प्रोडक्ट लखनऊ वालों की दिन चर्या में शामिल है।
सृजल ने हमें बताया कि उनका यह व्यवसाय लखनऊ में सन 1825 ई0 से वर्तमान तक पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है, जो अपने आप में लगभग 200 वर्षों की लम्बी गाथा को संजोय हुए है। इनके ब्रांड को आने वाले सन 2025 में 200 साल पूरे हो जाएंगे।
उनका ख़ास प्रोडक्ट “पूरी कचोरी थाल” के नाम से प्रसिद्ध है जो नाश्ते के रूप में सुबह में बनता है। जिसमें 4 पूरियाँ जो देसी घी में बनी होती है, आलू की रसेदार सब्ज़ी और कद्दू रायता चटनी जो लखनऊ की एक रेग्युलर थाल में गिनी जाती है जो लखनवी सुबह का एक बेहतरीन नाश्ता है।
सृजल से जब हमने इसके स्वाद और बनाने की विधि को लेकर बात की तो वह कहते हैं कि, “हमने इसकी मुख्य सामग्री में कोई फेर बदल नहीं किया , बस सिर्फ़ वक़्त के हिसाब से और पब्लिक की डिमांड पर हमने इसके स्वाद को और दमदार बना दिया है। क्योंकि समय के साथ लोगों के मुँह का स्वाद बदला है इसीलिए हमें भी लोगों के स्वाद के अनुसार अपने व्यंजन के स्वाद को ढाला। तरीक़ा हमारा परंपरागत ही है लेकिन स्वचालन के चलते हमने कुछ नया करने की कोशिश की है। जैसे पहले इसे स्टील की बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में हाथों से बनाया जाता था लेकिन आज यह बड़े -बड़े थरमोफ्लूइड़ मशीन्स द्वारा बनाया जाता है।
कढ़ाइयाँ आज भी स्टील की इस्तेमाल करते हैं लेकिन ऑटोमेशन के ज़रिये। आज हमारी फ़ैक्टरी पूरी तरह से स्वचालन पर बनी है। इसमें किसी भी रॉ-मटेरियल में अब हाथों का इस्तेमाल नहीं होता जिसकी वजह से इसके स्वाद में और स्थिरता आयी है।
इसकी कोई ऐसी ख़ास रेसिपी नहीं है लेकिन फिर भी हर जगह का एक फेमस प्रोडक्ट होता है और सब का अपना एक यूनिक स्वाद तथा बनाने का तरीक़ा जिस पर प्रोडक्ट का अस्तित्व आधारित होता है। हम वही पहले जैसा उत्तम स्वाद देते हैं जिसे लोग आज भी पसंद करते हैं। उन्होंने एक और ख़ास बात बताई कि जगह बदलेगी तो स्वाद भी बदलेगा भले ही रेसिपी एक ही क्यों न हो जगह का प्रभाव भी प्रोडक्ट्स के स्वाद में बड़ा रोल निभाता है और उसमें बदलाव लाता है।
सृजल कहते हैं कि इसका अपना एक स्पेशल स्वाद है जो साल के 12 माह एक जैसा ही रहता है। इसमें हम उन्हीं सामग्री का इस्तेमाल करते हैं जो साल के 12 माह पर्याप्त हो सके, इसीलिए हमेशा इसका एक जैसा ही स्वाद बना रहता है।
सृजल से हुए साक्षात्कार में उन्होंने आगे बताया कि उनकी इस पूरी कचोरी थाल को खाने एक बार स्वर्गीय ‘श्री अटल बिहारी वाजपेयी जो भारत के पूर्व लोक प्रिय प्रधान मंत्री रहे हैं , इस पूरी कचोरी थाल को खाने के लिए ख़ास पधारे थे। उनके अलावा और कई प्रसिद्ध व्यक्तियों ने इसके स्वाद को चखा है जिससे इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इस पकवान की चर्चा लोगों की ज़बान पर तो रहती ही है लेकिन इसका उल्लेख कई किताबों में भी किया जा चुका है। इनकी पूरी कचोरी थाल लोगों के लिए सिर्फ़ एक व्यंजन ही नहीं बल्कि उनकी भावनाएं भी इस प्रोडक्ट से जुड़ी हैं । कोई व्यंजन इतना लोकप्रिय हो सकता है वाक़ई यह अद्भुत और आश्चर्यजनक है !!