मिठाई एंड नमकीन टाईम्स हमेशा अपने मतों में, लेखों में, हमारे प्राचीन और पारंपरिक खाद्य संस्कृति और व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए आग्रहीत रहती है। हमारी खाद्य परंपरा हमारे प्राचीन विज्ञान की धरोहर है और इसका जिवंत उदहारण है आयुर्वेद। पिछले 5000 वर्षों से चल रही यह चिकित्सा प्रणाली आज के आधुनिक दौर में भी अपना अस्तित्व टिकाये हुए है और दिन ब दिन अपनी उपयुक्ता का लोहा भी मनवा रही है। यही कारण है की अन्य देशों में हमारे इस चिकित्सा प्रणाली के प्रति रूचि बढ़ रही है।
प्राचीन वेदों और ऋषियों के आधार पर विकसित, आयुर्वेद हमारे पास एक संपन्न और प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है। इस विशेष वरदान के द्वारा हमें स्वस्थ और समृद्ध जीवन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। आयुर्वेद के मुख्य सिद्धांतो ने हमें आहार का महत्व और उसके प्रभाव पर गहराई से विचार करने को प्रेरित किया है।
आहार, आयुर्वेद के मुख्य स्तंभों में से एक है। आहार हमारे शरीर और मन को पोषण देता है और हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार, शरीर के तीन मुख्य तत्व या प्रकृति होती हैं-वात, पित्त और कफ़। शरीर में जब भी इन तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है, व्यक्ति बीमार हो जाता है। इससे बचने के लिए ऐसा खाना खाने की सलाह दी जाती है जो जल्दी पच जाता हो और पोषक तत्वों से भरपूर हो। साथ ही, नियमित रूप से संतुलित आहार लेने पर भी ज़ोर दिया गया है।
प्रकृति के अनुकूल आहार लेना स्वस्थ जीवन का आधार है। इसके साथ ही, आयुर्वेद में ऋतुचर्या के अनुसार कौन सा आहार लें इसका समावेश भी है और आज भी हमारे भारतीय खाद्य संस्कृति में हम इस बात का ध्यान रखते हैं। ऋतुचर्या के साथ-साथ हम भारतीय भौगोलिक स्थिति, स्थानिक उपज और आहाररूचि का ध्यान रखते हुए ही उसके अनुसार आहार और आचार-व्यवहार करते हैं।
प्रकृति के अनुकूल आहार लेना स्वस्थ जीवन का आधार है। इसके साथ ही, आयुर्वेद में ऋतुचर्या के अनुसार कौन सा आहार लें इसका समावेश भी है और आज भी हमारे भारतीय खाद्य संस्कृति में हम इस बात का ध्यान रखते हैं। ऋतुचर्या के साथ-साथ हम भारतीय भौगोलिक स्थिति, स्थानिक उपज और आहाररूचि का ध्यान रखते हुए ही उसके अनुसार आहार और आचार -व्यवहार करते हैं।
मिठाई का स्वाद हर दिल को लुभाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये मिठाईयाँ हमारे आहार और ऋतुओं के साथ कैसे जुड़ी हुई हैं? आज हम आपको लेकर जा रहे हैं एक ऐसे अनोखी यात्रा पर जहाँ हम भारतीय मिठाईयों के आयुर्वेदिक पहलू को खोलेंगे। हर ऋतु के साथ बदलते रंग, हर मौसम के साथ बदलते तत्व-ये मिठाईयाँ हमारे स्वास्थ और आहार में प्राकृतिक सौंदर्य और बल प्रदान करती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर के गठन में तीन तरह के दोष वात, पित्त और कफ़ की प्रवृति होती है। हालाँकि यह दोष नहीं बल्कि शरीर गठन का स्वरूप है। उसी तरह आहार में 6 रसों का समावेश होना ज़रूरी है जिस में से एक है मधुर रस यानि की मीठा। आयुर्वेद के संहिता में हर व्यक्ति के प्रकृति की दिनचर्या तथा ऋतुचर्या का भी उल्लेख है। अगर हम गौर से निरक्षण करें तो हमारी भारतीय खाद्य संस्कृति में हमारे आहार में ऋतुचर्या का ध्यान रखते हुए ही व्यंजनों का निर्माण किया जाता है।
भारत में भौगोलिक स्थिति के अनुसार एक वर्ष में मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ (मौसम) आती हैं-गर्मी, शीतकाल और वर्षा। इन तीनों में शरीर के अन्दर अनेक प्रकार के परिवर्तन आते हैं। ये तीन मौसम 6 ऋतुओं में बाँटे गये हैं। ये ऋतुएँ हैं-वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त और शिशिर। प्रत्येक ऋतु दो-दो मास की होती हैं । चैत्र-वैशाख में बसन्त, ज्येष्ठ-आषाढ़ में ग्रीष्म, श्रावण-भाद्रपद में वर्षा, आश्विन-कार्तिक में शरद्, मार्गशीर्ष-पौष में हेमन्त तथा माघ-फ़ाल्गुन में शिशिर ऋतु होती है।
इसी ऋतुओं के हिसाब से हमारे यहाँ व्यंजन या मिठाईयाँ बनाई जाती हैं, जिसे हम सीजनल मिठाई या व्यंजन के नाम से जानते हैं। आईये, जानते हैं कि कौनसी ऋतु में भारत में कौनसी मिठाई का निर्माण और चलन होता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार निम्न ऋतु आते हैं:
शिशिर ऋतु: माघ-फ़ाल्गुन (जनवरी, फ़रवरी, मार्च)-शिशिर ऋतु मध्य जनवरी और मध्य मार्च तक इस ऋतु का काल माना जाता है। इस काल में गजक, तिल के लड्डू और चिक्की, खजूर बर्फ़ी, नारियल लड्डू, ड्राई फ्रूट चिक्की और लड्डू, मुंग दाल का हलवा, अड़दिया पाक, रेवड़ी जैसे मिठाईयों का समावेश है। हालाँकि, भारत के हर राज्य की परंपरा अलग है और त्यौहार भी। इसलिए इसमें वहाँ के स्थानिक पोषण और रीतियों के अनुसार भी व्यंजनों के निर्माण होते रहते हैं।
वसंत ऋतु: चैत्र-वैशाख (मार्च, अप्रैल, मई)-इस ऋतु का प्रारम्भ माघ मास की शुल्क पक्ष की पंचमी को होता है। बसंत ऋतु में न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा सर्दी होती है। इसलिए इसे सभी ‘ऋतुओं का राजा’ भी कहा जाता है। बसंत ऋतु में खाई जानी वाली मिठाईयों में गुजिया, मालपुआ, केसर पेड़ा, बासुंदी, गाजर-दूधी व मुंग-उड़द दाल का हलवा, दूध से बनने वाली मिठाईयों का सेवन किया जा सकता है।
ग्रीष्म ऋतु: ज्येष्ठ-आषाढ़ (मई, जून, जुलाई)दृ भारत में ऋतु चक्र का प्रारंभ भी ग्रीष्म ऋतु (गर्मी) चैत्र (मार्च-अप्रैल) माह से होती है। ग्रीष्म ऋतु में शरीर को ठंडा करने और हाइड्रेट करने के लिए निम्न प्रकार की मिठाईयाँ बनाई जाती हैं। आम पन्ना, ठंडाई, कुल्फ़ी जैसे मिठाई ग्रीष्म ऋतु में प्रतिष्ठित हैं और शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं।
तिल के लड्डू तथा तिल से बनाई जाने वाले और व्यंजन, पिन्नी, अड़दिया पाक, रेवड़ी, केसर पिस्ता कुल्फ़ी, आमरस पूरी, नारीयल लड्डू, आम श्रीखंड, आम और कच्चे कैरी से बनने वाले पेय और मिठाईयाँ, श्रीखंड, पियूष, शकरकंद से बनने वाली मिठाईयाँ, गोला (चुस्की) तथा मौसमी फलों के मिश्रण से बनने वाली मिठाइयों का समावेश है।
वर्षा ऋतु: श्रावण-भाद्रपद (जुलाई, अगस्त, सितंबर)दृहमारे देश में सामान्य रूप से 15 जून से 15 सितम्बर तक वर्षा की ऋतु होती है। वर्षा ऋतु में शरीर को पोषण देने और विशेष ज्वार से बचने के लिए यह मिठाई बनाई जाती है। इस ऋतु में गरम जलेबी, गाजर का हलवा, अदरक और गुड़ से बने पाक, मूंग दाल का हलवा, बेसन के लड्डू, मूंग दाल की बर्फ़ी, घेवर, शक्कर पारा, अधिरसम, पिस्ता बर्फी, मोदक ऐसी मिठाईयों का सेवन वर्षा ऋतु में प्रतिष्ठित हैं और शरीर को गर्मी प्रदान करती हैं।
शरद ऋतु: आश्विन-कार्तिक (सितंबर, अक्तूबर, नवम्बर)-शरद ऋतु, यानी की मौसम में गर्मी का शमन होने वाला समय, आयुर्वेद और
ऋतुचर्या के अनुसार ठंड प्रकृति का होता है। इस समय में आपको ठंडी मिठाई खानी चाहिए जो आपके शरीर को ठंडा करने और पित्त दोष को शांत करने में मदद करेगी। यहां कुछ मिठाई की सूची है, जो शरद ऋतु में आप खा सकते हैं। नारियल की बर्फ़ी, मोहनथाल, पूरन पोली, चंद्रकला, बादाम हलवा, काजू कतली, बेसन के लड्डू, राजभोग, गुलकंद यह कुछ मिठाईयाँ है जो शरद ऋतु में खायी जानी चाहिए।
हेमंत ऋतु: मार्गशीर्ष-पौष (नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी)-हेमंत ऋतु में शरीर को पोषण देने और वात दोष को संतुलित करने के लिए गाजर का हलवा, बादाम पिस्ता बर्फ़ी, रेवाड़ी, गोंद के लड्डू, गुड़ रेवड़ी, तिल गुड लड्डू, तिल या मूंगफली, ड्राई फ्रूट चिक्की, गजक, आटे के लड्डू, गाजर का हलवा और सूखे मेवे और उससे बनने वाले पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेना उचित है। हरियाणा के ग्रामीण आँचल में इस मौसम में गोंद, मोगर, मेथी आदि के लड्डू बनाने का प्रचलन है। यह सारी मिठाईयाँ हेमंत ऋतु में प्रतिष्ठित हैं और शरीर को गर्मी प्रदान करती हैं।
हमारे इस लेख का उद्देश्य है की किस तरह से आयुर्वेद के हितकारी विशेषताओं को हम हमारे मिठाई में उपयोग करके उसे और स्वस्थ और बहुगुणी बना सकते हैं। आज की पीढ़ी अपने आहार और खान-पान को लेकर इतनी जागृत हो गयी है। आजकल लोग ज़्यादातर शुगर-फ्ऱी मिठाई खाना ही पसंद करते है। पर शकर तो ब्रिटिशकाल से आई है, तो क्या उसके पहले मिठाई शुगर-फ्ऱी हुआ करती थी? जी नहीं, पहले इस प्रकार की चीनी प्रयोग में नहीं थी। भारतीय रसोई में मिठाई और मीठा बनाने के लिए अन्य स्वादों का प्रयोग किया जाता था। कुछ प्रमुख मिठाईयाँ और मीठे के प्रकारों के बारे में जानकारी निम्न है।
गुड (गुड़): गुड़ याने गन्ने के रस से बना एक मिश्रण जो मीठा करने के लिए इस्तेमाल होता था। गुड़ का सेवन पौष्टिक तत्व के साथ स्वस्थ के लिए भी अच्छा माना जाता है। इससे मीठा बनाने के लिए गुड़ को धूप में सुखाकर और फिर पिसाकर प्रयोग किया जाता था।
रसावल: शकर यानी गन्ने के जूस से तैयार किया गया मिश्रण जो मिठाई को मीठा करने के लिए इस्तेमाल होता था। रसावल मीठा बनाने के लिए और रसायनिक रूप से साफ़ न होने के कारण सफ़ेद चीनी से थोड़ा कम प्रचलित था।
मध (शहद): मध यानी शहद। व्यंजन को मीठा बनाने के लिए प्रचलित था।
खजूर (date): खजूर प्राकृतिक रूप से मीठा करने वाला एक प्राकृतिक स्वीटनर है। खजूर पोशाक तत्वों से भरपुर है। इसमें कार्बोहाईड्रेट, फ़ाइबर, विटामिन, मिनरल, और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।
इस प्रकार, सफ़ेद और क्रिस्टल चीनी के आने से पहले, गुड, रसावल, खजूर और शहद जैसे प्राकृतिक मीठा करने के तत्वों का उपयोग हुआ करता था। इन प्राकृतिक स्वीटनर का उपयोग हम दोबारा शुरू करके ऑरगेनिक तौर पर मिठाई को प्रोमोट कर सकते हैं। आयुर्वेद इतना सखोल शास्त्र है उसका जितना अध्ययन करें उतना कम है। आयुर्वेद में सिर्फ़ दिनचर्या या ऋतुचर्या ही नहीं बल्कि कौनसी वस्तु किस तत्व में खानी चाहिए इसका भी उल्लेख है। बादाम सोचने-समझने की ताक़त बढ़ाता है, पर उसका पेस्ट का सेवन कब्ज़ बना सकता है, वैसे की ठंड में वातनाशक, बसंत में कफ़नाशक और गर्मियों में पित्तनाशक मिठाईयाँ होनी चाहिए।
अब सीजनल मिठाईयों की बात हो रही है तो हमें यहाँ गर्भावस्था का उल्लेख करना उचित लग रहा है क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति है जो सीजन पर निर्भर नहीं होती है। आयुर्वेद में, गर्भस्थिति (गर्भावस्था) और प्रसव के बाद महिलाओं के लिए आहार का विशेष महत्व है। डिलीवरी के बाद महिलाओं को पौष्टिक आहार लेना ज़रूरी होता है, जिसे शरीर को शक्ति मिल सके और स्वास्थ बना रहे। यहाँ कुछ आहार और मिठाईयों की सूची हैं जो डिलीवरी के बाद महिलाओं के लिए आयुर्वेद में प्रतिष्ठित हैं।
गोंद के लड्डू: गोंद (खाद्य गोंद) प्राकृतिक तौर पर पौष्टिक होता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है और जोड़ों को मज़बूती देता है।
मेथी के लड्डू: लैक्टेशन को बढ़ाने में मदद करता है और मास-पेशियों को ताक़त देता है।
ड्राई फ्रूट्स लड्डू: ड्राई फ्रूट्स जैसे की बादाम, काजू, किशमिश, अख़रोट आदि पोषक तत्व से भरे होते हैं। मेवे लड्डू शरीर को पोषण देते हैं और एनर्जी लेवल को बढ़ाते हैं।
पंजीरी: पंजीरी में गेहूँ का आटा, घी, सूखे मेवे, गोंद आदि होते हैं। पौष्टिक होने के कारण पंजीरी शक्ति प्रदान करने में मदद करती है।
खजूर: खजूर में आयरन की मात्रा भरपूर है और ऐसे समय में महिलाओं को आयरन और कैल्शियम की सख़्त ज़रुरत होती है जो खजूर खाकर पूरी की जा सकती है।
भारतीय समाज में विशेष तीज-त्यौहारों पर भी विषेश व्यंजन बनाने का प्रचलन है। सावन में अनेक अवसरों पर गुलगुले, आटे व गुड़ के पूड़े आदि बनते हैं। होली पर मावा-युक्त गुजिया बनाई जाती है।
जन्माष्टमी के आने पर नारियल की बर्फ़ी बनाने का प्रचलन है। सर्दी में सत्तू के लड्डू बनते हैं। वर्षा ऋतु में घेवर व फिरनी बनाई जाती है। नव संवत्सर (start of the new year) पर मीठे चावल बनाए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट बनाया जाता है और इसी तरह यह सूची काफ़ी लंबी है। यह व्यंजनों की परंपरा ऋतुचर्या अनुसार आहार की व्यवस्था से निकली है। इसी प्रकार प्रत्येक मास की एकादषी, अमावस्या व पूर्णिमा से भी अनेक बातें जुड़ी हुई हैं।
भारतीय परंपरा में सहज रूप से प्रचलित ऋतुचर्या अनुसार आहार का पालन हमें एक स्वस्थ समाज की ओर ले जाता है। आवश्यक्ता है हमें विरासत में मिली परंपरा को आगे बढ़ाने की और नई पीढ़ी के मन में इस परंपरा को अपनाने हेतु भाव जागरण व जानकारी प्रेषण की।
आयुर्वेद और मिठाई की बात हो रही है तो हमें मिठाई के तत्ववेता Philosopher-बचानू साव का उल्लेख करना चाहेंगे। आगे का परिच्छेद का सारांश हेमंत शर्मा की “तमाशा मेरे आगे” पुस्तक से लिया हुआ है। बचानू साव यानी बचानू हलवाई। बनारसी मिठाईयों के रस और उसकी तासीर के प्रतिनिधि चरित्र। बचानू बनारसी मिठाईयों के ष्आर्कमिडीजष् थे। मधुरता और रस निश्पत्ति में कुछ नया प्रयोग, कुछ नई खोज में वे हमेशा लगे रहते। उन्हें आप बनारस का ‘मिष्ठान पुरुष’ भी कह सकते हैं। कब, कौन सी और कैसी मिठाई खानी चाहिए, इसका ज्ञान उन्हें था। बादाम के दो भागों के बीच अनानास का पल्प डाल उन्होंने एक मिठाई बनाई ‘रस माधुरी’। इसमें फ़ाईबर भी था और यह ‘एंटीऑक्सीडेंट’ भी। नागरमोठ, सोंठ, भुने-चने के बेसन और ताज़ा हल्दी से वे एक लड्डू बनाते थे, ‘प्रेम वल्लभ’ जो कफ़नाशक था और स्वाद में बेजोड़। मिष्ठान निर्माण में वे सिर्फ़ ऋतुओं का ही ध्यान नहीं रखते थे बल्कि उसके डिटेल में भी ख़्याल रखते थे।
सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायण होने से उनकी मिठाईयों की तासीर और तत्व बदल जाते। बचानू सोंठ और गोंद का एक लड्डू बनाते जो वास्तव में ‘पौरुषवर्धक’ होता। ष्भावप्रकाश निखट्टू’ और ‘इंडियन मेटेरिया मेडिका’ वनस्पतियों, मसालों, वृक्षों और उनकी पत्तों की तासीर बताने वाली किताब है जो हमारे खान-पान में विशेष काम आती है। इस परंपरा का भी एक इतिहास है। अवध के नवाबों के दौर में खाना बनाने वाले बावर्चियों को हकीम बावर्ची कहते थे। वे सिर्फ़ रसोईए नहीं होते थे, वे खान-पान के अवयव में पौष्टिकता और उद्दीपन के तत्व समझकर फिर खाना बनाते थे। इसीलिए उन्हें ‘हकीम बावर्ची’ कहते थे। बचानू भी मिठाईयों का सेहत के साथ ऐसा ही संतुलन बनाते थे। मिठाईयों को दूध बेसन के तत्वों से हटाकर उसमें सब्जी और वनस्पतियों का प्रयोगधर्मी इस्तेमाल बचानू ने पहले पहल किया था। सोंठ, मकरध्वज, शिलाजीत, अम्बर, शतावर, गोरखमुडीं को मिलाकर, वे एक लड्डू बनाते थे।
बचानू संत पलटूदास के कुछ दोहे और कुंडलियां भी सुनाते थे। पलटूदास फ़ैजाबाद के थे, वे संत भीखादास के शिष्य थे। सो बचानू उनके हवाले से दोहे सुनाते थे।
लस्सी बूंदी रसमलाई, खास सो स्वामी होय,
कहा सुनी की है नहीं खास पिए की बात
कोई मिठाई न दे सकी रसमलाई को मात
लस्सी से शक्ति भक्ति बूंदी से मिले मिठास
रसमलाई पलक में ब्रह्म का हो आभास
पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी धन्य हैं सोहन माई
लस्सी बूंदी सब फीकी हुई खाई जो रस मलाई।