ख़ुर्जा की खुरचन: अपनी अनूठी मिठास से और बुलंद करती हुई बुलंदशहर की पहचान (History of the Product )

ख़ुर्जा (Khurja) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर ज़िले में स्थित एक नगर है।”सिरामिक सिटी” से जाने जानेवाला यह शहर दुनिया के दस प्रमुख पॉटरी क्लस्टरों में से एक है। ख़ुर्जा में चीनी मिट्टी के बर्तन, फूलदान, सजावटी वस्तुएं, बिजली के फ़ूज़ सर्किट, इन्सुलेटर, कारों में इस्तेमाल होने वाले कई कलपुर्ज़े बनाए जाते हैं जिसके कारण देश-विदेश में इस कस्बे की अपनी एक अलग पहचान है जिस वजह से चीनी मिट्टी के क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने में भारत पहले स्थान पर है।

एशिया का बड़ा नव दुर्गा शक्ति मंदिर ख़ुर्जा में होने के साथ ही सिद्धेश्वर महादेव और भूड़ा महादेव मंदिर का भी अपना एक अलग स्थान है जिस वजह से साल में दो बड़े मेले लगते हैं जिसे देखने देश विदेश से लोग आते हैं। लेकिन आज हम आपको इस शहर की एक और अनोखी पहचान करवाने वाले हैं जो जाना जाता है अपने अनोखे और मीठे स्वाद के लिए और उस स्वाद का नाम है ख़ुर्जा का खुरचन!!

अब इसका नाम खुरचन है इसका मतलब यह नहीं की यह दूध की जली हुई मलाई को खुरचकर बनाई गयी मिठाई है बल्कि रबड़ी सदृश्य दिखने वाली यह मिठाई बनायी जाती है शुद्ध दूध की मलाईवाली परत से। मिठास में एकदम हलकी! पहले चौड़ी कढ़ाई में दूध को उबला जाता है। दूध में उबाल आने के बाद गैस को धीमा कर दिया जाता है। जिसके बाद कढ़ाई के ऊपर रबड़ीनुमा परत बन जाती है। इसे निथार कर रख लिया जाता है। इसी तरह एक के ऊपर एक परत रखने के बाद खुरचन को तैयार किया जाता है। कुछ कारीगर इसमें अधिक मिठास के लिए हल्की चीनी डालते हैं, और कुछ कारीगर तो चीनी का प्रयोग भी नहीं करते।

खुरचन मिठाई का इतिहास कुछ सौ साल से भी पुराना है । कहा जाता है कि बुलंदशहर और आसपास के क्षेत्र  में दूध की मात्रा काफी होती थी जिसके कारण उन्होंने दूध की ही अलग सी मिठाई बनाने के बारे में सोचा। तो 1914 में  शिवजी नामक हलवाई की दुकान पर पहली बार खुरचन मलाई को कढ़ाई में तब तक पकाया जब तक उसकी पापड़ी नहीं बनी और उसी को खुरच-खुरच के निकाला। इसी लिए खुरचन नाम पड़ा और तबसे इसका स्वाद देश विदेश के लोगों की जुबां पर चढ़ा हुआ है।

ख़ुर्जा की करीब 30 दुकानों पर खुरचन बनाई जाती है। सामान्य दिनों में एक दुकान पर करीब 20 से 30 किग्रा खुरचन की बिक्री हो जाती है, वहीं त्यौहारी सीजन में इसकी डिमांड काफी बढ़ जाती है। बात करें इसकी कीमत की तो ये आपको 360 से 400 रुपये किलो के दाम में मिल जाती है ।

खुरचन की इसी बढ़ती लोकप्रियता की वजह से यहां की सरकार ने ख़ुर्जा की खुरचन को राज्य के मशहूर खाद्य उत्पादों को GI Tag (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग) देकर विशिष्ट पहचान दिलाने की तैयारी की है। भारत के कई राज्य के खाद्य पदार्थों को तो टैग मिल भी चुका है। ख़ुर्जा के पॉटरी को तो GI टैग पहले ही मिल चूका है अब ख़ुर्जा की खुरचन को GI टैग देने की तैयारी है, इससे मिठाई विक्रेताओं में ख़ुशी का माहौल है। टैग का इस्तेमाल भी सिर्फ और सिर्फ ख़ुर्जा की खुरचन बनाने वाले ही कर सकेंगे। इससे यहां की खुरचन को अलग पहचान मिलेगी। साथ ही इसकी दूसरे राज्यों और जिलों में भी मांग बढ़ जाएगी।

ख़ुर्जा की खुरचन मिठाई की तरह ही खुरचन पेड़े भी राम की नगरी अयोध्या में प्रसिद्ध हैं। खुरचन वाले पेड़े का भगवान को भोग लगता आ रहा है। प्रतिदिन दो से ढाई किलो पेड़ा भेजा जाता है जो अयोध्या के दर्जनों मठ और      मंदिरों में भोग के रूप में दिखाया जाता है, और इसके बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद मिलता है। 2024 में हुए अयोध्या राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा में भी में खुरचन पेड़ा का भोग लगाया गया था।अब जब भी आप उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जाए तो ख़ुर्जा जाकर खुरचन की मिठाई चखना तो बनता है।

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