जिस स्थान के खाने की बात हम इस महीने करने जा रहे हैं, उनके बारे में हम क्या कहें ? इनके खान, पान, रहन-सहन, आर्थिक और भौगोलिक रचना के हर अंदाज़ में अनोखापन है। व्यवसाय के चाणक्य, स्वाद के चटोरे, गरबा के सरताज और स्वभाव से मोटा भाई, इनके इसी विषेशताओं के कारण ख़ुद अमिताभ जी भी यह कहने के लिए मजबूर हो गए कि कुछ दिन तो गुज़ारो गुजरात में। यह है गर्वी गुजरात जहाँ भक्ति, शक्ति, युक्ति का अनोखा संगम होता है। वैसे तो गुजराती खाद्य संस्कृति की एक अपनी संपन्नता है, पर यह शानदार गुजराती फ़रसाण या स्नैक एक स्वादिष्ट व्यंजन है जिसे पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है। जहाँ आज के मिलेनियम दुनिया में आर्टिसंनल व्यंजनों की धूम मची है, यह व्यंजन प्रतिक है की भारतीय खान पान में इसका अविष्कार आज नहीं हुआ बल्कि सदियों पुराना है।
बेसन की पतली परतें छाछ के साथ पकाकर और मुलायम रोल को लपेटकर, भुने हुए तिल और कुछ अन्य मसालों के साथ, कड़ी पत्ते, हरा धनिया, भुना हुआ ज़ीरा, सरसों और कद्दूकस किया नारियल की सरल लेकिन सुगंधित गार्निशिंग खांडवी को बेहद आकर्षक बनाती है। पेट पर हल्की और जुबाँ पर मनभावन, खांडवी एक उत्तम और पौष्टिक नाश्ता है। महाराष्ट्र में, इस व्यंजन को आमतौर पर सुरलीची वडी, पटुली, दही वडी के नाम से भी जाना जाता है। खांडवी बेसन या भुनी हुई बेसन और छाछ के मिश्रण से बनती है।
खांडवी सब की पसंदीदा डिश है, लेकिन यह व्यंजन तैयार करने के लिए, थोड़ा धैर्य धरना ज़रूरी है क्यों कि इसको बनाना थोड़ा मुश्किल है, विशेष रूप से बैटर की स्थिरता को प्राप्त करना। अगर बात करें खांडवी के उत्पति की, तो ऐसे कोई ख़ास प्रमाण लिखित नहीं है, लेकिन ब्रिटिश काल से इसका निर्माण हुआ ऐसे माना जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान, गुजरातियों ने बहुत ही कुशल क्लर्क होने की प्रतिष्ठा क़ायम की। इस प्रकार, उन्हें अक्सर अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में स्थानांतरित कर दिया गया, उदाहरण के लिए, पूर्वी अफ्ऱीक़ा में।
प्लेटो ने जैसे कहा है की “आवश्यकता आविष्कार की जननी है”, बस इसी तरह और इसी प्रकार से, गुजराती और सिंधी समुदायों के प्रवासन ने नवीन खाना पकाने का मार्ग प्रशस्त किया। समुद्री मार्गों पर अफ्ऱीक़ा के रास्ते में, गुजराती समुदाय हमेशा भूख के दर्द से बचने और अपने स्थानीय व्यंजनों के स्वाद को याद रखने के लिए अपने फ़रसाण या स्नैक्स ले जाते थे। जल्द ही, उन्होंने ख़राब होने वाले फ़रसाण के बजाय बेसन को खुद ले जाने की योजना तैयार की। इस तरह वे अपनी पसंद के सारे फ़रसाण अफ्री़क़ा में ही बना सकते थे। भाप लेना, भिगोना, या किण्वन (फर्मैटिंग)-इन प्रक्रियाओं को अब आसानी से किया जा सकता था। इसी तरह से खांडवी का अविष्कार हुआ।
खांडवी सिर्फ़ स्वाद में ही नहीं बल्कि पौष्टिक तत्वों के प्रमाणों में भी एक सुपर रिच फूड में प्रणीत किया जा सकता है। हर कोई जानता है कि इस मिश्रण को पकाना पूरी रेसिपी का सबसे पेचीदा और कठिन हिस्सा है। भुने हुए बेसन में प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है। यह छाछ के उपयोग से बढ़ाया जाता है, जो प्रोटीन में भी उच्च होता है। आज कल जहाँ डाइट फूड का चलन है, खांडवी डाइट प्रेमियों के लिए एक अच्छा पर्याय है।
खांडवी यूँ तो गुजरात के हर घर की रसोई से लेकर किसी भी मिठाई और नमकीन की दुकान पर उपलब्ध हो जाती है। इस व्यंजन का स्वाद लहसन या हरे धनिये की चटनी, पनीर या सॉस की टॉपिंग के साथ ज़बरदस्त साबित होता है या नारियल के पारंपरिक टॉपिंग के साथ खा सकते हैं। गरम या ठंडा, किसी भी तरह इसका स्वाद ले सकते हैं।