मेरा वादा था कि मैं आपसे अपने राजस्थान के बचे हुए सफ़र का उल्लेख करूँ। मैंने सफ़रनामा 7.1 में राजस्थान में किये हुए जयपुर, अजमेर और बीकानेर के दौरे का ज़िक्र किया था जहाँ से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला और वह सब आपसे साझा किया। मैंने आपसे यह भी कहा था कि मुझे आपसे और भी बातें बतानी हैं लेकिन एक बार में वह मुमकिन नहीं था। इसीलिए सफ़रनामा 7.2 में अपने आगे के अनुभव को साझा करते हुए और अपने सफ़र को आगे बढ़ाते हुए आपको एक बार फिर ले चलता हूँ राजस्थान राज्य के शहरों कि उन गलियों में जहाँ हमने हर क़दम कुछ नया सीखा और अनेक स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लिया। यूँ तो मैं 3 दिन पहले ही आंध्र प्रदेश के दौरे से वापस आया हूँ जो अपने आप में एक यादगार सफ़र रहा। राजस्थान के सफ़र की कहानी अधूरी थी तो उसको पूरा करना भी ज़रूरी था।
जैसे कि मैंने आप से पिछले अंक में बताया की राजस्थान एक अतुल्य राज्य है जिसके शहरों का रहन-सहन एक दूजे से बिल्कुल अलग है। इस अंक में राजस्थान के और दो शहर जोधपुर और उदयपुर के भ्रमण कि व्याख्या आप से करनी थी। ये दोनों ही शहर और इनके आस-पास का क्षेत्र न सिर्फ़ पूरे राजस्थान, बल्कि आपस में भी भिन्न हैं। हमारा क़ाफ़िला शाम से पहले ही बीकानेर से निकल गया परन्तु साथ में बहुत सा बीकानेरी प्यार और भुजिया व नमकीन के गिफ्ट हैंपर्स दीपक अग्रवाल, डायरेक्टर, ‘बीकाजी फूड‘ ने प्रदान किये। कई और बन्धु भी कुछ न कुछ मिठाई व भुजिया साथ लाये जो हमारे आगे के सफ़र में बहुत काम आए और घर तक भी पहुंचे ।
जोधपुर
जोधपुर राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक है और इसकी प्रमुखता का कारण इसका ऐतिहासिक होना है। यहाँ के क़िले और पुरानी इमारतें पूरे विश्व से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। साथ ही यहाँ का खाना, बोली और मेहमान नवाज़ी की बात ही अलग है। यह न सिर्फ़ अपने में ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है बल्कि यूँ मानिये कि जोधपुरी तहज़ीब का हर कोई क़ायल है, यह राजस्थान का लखनऊ है जहां आम लोग भी आपस में जब बात करते हैं तो एक दूसरे को ‘सा‘ लगा कर ही संबोधित करते हैं। एक मित्र ने तो यहाँ तक कह डाला कि जोधपुरी लोग रास्ते में बैठे किसी जीव-जंतु को भी ‘सा‘ बोल कर ही हटाते हैं। इसमें सबसे मजे़दार बात यह है कि मैं ये सब किताबों से पढ़कर नहीं बोल रहा हूँ बल्कि अपनी आँखों देखी बातों का वर्णन कर रहा हूँ।
बीकानेर से निकलते ही हमारे जोधपुरी मित्रों के फ़ोन आने लगे के आप लोग कब आएंगे, रात का खाना साथ ही खाना था तो ज़िम्मेदारी थी कि हम समय से पहुंच जाएँ, मगर गूगल बाबा का मीटर ये बोल रहा था कि हम 10 बजे से पहले नहीं पहुंच पाएंगे।
नवीन जी खंडेलवाल ‘चन्द्रविलास नमकीन,’ जो जोधपुर में हमारे सबसे पुराने मित्र हैं और गोविन्द जी खंडेलवाल के ‘सुपुत्र’ हैं (गोविन्द जी जोधपुरी मिठाई व नमकीन समाज के गणमान्य व्यक्ति हैं जिनकी नमकीन को पिछले वर्श WMNC में हैदराबाद में अवार्ड भी मिला था), उनके फ़ोन परस्पर आते रहे और साथ में राजेश अग्रवाल जी ‘जनता स्वीट्स‘ का भी फ़ॉलोअप चलता रहा। हमारा क़ाफ़िला बीकानेर पहुंचते-पहुंचते और बड़ा हो चला था तो लगभग 4 गाड़ियाँ आगे पीछे तेज़ रफ़्तार से जोधपुर की भूमि को छूने के लिए दौड़ रहीं थीं। रास्ते भर अतिरेक जी हमसे क़दम-क़दम का ब्यौरा लेते रहे। उनकी यह बात बहुत अच्छी है, कि वह हमारे पहुंचने से पहले ही अपने मित्रों को सूचित कर देते हैं जो कि सभी तरह के सहयोग के लिए हमारे संपर्क में रहते हैं। रास्ते भर पुनीत और समीर खोराजिया से बातें होती रहीं और अंततः हम जोधपुर की पावन धरती पर पहुंच गए। मौसम काफ़ी सुहाना था और मानों ऐसा लगता था कि जो बादल हम अजमेर में छोड़ आये थे वो हमें जोधपुर में फिर मिल गए हों।
‘होटल फर्न‘ के बाहर ही नवीन जी और राजेश जी से भेंट हुई और हम फ्ऱेश होकर खाने की मेज़ पर तुरंत अवतरित हो गए। भूख भी काफ़ी लगी थी और नवीन जी जोधपुरी पकवानों कि लिस्ट के साथ व्याकुल थे हमें जोधपुरी खाना खिलाने के लिए। उन्होंने आर्डर दिया और सब ने मिल कर वहाँ के व्यंजनों के स्वाद का आनंद लिया और कुछ डिसकशंस के बाद सुबह को नाश्ते पर मिलने का वादा किया।
जब नाश्ते पर मिलने का वादा था तो सुबह जल्दी ही होनी थी। हम नाश्ते की मेज़ पर लगभग 8:30 बजे पहुंच गए और देखा कि ना सिर्फ़ नवीन जी और राजेश जी बल्कि जोधपुर के अनगिनत मिठाई व नमकीन के निर्माता हमसे मिलने वहाँ आए हुए हैं और मेहमान नवाज़ी की ख़ूबसूरती ये थी कि सब कुछ न कुछ जोधपुरी व्यंजन अपने साथ लाये थे। पुनीत ने यही कह दिया अगर सब कुछ खाया तो दोबारा रूम पर जाकर एक और नींद लेनी पड़ेगी हज़म करने के लिए मगर प्रेम की नदी में हमने बहते हुए जोधपुरी पकवानों का आनंद लिया।
इस में ‘जनता स्वीट्स‘ की ओर से मीठी कचैरी आयी थी, लस्सी आयी थी संदीप जी ‘मिश्रीलाल‘ की ओर से, और इसी तरह जलेबी, समोसे और कई तरह की मिठाई व नमकीन लेकर मेहूल व्यास ‘जोधपुर स्वीट्स‘ से, अनिल अरोरा ‘अरोरा स्वीट्स एंड नमकीन‘ से और राहुल अग्रवाल, माधव अरोरा, मनीश वैश्णव, राधे श्याम धूत, सभी बंधु साथ में आए हुए थे। इतना प्रेम और आदर सिर्फ़ वो ही कर सकता है जो दिल से मिलता है और यही मैं मानता हूँ, बस यूँ कहें कि जोधपुरी मिठाई व नमकीन उद्योग के बंधुओं ने दिल जीत लिए और वो भी पेट के रास्ते से।
मीटिंग का समय प्रातः 11 बजे का था और हम सब मीटिंग में समय से पहुंच गए। वहाँ का समां तो अलग ही था। एक विशाल सभा हमारा इंतज़ार कर रही थी। कई बुज़ुर्गों ने अग्रिम पंक्ति में खड़े हो कर हमारा स्वागत किया जो कि अविस्मरणीय था। गोविन्द जी खंडेलवाल जिनका साथ और आर्शीवाद सदा मिलता रहा है उनके साथ, सुरेश जी व्यास ‘जोध पुर स्वीट्स,’ जेठमल जी अग्रवाल, रमेश चंद्र जी अग्रवाल, रमेश जी खंडेलवाल, ठक्कर साहब, अनिल जी राठी सभी का आर्शीवाद साथ था तो मीटिंग भी अप्रतयशित होनी थी। यह सभी वह नाम हैं जिन्होंने इस उद्योग को जोधपुर के क्षेत्र से निकाल कर भारतीय पटल पर ला छोड़ा और इनकी अगली पीढ़ी अब उसे अंतरराष्ट्रीय पटल पर ले जाएगी ऐसी हमारी मनोकामना है और नई पीढ़ी के लिए चैलेंज।
मीटिंग में भी कुछ इसी तरह के विषयों पर चर्चा रही, सभी दोस्तों का कहना था कि इस तरह कि मीटिंग्स बार-बार होना चाहिए ताकि सब मिलते रहें। यूँ तो सब एक दूसरे के नाम से परिचित थे मगर मिलना पहली बार हुआ था। ‘जोधपुर मिठाई व नमकीन एसोसिएशन‘ को रीलॉन्च किया गया। अब तक की सभी मीटिंग्स में से यहाँ कि यह सबसे बड़ी मीटिंग थी और लगभग 100 से अधिक लोगों ने अपनी प्रस्तुति पेश की थी। बड़े प्यार भरे अंदाज़ में मेरे सिर पर जोधपुरी साफ़ा बांधा गया जिसका में हमेशा ऋणी रहूँगा और जब JMNA को मेरी ज़रूरत होगी मैं आजाऊंगा, ये वादा नवीन जी से मैं ने किया जब वो मुझे साफ़ा बांध रहे थे। अब बारी आयी फिर से जोधपुरी खाने को चखने और मिठाईयों को खाने की , जी हाँ! वहां का हिसाब उल्टा है वो कहते हैं खाना मिठाई है और मुँह नमकीन करने को खाना खा लेते हैं।
और जो खाना यह खाते हैं वो भी रसमलाई और गुलाब जामुन की सब्ज़ी ही होती है। जोधपुर में मिठाईयों की सब्ज़ी बनती है, हाँ मगर वो मीठी नहीं होती। नमकीन गुलाब जामुन, रसगुल्ले और रसमलाई की सब्ज़ी जो बहुत ही स्वादिष्ट थी। मेरा खाना ख़त्म होते-होते सभी के हाथों से कम से कम 10 जोधपुरी केसर बाटी और गुलाब जामुन खा चुका था। बस खाना और हंसी मज़ाक को विराम दे कर विश्राम करने ऊपर कमरे में चले गए और सबसे वादा किया कि हम शाम को उन शोरूम्स पर ज़रूर आएंगे। अब मिठाई नमकीन के देवताओं से मिले थे तो उनके मंदिर भी देखने ज़रूरी थे। लगभग 5 बजे हम जोधपुर भ्रमण के लिए निकले ‘उमेद भवन पैलेस‘ नहीं जाकर सबके शोरूम्स पर गए ।
अभी दोपहर का खाना हज़म भी नहीं हुआ था और हम एक बार फिर जोधपुरी मेहमान नवाज़ों के हाथों में थे। प्लान ये था कि हम सबसे दूर के शोरूम्स पर पहले जाएंगे और रात को लौटते वक़्त नज़दीक के शोरूम देखते हुए आएंगे मगर जाना सभी जगह था क्योंकि सीखने के लिए इससे अच्छा मौका और शहर नहीं मिलेगा।
न्योते मीटिंग में ही मिलने लगे और हम जोश में सब को आने की हामी भर चुके थे। मीटिंग में एक यंग और डायनमिक बन्दे से मिलना हुआ नाम था रौनक़ माल, ‘सैफरन स्वीट्स‘ से। बस हमने रौनक़ को कॉल किया और गूगल बाबा को फ़ॉलो करते-करते उनके शोरूम पर जा पहुंचे। अच्छी बात ये रही कि रौनक़ और उसके भाई ने काफ़ी मेहनत से ख़ुद को ट्रेडिशनल जोधपुरी स्वीट्स से अलग करते हुए मॉडर्न स्वीट्स की तरफ़ ज़्यादा इच्छुक दिखाया है। ये बात शायद हमें आम बात लगे क्योंकि हम तो मॉडर्न मिठाई के शोरूम्स देखते ही रहते हैं मगर जोधपुर वासियों को चेंज ऑफ़ टेस्ट के लिए काफ़ी पसंद आता होगा। और यही मानना था माल भाईयों का भी, के हम शहर वासियों को कुछ नया और अलग हट कर खिलाना चाहते हैं। मिठाईयों को चखते-चखते माल भाईयों के चाचा भी आ गये और बिल्कुल शोरूम से सटे हुए अपने रेस्टोरेंट में ले गए जो बहुत आलीशान था। न-न करते भी आधी-आधी रोटी जोधपुरी दाल और रसमलाई की सब्ज़ी से जोधपुरी मेहमान नवाज़ी के साथ खा ही ली।
कुछ देर चर्चा के बाद हमने जोधपुर की लैंडमार्क शॉप यानी ‘जोधपुर स्वीट्स’ की ओर गाड़ी का पहिया घुमा दिया और बाहर ही व्यास साहब के दर्शन हो गए। मेहुल कुछ देर में आये तब तक व्यास साहबकाफ़ी कुछ बता चुके थे उनके पारिवारिक व्यापार के बारे में जो उनको उनके ‘मामा श्री‘ से मिला है जिनका यही कारोबार कोटा शहर में है। कई मिठाईयों को चखने के दौरान हमने संगम बर्फ़ी का स्वाद चखा जो आज भी याद है। निकलते समय व्यास जी ने ‘संगम बर्फ़ी’ और ‘काजू रोटला’ के कई डिब्बे गाड़ी में रखवा दिए थे जिसकी चर्चा मैं कई जगह पर करता रहा हूँ और हाल ही में मधुसूदन अग्रवाल जी, ‘हल्दीराम दिल्ली’ के समक्ष भी कर आया हूँ और उन्होंने भी खाने की इच्छा जताई है। व्यास जी बहुत ही दिलचस्प व्यक्ति हैं और उनको मिठाई व नमकीन के व्यापार के बारे में काफ़ी अनुभव है। उनके सुपुत्र मेहुल व्यास और निखिल व्यास, दोनों भाई इस काम को काफ़ी आगे ले जाने के लिए तत्पर हैं। फॅ़मिली मेंबर्स ने हमारे साथ कुछ नए प्लान भी डिसकस किये और मुझे उम्मीद है कि मैं जब अगली बार जाऊंगा तब तक वो प्लान्स अपना रूप ले चुके होंगे।
‘जोधपुर स्वीट्स’ पर पहुंचना था और बाक़ी लोगों के फ़ोन आने लगे कि आप यहाँ कब पधारेंगे। यहाँ से हम गाइडेंस लेकर ‘मिश्रीलाल’ के घंटा-घर वाले शोरूम पर पहुंच गए और वहाँ पहुंचते-पहुंचते मुंबई से साथ आए बादल जयपुर और अजमेर के रास्ते होते हुए जोधपुर की धरती पर बरस पड़े। मगर हमारा हौंसला नहीं टूटा और हम आगे बढ़ गए। ऐसे देखा जाये तो मुंबई वालों पर बारिश का असर होता भी नहीं है। हम तो हमेशा इसका आनंद उठाया करते हैं ।
‘मिश्रीलाल’ की लस्सी की दुकान बहुत ही स्ट्रेटेजिक लोकेशन पर जोधपुर के सेंटर में घंटा-घर के एकदम सामने बनी है। ये एक ऐतिहासिक जगह भी है और जैसा कि संदीप अरोरा जी ने बताया कि फ़ॉरेन टूरिस्ट्स के लिए ख़ास जगह भी है। संदीप जी इस दुकान को अपने भाई वरुण के साथ पिताजी की गाइडेंस में बख़ूबी चला रहे हैं और हमें पिछले दो दिन से लस्सी पिलाते जा रहे थे। आज फिर एक-एक गिलास लस्सी पी ही डाली। अब आप समझ सकते हैं सुबह से हमारा क्या हाल होगा खा-खा कर, और अभी कई जगह जाना बाकी था।
बारिश की फ़ुहारों के साथ हम चल निकले ‘चन्द्रविलास नमकीन’ के शोरूम पर पहुंचे, जहाँ नवीन जी नजरें बिछाये बैठे थे और उधर उनके चाचा रमेश जी खंडेलवाल हमें बुलाने के लिए फ़ोन पर फोन कर रहे थे। नवीन जी नमकीन का अच्छा कलेक्शन रखते हैं और क्यों न हो गोविन्द जी उनके पिता ने काफ़ी मेहनत के साथ इस कारोबार को खड़ा किया जहाँ अच्छी रेंज के साथ बेस्ट क्वालिटी की नमकीन एक ही छत के नीचे मिल जाती हैं।
अब तक जो भी देखा वो अप्रत्याशित था और हमारा जोधपुर की गलियों में भटकना सदा के लिए यादगार हो गया। यहाँ से ‘मारवाड़ स्वीट्स‘ की शॉप पर पहुंचे जो कि काफ़ी अच्छी लोकेशन पर थी। रमेश जी ने खाने के लिए कई मिठाईयाँ हमारी तरफ़ बढ़ा दीं मगर पेट ठुस्स चूका था तो केवल केसर बाटी ही चखी और कई प्रकार की मिठाईयों के डिब्बे साथ में लिए, जिनमें सबसे प्रमुख थे रबड़ी के लड्डू जो पहले दूध की रबड़ी बना कर और बेसन मिला, बूंदी बना कर लड्डू बनाये जाते हैं, उल्लेखनीय है और इन लड्डूओं की बंधाई गुलाब जल से होती है। तवा पूरी में बाहरी सतह पर मैदा और पूरी के अंदर दाल का हलवा होता है। दिलकुशाई मिठाई, बराबर के मावे को ज़्यादा सिकाई कर के बनाई जाती है। रमेश जी ने बड़े प्यार से इन सब को हमें यादगार के तौर पर दिया जो सदा याद रहेगा।
बस ‘मारवाड़ स्वीट्स’ से हम निकल गए और चले ‘परिहार स्वीट्स’की ओर जो काफ़ी नज़दीक था या यूँ कहें कि मुंबई वालों के लिए ज़्यादा दूर नहीं था। अभिक परिहार जिसके मालिक हैं, एक अच्छी पर्सनालिटी के साथ यंग और टैलेंटेड व्यक्ति हैं। ‘परिहार स्वीट्स’ पर पहुंच कर हमने कहा भाई सिर्फ़ देखना है खाना कुछ भी नहीं है। यहाँ भी वही स्थिति बनी हुई थी। यह दुकान भी उतनी ही भव्य, आलीशान और आकर्षक थी और एक लम्बी रेंज मिठाईयों और स्नैक्स की मौजूद थी। सबसे अच्छी बात अभिक की यह लगी कि उन्होंने पट्टीसेरी का एक अलग शोरूम बना रखा है, मिठाई शोरूम के नज़दीक ही, ‘केक्स ऐन मोर‘ के नाम से है।
यहाँ पर वो जोधपुर वासियों को भारत की सर्वोत्तम बेकरी प्रोडक्ट्स जैसे केक, पेस्ट्रीज़ वगै़रा खिलाते हैं। ये कंसेप्ट अब लगभग सभी बड़े और छोटे शोरूमस में आता जा रहा है। हाल ही के आंध्रा प्रदेश दौरे पर भी कुछ यही सब देखा जिसका वर्णन अगले इशू में होना है। पुनीत कि तो अभिक से वहीं दोस्ती हो गयी क्योंकि बातों-बातों में पता चला कि दोनों को घोड़ों का शौक़ है। अभिक ने भी हमें अपने फ़ार्म हाउस पर आने का न्योता दिया जिसको हम अगली बार फॅ़मिली विजिट में पूरा करेंगे।
जोधपुर वालों के फ़ोन आते रहे और रात भी चढ़ चुकी थी हमने सब से माफ़ी मांग कर होटल की तरफ़ रुख किया और कुछ देर पुनीत के साथ वॉक करके सोने चले गए। मगर मेहमान-नवाज़ी की कहानी अभी बाकी है। सुबह निकलने से पहले आफ़ताब से कोआर्डिनेट करके नवीन जी और मेहुल व्यास मिठाईयों और नमकीन के साथ हमें अलविदा कहने आ गये। जी हाँ, इसे ही कहते हैं जोधपुरी मेहमान-नवाज़ी जो सदा के लिए हमें ऋणी कर गयी। सबसे जयपुर में होने वाले ‘मिठाई व नमकीन कन्वेंषन‘ में मिलने का वादा लिए हम अपने अगले पड़ाव उदयपुर की ओर निकल पड़े।
सभी ने बताया था कि जोधपुर से उदयपुर का रास्ता बड़ा मन-मोहने वाला है और रोड भी अच्छी है तो हमने सोचा क्यों न खु़द ड्राइव किया जाये। अब मैं एक नए, परन्तु हर सफ़र में साथी व्यक्ति का नाम इस सफ़रनामे में जोड़ने जा रहा हूँ। जिन-जिन शहरों में हम जाते हैं अगर गाड़ी अपनी होती है तो ड्राइवर होता है रवी जो कि पुनीत का न सिर्फ़ ड्राइवर है पर बॉडी गार्ड भी है। जिसकी गाड़ी 80 के ऊपर नहीं जाती, पुनीत के ‘पिता जी’ के निर्देषों अनुसार जिसका रवी बहुत मन से पालन करता है।
जब रवी से गाड़ी की स्पीड बढ़वानी होती है तो हम आपस में ऐसे ही बात करते हैं “विपिन तो पहुंच भी गए, अरे आफ़ताब की गाड़ी तो बस 20km दूर ही रह गयी है जोधपुर से”। तब रवी को जोश आता है और वो गाड़ी को 100 या 120 पर ले जाता है।
मगर यहाँ दुविधा थी कि रवी हमें अपनी गाड़ी चलाने देगा या नहीं और वही हुआ मांगने पर वह बोला, “साहब, आप सब मीटिंग में स्पीच देते हो मैं ने कभी बोला मैं दूंगा ?” मतलब साफ़ था वो अपनी नौकरी को ख़तरे में समझ रहा था या तो पिता जी के निर्देषों का पालन कर रहा था। गाड़ी हाथ नहीं लगने वाली थी, पर तभी समीर के मन में एक आईडिया आया और दूसरी गाड़ी जो कि रोहित, पुनीत का सेल्स हेड है चला रहा था उसको बीमार कर दिया और रवी को बोला जा कर उनको हैल्प करो और ये गाड़ी फ़िरोज़ भाई को दे दो। और मज़े की बात ये है कि रवी मान गया।
फिर शुरू हुआ उदयपुर से आने वाली कॉल्स का सिलसिला और शानदार, खू़बसूरत जोधपुर-उदयपुर रोड का सफ़र। बहुत ही सुन्दर नज़ारे और वादियां पड़ीं और हलकी-फुल्की बारिश भी होती रही।
उदयपुर
अनुमान से भी कम समय में हम उदयपुर पहुंच गए। उदयपुर कि बागडोर सुखलाल जी के हाथों में थी जो FSNM के मुख्य सदस्यों में से एक हैं और उदयपुर मिठाई व नमकीन संघ के सेक्रेटरी भी हैं। सुखलाल जी का विशेष रूप से नमकीन का काम है जिसको वो बड़े चाओ और सेवा भाव से करते हैं। पूरा परिवार बहुत ही शालीन और सभ्य है जिसका उदयपुर में अच्छा नाम है। सुखलाल जी अपने मित्र राजेश जी के साथ जो कि ‘राजलक्ष्मी कैटरर्स’ के मालिक हैं, आंखें बिछाये हमारा इंतज़ार कर रहे थे। ठहरने का इंतेज़ाम बहुत ही आलीशान होटल में किया था और वहीं उनसे भेंट हुई। सुखलाल जीने बताया मीटिंग शाम को 7 बजे है और कुछ आराम कर सकते हैं। बस, कुछ चर्चा के बाद वो चले गए और हम जरा-सा आराम करने अपने-अपने रूम्स में चले गए।
उदयपुर के नमकीन मिठाई व्यवसाय का भूगोल ज़्यादा नमकीनों की तरफ़ झुका है जबकि कई बड़े ब्रांड्स के मिठाई शोरूम्स भी हैं। इनमें प्रमुख तौर पर वासुदेव विरवानी ‘शास्त्री स्वीट्स‘ से, बाबूजी राजपुरोहित ‘श्री जोधपुर मिश्ठान भंडार‘ से और भावेश साहू ‘रामजी स्वीट्स‘ से और राजेश जी ‘नाकोड़ा मिश्ठान‘ से आये थे ।
वहीं साथ में थे गुड्डू भाई ‘रबड़ी वाले‘ जिन्होंने अपनी रबड़ी से सब का दिल जीत लिया और इन में सबसे प्रमुख हैं हमारे परम मित्र और बड़े भाई सुखलाल साहू ‘भगवती नमकीन‘ से। और भी कई बंधुओं ने मीटिंग कि शोभा बढ़ाई जिसमें हितेश कथूरिया ‘वासुदेव स्वीट्स‘ से और श्याम जी ‘नवलानी संगम नमकीन‘ से।
मीटिंग में एक बात का एहसास हुआ कि सुखलाल जी ने सब को बहुत अच्छे से जोड़े रखा है और लोकल बॉडी बहुत मज़बूत है, एक-दूसरे के लिए सदा साथ हैं। मीटिंग और मीटिंग के बाद चर्चाओं में यही बात निकल कर आयी कि सभी उदयपुर के मिठाई व नमकीन वाले उदयपुर से आगे के कारोबार पर भी नज़र जमाये हुए हैं। सही मौक़ा और गाइडेंस इनको मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में मशहूर कर सकते हैं। बहुत ही प्रेम से सभी भाईयों ने उदयपुरी साफ़ा बांध कर हमारी इज़्ज़त अफ़ज़ाई की जो सदा के लिए यादगार बन गयी।
मीटिंग के बाद उदयपुरी अंदाज़ में सब ने साथ में खाना खाया जिसमें कई तरह के जोधपुरी स्टार्टर्स और मिठाईयाँ थीं। रात काफ़ी हो चुकी थी और हमें सुबह जल्दी घर वापसी की फ़्लाइट लेनी थी। ये बात ज़रूर है कि कितना भी सफ़र सुहाना हो, यादगार हो पर अंत में घर ही याद आता है। लगभग एक हफ़्ते से हम कहीं न कहीं घूम ही रहे थे और अब मन घर जाने का था।
चलते-चलते सुखलाल जी ने अपने सुपुत्र मनोज साहू से मिलवाया और वो भी सुखलाल जी की तरह शालीन और मेहमान-नवाज़ हैं। मनोज ने काफ़ी आग्रह किया कि हम उसके नए वेंचर ‘द ग्रीक फार्म‘ जो एक ओपन एयर रेस्टॉरेंट था, पर चलें और देखें कि वो क्या कर रहा है। रास्ता होटल की तरफ़ ही था तो हमने कहा कि कुछ देर बैठ कर निकल जायेंगे। वहाँ से हम मनोज की गाड़ी में बैठ गए और बाक़ी लोग अपनी गाड़ियों के साथ पीछे-पीछे हो लिए। कुछ देर बाद मनोज का रेस्टॉरेंट आया और देख कर आँखें चकित रह गयीं कि उदयपुर में भी ऐसा नाईट-आउट प्लेस हो सकता है? एकदम मुंबई या दिल्ली के अंदाज़ में हैपनिंग प्लेस जिसकी आशा तो की जा सकती थी मगर ये नहीं सोचा जा सकता था कि सुखलाल जी जैसे शालीन व्यक्ति का बेटा इतना इनोवेटिव भी हो सकता है, उदयपुर में रह कर!!
जब मनोज ने मेनू आर्डर करना शुरू किया तब ये एहसास हुआ कि जिस उदयपुरी खाने की चर्चा हम पहले कर रहे थे वो खाया ही क्यों,डिनर तो हमें यहीं करना चाहिए था। बहुत ही अच्छा अरेंजमेंट और खाना एक अच्छी सॉफ़्ट ड्रिंक की रेंज के साथ वह परोसे जा रहा था जिसको हम सिर्फ़ चख ही पाए। मनोज के प्लान्स को सुन कर बहुत खुशी हुई और ये भी एहसास हुआ कि किस तरह से ये नए उम्र के लड़के दुनिया को जीत रहे हैं। वादों के साथ कि हम अगली बार दोबारा यहाँ पूरी तैयारी से आएंगे, हम निकल गए। फिर भी 2 घंटे लगे वहाँ से निकलने में और रात का 1 बज चूका था, रिटर्न फ्लाइट सुबह 7 बजे थी। बस जाते ही पैकिंग की और कुछ देर हम सो लिए अगले दिन मुंबई वापस पहुंचे और आज तक राजस्थान के दोस्तों से उनकी मेहमान नवाज़ी की बातें ही कर रहे हैं।
उम्मीद है कि अगला WMNC जो 15 -17 दिसंबर 2021 को जयपुर में होने वाला है, उसमें भी हम पूरे विश्व से आये, मिठाई बंधुओं का राजस्थानी अंदाज़ में स्वागत और सत्कार कर पाएंगे। मगर ये वादा ज़रूर है कि उनको यह ट्रिप याद ज़रूर रहेगा। और इस वादे के साथ आप से विदा लेता हूँ कि अगले अंक में आंध्रा की मिठास का वर्णन आप के समक्ष किया जायेगा।