भारत में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत। इनमें वसंत को ऋतुराज और वर्षा को
‘ऋतुओं की रानी’ कहा जाता है। वास्तव में ‘वर्षा’ ही वह ऋतु है जिसका लोगों द्वारा सर्वाधिक इंतज़ार किया जाता है।
बरसात का मौसम अपनी चरम सीमा पर है, पूरे देश में मानसून का क़ब्ज़ा बना हुआ है। बरसात का अलग ही मतलब है वेस्टर्न घाटों के प्रदेशों में। अमूमन तो यहाँ सुन्दर दृश्य ही रहते हैं पर कभी-कभी बरसात त्रासदी भी बन जाती है। इस बार स्थिति महाराष्ट्र के कोंकन क्षेत्र की भयावह बनी हुई है। 2 साल पहले यही हाल केरल का भी हुआ था पर आम तौर पर केरेला, गोवा, महाराष्ट्र में इस समय पर मौसम बहुत अच्छा रहता है और चप्पा-चप्पा हरा भरा हो जाता है। इस बार के सफ़रनामे में भी मैं मुंबई से जुड़े अनुभवों की ही व्याख्या करूँगा क्योंकि अभी तक किसी भी राज्य का दौरा नहीं हुआ है, अपने होम स्टेट को छोड़ कर।
महाराष्ट्र खुद अपने आप में एक देश है और इसके कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पर आप को सम्पूर्ण और दूसरे क्षेत्रों से बिल्कुल अलग स्वाद व रीती रिवाज मिलेंगे। विदर्भ, कोंकन, उत्तर महाराष्ट्र, मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, और ग्रेटर मुंबई के क्षेत्र। यह सभी महाराष्ट्र से जुड़े हैं। मुंबई की ख़ास बात ये है, क्योंकि ये एक मेट्रोपोलिटन सिटी है यहाँ पर उत्तर भारत ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार, दूसरी तरफ़ गुजरात, राजस्थान और दक्षिण भारतीय छाप भी मिलती है। इन सब में गुजराती प्रभाव सबसे ज़्यादा दिखता और चलता है। इसी कारणवश यहाँ के खान-पान पर गुजरात का बहुत ज़्यादा प्रभाव है। यही समझने के लिए मैं मुंबई से सटे वाडा में छेड़ा चिप्स की फ़ैक्टरी घूमने गया।
हाल ही में जब थोड़े Covid केसिस में कमी आई, तो विदेशियों का आना भी शुरू हो गया और मेरी बहन जो U.S. Florida प्रान्त में रहती है मुंबई आयी। २ साल से वह आ नहीं पायी थी तो पिता जी और माता जी और दूसरी बहन जो मुंबई में नहीं रहती है वह सब मुंबई में एक ही जगह एकत्रित हो गए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा समय सब साथ में गुजार सकें। U.S. से आई बहन का ये दौरा केवल 21 दिन का ही था। मैंने सोचा बच्चों को फै़क्टरी भी घुमा दूंगा और अशोक भाई छेड़ा से किये हुए वादे को भी पूरा कर दूंगा। बस मैं ने अशोक भाई को कॉल किया और उनसे मिलने की इच्छा जताई। अशोक भाई जो छेड़ा चिप्स नामक ब्रैंड के मालिक हैं मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं और FSNM के एक्ज़ीक्युटिव समिति के मेंबर भी हैं। अशोक भाई तुरंत बोले, ‘‘आप ज़रूर आईये सब के साथ परन्तु खाना यहीं खाना होगा”। क्योंकि मुझे मालूम था अशोक भाई बहुत ज़्यादा मेहमान नवाज़ हैं, मैं मना नहीं कर पाया और तुरंत हामी भर दी।
साथ ही साथ मैं पिछली बार का एक क़िस्सा भी सुनाता चलूँ क्योंकि ये छेड़ा चिप्स से ही जुड़ा है। लगभग दो साल पहले की बात है हमारे विकास जैन जी, LMB ग्रुप के मालिक और इंदौरी मिठाई व नमकीन व्यवसाय का सब से प्रमुख चेहरा, उन्होंने फ़ोन किया की वो एक डेलीगेशन के साथ बालाजी का वलसाड स्थित चिप्स प्लांट देखना चाहते थे। इस डेलीगेशन में इंदौर के लगभग सभी जाने माने चेहरे आये थे। जब इसका ज्ञान अशोक भाई को हुआ के एक बस नमकीन व मिठाई बनाने वालों से भरी हुई मुंबई एयरपोर्ट से वलसाड की ओर निकल रही है, उन्होंने मुझे तुरंत फ़ोन किया और बोले “ऐसा नहीं हो सकता की वह सब मेरे प्लांट के सामने से जाएँ और यहाँ न रुकें”।
जब मैंने विकास जी से चर्चा की तो उन्होंने भी हाँ कर दी और क्या ज़बरदस्त स्वागत किया अशोक जी ने सभी इंदौरी भाइयों का, के आज तक सब याद करते हैं। फ़ैक्टरी विज़िट भी करवाई और सभी के लिए खाने पीने का उचित इंतज़ाम भी किया। मैं इन सब बातों की व्याख्या हर सफ़रनामे में इसलिए करता हूँ क्योंकि ये प्रेम और आदर ही है जो आज पूरे नमकीन और मिठाई के निर्माताओं के समाज को एक धागे में पिरोये हुए हैं। “इस आदर व स्नेह के भाव को लेकर हम पूरी दुनिया को जीत सकते हैं”।
अगले ही दीन हम चल दिए अपना क़ाफ़िला लिए हुए, लेकिन इस बार अतिरेक जी साथ नहीं थे मगर उनके फ़ोन लगातार आते रहे और हमसे वो लाइव जानकारी लेते रहे। हम लगभग दोपहर तक छेड़ा चिप्स की फ़ैक्टरी जो मुंबई के केंद्र से लगभग 70 किलोमीटर दूर होगी, पहुंच गए। मुख्य द्वार पर ही अशोक भाई ने हमारा स्वागत किया और फिर अपने केबिन में बिठा कर अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया। फै़क्टरी लगभग 6 एकड़ में बनी है जिसमें लगभग 350 लोग काम करते हैं।
वाड़ा एक आदिवासी इलाक़ा है जहाँ पर आसानी से लेबर मिल जाते हैं। और आस पास के लोगों को अगर उनके घर के नज़दीक ही काम मिल जाये तो इससे अच्छा कुछ भी नहीं ये काम का काम है और एक सामाजिक कार्य भी है। एक अच्छी खासी तादाद हैं महिलाओं की इस फै़क्टरी में, जो ज़्यादातर क़रीब के इलाक़ों से आती हैं।
कुछ देर की चर्चा के बाद अशोक भाई ने महाराज को खाना लगाने के लिए कहा और हम सब ने जमकर गुजराती खाने का स्वाद और आनंद लिया जिसका ज़ायका बिल्कुल घर में बना खाने जैसा लग रहा था। अशोक भाई की यह वाड़ा की फै़क्टरी भी किसी रिसोर्ट से कम नहीं है। आस पास काफ़ी हरियाली है और चारों तरफ़ पहाड़ों की वादियाँ अपनी ख़ूबसूरती बिखेर रही हैं। आख़ीर में धीमी-धीमी बरसात का मौसम और गुजराती खाने की थाली एक अच्छा समा बांध रही थी। लंच करने के बाद मैं परिवार के सभी बच्चों को लिए उनकी फै़क्टरी की तरफ़ चल दिया।
अशोक भाई ने लगभग सभी मशीनरी अच्छे ब्रैंड व बड़ी कैपेसिटी की लगाई है। यूँ तो छेड़ा चिप्स का नाम “बनाना चिप्स” यानी केले के चिप्स बेचने से शुरू हुआ है मगर जब मैं ने फै़क्टरी विजिट की, तब पता चला की लगभग सभी प्रकार के चिप्स, फ्ऱाईयम्स और नमकीनों में छेड़ा चिप्स का अच्छा काम है। और दूसरी तरफ़ अच्छी शेल्फ़-लाइफ़ वाली मिठाईयाँ व चिक्की प्रोडक्ट्स भी इसी फै़क्टरी में बनाये जाते हैं। 35000 किलोग्राम के रोज़ाना के प्रोडक्शन के साथ छेड़ा चिप्स, मुंबई और मुंबई से लगे राज्यों और शहरों में इनके प्रोडक्ट्स की अच्छी खपत है।
छेड़ा चिप्स की USP है इनका फ़्लेवर और टेस्ट को लेकर ज्ञान बहुत ही अच्छा है। अशोक भाई इसके माहिर हैं, उनको लोकल टेस्ट को समझने और डेवेलोप करने में महारत हासिल है। जैसा की मैंने सफ़रनामे के आरंभ में बताया था मुंबई पर गुजराती खाद्य पदार्थों का अच्छा खासा प्रभाव है और इस प्रभाव को इकोनोमिक तौर पर डेवेलोप किया है अशोक भाई जैसे लोगों ने। इनके सभी चिप्स और स्नैक्स इंडियन और उसमें भी गुजराती फ़्लेवर में सबसे आगे होते हैं।
जो सबसे अच्छी बात मैं ने छेड़ा चिप्स कि इस फ़ैक्टरी में देखी वो थी “ऑटोमेशन और मैनपावर का सही इस्तेमाल”। किस तरह से मैन्युअल फ़ोर्स को मशीनों के साथ जोड़ना और कब और कहाँ उनका इस्तेमाल नहीं करना इसका अच्छा समागम देखा गया छेड़ा चिप्स के प्लांट में।
बस फै़क्टरी घूम कर हम जब अशोक भाई से विदा लेने लगे तब बातों-बातों में उनको बताया कि वाड़ा में स्थित एक मित्र के फ़ार्म हाउस पर जाएंगे जो एक नदी के किनारे बना हुआ है। थोड़ा समय वहीं व्यतीत करके हम घर चले जाएंगे। पर संयोग ऐसा रहा के इसी नदी के किनारे बसा फ़ार्म हाउस, जिस सोसाइटी कि बात हम कर रहे थे वहीं पर अशोक भाई का भी बंगला है। उन्होंने कहा मेरे साथ ही चलें और कुछ वक़्त मेरे घर पर व्यतीत करें। हमें तो जाना वहीं था हमारी गाड़ियाँ भी अशोक भाई के साथ चल दीं, और उनके घर जाकर चाय कॉफी का मजा लिया। बंगला बिल्कुल नदी के किनारे बना है वक़्त का पता ही नहीं चला और साँझ ढ़लते-ढ़लते हम घर वापस आ गए।
इस फ़ैक्टरी विज़िट से कुछ दिन पहले ही मैं जब अपनी बहन को दिल्ली एयरपोर्ट पर लेने गया था तब कुछ समय मेरे पास था और पास थे अतिरेक मित्तल जी। दोनों ने प्लान बनाया की क्यों न गुरुग्राम स्थित ओम स्वीट्स के शोरूम पर चलें। कई बार पिछले विज़िट में अंकित कथूरिया से वादा किया था के हम ज़रूर आएंगे मगर जाना नहीं हुआ। इससे पहले के अंक में मैंने ओम की फै़क्टरी के बारे में लिखा था जो शायद भारतीय मिठाईयां बनाने में अग्रिम पंक्ति में होगी। अंकित को कॉल किया और उन्होंने गुरुग्राम कि एक नज़दीकी शोरूम पर मिलने का प्रोग्राम बनाया और थोड़ी ही देर में हम ओम स्वीट्स के शोरूम पर पहुंच गए।
मगर जैसा के मैं ने हमेशा सफ़रनामा में लिखा है हमारा सफ़रनामा मिठाईयों और नए-नए प्रकार के व्यंजनों के सेवन से शुरू होता है और वहीं पर ख़त्म होता है। ओम स्वीट्स पर पहुंचने से पहले हमारी सेना के प्रमुख व्यक्ति पुनीत दुग्गल जी का घर पड़ता है हम दोनों पहले वहां गए और पुनीत जी कि मेहमान नवाज़ी का लुत्फ़ लिया, जहाँ पर इत्तिफ़ाक़ से विनय नागपॉल जी, साई राम स्वीट्स और अमित गोयल जी, बंसल फूड्स भी आए हुए थे। सबके साथ शुद्ध शाकाहारी व्यंजनों का स्वाद लिया और हम ओम स्वीट्स कि तरफ़ निकल गए। ओम स्वीट्स आज गुरुग्राम और नज़दीक के इलाक़ों में सबसे प्रमुख नाम है। इस पूरे परिवार के मुखिया हैं ओम जी और उनके दो छोटे भाई राजू जी और सुनील दत्त जी। अगली पीढ़ी के लड़कों में अंकित सबसे ज़्यादा एक्टिव हैं और सभी के साथ बहुत अच्छा व्यवहार है उनका।
अंकित के साथ थोड़ी ही देर के बाद हमारी भेंट हुई और उन्होंने अपने शोरूम कि एक-एक चीज हमें दिखाई। मिठाईयों और उनकी गुणवत्ता के अलावा जो चीज़ नोटिस करने वाली थी वो था एक सम्पूर्ण बेकरी सेक्शन।
अंकित के अनुसार उनकी बेकरी प्रोडक्ट्स को बहुत ही अच्छा रिस्पोंस मिल रहा है इसी कारणवश उनकी बेकरी प्रोडक्ट्स में भी रुचि बढ़ रही है। आज कि तारीख़ में मैं जितनी भी मिठाई कि दुकानों पर जाता रहा हूँ शायद वह सभी कामयाब मिठाई वाले अब बेकरी का समागम कर चुके हैं। अब बात होनी चाहिए सही बेकरी प्रोडक्ट्स कि और उनकी ब्रैंडिंग की।
हम जिस भी इलाक़े में अपना शोरूम चलाते हैं उसके केवल 1 किलो मीटर के इलाक़े का सर्वे करलें और देख लें की एक दिन में कितनी ब्रेड, टोस्ट, रस्क और दूसरी तरह की ब्रेड्स या पाव खाये जाते हैं, और केवल इन्हीं प्रोडक्ट्स को टारगेट करेंगे तो एक अलग ही टर्नओवर निकाल पाएंगे जो कंपनी को नयी ऊँचाईयों तक ले जाएगी। और यक़ीन मानिये ये बिल्कुल मुश्किल नहीं है क्योंकि आप मिठाई वाले हैं। आपके लिए न मिठाई बनाना असंभव है और न नमकीन और न अब कैटरिंग और बेकरी। जी हाँ कैटरिंग भी एक नया वेंचर है जो मिठाई निर्माताओं को ख़ूब फ़ब रहा है। विस्तार में चर्चा कभी और करेंगे।
दूसरी ओर अंकित कथूरिया अपनी टीम को ऑर्डर पर ऑर्डर दे रहे थे और हम मज़े ले रहे थे दिल्ली की ऑथेंटिक चाट और मिठाईयों का। ओम ने इतने सालों में अपनी छवि मिठाई की दुकान से हट कर बना ली है। आज जिन सेक्टरों में इनके शोरूम्स हैं लोग उनको “वहाँ का लैंडमार्क” मानते हैं। ये एक अच्छा मीटिंग पोइन्ट होता है उनकी छोटी पार्टीज़ और रोज़मर्रा में सुबह शाम को खाई जाने वाली चाट और मिठाईयों का। समय का अभाव था कई तरह की चाट और बेकरी प्रोडक्ट्स का सेवन करके हम अपने चित परिचित ओम स्वीट्स की डोडा बर्फ़ी के साथ एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए।
जब मैं ये लेख लिख रहा था, उसी समय महावीर स्वीट्स जिनका कई बार अपने पूर्व के लेखों में वर्णन किया है, उनके पहले शोरूम का उद्घाटन था। यूँ तो शोरूम्स रोज़ ही नए-नए खुल रहे हैं पूरे भारत में, लेकिन महावीर स्वीट्स के मालिक समीर खोराजिया जिन्होंने मिठाई की होलसेल में महारत हासिल की है, उन्होंने अपना नया वेंचर ‘मिष्ठान कल्चर’ के नाम से शुरू किया है। और अपना यह आउटलेट रेकॉर्ड टाईम में तैयार करवा कर 26 जुलाई 2021 को ओपनिंग भी कर दी।
मैं अपने सभी भाईयों के बुलाने का बहुत बहुत शुक्रिया अदा करता हूँ।
जहाँ संभव होता है मैं ज़रूर पहुंचता हूँ मगर आज का ये मिष्ठान कल्चर का पहला शोरूम मेरे लिए अलग था। सबसे अच्छी बात तो इसकी ये है कि ये मेरे ऑफ़िस से केवल आधा किलोमीटर की दूरी पर है और दूसरी ये के यहाँ पर भी समीर ने कुछ नया करने से परहेज़ नहीं किया। बहुत लगन से, बहुत मेहनत से समीर ने अपना जौहर दिखाया।
समीर ने इसको आज की स्थिति देखते हुए टिपिकल मिठाई शोरूम न बनाकर “यूटिलिटी स्टोर” की तरह बनाया है जहाँ पर मिठाई, नमकीन, ड्राई फ्रूट्स के साथ-साथ रेडी-टू-ईट वाले सभी तरह के लगभग 2500 प्रोडक्ट्स रखें हैं, आजकल लॉकडाउन में मिठाई शॉप्स को खोलने की पर्मिशन मुश्किल से मिलती है मगर ग्रोसरी व यूटिलिटी शॉप्स को खोलने में दिक़्क़त नहीं होती क्योंकि यहाँ बहुत से एसेंशियल प्रोडक्ट्स भी बिकते हैं। ये एक अच्छा तरीक़ा है ज़्यादा रेंज ऑफ़ प्रोडक्ट्स रखने का और उनको बिना किसी रुकावट बेचने का।
मुझे उम्मीद है समीर का ये वेंचर भी कामयाब होगा और सभी मिठाई व नमकीन निर्मातों के लिए बेंचमार्क साबित होगा। इसी के साथ मैं अपने सफ़रनामे को ख़त्म करता हूँ और आपसे वादा रहेगा ये सफ़र चलता रहेगा जब तक आपका साथ है। अगली रिपोर्टिंग राजस्थान के टूर से होगी तो आप सुनिश्चित रहें कुछ नया और अनोखा पढ़ने के लिए।