परिचय:
बेस किचन- या फिर कमर्शियल किचन, या फिर यूँ कहें कि किचन एक और काम अनेक!
खाद्य सेवा उद्योग में आधुनिक वितरण के लिए बेस/केंद्रीकृत रसोई (Base Kitchen) का उपयोग कई वर्षों से अस्पतालों/उद्योगों/संस्थानों आदि से कई सेवा बिंदुओं के साथ किया जाता रहा है। आजकल बेस किचन को उपलब्ध स्थान/लागत/ऊर्जा और जनशक्ति के अनुकूलन को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है।
खाद्य सेवा वितरण में कुशल परिणाम प्राप्त करने के लिए बेस किचन कई प्रारूपों का हो सकता है जैसे पूरी तरह से पका हुआ वितरण या अर्ध पका हुआ भोजन वितरण या संसाधित भोजन तैयार करना और वितरण करना।
सब से अच्छा बेस किचन लेआउट वह है जो भविष्य की ज़रूरतों को समायोजित करने के लिए लचीला रहते हुए संचालन के आदर्श कार्य प्रवाह का समर्थन करता है। सुव्यवस्थित बेस किचन प्राप्त उत्पाद की गुणवत्ता को नियंत्रित करने में मदद करता है और समग्र सूची प्रबंधन प्रक्रिया को आसान बनाता है।
बेस किचन अधिक कुशल हैं क्योंकि वे आपकी उत्पादन प्रक्रिया, मानव संसाधन प्रक्रियाओं और वितरण कार्यों को स्वचालित करने में आपकी सहायता करते हैं। बेस किचन के मामले में उच्च उत्पादन मात्रा के साथ आवश्यक अवयवों को समायोजित करने और बदलने की क्षमता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
बड़े-बड़े निर्माता अपने ख़ुद के बेस किचन बना रहे हैं क्योँकि अधिक से अधिक आउटलेट का मतलब ज़्यादा बिज़नेस और ज़्यादा लाभ प्राप्त करना है । और यह बेस किचन की योजना बड़े पैमाने पर बनाई जाती है और बहुत ही सावधानी से डिज़ाइन किया जाता है ।
इस एडिशन का स्पेशल टॉपिक हमने बेस किचन लिया है। यह देखा गया है की हमारी मिठाई व नमकीन इंडस्ट्री प्रगति की ओर एक रफ़्तार से जा रही है लेकिन कुछ ऐसा है जो उसे आगे बढ़ने से रोक रहा है, या पीछे खींच रहा है। इस मुद्दे पर बहुत रिसर्च करते हुए हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं की वर्तमान में मिठाई निर्माताओं के एक से ज़्यादा आउटलेट्स होने लगे हैं लेकिन फिर भी कई जगह पर किचन अलग हैं। अब यह परेशानी सामने आयी कि जब निर्माता एक तो किचन क्यों अनेक?
स्वाद में फ़र्क़ होने की यही एक अनदेखी वजह उभर कर सामने आयी । सिर्फ़ स्वाद ही नहीं बल्कि टेक्सचर, रंग, एकरूपता, स्वाद, इत्यादि जो चीज़ें मिठाई को आकर्षक बनाती हैं, जिनके न मिलने या दिखाई देने पर ग्राहक में एक तरह का असमंजस पाया गया। शायद हम इस बात से परिचित ही नहीं हैं कि हम इस तरह कि परेशानियों का सामना क्यों कर रहे हैं, क्या हम किसी महत्वपूर्ण बिंदु को अनदेखा कर रहे हैं?
हम अपने इस लेख के ज़रिये मिठाई व नमकीन के उद्योग में जागरूकता लाना चाहते हैं जो आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन जानकारी के अभाव के कारण 100 प्रतिशत फ़ायदा नहीं ले पा रहे हैं भले उनकी मेहनत 100 प्रतिशत ही क्यों न हो रही हो।
MNT ने व्यावसायिक रसोई सलाहकारों और ऑपरेटरों को उनकी सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए टैप किया और उनसे मिले रेस्पोंसे को एक शिक्षाप्रद लेख के रूप में यहाँ अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत करने की चेष्टा की है ।
साक्षात्कार के दौरान कुछ ऐसे दिग्गजों से बात की जिसके बाद इसका बहुत ही आसान हल हमारे सामने उभर कर आया, और वह था “बेस किचन”।
इन सब से जानकारी हासिल की तो यह पता चला कि अपने मिठाई के आउटलेट्स के उत्पाद को एक जैसा रूप और उचित प्रोडक्शन कॉस्ट देने के लिए हमें चंद बातों का ख़ास ध्यान रखना होगा जो अनिवार्य है। जिससे कम लागत, कम नुकसान, एक जैसी सिलसिलेवार मिठाई का स्वाद और उसका आकर्षण जो मन को लुभा ले, जो अलग-अलग किचन से प्राप्त नहीं हो सकतीं और इसका सिर्फ़ एक ही उपाय पर केंद्र बिंदु निकला- बेस किचन का!
बेस किचन बनाने का चलन कुछ वर्षों से काफ़ी तेज़ी पकड़ रहा है, आमतौर पर मिठाई निर्माता अब बेस किचन में निवेश (invest) करके आगे बढ़ रहे हैं। इस पर हमने अपना पहला प्रश्न यह पूछा कि बेस किचन से जुड़े कौन से प्रमुख पहलू हैं जिनको जानना सब के किए अनिवार्य हैं?
इस सवाल जुड़े उत्तर हमें इस प्रकार मिले है:
नॉएडा की कंपनी Prestair Systems LLP. से मैनेजिंग डायरेक्टर अरुण मित्तल जी का कहना है की, “यह देखा गया है कि पहले के बने कारख़ानों में मिठाई बनाने वाले लोग लकड़ी और लोहे की टेबल, रैक व अलमारी का इस्तेमाल करते हैं जिससे उत्पाद की गुणवत्ता में कमी आती है और वह FSSAI के नियमों के अंतर्गत नहीं होती हैं। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि फ़ूड ग्रेड स्टील SS 304 का इस्तेमाल किया जाए। बेस किचन की योजना बनाते वक़्त हमें कुछ ऐसी चीज़ों का ख़ास ध्यान रखना चाहिए जिनमें हर कार्य के लिए अलग-अलग क्षेत्र अलॉट हों जैसे:
– खाद्य उत्पाद प्राप्त करने के क्षेत्र के साथ भंडारण
– काटने व सफ़ाई करने का स्थान
– प्रोडक्शन एरिया या उत्पाद निर्माण क्षेत्र
– फिनिश्ड प्रोडक्ट को रखने का क्षेत्र और उसे बाहर निकालने का क्षेत्र
– फिनिश्ड प्रोडक्ट को सही तापमान में स्टोर करना जिससे उसकी शेल्फ़-लाइफ बढ़े
– फिनिश्ड प्रोडक्ट को रखने वाले क्षेत्र में कोल्ड रूम, डीप-फ्रीज़र और रेफ्रिजरेटर का होना बहुत अनिवार्य है जो उत्पाद की लाइफ को बढ़ाता है और वेस्टेज को घटाता है।
बेस किचन पर अपने विचार साझा करने के लिए दीप्ता गुप्ता जी हमारे साथ जुड़े । दीप्ता जी एक जातीय खाद्य विशेषज्ञ, एक प्रसिद्ध खाद्य सलाहकार हैं, और संघटक प्रक्रिया, तैयार उत्पाद, गुणवत्ता और विपणन सलाहकार में अनुभव रखते हैं। वहीँ दीप्ता जी , Egremontz Business Solutions Pvt Ltd के फाउंडर भी हैं। उनके विचार से, “बेस किचन बनाने के लिए सब से पहले यह देखना होता है कि मार्केट के हिसाब से आने वाले 3 से 5 सालों की प्लानिंग क्या है, और उसी के अनुसार बेस किचन की प्लानिंग की जानी चाहिए। बेस किचन को डिज़ाइन करने के लिए अपने बेस किचन को जाने एवं समझें फिर उसी के अनुसार प्लान बनाये । हर बिज़नेस की ज़रूरतें अलग-अलग होती है इसीलिए किसी की नक़्ल न करें ।
बेस किचन बनाते समय हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि आउटलेट और बेस किचन में बहुत ज़्यादा दूरी न हो। सड़क की कनेक्टिविटी बेस किचन से अच्छी होनी चाहिए, पानी के लिए ड्रेनेज का प्रबंध होना बहुत ज़रूरी है, बिजली की व्यवस्था सुचारु रूप से होनी चाहिए, आस-पास का एरिया स्वच्छ होना चाहिए। अगर हम बेस किचन को इंडस्ट्रियल एरिया में बनाते हैं तो अच्छा होगा।
दीप्ता जी के चीफ कंसल्टिंग ऑफ़िसर (CCO) गौरव चौहान ने आगे हमसे कहा कि “जब हम क्लाइंट के लिए बेस किचन की प्लानिंग करते हैं तो इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर किचन डीज़ाइन करते हैं, और ये भी सुनिश्चित करते हैं की डिज़ाइनिंग इस प्रकार से हो कि आने वाले समय में जब डिमांड बढ़ती है या त्यौहारों का पीक टाईम आता है तो कार्य सुचारु रूप से चल पाए और बिना किसी समझौते के अच्छी गुणवत्ता का माल समय पर ग्राहक को मिले।
दिल्ली से संजीव सरीन जी जो Trident F & B Consultants Pvt. Ltd., के MD हैं, उनका उत्तर यूँ था, “यह बात सही है कि ‘बेस किचन’ बनाने का चलन पिछले कुछ वर्षों से ही देखने को मिला है। इस से पहले मिठाई निर्माता बेस किचन को इतना महत्व नहीं देते थे और बेस किचन के ऊपर निवेश करना व्यर्थ समझते थे। किन्तु अब समय के साथ मिठाई निर्माता बेस किचन को प्राथमिकता दे रहे हैं। केवल बड़े शहरों के नहीं बल्कि छोटे शहरों तथा कस्बों से भी हमारे पास पूछ-ताछ के लिए फ़ोन आते हैं और अब तक हमारी कंपनी Trident ने तक़रीबन 44 बेस किचन बनाये हैं जिनमें से आधे छोटे शहरों अथवा कस्बों में हैं।
बेस किचन के प्रमुख पहलु निम्नलिखत हैं :
1. बेस किचन हर ब्रैंड के लिए अति आवश्यक है क्योंकि इसके बिना मिठाई कि गुणवत्ता एक जैसी नहीं रहती।
2. बेस किचन होने से ब्रैंड एक से अधिक शोरूम अथवा अपनी शाखाएं खोल सकते हैं।
3. त्यौहार अथवा शादी- ब्याह का व्यापार भी इसी भांति कर सकते हैं।
4. एक और क्षेत्र बनाने से मिठाई का निर्माण होने से कईं प्रकार के ख़र्चे बच सकते हैं तथा मिठाई की गुणवत्ता बनी रहती है। पिछले 3 दशकों से बेस किचन के अंदर ही LAB की प्रमुखता से ज़रूरत महसूस हुई है तो एक हिस्सा LAB को भी दिया जाने लगा । LAB होने से बेस किचन कि कार्य शैली में बहुमूल्य विकास हुआ। हमारी कंपनी ने बेस किचन में पहला LAB 1996 में डिज़ाइन किया था जो कि अब एक बड़ा रूप ले चुकी है।
उपरोक्त बेस किचन हमने लखनऊ में बनाई थी और मिठाई उत्पादक निर्माता को LAB की महत्त्व समझाया तो वह तुरंत तैयार हो गए और हमने आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित LAB डिज़ाइन कर के दी और आज उसी LAB (प्रयोगशाला) से दैनिक गतिविधिओं के अलावा मिठाईयों की शेल्फ़-लाइफ बढ़ाने का कार्य भी सुचारु रूप से चल रहा है।
हैदराबाद, तेलंगाना से पांडुरंग प्रभु जी – Director, Revac Systems (Chefmate), ने प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि “कंपनी के मौजूदा आउटलेट्स को देखते हुए और कंपनी के विस्तार कार्यक्रम पर भी विचार करके बेस किचन के लिए एक उचित साईट का सिलेक्शन करना बहुत महत्वपूर्ण है। कंपनी के पास एक अस्थायी प्रोजेक्शन होना ज़रूरी है, जिन क्षेत्र में वह काम करना चाहती है और एक रणनीतिक स्थान ढूंढना बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है ताकि डिलीवरी शेड्यूल के दौरान सामग्री उचित समय और सही आकार में आउटलेट तक पहुंच सके।
– ऐसी जगह चुनना भी ज़रूरी है जहां लेबर आसानी से उपलब्ध हों, ख़ासकर नए कारीगर जिसकी ज़्यादा आवश्यकता होती है।
– ऐसे स्थान का चुनाव करना भी महत्वपूर्ण है जो साथ ही साथ स्वच्छ भी हो और उसके आस-पास कोई नगरपालिका डंपयार्ड या अन्य बायोलॉजिकल रूप से अस्वस्थ वातावरण न हो।
– बिजली भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे ध्यान में रखना अनिवार्य है क्योंकि चीनी निर्माण एक प्रक्रिया है और मशीनों को चलाने के लिए इसे गुणवत्तापूर्ण शक्ति की आवश्यकता होती है क्योंकि जनरेटर पर यूनिट चलाना मुश्किल होता है।
– साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि सर्विस लाईन के उपकरण आराम से चलने के लिए न्यूनतम ऊंचाई 5 मीटर होनी चाहिए।
नई दिल्ली से विकास सूरी जी – डायरेक्टर, Kitchenrama Food Service, कहते हैं, “बेस किचन की आवश्यकता विशुद्ध रूप से उस बिक्री की मात्रा से संबंधित है जो ब्रैंड कर रहा है। फ़ूड सेगमेंट में अपट्रेंड को ध्यान में रखते हुए, बाज़ार की मांग और ग्राहकों को सेवा देने की गति को बनाए रखने के लिए हमें बेस किचन स्थापित करना अनिवार्य हो गया है। इस प्रकार, यह निश्चित रूप से अब एक आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए, निश्चित रूप से, क्षमता आवश्यकताओं के साथ-साथ प्रौद्योगिकी की सादगी के अलावा आपके आउटलेट की सेवा के लिए ‘लोकेशन’, ‘लोकेशन’ और सिर्फ ‘लोकेशन’ है ! मैं ने जो बातें बताई हैं अगर उनमें से एक भी काम में कनेक्टिविटी नहीं होती है तो हमारी मेहनत और उस पर ज़्यादा लागत वाला ख़र्चा भी करने के बावजूद एक आपदा ही साबित हो सकता है।
नई दिल्ली से हमारे साथ जुड़े संजीव कुमार सिन्हा जी। सिन्हा जी – Chanakya Hospitality के Proprietor हैं। उन्होंने हमारे प्रश्न का बहुत विस्तार पूर्वक जवाब दिया, “मिठाई के लिए, बेस किचन बनाने का प्रचलन पिछले कुछ वर्षों से काफ़ी बढ़ गया है। इस परिस्थिति में 2 कार्य हो सकते हैं या तो आप मिठाई के आउटलेट स्टार्ट करें या फिर बनी-बनाई मिठाई सप्लाई करें। इन परिस्थितियों में बेस किचन की आवश्यकता होती है। कुछ मिठाई निर्माता तो बेस किचन खोलकर छोटी-छोटी मिठाई शॉप या फिर बड़े होटलों में मिठाई की सप्लाई करते हैं । कुछ मिठाई वाले बेस किचन में ही मिठाई को पूरी तरह तैयार करके आउटलेट पर भेज देते हैं और कहीं-कहीं बेस किचन में मिठाई केवल बेसिक प्रिपरेशन करते हैं और आउटलेट पर भेज देते हैं, जहॉं एक छोटा सा सेक्शन बना होता है कटिंग और गार्निशिंग के लिए ।
बेस किचन से जुड़े कुछ ख़ास पहलू हैं जिसका ध्यान निर्माण के समय रखना अति-आवश्यक है:
– बेस किचन काफी बड़ा और विशाल (spacious) होना चाहिये । मिठाई वालों का काम काफ़ी फैला हुआ होता है और इनको काम करने के लिए काफ़ी जगह की ज़रुरत होती है। मिठाई के अलग-अलग डिपार्टमेंट होते हैं और उस ही के हिसाब से बेस किचन की प्लानिंग तय पाती है।
– प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम का होना बहुत ज़रूरी है ताकि इस्तेमाल हुआ पानी का प्रॉपर निकास हो।
– प्रॉपर इलेक्ट्रिसिटी और लाईट की फैसिलीटी होनी चाहिये जिससे मिठाई की रंगत और टेक्सचर का सही पता लग सके।
– मुख्यतः इसमें चार विभाग होते है: छैना, घी, काजू और खोया। अततः सब को ध्यान में रखकर किचन के प्लान को तैयार किया जाता है।
– उस में प्रॉपर गैस पाईप लाईन की प्लानिंग को भी ध्यान में रखा जाता है।
– बेस किचन एक कोल्ड रूम, ड्राई स्टोर तथा वेट स्टोर का अच्छी तरह से प्लान किया जाता है।
– उसमें मेन-गेट पर डिलीवरी और रिसीविंग एरिया होना चाहिए।
– बेस किचन लोग बॉयलर का भी इस्तेमाल करने लगे हैं जिसकी प्रॉपर प्लानिंग होनी चाहिए।
– जितने भी बर्नर हो उनकी डिपार्टमेंट के हिसाब से आवश्यकता अनुसार उनकी सेटिंग ज़रूरी है।
– बेस किचन इतना बड़ा हो जिस में कटिंग, गार्निशिंग और प्रिपेयर्ड स्टॉक के लिए अलग-अलग स्पेस घोषित हों ।
– अगर साथ में नमकीन का भी काम हो तो उसके लिए भी अलग स्पेस की प्लानिंग रखनी चाहिए ।
– स्वीट्स या नमकीन पैकिंग के लिए अलग-अलग पैकेजिंग स्पेस की व्यवस्था का ख़्याल रखना होगा ।
– बेस किचन में बाहरी लोगों का सीधा प्रवेश वर्जित होना ज़रूरी है और उनसे मिलने के लिए अलग ऑफ़िस की व्यवस्था की जाये।
– स्टाफ़ के लिए ग्रीन रूम तथा वॉशरूम की व्यवस्था को भी नज़र-अंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
– बेस किचन में दोनों तरह की पानी की व्यवस्था होना चाहिये, नॉर्मल पानी और RO पानी।
– प्रॉपर फायर-फाईटिंग सिस्टम का इंस्टॉलेशन बेहद ज़रूरी है जिससे कभी कोई अनहोनी हो तो तुरंत एक्शन ले सकें। यह स्टाफ़ की सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
– एमर्जेन्सी फर्स्ट एड की व्यवस्था तो बिल्कुल होनी चाहिये।
– किचन के अन्दर हवा का प्रॉपर सर्क्युलेशन और वेंटिलेशन बना रहे ताकि अंदरूनी तापमान मैंतैनेड रहे। इस व्यवस्था के लिए सटीक डक्टिंग और एक्सहॉस्ट पॉइंट्स की व्यवस्था तथा फ्रेश एयर सिस्टम का भी होना आवश्यक हो जाता है ।
– एक छोटा-सा लैब भी ज़रूरी है जिसमें प्रतिदिन दूध के फैट या क्वालिटी की जांच की जा सके।
वीरेंद्र नाथ राय जी – Director, Professional Consultant, UP से हैं और उनका कहा कुछ इस तरह है, “सबसे बड़ा पहलू यह है कि एक बेस किचन से दस आउटलेट या उस से ज़्यादा में फ़ूड प्रोडक्ट्स की सप्लाई की जा सकती है। ख़र्च के पहलु से अगर हम बात करें तो मालिक का ख़र्चा कम हो जाता है, जैसे लेबर की सैलरी, खाना, रहना इत्यादि। इक्युपमेंट, बॉयलर, लगाने की वजह से कार्य क्षमता में बढ़ोतरी होती है और लागत कम आती है। अगर आप बेस किचन बनाकर भी गैस सिलिंडर का काम में ले रहे हैं तो आपकी लागत (कॉस्टिंग) ज़्यादा आती है। हर आइटम की रेसिपी बनाकर तैयार होने से मिठाई बनाने की क्वालिटी अच्छी बनती है और स्वाद में भी शिकायत नहीं आती।। आपके सभी आउटलेट पर स्वाद एक जैसा मिलता है। बेस किचन बनने से वेस्टेज में गिरावट, इन्वेंटरी लेवल कम और रॉ मटेरियल स्टोर भी मैंटेनेड रहता है। बेस किचन से सभी आउटलेट पर मिठाई और नमकीन भेजी जा सकती हैं । अक्सर मिठाई और नमकीन बाहुल्य मात्रा में बनानी होती हैं तो आप बेस किचन में तापमान मैंटेन कर पाओगे, क्वालिटी बढ़िया बना पाओगे और ऑइल की खपत भी कम होगी।
हमने अपने साक्षात्कारों से यह जानकारी हासिल की के एक अच्छे और सुव्यवस्थित बेस किचन का क्षेत्र कितना होना चाहिए और उस से कितने आउट्लेट्स की सप्लाई चैन आसानी से प्राप्त कराई जा सकती है?
अरुण जी ने गणनात्मक उत्तर दिया। वह कहते हैं, “एक अच्छे और सुव्यवस्थित बेस किचन के लिए 2000 से 5000 sq ft की ज़रूरत होती है और उसके बाद 5000 sq ft से 15000 sq ft का क्षेत्र निर्भर करता है कि आप कितना अच्छा ऑटोमेशन और उत्पादन करना चाहते हैं। यदि बेस किचन छोटी होगी तो सप्लाई चैन के प्रबंधन में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। आजकल जितना भी काम कारख़ानों में होता है उसके लिए हम प्रेस्टेयर सिस्टम के साथ ख़ास उस चीज़ की प्लानिंग करते हैं, जिसमें प्रोडक्ट हाइजीन और प्रोडक्ट को बनाने के ऑपरेशन फ़्लो का ख़ास ख़्याल रखा जा सके।
साथ ही दीप्ता जी का मानना है कि, वैसे तो किचन का क्षेत्र भविष्य में अपने काम की ज़रूरत के हिसाब से तय होना चाहिए, लेकिन फिर भी अगर हम आदर्श बेस किचन की बात करते हैं तो 15000 से लेकर 20000 वर्ग फ़ीट का क्षेत्र कार्य करने के लिए उत्तम होता है। अगर किसी आउटलेट की रोज़ाना सेल 1.0 से 1.5 लाख की है तो 5 से लेकर 8 आउटलेट के लिए सप्लाई चैन आसानी से प्राप्त की जा सकती है।
संजीव जी बताते हैं कि, एक अच्छे और आदर्श बेस किचन का क्षेत्रफल निश्चित करता है की वर्तमान में ब्रैंड के कितने आउटलेट हैं और भविष्य की क्या योजनाएं हैं, यदि चार फ़्लोर तथा एक बेसमेंट मिले और हर फ़्लोर पर कम से कम 8000 वर्ग फ़ीट का एरिया हो तो एक ‘स्टेट-ऑफ़-द-आर्ट’ बेस किचन का निर्माण संभव है जिससे 2 फ़्लोर पर नमकीन तथा बाकि 2 फ़्लोर पर मिठाई की प्लानिंग अच्छे ढंग से की जा सकती है। एवं बेसमेंट को स्टोर तथा डिस्पैच के रूप में विकसित किया जा सकता है। इतना क्षेत्रफल दस आउटलेट्स को भली भांति सुचारु रूप से तैयार माल की सप्लाई कर सकता है तथा छोटे- बड़े त्योहारों के समय पर भी ‘अधिकतम प्रोडक्शन ‘ के साथ बेहतर रूप से उत्कृष्ट सामान दुकानों पर सप्लाई करने में सक्षम रहेगा ।
बेस किचन के साईज़ का लेकर विकास जी ने इसे एक बहुत कठिन कार्य बताया । विकास जी ने व्याख्यान किया कि यह शुद्ध रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि आपके उत्पादन की सूची में क्या है और 8 या 16 घंटे की शिफ़्ट में किस प्रकार की क्षमताओं का प्रयोग किया जायेगा और इससे कितने आउटलेट की सर्विसिंग की जा सकती है। हमें ऐसी जगह का चुनाव करना ज़रूरी है जो केंद्र स्थापित हो सके और वही एक आदर्श स्थान होगा। इस प्रकार आपके सभी आउटलेट को लगभग 20 km के दायरे में या एक घंटे में किसी भी स्थान पर सेवा प्रदान करने में आसानी होगी। हालाँकि, अवधारणा भी एक तीव्र निर्णय लेने वाली बात होती है, जिसका मतलब है कि अगर प्रोजेक्ट फ्रोज़ेन फ़ूड को आउटलेट्स तक पहुंचना है, तो समय कोई मायने नहीं रखता क्योंकि आज टेक्नोलॉजी आपको बेहतरीन सर्विसिंग के साथ लंबी दूरी तय करने में मदद करती है।
तक़रीबन सही अंदाज़ा लगते हुए सिन्हा जी ने बताया कि, “मेरे हिसाब से एक अच्छे और आदर्श बेस किचन के लिए कम से कम 4000 से 5000 वर्ग फ़ीट क्षेत्र होना चाहिये। जिसमें बेस किचन की सारी आवश्यकता पूरी की जा सके। इतने बड़े क्षेत्र से 5 से 7 एवरेज साईज़ के आउटलेट्स को ऑपरेट किया जा सके। इतने बड़े क्षेत्र के बेस किचन से मिठाई और नमकीन की आपूर्ति सारे आउटलेट्स पर समय पर की जा सकती है। बेस किचन का क्षेत्र तथा ऑपरेशन इस बात पर भी निर्भर करता है कि आउटलेट्स का एवरेज कंज़म्प्शन प्रतिदिन कितना है।
वीरेंद्र जी ने उल्लेखनीय शैली में बेस किचन के साईज़ की बात की। “मिठाई, नमकीन और स्नैक्स के बेस किचन के लिये लगभग 10,000 sq ft एरिया होना चाहिए। जिसको दो भागों में बांटा जाये तो कवर्ड एरिया लगभग 6000 sq ft और ओपेन एरिया 4000 sq ft होना चाहिए।
कवर्ड एरिया में आपका काम सेक्शन-वाइज़ होता है, जैसे छैना डिपार्टमेंट, खोया डिपार्टमेंट, घी डिपार्टमेंट, काजू डिपार्टमेंट, नमकीन डिपार्टमेंट, स्नैक्स डिपार्टमेंट, डिस्पैच डिपार्टमेंट, रॉ मटेरियल डिपार्टमेंट, मिठाई स्टोरेज, बॉयलर और ऑफिस, इत्यादि। ओपेन एरिया में जैसे गाड़ी पार्किंग स्पेस की ज़रूरत होती है, ताकि आउटलेट के लिए लोडिंग और अनलोडिंग करने के लिए जगह कम न पड़े।
जब हमने उनसे यह जानने की कोशिश की बेस किचन के लिए क्या भारतीय स्तर पर सभी तरह की मशीनरी और इक्विपमेंट उपलब्ध हैं या अनिवार्य रूप से इनका कुछ हिस्सा इम्पोर्टेड मशीनें भी होती हैं, इन सब के जवाब में हमने थोड़ा बहुत अंतर पाया जो इस प्रकार है:
अरुण जी का मानना है कि, “उत्पादन के लिए सभी भारतीय उपकरण भारत में एक सीमा तक उपलब्ध होते हैं आज के समय में CNC लेज़र कटिंग मशीन, CNC बेंडिंग मशीन, लेज़र ब्लेंडिंग मशीन आदि जैसी आधुनिक सुविधाएं होने के कारण हम सभी प्रकार की मशीन बनाने में सक्षम हैं , जो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से मिलती हैं । इन मशीनों के कारण काम बहुत ही तेज़ी से होता है। यह मशीनरी हमारे लिए समय पर बनाने में बहुत फायदेमंद हैं। अगर हमें बहुत ज़्यादा उत्पादन और इनोवेशन की ज़रूरत है तो इम्पोर्टेड मशीनें लेनी पड़ती हैं और यह भारत में आसानी से उपलब्ध हैं।
दीप्ता जी ने अपने उत्तर व सुझाव रखते हुए कहा कि, “छोटे एवं मध्यम स्तर के किचन के लिए सभी तरह की आधुनिक मशीनें और उपकरण (Equipment) भारत में ही उपलब्ध हैं, जबकि बड़े स्तर पर कार्य करने के लिए मशीनों को इम्पोर्ट करना पड़ता है। ऑटोमेशन के लिहाज़ से एवं दक्षता (efficiency) के लिए इम्पोर्टेड मशीनों का आयात करना पड़ता है। हालाँकि गत वर्षों में भारत में भी कुछ अच्छी मशीनों का निर्माण हुआ है, जिससे सिलसिलेवार (Consistent) क्वालिटी, कार्य क्षेत्र में दक्षता (efficiency), साफ़-सफ़ाई में सुधार हुआ है” ।
उन्होंने यह भी कहा कि, “मैं भी निरंतर कुछ मशीन बनाने वाले वेंडर के साथ ऑटोमेशन पर कार्य कर रहा हूँ जिससे आने वाले समय में बाहर की मशीनों पर निर्भरता को कम किया जा सके अथवा अपने यहाँ कार्य करने वाले मैनपावर की क्षमता को बढ़ाया जा सके”।
भारत में आधुनिक मशीनों के विकास को सहराते हुए संजीव जी ने कहा, “ऐसा कहना अनुचित होगा कि आज कल एक मॉडर्न तथा आदर्श बेस किचन के लिए भारत में निर्मित मशीनरी एवं उपकरण उपलब्ध नहीं हैं, भारत में इस क्षेत्र में काफ़ी विकास हुआ है तथा इस समय हमारा देश इस प्रकार की मशीनरी का निर्यात भी कर रहा है! फिर भी कुछ प्रोडक्शन लाइन्स दूसरे देशों से मंगवाई जा रही है। इनमें से कुछ प्रमुख देश जर्मनी, इटली, अमेरिका, जापान तथा चीन हैं। बाहरी देशों से मशीनरी ख़रीदने का मुख्य कारण है कार्य क्षमता का अधिक होना तथा फिनिश्ड प्रोडक्ट यानी तैयार माल का कम समय में निर्माण करना”।
प्रभु जी ने कहा कि, अधिकांश उपकरण भारत में उपलब्ध हैं, लेकिन अब हमारे पास बहुत सारी मशीनें मौजूद नहीं हैं जिन्हें अभी भी आयात करने की आवश्यकता है। यह ज़्यादातर प्रिसिशन उपकरण है जिसमें उचित प्रक्रिया नियंत्रण होती है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है।
वहीं विकास जी की भी मिलती-झुलती राय रही । उनका मानना है कि अधिकांश मिठाई बनाने वाली मशीनें भारत में उपलब्ध हैं, लेकिन फिर भी कुछ मशीनें अभी भी विदेशों से आयात करना अनिवार्य है। सामान्य तौर पर, एक परियोजना शुरू करने के लिए भारतीय और आयातित दोनों उपकरणों का मिश्रण सबसे अच्छा होता है। अगर हम अपने व्यापार में प्रगति चाहते हैं तो इस तरह के आवश्यक क़दम उठाने बहुत ज़रूरी हैं” ।
ऑटोमेटेड मशीनों के बारे में सिन्हा जी ने बताया कि बेस किचन में उपयोग आने वाली मशीनरी तथा इक्युपमेंट अच्छे क्वालिटी के तथा प्रॉपर तरीक़े इन्सटॉल्ड हों। मेरी जानकारी के अनुसार भारतीय स्तर पर मिठाई के क्षेत्र में लगभग सभी मशीनरी और इक्युपमेंट उपलब्ध हैं जिन से सभी तरह की मिठाई बनाने के लिए सभी आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं । भारतीय पारंपरिक मिठाईयाँ काफ़ी समय से प्रचलन में हैं तथा जैसे-जैसे मिठाईयों की वैराइटी बढ़ती गई वैसे-वैसे इन में उपयोग में आने वाली मशीनरी तथा इक्विपमेंट को भी विकसित किया जाता रहा।
आगे उन्होंने यह भी बताया कि, पिछले काफ़ी सालों से मिठाई निर्माता लेबर कॉस्ट कम करने के लिए भी मशीनरी एवं इक्विपमेंट को काफ़ी इस्तेमाल करने लगे हैं। इसका एक फ़ायदा ये भी है कि मशीनों से बनाने में एकरूपता रहती है। मैन्युअल बनाने में वज़न और आकर की एकरूपता उतनी मेन्टेन नहीं रहती जितनी मशीन से होती है। इसके लिए सभी मशीनरी इक्विपमेंट लगभग भारत में उपलब्ध हैं । हो सकता है कुछ मिठाई निर्माता कुछ इम्पोर्टेड मशीनें भी उपयोग करते होंगे। लेकिन भारत में बड़े पैमाने पर सभी मशीनें उपलब्ध हैं। भारत में कुछ जगह जैसे कि गुजरात, बैंगलोर, चंडीगढ़ तथा दिल्ली में इससे संबधित सभी मशीनरी इक्विपमेंट के निर्माता उपलब्ध हैं ।
वीरेंदर जी के अनुसार इम्पोर्टेड मशीनों की कोई आवश्यकता नहीं होती है । अधिकतर कार्य मैन्युअली होते हैं और कुछ कार्य ऐसे होते हैं की प्रोडक्शन स्पीड बढ़ाने के लिये मशीनों का उपयोग होता है जो भारत में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं । भारत में भी ऐसी बहुत सी जगहों पर मशीनरी मैन्युफैक्चर्रस हैं और जैसी जिसको मशीनरी की ज़रूरत होती है वो अपने हिसाब से मशीनें बनवा लेते हैं।
अगले सवाल कि तरफ़ बढ़ते हुए हमें पूछा कि ऑटोमेशन ज़्यादा होने की वजह से रेसिपी का पूरा ध्यान रखना ज़रूरी होता है, किस तरह से हम इस को नियंत्रित कर सकते हैं ताकि हमें किसी भी प्रकार के नुकसान का सामना ना करना पड़े?
ऑटोमेशन की प्रतिक्रिया की प्रशंसा करते हुए अरुण जी ने जानकारी दी, “ऑटोमेशन करने के बाद रेसिपी का ध्यान रखना बहुत आसान है जिससे उत्पाद हमेशा एक जैसा मिलता है और रेसिपी में किसी चीज़ के कम या ज़्यादा होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। ऑटोमेशन से समय की बचत और कारीगर भी कम लगते हैं जिसकी वजह से हमें हर तरह के फ़ायदे ही फ़ायदे मिल सकते हैं।
दीप्ता जी ने अपनी सलाह पेश करते हुए कहा कि, कमर्शियल किचन बैच साईज़ के ऊपर कार्य करती है। बैच साईज़ फ़िक्स होने की वजह से क्वालिटी में एकरूपता बनी रहती है, जिससे कि क्वालिटी में उतार-चढ़ाव होने की सम्भावना कम होती है। क्वालिटी में एकरूपता के साथ ही ऑटोमेशन होने के और भी बहुत से फ़ायदे होते हैं। जैसे कि कम मैन पावर का लगना, वेस्टेज का कम होना, प्रोडक्ट की शेल्फ़-लाइफ का ज़्यादा होना, साफ़-सफ़ाई में सुधार होना, कारीगरों की लाईफ का ईज़ी होना इत्यादि शामिल है।
“मशीन ऑटोमेशन के साथ हमें प्रोसेस कण्ट्रोल पर भी ध्यान देना चाहिए। जैसे कि टाइम एवं तापमान का संतुलित होना बहुत ज़रूरी है और हर प्रोडक्ट भिन्न होता है। हर लेवल पर प्रोडक्ट हैंडलिंग सही तरीक़े से होनी चाहिए। प्रोडक्ट की पैकेजिंग, भण्डारण (Storage) सही तरीक़े से होना अनिवार्य है। इन सभी चीज़ों को कण्ट्रोल करके चलेंगे तो उत्तम क्वालिटी का प्रोडक्ट बनेगा”, दीप्ता जी ने वर्णन किया ।
इस सवाल का जवाब संजीव जी ने कुछ इस प्रकार दिया , वह कहते हैं कि, ऑटोमेशन ज़्यादा होने के कारण रेसिपी पर तथा SOP पर पूरा ध्यान रखना अति आवश्यक है। अधिकतर मशीन तथा उपकरण आज कल कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का सर्वोत्तम उत्पाद पाए जा सकते हैं। उन अतिरिक्त प्रोडक्शन मैनेजर की भी इस कार्य प्रणाली में काफ़ी अधिक योगदान होता है, इसी कारण से प्रोडक्शन मैनेजर का कार्य कुशल होना अति आवश्यक है। नए उत्पाद बनाते समय नई रेसिपी को ध्यान में रखते हुए भी आवश्यक बदलाव करने पड़ते हैं। इसी क्षण ऑटोमेशन का अधिक से अधिक प्रभावी परिणाम भी सजगता से ही प्राप्त करना संभव होता है। यदि सजगता से पूरा ध्यान नहीं रखा जाये तो ऑटोमेशन के दौरान पूरा का पूरा लॉट भी ख़राब हो सकता है, इसी कारण से सतर्क रहना ज़रूरी है।
प्रभु जी अपने विचारों के व्यक्त करते हुए कहा की मिठाई और नमकीन निर्माण में ऑटोमेशन एक बहुत ही संभव चीज़ है। मानक व्यंजनों को एक अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला में विकसित किया जाना चाहिए, और मानकीकृत व्यंजनों को ऑटोमेटेड किया जा सकता है। ऑटोमेशन बहुत सारे अपव्यय और मानवीय त्रुटि से बचाता है, जिससे स्टैण्डर्ड उत्पादन होता है।
विकास जी ने ख़ास जानकारी देते हुए कहा कि, इन दिनों ऑटोमेटेड मशीनें अत्यधिक बुद्धिमान मशीनें हैं और आमतौर पर चिप/कंप्यूटर आधारित मशीनें, इसलिए यदि आपके इनपुट सही हैं, तो आपके परिणाम भी सही होंगे। यदि आप मशीनों में ग़लत जानकारी/नुस्खा फ़ीड करते हैं, तो वे ग़लत आउटपुट ही देते हैं। इसलिए, सिस्टम पर काम करने वाले आपके संसाधनों में इंटेलिजेंस की मूल बातें होनी चाहिए। खाद्य सामग्री बनाना अब ‘कारीगर’ का काम नहीं रहा। निरंतरता, स्वच्छता और इस तरह की चीज़ों को बनाए रखने के लिए हमें शेफ़ या फ़ूड टेक्नोलॉजिस्ट्स के पास जाना होगा। क्योंकि अब मिठाई के कारोबार में भी HCCAP के स्तर पर काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है तो हमें इस बात का भी ख़ास ख़याल रखना होगा।
ऑटोमेशन के साथ चलते, सिन्हा जी ने अपनी बात कही, “ये भी सही है कि आजकल मिठाई निर्माता ऑटोमेशन पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण है स्पीड, लेबर कॉस्ट कम करना, मिठाई के वज़न और आकार में एक्यूरेसी तथा जो सबसे बड़ी बात वह है कारीगरों का सीज़न में काम का छोड़ देना, और इसी वजह से उनका आना-जाना लगा रहता है जो एक बहुत बड़ी समस्या है। इस कारण भी मिठाई निर्माता ऑटोमेशन की तरफ़ जा रहें हैं। आज की बात करें तो जो ऑटोमेटिक मशीनें हैं उनमें पहले विशिष्ट मिठाई के लिए एक रेसिपी सेट कर दी जाती है। लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि दूध तथा दूसरे इंग्रेडिएंट्स की क्वालिटी को पहले ही परख लिया जाए। इसके लिए किसी भी मिठाई की एक रेसिपी सेट की जाती है तथा मशीन को उसी हिसाब से सेट कर उसे ऑपरेटर किया जाता है।
“ऑटोमेशन होने की वजह से रेसिपी का पूरा ध्यान रखा जाना हमारे लिये बहुत ही आवश्यक है”, यह बात कही वीरेंद्र जी ने। ऑटोमेशन को नियंत्रण में रखने के लिये समय-समय पर हमें इंग्रेडिएंट्स पर हमेशा ध्यान रखना होता है। इंग्रेडिएंट्स के आधार पर मिठाई की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये हमें उसकी मात्रा को कम व ज़्यादा करना होता है। ऑटोमेशन होने की वजह से हर तरह की रेसिपी फ़ीड की जानी चाहिए, और लेबोरेटरी की व्यवस्था मटीरियल की गुणवत्ता जांच ने के लिए उपलब्ध होनी चाहिए, यह अति आवश्यक है।
यह हमारा आख़री प्रश्न रहा अपने साक्षात्कारों से लेकिन वह भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा जितने कि बाक़ी सब सवाल थे। वह यह है कि, बेस किचन में एयर सर्क्युलेशन और वेंटिलेशन का कितना महत्व है और किस तरह से इस पहलू पर ध्यान रखा जाए? इस सवाल के बाद हमें बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुई जैसे:
अरुण जी ने इस सवाल का बख़ूबी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि, बेस किचन में वेंटिलेशन और फ्रेश एयर का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है क्योंकि जब तक किचन का तापमान ठीक नहीं रहेगा कर्मचारी पूरी क्षमता से काम नहीं कर सकते । उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी शेल्फ़-लाइफ इसी पर निर्भर करती है। वेंटिलेशन के साथ-साथ पानी के ड्रेनेज का सुचारू प्रबंध होना भी बहुत ज़रूरी है। आजकल कारख़ानों में इस चीज़ का ख़ास ख़याल रखा जाता है कि कारख़ाने के अंदर डक्टिंग और एक्सहॉस्ट हुड केवल SS304 के ही होने चाहिए नहीं तो भाप से की जाने वाली डक्टिंग ज़्यादा समय तक नहीं चलती जिसके कारण ऑपरेशन में बहुत कठिनाई आती है।
दीप्ता जी ने इस प्रश्न पर ख़ास रौशनी डालते हुए कहा कि, बेस किचन के अंदर MEP यानी मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, प्लम्बिंग, जैसे कि उदाहरण के लिए पानी का आना और जाना, हीट सर्क्युलेशन, गैस लाईन का वितरण, हवा का सर्क्युलेशन, हवा का एक्सचेंज होना, हवा का वितरण, तापमान का क्षेत्रीकरण (zoning), बिजली का वितरण इत्यादि का ध्यान रखा जाता है। तापमान, आर्द्रता (Humidity), जीवाणुओं का नियंत्रण, हवा को जीवाणु रहित करना, नकारात्मक हवा को संतुलित करना इत्यादि पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है एवं दक्ष (efficient) किचन डिज़ाइन किया जाता है। ऐसा करके मैन, मटेरियल एवं मशीन तीनों की सेफ्टी का ध्यान रखा जाता है।
एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि जो हमारी लाईन से बाहर के कंसल्टेंट होते हैं वो मिठाई-नमकीन इंडस्ट्री की पर्याप्त जानकारी नहीं रखते, इनसे बचना चाहिए। अन्यथा फ़ायदे की जगह नुक्सान उठाना पड़ सकता है। हमें चाहिए कि अपनी फ़ील्ड का ही विशेषज्ञ सलाहकार नियुक्त करें एवं उसी से ही किचन डिज़ाइनिंग की प्लानिंग कराएं।
एयर सर्कुलेशन पर चर्चा करते हुए संजीव जी ने सूचित किया के किसी भी बेस किचन में एक्सहॉस्ट तथा फ्रेश एयर की योजना गत तरीक़े तथा प्रभावी ढंग से इम्प्लीमेंट होना आवश्यक है, नहीं तो आंतरिक तापमान कई प्रकार से कार्य प्रबंधन को प्रभावित कर सकता है। ठीक से CFM (क्यूबिक फ़ीट प्रति मिनट) की गणना करनी चाहिए ताकि उसी के अनुसार पंख, मोटर तथा कूलिंग सिस्टम को डिज़ाइन किया जा सके। किचन हुडस को स्थापित करते समय CFM वैल्यू की कुशल वैज्ञानिक गणना का बहुत अधिक महत्त्व है। CKV (commercial kitchen ventilation) की गाईड लाईन्स और सम्पूर्ण एक्सहॉस्ट एंड फ्रेश एयर को ध्यान में रखते हुए वेंटिलेशन सिस्टम को प्लान करना चाहिए।
जिस प्रकार से एक्सहॉस्ट का भली प्रकार से काम करना बेस किचन में ज़रूरी है, उसी प्रकार फ्रेश एयर की भी अपनी विशिष्ट भूमिका है। इसी कारण से TFA (treated fresh air) की सटीक गणना करना ज़रूरी है। नलिकाएं (ducts) भी सुचारु रूप से काम करें यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहिए । डक्ट्स का साईज़ CFM के अनुरूप होना अत्यंत आवश्यक है। उसी प्रकार से एक्सहॉस्ट फ्रेश एयर सिस्टम में लगने वाली मशीनरी भी किसी अच्छे वेंडर / कांट्रेक्टर से भी उपलब्ध करनी चाहिए। जहाँ पर HEPA filters की आवश्यकता हो वहां उनका प्रयोग करना चाहिए। ‘बेस किचन’ योजना बनाते समय तथा डिज़ाइनिंग करते समय इन सभी पहलुओं पर विचार करना ही समय की आवश्यकता है, ऐसा संजीव जी का सुविचार है।
प्रभु जी ने बहुत ही विस्तार पूर्वक इस प्रश्न के उत्तर का विवरण करते हुए कहा कि , “प्रक्रिया के सबसे महत्वपूर्ण भागों में से एक उचित वेंटिलेशन है जिसके होने के बहुत सारे फायदे हैं। कमर्शियल किचन में तीनों प्रकार की गर्मी उत्पन्न होती है, जो उन्हें काम करने के लिए सबसे असुविधाजनक स्थानों में से एक बनाती है। खाना पकाने के धुएं से कन्वेक्टीव हीट और तंदूर और बिजली के हीटरों से निकलने वाली गर्मी किचन का हिस्सा हैं।
इसके अलावा, किचन गैस, डीज़ल, कोयला और यहां तक कि लकड़ी जैसे फॉसिल फ्यूल्स के इस्तेमाल से किचन में ऑक्सीजन की लगातार खपत होती है। इससे किचन में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिसके कारणवश कर्मचारियों की सांसें प्रभावित होती हैं। किचन को ठंडा और आरामदायक रखने के लिए ताज़ी हवा का निरंतर प्रवाह बहुत ज़रूरी है।
मानव कार्य स्थितियां: OSHA के अनुसार, किचन का काम “हीट स्ट्रेस” श्रेणी में आता है और मानव शरीर को कई तरह से प्रभावित करता है, जैसे फेफड़ों में संक्रमण, गले में संक्रमण, भारी पसीने के कारण त्वचा का संक्रमण , इत्यादि। इसीलिए सही किचन वेंटिलेशन उपकरण चुनना बहुत महत्वपूर्ण है।
किचन वेंटिलेशन उपकरण में हुड, एक्सहॉस्ट डक्टिंग, फ्रेश एयर यूनिट और फ्रेश एयर डक्टिंग शामिल हैं। हुड का ख़राब डिज़ाइन धुएं और गर्मी को किचन में फैला सकता है। एक बार जब किचन में गर्मी फैल जाती है, तो इसे ख़त्म करना बहुत मुश्किल होता है।
हुड खाद्य ग्रेड स्टील से बना होना चाहिए और उचित कनेक्शन होना चाहिए जो प्रदूषित हवा को समाप्त कर दे। हुड के नीचे का हिस्सा कम से कम 7 फीट होना चाहिए, और एयर-फ़्लो सर्क्युलेशन ऊंचाई के अनुसार होनी चाहिए।
ताज़ी हवा और एक्सहॉस्ट डक्ट डिज़ाइन का एक मुख्य महत्व है ताकि न्यूनतम ऊर्जा आवश्यकता के साथ अधिकतम गरम हवा निकाली जा सके। इसके लिए, CFM के संदर्भ में हवा की मात्रा की उचित गणना एक HVAC सलाहकार द्वारा ASHRAE और VDI 2052 जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों का उपयोग करके की जानी चाहिए।
किचन को हमेशा नकारात्मक दबाव में रखना पड़ता है ताकि किचन से किसी तरह की कोई गंध बाहर न जाए, जिससे अनुपचारित हवा बाहर निकल जाए। डक्ट्स को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि उन्हें उचित क्लीनिंग पोर्ट्स से आसानी से साफ़ किया जा सके। किसी भी लीकेज से बचने के लिए जोड़ों को अच्छी गैसकेट सामग्री के साथ ठीक से सील करना होगा और ठीक से कसना होगा।
SMACNA मानकों के अनुसार डक्टिंग बनाने के लिए कम से कम 0.8 mm मोटी GI शीट का उपयोग किया जाता है। किचन में आने वाली ताज़ी हवा मानव स्वच्छता और गर्मी को दूर करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह देखा गया है कि कई किचन परिचालन ख़र्चों को बचाने के लिए ताज़ी हवा की आपूर्ति से समझौता करती हैं। हालांकि, इससे श्रमिकों का अनुचित स्वास्थ्य और ईंधन का अनुचित कम्बशन होता है, जिससे अप्रत्यक्ष नुकसान होता है।
ताज़ी हवा को 20 माइक्रोन तक फ़िल्टर करना पड़ता है ताकि कोई धूल या बैक्टीरिया हवा की धारा में प्रवेश न कर सके। सर्वोत्तम हवा सर्क्युलेशन और उसकी उचित फ़िल्टरिंग के लिए एयर हैंडलिंग यूनिट्स को ठीक से चुना जाना चाहिए। ताज़ी हवा के डक्ट्स को भी नियमित रूप से साफ़ करने की आवश्यकता होती है क्योंकि वे उनके भीतर मोल्ड और धूल भी बनाती हैं। एयर स्ट्रीम में UV सिस्टम AHU में बैक्टीरिया की संख्या को काफ़ी हद तक कम कर देती है। यूनिट को बिल्डिंग के बाहर लगाने के लिए एक उचित मंच बनाना होगा ताकि रख-रखाव आसानी से किया जा सके।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फ़्लिटर की सफ़ाई, मोटरों की उचित ग्रीसिंग द्वारा ब्लोअर और ताज़ी हवा यूनिट की फ़िल्टर सफ़ाई से हुडों का नियमित रख-रखाव लंबे समय तक किचन के वेंटिलेशन उपकरण की मदद करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करता है, प्रभु जी ने उत्तर दिया।
विकास जी मानते हैं कि सिर्फ़ सेंट्रल किचन ही नहीं, सम्पूर्ण वेंटिलेशन की स्थापना करना भी सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर आपने एयर सर्कुलेशन और वेंटिलेशन को सही तरीके से नियोजित नहीं किया, तो यह ब्रैंड के लिए संकटपूर्ण हो सकता है। उत्पादन में कई मुद्दे हो सकते हैं, जैसे भोजन की गंध से शुरू होकर और फिर विभिन्न किस्मों के भीतर भोजन की सुगंध और गंध का आपस में मिलना। इसलिए, इसे HVAC कम्पनियाँ आदि जैसे विशेषज्ञों की मदद से शुरुआत में ही संबोधित किया जाना चाहिए।
सिन्हा जी ने कहा , बेस किचन के स्मूद ऑपरेशन, तथा स्टाफ़ को सुरक्षित रखना, एवं आराम से काम करने से इसके लिए वेंटिलेशन, तथा एयर सर्क्युलेशन का बहुत ज़्यादा महत्व है। स्टाफ़ की सुरक्षा की दृष्टि से वेंटिलेशन एवं एयर सर्क्युलेशन तक सब सही होना चाहिये जिससे किचन की गर्मी तथा स्मोक पूरी तरह बाहर जा सके तथा बाहर की फ्रेश एयर अन्दर आ सके। क्योंकि एयर वेंटिलेशन और एयर सर्क्युलेशन सही नहीं होगा तो स्टाफ़ को काम करने में परेशानी होगी तथा वो बिमार हो सकते हैं। इसलिए बाकि सभी पहलुओं के साथ – साथ किचन में एयर सर्क्युलेशन भी प्रॉपर होनी चाहिये। उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रख कर एक आदर्श बेस किचन मिठाई के लिए तैयार किया जा सकता है ।
आख़िर में वीरेंद्र जी कहते हैं कि, बेस किचन में एयर सर्क्युलेशन का पूरा ध्यान रखना अति आवश्यक है। एयर सर्क्युलेशन ना होने की वजह से हाइजीन मेन्टेन नहीं रह पायेगी, और हाइजीन मेन्टेन करने के लिये वेंटिलेशन का होना बहुत ही ज़रूरी है। कितनी हवा अंदर और बाहर जाती है उसका एक बैलेंस करके एयर सर्क्युलेशन को मेन्टेन किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि, एयर सर्क्युलेशन कम से कम एक घन्टे में 20 टाईम सर्क्युलेट होनी चाहिए। ताज़ी हवा का आना बहुत ही ज़रूरी होता है उस से मिठाई या नमकीन की क्वालिटी अच्छी बनेगी। बेस किचन में काम करने वालों को भी गर्मी से अच्छी राहत मिलती है तथा उनके काम करने की क्षमता भी बढ़ जाती है।