“कुंजीलाल दालसेव वाले” मुदित गोयल से पूछा गया कि आपका ऐसा कौन सा प्रोडक्ट है जो आपके पूर्वजों से आप तक चला आ रहा है जिसको बहुत ही अधिक लोकप्रियता प्राप्त है? उनका जवाब था दाल मोठ, जी सही सुना आपने दाल मोठ।
मुदित ने हमें अपने प्रोडक्ट के बारे में कुछ ऐसी ख़ास बातें बताई जो हम आपसे साझा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका यह प्रोडक्ट आज़ादी के दौर का है, यानी सन 1947 ई0 से जब यह देश आज़ादी की खुशियाँ मना रहा था। सबसे पहले उनके दादा जी ने ठेले (रेढ़ी) पर दाल मोठ को देसी घी में बनाना शुरू किया। वह गली-गली में रेढ़ी चलाकर दाल मोठ बनाकर बेचा करते थे। आज़ादी के बाद लोगों ने सही मायनों में काम करना शुरू किया था। मुदित के दादा उनमें से एक थे जिन्होंने बड़ी ही मेहनत और लगन के साथ अपने काम को अंजाम दिया और उसे आगे बढ़ाते हुए रेढ़ी से एक दुकान के मालिक हो गए। मुदित ने कहा आज तक वह दुकान उनके पास है और वही दाल मोठ भी, भले ही उसके बाद आज उनके पास मिठाई व नमकीन के 3 और शोरूम्स हो गए हैं, लेकिन दादा जी की दुकान आज भी साथ है।
दाल मोठ के स्वाद के बारे में हमने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि आज तक इस प्रोडक्ट का वही टेस्ट बरकरार है, वही देसी घी का स्वाद जैसे वह पहली बार बनाई गयी थी। उन्होंने यह भी कहा जैसे हर प्रोडक्ट की एक ख़ास रेसिपी होती है वैसे ही हमारे प्रोडक्ट की भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हैंडओवर की जा रही है, हमारी यह ख़ास रेसिपी आज भी लौकर में रखी जाती है ताकि यह सुरक्षित रहे। पहले हमारे दादा के पास थी फिर हमारे पिताजी और अब मेरे पास है, आगे फिर में इस रेसिपी को अपने बच्चों को दूंगा।
मौसम के प्रभाव को लेकर जब हमने उनसे प्रोडक्ट के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही तो मुदित ने कहा कि यह आपका सबसे बेहतरीन सवाल है क्योंकि मौसम का प्रभाव किसी भी प्रोडक्ट पर बहुत ज़्यादा होता है। दाल मोठ क्योंकि शुद्ध देसी घी में ही बनाई जाती है तो इसकी सुगंध (एरोमा) और इसका स्वाद गर्मी के मौसम में ज़्यादा उभर कर आता है जिसके कारण इसकी सुगंध में चार चाँद लग जाते है। सर्दियों में दाल मोठ के स्वाद में कोई कमी ना होकर थोड़ा सा टेक्सचर में बदलाव आ जाता है क्योंकि सर्दी के मौसम में घी जम जाता है, गर्मी बेहतरीन समय होता है दाल मोठ को खाकर उसका आनंद लेने का।