स्किल्ड कारीगरों की समस्या को दूर करने के लिए अब स्किल्ड डॅवलपमेंट सेंटर अति आवश्यक

श्रम शक्ति

खाद्य और पेय उद्योग में श्रम की कमी कोई नई बात नहीं है। मिठाई व नमकीन उद्योग इस चुनौती को हल करने के लिए कई समाधानों की ओर रुख़ कर रहा है, लेकिन यह कोई आसान समाधान नहीं है।

कई अन्य उद्योगों की तरह, इस अवधि के दौरान काम से निकाले गए श्रमिक अपनी नौकरी पर वापस नहीं आए। एक कुशल कार्यकर्ता वह है जो अपनी भूमिका निभाने के लिए आवश्यक योग्यता रखता है, और अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन में लगातार ऊपर और आगे बढ़ने की कोशिश करता रहता है। आज के कार्यबल में कुशल श्रमिकों की बहुत आवश्यकता है।

श्रम की कमी अर्थव्यवस्था (economy) को कैसे प्रभावित करती है?

एक विशेष कंपनी अन्य व्यवसायों के श्रमिकों को लुभाने के लिए अपनी मज़दूरों को पर्याप्त रूप से बढ़ाने में सक्षम हो सकती है, लेकिन ग्राहकों द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमतों की महत्वपूर्ण मुद्रास्फ़ीति (inflation) के बिना यह एक अर्थव्यवस्था-व्यापी समाधान नहीं है।

ये कमी मुद्रास्फ़ीति में तब्दील हो जाएगी, जो भविष्य में हमारे द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमत होगी। कार्यकर्ता अधिक लचीलेपन की मांग करते हैं, काम को लेकर निर्माता तरह-तरह के फैसले ले रहे हैं। अधिक लोग अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर रहे हैं। इस पेंडेमिक के दौरान लोग पुनर्मूल्यांकन (revaluation) कर रहे हैं कि वे अब आगे क्या करना चाहते हैं और कैसे करें। 

उत्पादकता पर प्रभाव

लेबर कि कमी कि वजह से प्रोडक्शन पर भारी असर पड़ता है। इसके विपरीत, पर्याप्त जनशक्ति की कमी व्यवसायों के कार्यों को पूरा करने से रोकती है। उत्पादकता की कमी राजस्व और लाभ में कमी में तब्दील हो सकती है, जिसका अर्थ है कि ऐसी परिस्थिति में व्यवसाय चालू नहीं रख सकते हैं।

श्रम दक्षता

जब कि कई कंपनियां श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए अस्थायी श्रमिकों का उपयोग कर रही हैं, ये कर्मचारी अक्सर पूर्णकालिक प्रत्यक्ष किराए के रूप में जानकार या विश्वसनीय नहीं होते हैं।

खाद्य और पेय निर्माताओं को आज श्रम की कमी को दूर करने की आवश्यकता है, लेकिन कई लोगों का कहना है कि उन्हें श्रम की कमी जल्द ही दूर होने की उम्मीद नहीं है। वे देख रहे हैं कि क्या उन्हें कार्य करने के लिए एक कर्मचारी की आवश्यकता है या कई कर्मचारियों की इसके अलावा, वे शिफ्टों को जोड़ने या हटाने पर भी ध्यान दे रहे हैं।

यदि किसी खाद्य और पेय कंपनी ने स्टाफिंग और दक्षता में अधिकतम परिवर्तन किया है, तो एक और विकल्प हैः स्वचालन। यह एक महंगा विकल्प है और चुनौतियों और बाधाओं के साथ आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वचालन सभी कंपनियों के लिए उपयुक्त नहीं है। ऑटोमेशन लाने से अधिक कुशल श्रम की आवश्यकता होती है, इसलिए यह अकुशल श्रम की कमी का एक प्रतिरूप है।

इन सभी मुद्दों को  ध्यान में रखते हुए MNT ने काफ़ी परिचित लोगों से कथोपथन कि है और उन सब का सारांश आगे उल्लेखित है:

सब से पहले MNT ने ऐश्वर्या सकपाल, Operations Head, प्रशांत कॉर्नर, ठाणे, से अपना पहला सवाल किया कि इस महामारी ने शहरों से मज़दूरों को अपनी जन्मभूमि की ओर बड़ी संख्या में पलायन करते देखा है जिसकी वजह से बड़े-बड़े उद्योग ठप्प हो गए । हम मज़दूरों की इस कमी की समस्या का समाधान कैसे कर सकते हैं ?

ऐश्वर्या ने बहुत ही कुशलता से उत्तर दिया कि, “ कोवीड-19,यह महामारी केवल हमारी इंडस्ट्री को ही नहीं बल्कि सारे देश को इस बीमारी का सामना करना पड़ा। इस बीमारी का भय इतना था की मज़दूरों का ही नहीं, सारे देश की जनता का पलायन हो रहा था। इस मुश्किल समय में हमने हमारे कर्मचारियों को बख़ूबी संभाला। हम ने अपने सारे कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाया की, आप हमारे  परिवार का एक हिस्सा हैं और जिस तरह परिवार के सदस्य का ख़्याल रखा जाता है ठीक उसी तरह आप का भी ख़्याल रखा जायेगा और आपके हर सुख-दुःख में हम आपके साथ रहेंगे”।  

“महामारी के दौरान हमने सारे कर्मचारियों का खाने से लेकर रहने तक सारा बंदोबस्त कर दिया था। उस समय हमारे कुछ कर्मचारी बीमार हुए थे, उन्हें हमने अस्पताल की अच्छी से अच्छी फै़सिलिटी उपलब्ध करवा दी। इसके अलावा उन्हें हम पुरे महीने की तनख़्वा बिना कटौती के दे रहे थे और च्थ्ध् PF, ESIC, MEDICLAIM यह फै़सिलिटी भी दे रहे थे और जो कर्मचारियों को अपनीे जन्मभूमि की ओर मजबूरी से जाना ज़रुरी था तो उनके लिए हम ने प्राइवेट वेहिकल से उनके जाने का बंदोबस्त करवा दिया था (तामिलनाडु, बिहार, यूपी और बंगाल इस जगह) इस वजह से हमारे प्रशांत कार्नर से कोई कर्मचारी हमें  महामारी के समय छोड़ कर नहीं गए और आगे भी नहीं जायेंगे”।

यही सवाल जब हम ने अनुज जैन MD, जैन श्री स्वीट्स & गजक, जो इंदौर से हैं, उनसे पूछा तो उनका जवाब बड़ा सटीक रहा, महामारी अभी एक अस्थाई समस्या है इसके लिए हम अस्थाई रूप से हलवाई एवं कैटरिंग के लेबर की मदद ले सकते हैं क्योंकि इस समय अधिकांश कैटरिंग एवं हलवाई के पास कार्य नहीं है।

नितिन चैगुले, बसाप्पा फू़ड्स, मीराज, सांगली से हैं। उनका विस्ताररूपी जवाब कुछ इस प्रकार रहा, “इस महामारी ने ज़्यादातर सेक्टर्स पर बड़ा असर डाला है। यहां हम मिठाई और नमकीन क्षेत्रों के बारे में बात करेंगे और लॉकडाउन खुलने के बाद यह उद्योग पर कैसा प्रभाव पड़ा। मज़दूरों को अपनी पिछली नौकरी पर लौटने को लेकर शुरुआती 3 से 4 महीने के लिए बड़े झटके लगे। अब, यदि आप देखें तो सभी को इसकी आदत हो गई है और कोविड का डर ज़्यादातर चला गया है, तो श्रम की समस्या जो शुरू में बहुत कठिन लग रही थी, एक बीता हुआ चरण है।

अपने अनुभवों को शेयर करते हुए नितिन ने कहा, “वास्तविक समस्या लेबर कमी नहीं है, बल्कि हम अपने कर्मचारियों से कैसे निपटते हैं, हम उन्हें क्या सुविधाएं प्रदान करते हैं वगै़रा वग़ैरा। वे दिन गए, लेकिन अब मिठाई उद्योग फ़ूड प्रोडक्ट्स की अच्छी गुणवत्ता, खाद्य ग्रेड पैकेजिंग, उत्पादों के परिष्कृत स्पर्श और सबसे बढ़कर स्वचालन के मामले में नया आकार ले रहा है। और सभी चीज़ों को संभव बनाने के लिए, आपको अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को खुश और संतुष्ट रखना होगा। हमें अपने काम के माहौल को ताज़ा और अनुकूल रखने की सख़्त ज़रुरत है। इसके अलावा, हमें कुशल और विशेषज्ञ होने के लिए श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। इसका मतलब है प्रशिक्षित होने के इच्छुक फ्ऱेशर्स (freshers) को काम पर रखना। यह सब मैं अपने व्यक्तिगत अनुभवों से कह रहा हूं, कि सभी कर्मचारी एक जैसे नहीं होते हैं लेकिन उनमें से कुछ बहुत जल्दी सीखते हैं और कंपनी के लिए कुछ नया करना चाहते हैं।

मज़दूरों की कमी के संबंध में, आजकल लेबर को तत्काल पैसा चाहिए। वे बिना किसी कार्य अनुभव के 15000 का वेतन चाहते हैं और ये मांगें बढ़ती जाती हैं। इस परेशानी को दूर करने के लिए हमें निश्चित रूप से छोटे स्तर पर भी ऑटोमेशन को अपनाने की ज़रूरत है। ऑटोमेशन करने में एक और कमी का सामना करना पड़ता हैं, यह उच्च और भारी निवेश के साथ आता है। इंडस्ट्री की बड़ी कम्पनियाँ ही ऑटोमेशन को अपनाने में सफ़ल होती हैं, इस परेशानी से नितिन ने आगाह किया।

प्रभाकर वर्मा, रसपूर्ण फूड्स प्र. ल. विज़ाग से हैं। प्रभाकर ने अपने दृष्टीकोण का उल्लेखन किया, ‘प्रवासन (migration) महामारी के बजाय भय और सुविधाओं के प्रावधान (provision) की समस्या बन गया। परिवार अपने कार्यस्थल पर नहीं गए। हमें नहीं पता कि इसके लिए पर्याप्त नौकरी की सुरक्षा क्यों नहीं थी, और कई प्रतिष्ठान मौजूदा परिस्थितियों के कारण पर्याप्त प्रावधान नहीं कर पाए या नहीं दे सके।

हम कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण, कम भीड़-भाड़ वाले कमरे और अधिक सुविधाएं प्रदान करे, कर्मचारियों को उनके परिवारों को नए कार्य स्थानों (शहरों या कस्बों) में स्थानांतरित करने में सहायता करे, मेडिक्लेम और अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से स्वास्थ्य की कवरेज सुनिश्चित करके श्रम के लिए सुरक्षित स्थिति की भरपाई कर सकते हैं।

कार्यबल में महिलाओं की संख्या में वृद्धि करनी होगी क्योंकि वे स्थानीय स्तर पर भर्ती होने पर भार को बेहतर तरीके से साझा करती हैं और अधिक स्थिर होती हैं।

कुमार मनीश,  मधुलिका फूड्स  Pvt Ltd, धनबाद , JK, ने शॅार्ट लेकिन सटीक उत्तर दिया की, ‘‘जो भी मज़दूर काम करने आते हैं, उनके रहने-खाने और साफ़ शौचालय प्रोवाइड करें। उन्हें मज़दूर ना समझकर इंसानी तरीक़ा अपनाएं। बायोमेट्रिक्स के ज़रिये उन्हें कंट्रोल ना करें और CCTV का कम से कम इस्तेमाल करें।

राहुल शर्मा, डायरेक्टर , DMB Sweets Pvt Ltd, जयपुर ने अपने अंदाज़ में बताया की मज़दूरों के लिए Regional Job Centre खोलना सही होगा जहाँ मज़दूर कारीगर को प्रोत्साहन मिल सके, उनका registration कराएं उससे पता लग सकता है की इन्हें क्या काम आता है। 

 अगले सवाल की ओर चलते हुए MNT ने पूछा, कई बार ऐसा देखा गया है कि एक निर्माता दूसरे मिठाई निर्माताओं से गुणवान मज़दूरों को ज़्यादा सुविधाओं का लालच देकर हथियाने की कोषिष करते हैं। आपकी क्या राय है और निर्माता इस चलन को कैसे रोक सकते हैं?

इस हक़ीक़त को मानते हुए, ऐश्वर्या ने हामी भरी, ‘‘यह सच बात है कि यह सारी घटनाएं घटती है। गुणवान कारीगरों की हमेशा आवश्यकता होती है। लेकिन हमने कभी किसी को ज़्यादा सुविधाओं का लालच देकर हमारी तरफ़ खेंचने का या हथियाने का प्रयास बिल्कुल नहीं किया। हम हमारे सारे कारीगरों को एक-समान दर्जा देते और यही एक वजह है कि हमारे यहाँ कारीगर चले आते हैं। पलायन को रोकने के लिए हमारी इंडस्ट्री को सभी कारीगरों को एकसा दर्जा देना चाहिए।

MNT के नज़रिये से यह बात बिल्कुल सही है की लेबर एक बार चली जाती है तो दोबारा उनका विश्वास जीतना बहुत मुश्किल होता है इसीलिए उनका ख़्याल रखना और समय-समय पर प्रोत्साहन ज़रूरी हो जाता है ताकि वे कहीं और न चले जाएँ।   

इस मुद्दे पर विचार विमर्श करते हुए अनुज ने दूरंदेश नज़र रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा की मिठाई एवं नमकीन में सभी सफ़ल एवं समृद्ध दुकान की कोई न कोई विशेषता ज़रूर होती है जो उसके मालिक और कारीगर के हाथों में होती है। ऐसे में किसी लालच के कारण गुणवान कारीगर किसी और की संस्थान में चले जाएं तो बहुत ही विचित्र परिस्थिति हो जाती है और काम में ज़बरदस्त बाधा आ पड़ती है। इस समस्या के लिए निर्माता लेबर को इंक्रीमेंट समय पर देना चाहिए जिससे लेबर स्थिर रहे। लेबर के साथ एक सोशल जुड़ाव होना चाहिए और आगे का विज़न (vision) से सूचित करना चाहिए जिसके कारण उन्हें उनका आने वाला भविष्य सुरक्षित एवं उज्जवल दिखाई दे। परंतु हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए की किसी की लालच का अंत नहीं है, इसकी कोई समाप्त-सीमा नहीं है और न कोई उपाय है।

नितिन भी इस बात से सहमत हैं और कहते हैं की, ‘‘यह बात बिल्कुल सही है के एक निर्माता दूसरे मिठाईवाले से गुणवान और निपुण मज़दूरों को ज़्यादा सहूलियतों का लोभ देकर अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। ऐसा अक्सर विशेष रूप से मेट्रो शहरों में होता है क्योंकि प्रतिस्पर्धा दो टायर शहरों की तुलना में अधिक होती है। होटल उद्योग के साथ भी ऐसा ही होता है और इसे रोकने के लिए हमें संबंधित उद्योग के सभी कर्मचारियों का डेटाबेस बनाना होगा। यदि कर्मचारी संगठन छोड़कर अन्य संगठन (मिठाई की दुकानों और कारख़ानों) में जाता है, तो यह डेटाबेस इस कि जांच करेगा और हम को सही सूचना देगा ।

नियोक्ता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पिछले कार्य अनुभव (work experience), उसके आचरण (conduct) और उस पर कोई बकाया है या नहीं। साथ ही, डेटा एंट्री के माध्यम से हम उसका आधार कार्ड पंजीकृत कर सकते हैं जिसके माध्यम से हम उनके पिछले कार्य इतिहास को ट्रैक कर सकें।

इसलिए अगर हमें अपने कर्मचारियों या मज़दूरों को पलायन करने या उनकी नौकरी बदलने से रोकना है तो हमें उन्हें आराम और सभी सुविधाएं प्रदान करनी होंगी जैसे ESI /PF/ ग्रेच्युटी वेतन समय पर, स्वास्थ्य देखभाल/ साप्ताहिक अवकाश, काम का माहौल स्वस्थ होना चाहिए, सबसे महत्वपूर्ण उनका खाना-पीना सही होना चाहिए और उनकी जायज़ मांगे पूरी करना आवश्यक है। जब कोई काम अच्छा किया हो तो लेबर कि सराहना ज़रूर करें, इससे उनका मनोबल बढ़ता है और वक़्त-वक़्त पर उन्हें प्रोत्साहन राशी भी दें।

प्रभाकर का मानना है की कर्मचारियों के लिए स्वच्छता कारक सर्वोपरि हैं (काम करने की स्थिति, वेतन और लाभ, स्थिति, नौकरी की सुरक्षा, सहकर्मी, व्यक्तिगत जीवन और विश्वास। सभी परिवर्तन करने से पहले, एक कर्मचारी के दिमाग में यह सारी बातें एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जब तक हम इसके लिए अच्छी प्रथाओं को नहीं अपनाते तब तक हम इस प्रवृत्ति को रोकने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

लेबर की समस्या पर फ़ोकस करते हुए प्रभाकर ने आगे बताया कि इन कारकों में से अधिकांश को संतुष्ट करने वाला आईटी क्षेत्र अभी भी नियमित रूप से दूसरों के लिए कार्यबल खोता रहता है, और ऐसा कार्य  लंबे समय में हमारी इंडस्ट्री के लिए अलग नहीं है। सभी कर्मचारी पदोन्नति, मान्यता, बेहतर अवसर और व्यक्तिगत विकास की तलाश में रहते हैं। हर कंपनी हर एक कर्मचारी को ये उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हो सकती है और इससे कर्मचारी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वहां चले जाना ज़्यादा प्रिफ़र करते हैं जहाँ उनकी ज़रूरतें पूरी होती हों।

मानव संसाधन प्रथाओं को और अधिक सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए, ताकि सुरक्षा, कौशल और आधुनिक कार्यस्थल और व्यक्तिगत विकास की गुंजाईश आधुनिक प्रवृत्तियों के साथ उभर सके जिन्हें हमें सभी संगठनों में पूरा करने की आवश्यकता है।

जटिल समस्या बताते हुए कुमार मनीश और राहुल ने एक स्वर में इसका हल बताया की मेट्रो सिटीज़ में स्टाफ या कारीगर इधर-उधर होते रहते हैं। ऐसा करने से उन्हें रोकना होगा और इसके लिए NOC का सिस्टम बनाना पड़ेगा जो अनिवार्य होगा ।

हिंदुस्तान में साक्षरता दर अभी भी बहुत कम है। कारीगर ज़्यादातर कम पढ़े लिखे होते हैं। उन को ट्रैन करना भी अपने-आप में एक चुनौती है।  

इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए MNT ने अगला सवाल अपने साक्षात्कारों से किया कि निरक्षरता (illiteracy) अभी भी भारतीय मज़दूरों में एक प्रमुख कमी है। एक निर्माता को उन्हें विशेष स्थान देने से पहले उन्हें प्रशिक्षण देना होता है। यह एक समय लेने वाली प्रक्रिया है। हम इस समस्या से कैसे निपट सकते हैं क्योंकि बहुत सारे निर्माता अब ऑटोमेशन को अपना रहे हैं?

सूचनात्मक उत्तर देते हुए ऐश्वर्या ने कहा, मिठाई और नमकीन व्यवसाय एक इंडियन ट्रेडिशनल बिज़नेस है, और यह बिज़नेस ट्रेडिशनल तरीक़े से ही चलता है। उदाहरण के तौर पर कोई कारीगर  दिल्ली से महाराष्ट्र आया है काम करने। तो उस कारीगर को महाराष्ट्र के ट्रेडिशनल खाद्य से परिचित होने में कुछ समय लगेगा। और इसी वजह से उसे विशेष स्थान देने से पहले प्रशिक्षण देना ज़रूरी हो जाता है और इसमें समय लगता है। इन कारीगरों को प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) देने के लिए कुछ ऐसे संस्थाओं का निर्माण होना आवश्यक है जो सारे ज़िले और प्रदेश के कारीगरों को प्रशिक्षण दे सके। तभी हम इस समस्या से निपटने में कामयाब हो सकते हैं। जब कारीगर की समस्या आती है तो ऑटोमेशन होना ज़रुरी है। मिठाई और नमकीन का व्यवसाय दिन प्रति दिन बढ़ने पर है और उच्च लेवल पर जाने के लिए ऑटोमेशन ज़रूरी हो जाता है। लेबर फ़ोर्स पर सलाह देते हुए अनुज का मानना है कि अभी मिठाई उद्योग फुल ऑटोमेशन से दूर है। हमें अपनी लेबर को अनुशासित तरीक़े से ट्रेनिंग देनी होगी। मिठाई एवं नमकीन उद्योग एक ऐसा उद्योग है जो 365 दिन कार्यरत रहता है। हमें हमारे सभी स्थान के लिए एक लेबर अतिरिक्त नियुक्त करना चाहिए। हमें दूसरे उद्योगों के एवज़ में लेबर पर नियम लागू करने होंगे जिससे कभी कारीगर या मज़दूर की समस्या नहीं आए।

नितिन ने इस तीसरे पॉइंट का विस्तृत प्रतिवचन दिया कि प्रत्येक मिठाई और नमकीन निर्माता का लेबर समस्या एक फ़ोकल पॉइंट है, क्योंकि मिठाई उद्योग के 95% श्रमिक अकुशल हैं। हमें उन्हें प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है और साथ ही हमें उन्नत तकनीकों को भी अपनाना चाहिए जैसे बेकरी व्यवसाय में एक छोटा बेकर स्टार्टअप अपनी बेकरी को लगभग 5-10 लाख में पूरी तरह से स्वचालित रूप से शुरू कर सकता है, लेकिन मिठाई स्टार्टअप के मामले में लागत कम हो सकती है लेकिन स्वचालन संभव नहीं है क्योंकि इसका इन्वेस्टमेंट बहुत ऊपर की तरफ़ चला जाता है।

कई मिठाई वाले हैं जो सभी उन्नत तकनीकों को अपनाना चाहते हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम ही ऐसा कर पाते हैं। कारण उच्च लागत वाले उच्च क्षमता वाले संयंत्र हैं जो छोटे मिठाई वाले की पहुंच से बाहर हैं उदाहरण के लिए यदि आप वेफ़र्स प्लांट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं तो सेटअप लागत न्यूनतम 15-20 लाख है।

इसके अलावा हमें अपने स्टाफ़ को हर तरह से प्रशिक्षित करने की ज़रूरत है। कारखाने में प्रयोगशाला स्थापित करना, तेल की TPC की जाँच करना, मिठाईयों में मानकों के अनुसार रंग जोड़ना, स्वच्छता बनाए रखना, तापमान स्तर की जाँच कैसे करें इन सब पर ध्यान देना आवश्यक है। इस तरह की छोटी चीजें बिना उच्च लागत के उत्पाद की गुणवत्ता पर अच्छा प्रभाव डाल सकती हैं। स्वचालन को स्वीकार किया जा रहा है लेकिन कुछ हद तक। हमें लागत कम करने या ऐसी मशीनें बनाने की ज़रूरत है जो छोटे व्यवसायी खर्च कर सकें।

डवलपमेंट सेंटर बनाने का प्रस्ताव प्रभाकर ने रखा, ‘‘हमें उचित प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है, भले ही कारीगर निरक्षर हों। यह भी एक अपरिवर्तनीय लागत है जिसे दूर नहीं किया जा सकता है। रोज़गार की शर्तों पर अधिक अनुबंध प्रवर्तन और इन अनुबंधों को सख़्ती से अपनाने से प्रशिक्षण की लागत वसूलने में मदद मिलेगी, लेकिन कर्मचारी अनुबंध समाप्त होने के बाद छोड़ देते हैं जो इस चक्र की फिर से शुरुआत करता है। वैकल्पिक रूप से हम अधिक शिक्षित और प्रशिक्षित कर्मचारियों की भर्ती कर सकते हैं यदि हम एक राष्ट्रीय डिप्लोमा (1 वर्ष) और प्रमाणपत्र अल्पावधि तैयार करने में सक्षम हैं और प्रशिक्षण संस्थानों को इसे वितरित करने दें, तो प्रशिक्षण और एडॉप्शन की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है‘‘। ‘चाहे हम कुछ भी करें, ऑटोमेशन हर हाल में आना है। हम कुछ नहीं कर सकते हैं, और यह ठीक भी है। नौकरी की भूमिकाएँ बदलती रहती हैं और कार्यबल को तदनुसार अपनाने की आवश्यकता होती है। स्वचालन मात्रा और गुणवत्ता में स्थिरता के बारे में है और प्रणाली,  मांगों और समान रूप से सक्षम कार्यबल में दक्षता में सुधार करता है। कार्य के चलते, राह में नौकरियां उभरती रहती हैं‘‘।

कुमार मनीष ने सुझाव दिया कि स्टाफ़ के बच्चों को पढ़ाने के लिया इन्सेंटिव दे सकते हैं ताकि उनके बच्चों को पढ़ने का अवसर मिले।

वहीं राहुल ने सजेस्ट किया के कारीगरों को training centre या कोई इंस्टीटूट्स जहा short term और long term courses करवाया जा सके।

प्रश्नों की श्रृंखला को आगे ले जाते हुए MNTने यह पूछा, देखा गया है कि मिठाई या नमकीन प्रोडक्ट्स बनाना सिखाने के लिए कोई विशेष संस्थान या प्रशिक्षण केंद्र नहीं है। क्या ऐसे केंद्रों की गंभीर आवश्यकता है? और यदि है, तो FSNM समिति को आप का सुझाव देना चाहेंगे?

हामी भरते हुए ऐश्वर्या ने जवाब दिया, ‘‘जी, ऐसे संस्था का निर्माण होना ज़रुरी है। भारत देश मिठाई और नमकीन पूर्वापर बनाती आयी है। आज की नई जनरेशन इस ट्रेडिशन से दूर भागती नज़र आ रही है। अगर हम ऐसे संस्थाओं का निर्माण करते हैं और उनको प्रशिक्षण दें, तो बिज़नेस में वृद्धि होगी और हमारे मिठाई व नमकीन का ट्रेडिशन बरक़रार रहेगा और लोगो को रोज़गार उपलब्ध होगा।

अनुज ने मिठाई या नमकीन प्रोडक्ट के कारीगर के लिए संस्थान या प्रशिक्षण केंद्र अनिवार्य बताया है। इसमें जो कारीगर को प्रशिक्षण मिले वह FSSAI या गवर्नमेंट के नियम अनुसार हो, जिसमें जो भी कर्मचारी प्रशिक्षण ले उसे सभी फू़ड ऑपरेटर्स की गाइडलाइन्स की जानकारी और पूर्णरूप से सब रूल्स का अनुभव हो।

“हाँ, यह बात तो बिल्कुल सच है कि मिठाई और नमकीन उद्योग के लिए कोई विशेष संस्थान या प्रशिक्षण केंद्र नहीं है जो वास्तव में अनुकूल हो क्योंकि भारत में मिठाई और नमकीन, आउटलेट्स में सबसे अधिक बिकने वाले उत्पाद है। इसके लिए हमें हर राज्य के महानगरों में प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने होंगे। शुरू में जो लोग रुचि रखते हैं वे निश्चित रूप से जुड़ेंगे और सीखेंगे। प्रशिक्षण में दूध और घी की मिलावट को कैसे रोका जाए, मिठाईयों और नमकीन में उपयुक्त रंगों का प्रयोग कैसे किया जाए, इस बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। नए क़ानूनों के अनुसार खाना पकाने के तेल की TPC का निरीक्षण कैसे करें इसकी जानकारी भी सुश्चित रूप से देनी चाहिए”, नितिन ने अपनी पूरी सहमति देते हुए कहा।

नितिन ने आगे बताया की उन्हें फ़ाइनल टच देने के लिए तैयार उत्पादों पर स्प्रे करने के लिए भी प्रशिक्षित करें। पैकेजिंग विभाग में लेबल, निर्माण तिथियों और समाप्ति तिथियों की जांच कैसे करें, अलग-अलग मिठाईयों की तैयारी और भंडारण (स्टील/एल्यूमीनियम/लोहा) के लिए किस तरह के बर्तनों का उपयोग किया जाना चाहिए, अपने आप को साफ़-सुथरा कैसे रखा जाए .. दिशानिर्देषों का पालन करते हुए पूरी तरह से सरकार और कंपनी द्वारा क़ानूनों का पालन, उत्पादन स्तर पर उन्हें कच्चे माल, पैकेजिंग, रसद आदि की हैंडलिंग सिखाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर्स के निर्माण करना मेंडेटरी (mandatory) हो जाता है। 

CIIऔर FSSAI के मुद्दे को सामने रखते हुए प्रभाकर बोले, ‘हम इसके लिए CII को देख सकते हैं, कि हमें उत्कृष्टता केंद्रों के लिए एक समान मॉडल की आवयक्ता है। हम राष्ट्रीय व्यावसायिक कार्यक्रम और अन्य सरकारी पहलु के साथ भी भागीदारी कर सकते हैं, जहां हमारे पास FSNM के रूप में एक राष्ट्रीय संस्थान है जो ऐसे सभी संस्थानों के साथ पाठ्यक्रम मानकीकरण, प्रमाणन और साझेदारी को देखता है‘‘।

कुमार मनीश  और राहुल का नज़रिया लगभग एकसा है। उनका सुझाव यह है कि इस इंडस्ट्री में जो कन्सल्टंट है उन्हें नया स्टाफ़ नहीं प्रोवाइड कर के बिज़नेस से रेकमेंडेड स्टाफ़ को ट्रेन करने की सर्विस लानी चाहिए। और समय के साथ चलते चलते हमें Regional Institute Of Hotel Management Training से  टाईअप कर हलवाई के कोर्सेज़ करवाने चाहिए। 

उचित लेबर प्राप्त करने के लिए आपका क्या सुझाव है? क्या आप मानते हैं की एक ऐसा डेटा तैयार किया जाए जिस में पूरे भारत के एम्प्लोयी रेटिंग सिस्टम के साथ उनका कम्पलीट डेटा हो, ऐसा करने से धोका-धड़ी नहीं हो पायेगी और कारीगरों का रिकॉर्ड ऑथेंटिकेट (authenticate) किया जा सके?

उचित लेबर प्राप्त करने के लिए संस्थाओं का होना ज़रुरी बताते हुए  ऐश्वर्या ने कहा इन संस्थाओं से हमेशा हमें उचित लेबर प्राप्त हो सकती है। और यह संस्थाओं से एक ऐसा डेटा हमें एम्प्लोयी रेटिंग के साथ मिल सकता है जिससे हम कारीगर की धोखा.धड़ी से बच सकते हैं। इसके लिए हमारी इंडस्ट्री को एक साथ आकर यह संस्था का निर्माण करना होगा।   

अनुज ने बहुत समझभूझ से अपने शब्द इस्तेमाल किये, ‘‘मिठाई या नमकीन के कारीगर एवं मज़दूर का कोई उपयोगी विवरण नहीं मिल पाता है। बहुत से कर्मचारी एवं लेबर एडवांस लेकर काम करती है, ऐसे में बिना सिक्योरिटी और इस पूरे रिस्क में निर्माता घिरे रहते हैं। इस रिस्क से उभरने के लिए हमें एक केंद्रित सिस्टम की ज़रूरत है जहां सभी कारीगर एवं मज़दूर जो मिठाई एवं नमकीन से जुड़े हैं उनकी वेरीफ़ाइड जानकारी मिल सके। भारत में काम करने वाले कारीगर एवं मज़दूर की कमी नहीं है उन्हें खोजना मुश्किल होता है, इस सिस्टम से यह भी आसान हो जाएगा‘‘।

इस विषय पर दृष्टी डालते हुए नितिन ने कहा कि, ‘‘हाँ, डेटाबेस बहुत ज़रूरी है। कम से कम प्रत्येक शहर के शीर्ष मिठाई मालिकों के बीच क्योंकि कर्मचारी ज़्यादातर ज्ञात मिठाई वाले के पास जाते हैं जो उन्हें अच्छा वेतन पैकेज दे सकते हैं। इसके अलावा मालिक के लिए नए कर्मचारियों को नियुक्त करना आसान होगा क्योंकि डेटाबेस के माध्यम से जुड़ने से पहले वह कर्मचारी के आचरण और क्षमता की पुष्टि कर सकता है, अगर ऐसा होता है तो कोई भी कर्मचारी मालिक से भागने की या धोखा देने की हिम्मत नहीं करेगा।

प्रभाकर ने कहा की हम बोर्ड में एक सामान्य रेटिंग प्रणाली के साथ एक केंद्रीय डेटाबेस बना सकते हैं। एक सामान्य भर्ती पोर्टल होने से इस संबंध में मदद मिलेगी। राहुल और कुमार मनी ने भी कुछ इसी अंदाज़ में उत्तर दिया की पहले वेब-ऐप्लिकेशन (web application) की ज़रूरत है जो एम्प्लॉई का डेटा एम्प्लॉई ख़ुद डाले और अपनी ID फ़्री में बनाय। बिज़नेस ID पैड सर्विस की तरह होगी। जब भी कोई कन्सल्टंट स्टाफ़ भेजे तो एम्प्लॉई इस वेब से सर्टिफ़ायड (certified) हो।

निश्कर्श

हर उद्योग में ख़ासतौर पर मिठाई व नमकीन उद्योग में कर्मचारियों की आवश्यकता हमेशा रहेगी लेकिन अब उस कर्मचारी को पहले से ही प्रशिक्षित होना चाहिए और कंप्यूटर नेटवर्क और मशीनों का प्रबंधन करने में सक्षम हों जो वास्तव में जटिल हैं और जिन्हें नियमित रूप से सेवित करने और ऑनलाइन वापस लाने की आवश्यकता है। लेकिन कुछ खाद्य और पेय निर्माताओं के लिए जो ऐसे वातावरण में काम करते हैं सहायक नहीं हैं- जैसे बहुत ज़्यादा ठंड या बहुत ज़्यादा गर्म हो तो स्वचालन न केवल श्रम की कमी बल्कि कर्मचारियों की संतुष्टि को संबोधित कर सकता है।

कई मिठाई नमकीन निर्माताओं का कहना है कि यह संभवतः स्थायी रूप से बदल जाएगा कि वे व्यवसाय कैसे करते हैं, न केवल इसलिए कि महामारी के प्रभाव आने वाले वर्षों के लिए श्रमबल को प्रभावित करने की संभावना रखते हैं, बल्कि इसलिए भी कि बीमार कर्मचारियों को अलग-थलग करने और हटाने की ज़रूरत महसूस होगी, साथ ही लोगों को अलग-अलग (सोशल डिस्टेंसिंग) रखने की भी आवश्यक्ता होगी-ऐसा करने से लगातार बिना रुके काम करने में मदद मिलेगी।

आप लेबर की कमी से कैसे निपट सकते हैं?

यदि आप अपने व्यवसाय में कर्मचारियों की कमी महसूस कर रहे हैं, तो इसे संभालने के कुछ तरीक़े यहां दिए गए हैं।

1. अपनी भर्ती का दायरा बढ़ाएं।

2. भर्ती में सहायता प्राप्त करें।

3. षिक्षुता योजना षुरू करें।

4. सोषल मीडिया का इस्तेमाल करें।

5. अपनी कंपनी को और अधिक आकर्शक बनाएं।

6. समय बचाने वाली तकनीक में निवेष करें।

उन क्षेत्रों में स्वचालन पर ध्यान केंद्रित करना जहां मनुश्य कम सहज हैं, शुरू करने के लिए एक अच्छी जगह है

रोज़गार योग्यताए उत्पादकता में सुधार लाकर ग़रीबी में कमी को दूर करने के लिए कौशल विकास एक महत्वपूर्ण चालक है और रोज़गार के अवसरों में वृद्धिए आय में वृद्धि और विकास में बदलाव लाएगा।

यदि भारत अपने कर्मचारियों को किसी विशेष पद पर आवश्यक कार्य कौशल या उद्वमशीलता कौशल के साथ शिक्षित करने में सक्षम है तो उद्योग के साथ साथ श्रमिक जल्दी ही सफ़लता की ऊँचाईयां छू सकेंगे ।

कम शिक्षा और प्रशिक्षण श्रमिकों के कमज़ोर वर्ग को एक दुष्चक्र में रखता है प्रशिक्षण निष्चित रूप से युवाओं और महिलाओं को बेहतर रोज़गार प्रदान करेगा ।

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