आंध्रा की मिठाई इंडस्ट्री पूरे साउथ इंडिया को डोमीनेट करने के लिए व्याकुल

इस बार सबसे पहले मैं वो कार्य करूँगा जो आमतौर पर लोग अंत में करते हैं, आप सभी लोगों का मैं आभारी हूँ और धन्यवाद प्रकट करता हूँ कि आपने मुझे कॉल और email करके सूचित किया कि मेरे लिखे हुए लेख आपको बहुत पसंद आ रहे हैं। आप की मेरे प्रति यह प्रशंसा मेरे अंदर एक नई ताक़त को जन्म देती है, अपना यह प्रेम सदा मुझ पर बनाये रखें। ख़ास तौर से आपको मेरे राजस्थान भ्रमण से जुड़े लेख और अनुभव बहुत पसंद आए जिसे हमने 2 अंकों में प्रकाशित किया था। मुझे उद्योग से जुड़े कुछ बंधुओं ने यह भी बताया कि मेरे वह अनुभव उन लोगों के व्यापार को बढ़ाने में कारगर और लाभप्रद साबित हुए। आप सब के प्रेम और आदर का एक बार फिर से बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद।

जब हमारा क़ाफ़िला बीकानेर से जोधपुर की ओर जा रहा था उसी समय मुझे मेरे मित्र ‘महेंद्र मिठाईवाला’ के मालिक श्री हेमंत गेहलोत का काकीनाडा, आंध्र प्रदेश से फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ हूँ, मैंने उन्हें बताया कि आज कल में राजस्थान के दौरे पर हूँ और अभी बीकानेर से जयपुर जा रहा हूँ। हेमंत जी ने कहा राजस्थान तो हमारे लिए भी बहुत मुख्य है क्योंकि हमारे पूर्वज भी राजस्थान से ही आंध्र प्रदेश आए थे और यहीं के होकर रह गए, फिर उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए मुझसे पुछा कि ‘‘आप आंध्र-प्रदेश का दौरा कब करेंगे? हम सब लोग चाहते हैं कि आप आंध्रा भी आएं और यहाँ के मिठाई वालों से मिलें और उन सब को FSNM के बैनर के तले एकजुट करें”।

मेरे मित्र ने कुछ इस तरह से आग्रह किया कि मैंने उनसे वहीं ये वादा किया कि मैं जल्द आंध्र प्रदेश प्रदेश का दौरा करूँगा, साथ में गाड़ी में बैठे पुनीत भी यही चाहते थे कि हम कुछ दक्षिण भारत के राज्यों को भी देखें और वहाँ की मिठाई वालों से मिलकर ये समझें कि वहाँ की क्या ज़रूरतें हैं। राजस्थान का दौरा पहले से ही बहुत अच्छा चल रहा था।

एक जोश का माहौल बना हुआ था और आगे के दौरे के बारे में निर्णय लेना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था। हमने वहीं यह निर्णय लिया कि कुछ दिन के विश्राम और अपने दफ़्तर के कार्यों को समाप्त करने के बाद हम तुरंत आंध्र प्रदेश के दौरे पर निकल जाएंगे।

बस फिर क्या था हम उदयपुर के सफ़र के बाद अपने-अपने घरों को चले गए। कुछ लोग दिल्ली, कुछ मुंबई और कुछ अपने-अपने इलाक़ों की तरफ़। जाने के बाद यह डिस्कशन शुरू हो गया कि हम आंध्रा कब जाएंगे, और जल्द ही हमने अपना निर्णय सब को सुना दिया कि हम लोग आंध्रा अगले हफ़्ते ही जाएंगे। बस सबके फ़ोन आने लगे की इस सफ़र को हमें कहाँ से शुरू करना है। इन सब बातों की डिटेल्स निकालने के बाद ये ज्ञात हुआ कि हम हैदराबाद से अपना सफ़र शुरू करें और वहाँ से आगे सड़क के रस्ते हम विजयवाड़ा जाएं। ये रास्ता विजयवाड़ा से काकीनाडा और काकीनाडा से विशाखापटनम की ओर जाता है। हम लोगों ने यह निर्णय किया कि विशाखापटनम हमारा अंतिम चरण होगा जहाँ से हम अपने घरों को वापस लौट जाएंगे। यूँ तो हैदराबाद आंध्र प्रदेश में नहीं आता है लेकिन तकनीकी तौर पर आज भी हैदराबाद आंध्रा और तेलंगाना दोनों की राजधानी है।

हैदराबाद की फ़्लाइट सुबह की थी तो हमारे पास कुछ वक्त था। मगर वहां से विजयवाड़ा की तरफ़ निकलने पर हैदराबाद पहुँचने से पहले ही हमारे परम मित्र जो तपेश्वरम – काकीनाडा में रहते हैं उनके फ़ोन आने लगे कि ‘‘मैंने आप के आने का इंतज़ाम हैदराबाद एयरपोर्ट से ही कर दिया है हमारी गाड़ी आपको वहाँ से लेकर विजयवाड़ा जाएगी‘‘, हमारे परम प्रिय मल्ली बाबूजी इनका पूरा नाम PVVS मल्लिखार्जुना राव है, मल्ली बाबू न सिर्फ़ दिल के बहुत बड़े व्यक्ति हैं बल्कि एक बहुत ही अच्छे मिठाई बनाने वाले और लोगों को कैसे मिठाई खिलाना है, वह सिखाने वाले व्यक्ति हैं।

इनके शोरूम्स ‘सुरुचि फूड्स’ के नाम से प्रख्यात हैं। यहाँ का खाजा तपेश्वरम खाजा के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। ये खाजा मल्ली बाबू के पिताजी ने ही इन्वेंट किया था और आज भी जो लोग आंध्र प्रदेश आते हैं वो अलग-अलग तरह के खाजा को खाना एवं अपने साथ लेकर जाना पसंद करते हैं। खाजा, आंध्र प्रदेश में अलग-अलग नामों से बहुप्रसिद्ध है, तपेश्वरम खाजा का स्वाद उसकी डिमांड, उसकी बनावट, अलग होती है और जितने भी आंध्र प्रदेश में खाजा मिलते हैं उसमें सबसे अग्रिम है। 

मल्ली बाबू का ड्राइवर, पुनीत और मुझे एयरपोर्ट पर ही मिल गया। हमारे हैदराबाद के मित्र श्री सुधीर शाह  जो ‘स्कूप्स आईस्क्रीम’ के मालिक हैं उनसे मिलने का बड़ा मन था। हमारे पास थोड़ा समय भी था, हमारे साथ आए मित्र अतिरेक मित्तल और विपिन अग्रवाल से यह आग्रह किया क्यों न हम ‘स्कूप्स आईस्क्रीम’ की तरफ़ होते चलें फिर वहाँ से हम विजयवाड़ा की ओर निकल जाएंगे। सुधीर शाह   जी से पहले ही बात हो चुकी थी कि हम उनके दफ़्तर आएंगे उनके भी फ़ोन रास्ते में ही आने लगे और हम कुछ ही देर में उनके दफ़्तर पहुँच गये जहाँ पर वो और उनके भाई अमित शाह  हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे।

वहाँ पर जाकर कुछ आईस्क्रीम इंडस्ट्री पर चर्चा रही अतिरेक और विपिन के बहाने हमने कई प्रकार की आईस्क्रीम का स्वाद भी चखा, हंसते-हंसते सब ने यही कहा कि ये सफ़र तो मिठाईयों का सफ़र था मगर इसका आग़ाज़ इस बार आईस्क्रीम से हो रहा है। हालांकि आईस्क्रीम भी एक तरह का डेज़र्ट ही है या यूँ कहूं ये भी एक तरह का मीठा है।

मिठाई के अगर संपूर्ण परिवार जनों को गिना जाए तो उसमें कहीं न कहीं दूध से बनी अलग-अलग तरह की आईस्क्रीम भी सम्मलित हो ही जाएंगी। तो मिठाई के सफ़र का शुभारंभ हैदराबाद की धरती से ही हो चुका था।

जब नाम हैदराबाद का आता है तो मिठाई की दुनिया में सबसे पहला नाम ‘आमंड हाउस’ हैदराबाद का आता है। जिसके मालिक हमारे दोस्त श्री चैतन्य मुपल्ला जी हैं। यह तय था कि जब भी हम आंध्र के दौरे पर जाएंगे तब वो हमारे साथ होंगे लेकिन कुछ इस तरह की परिस्थिति बनी कि जिस दिन हम हैदराबाद में थे उस दिन चैतन्य विजयवाड़ा जाने पर मजबूर हो गए। और जिस दिन हमें विजयवाड़ा की मीटिंग थी उसी दिन चैतन्य जी को वापस हैदराबाद आना पड़ा।

बस बात फ़ोन पर ही होती रही और वादा पूरा न हो सका ‘स्कूप्स आईस्क्रीम’ के ऑफ़िस से हम दोपहर का भोजन करके विजयवाड़ा की ओर निकल पड़े और ये ज्ञात हुआ कि हैदराबाद से विजयवाड़ा का सफ़र बहुत सुहाना है, साथ में इन दोनों शहरों को जोड़ने वाली सड़क भी बहुत उत्तम दर्जे की है। बादल यहाँ पर भी हमारा पीछा कर ही रहे थे। रास्ते में रुक-रुक कर वर्षा होती रही लगभग साढ़े तीन घंटे सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ियों को देखने के बाद हम विजयवाड़ा की धरती पर पहुँच गए। यूँ तो हम अपने मित्र मल्ली बाबू की गाड़ी से विजयवाड़ा पहुँचे थे मगर विजयवाड़ा में हमारे मेज़बान श्रीनिवास जी थे जो ‘श्री बालाजी घी स्वीट्स’ के मालिक हैं और एक बहुत ही अच्छे मेहमान नवाज़ व्यक्ति हैं। श्रीनिवास जी का ये निवेदन था कि हम कुछ देर विश्राम करने के बाद होटल से उनके फ़ार्महाउस की ओर आ जाएं जहाँ पर उन्होंने हमारे रात्रि-भोज का इंतजाम किया हुआ था।

सफ़र सुहाना कटा था, तो हम कुछ ही देर बाद तैयार होकर उनके फ़ार्म हाउस की ओर निकल पड़े। फ़ार्महाउस पर उनके ऑफ़िस के कुछ लोग और श्रीनिवास जी हमारा इंतज़ार कर रहे थे, जहाँ पर उन्होंने हमारे मनोरंजन और स्वादिष्ट भोजन का बहुत ही अच्छा इंतज़ाम किया था। वक़्त कब गुज़र गया ये पता ही नहीं चला।

लगभग रात के 12 या साढ़े 12 बज गए हम लोगों को अपना भोजन ख़त्म करते-करते, मगर एक बात का एहसास यहाँ की धरती पर आने के बाद हो चला था कि आंध्र के लोगों पर फ़िल्मी दुनिया का बहुत बड़ा प्रभाव है और वो उनके रहन-सेहन, उनके वेश-भूषा, बात करने के तरीक़ा और अपने मेहमानों को ख़ुश करने के तरीक़ों से बहुत ज़्यादा झलकता है। यही झलक हमें हमारे मित्र श्रीनिवास जी में दिखी। उन्होंने हमारा मनोरंजन न सिर्फ़ ‘स्टाइल‘ मूवी के तरीक़े से किया बल्कि हमारे खाने और हमारे आराम कि भी उसी तरह से तैयारियाँ की थीं।

रात काफ़ी हो चुकी थी, उसी आंध्र मूवीज़ के स्टाइल में कुछ फ़ोटोज़ और कुछ ग्रुप फ़ोटोज़ लेने के बाद हमने वहाँ से निकलने का आग्रह किया। श्रीनिवास जी के वादे और आग्रह के तहत हमें अगली सुबह अपने होटल पर नाश्ता नहीं करना था, क्योंकि वो हमें एक बहुत ही स्पेशल जगह पर, या यूँ कहूं कि दक्षिण भारतीय नाश्ता एक बहुत अलग तरह कि साउथ-इंडियन होटल पर ले जाकर कराएंगे। बस इसके बाद हम पूरे दिन की थकान को लेकर अपने-अपने कक्षों में चले गए और थोड़ी ही देर बाद सो गए और हमेशा कि तरह आज भी सुबह कुछ जल्दी ही हो गयी। जिसके बाद हम तैयार होकर नीचे लॉबी में एकत्रित हो गए। श्रीनिवास जी के फ़ोन आना शुरू हो चुके थे। उनके भाई चंदू हमें लेने आये थे। हम जब तक गाड़ी में बैठते, पीछे से श्रीनिवास जी भी आ गए और हम सब एक दिशा में आगे बढ़ गए।

रास्ते में श्रीनिवास जी ने हमें  अपने फ़्यूचर प्लान्स के बारे में बताया जिसको सुनकर हम सभी को अचंभा हुआ कि एक छोटे से विजयवाड़ा जैसे शहर में रहने वाले इस मिठाई निर्माता ने किस तरह से अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए तैयारियां की हैं।

अगर इसी तरह से सभी मिठाई व नमकीन के व्यापारी अपने प्लान्स को बनाएँ तो हमारा ये उद्योग जो आज 10-12 प्रतिशत का ग्रोथ रेट लेकर आगे बढ़ रहा है, वह शायद 25 या उससे भी अधिक प्रतिशत की ग्रोथ से बढ़ जाएगा। फिर भारतीय निर्माताओं के लिए भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में हमारा व्यापार पटल बन सकता है।

श्रीनिवास जी का कहना था कि उन्होंने अपने ‘श्री बालाजी घी स्वीट्स’ से हटकर कुछ नए पार्टनर्स के साथ मिलकर एक और ब्रैंड डेवलप किया है जिसका नाम है ‘मिठाई पोटलम’। इस ब्रैंड के अंतर्गत ये लोग लगभग 50 नए शोरूम  पूरे आंध्र एवं तेलंगाना में खोलेंगे। एक निर्माता जिनके 4 से 5 शोरूम विजयवाड़ा में हैं और वह एक साथ 50 नए शोरूम खोलने की बात करें और उसका स्वरूप आपके सामने प्रस्तुत करें तो आपको अचंभे के साथ-साथ खुशी भी होगी। आज हमारी ये मिठाई, फ़र्सान ओर नमकीन इंडस्ट्री किस तरह से आगे बढ़ने के लिए व्याकुल है, इसका जीता-जगता उदाहरण श्रीनिवास जी होंगे।

होटल से निकल कर थोड़ी ही देर में बातों-बातों में हम ‘अनजिस इडली शॉप’ पर पहुँच गए जो कि एक बहुत ही साधारण सा रेस्टोरेंट था। कुछ क्षणों के लिए हमें लगा कि शायद गाड़ी को पार्क करने के लिए श्रीनिवास जी ने इस स्थान पर रोका है और हम किसी और ख़ूबसूरत दिखने वाले रेस्टोरेंट में जाने वाले हैं। पूछने पर श्रीनिवास जी ने बताया कि हम इसी रेस्टोरेंट में आज नाश्ता करेंगे जहाँ बैठना तो छोड़िए खड़े होने की भी अच्छी व्यवस्था नहीं थी। ‘अनजिस’ में श्रीनिवास जी का स्वागत हुआ और वहाँ कुछ तेलुगु में वार्तालाप के बाद उन्होंने हमें ‘अनजिस’ की स्पेशल इडली प्रस्तुत की, जिसमें घी की मात्रा काफ़ी अधिक थी, जिसको खाकर ऐसा लगा कि शायद इस तरह कि इडली हमने पहली बार खाई है, जिसका स्वाद अति उत्तम था।

वहाँ का डोसा भी अलग ही था और चटनियों का जवाब ही नहीं था। सबसे अचंभित करने वाली डिश थी आईस्क्रीम डोसा, जी हाँ, गरम-गरम डोसे पर आईस्क्रीम रख कर दी गई और जो रखते ही गरम-गरम डोसे और चटनी के साथ पिघलने सी लगी और पिघलते-पिघलते वो हमारे मुँह में घुल गयी। पूछने पर मालूम हुआ कि ये ‘अनजिस’ की दुकान पूरे आंध्र प्रदेश में बहु प्रचलित है, और दूर-दूर से बड़े-बड़े लोग उत्तम दर्जे की गाड़ियों में इस छोटी सी, पुरानी और साधारण दिखने वाली दुकान के आगे रुक कर इडली, डोसा, उत्तपम जैसे साउथ इंडियन व्यंजनों का आनंद लेते हैं।

अंजी जी’ जो इस दुकान के मालिक हैं , उनको अलविदा कह कर यहाँ से हमारा काफ़िला श्रीनिवास जी कि फ़ैक्ट्री की ओर निकल गया जहाँ पर हमने उनके कारीगरों को साउथ इंडियन मिठाईयों को बनाते हुए देखा। और अच्छी बात इस फ़ैक्ट्री में ये लगी कि श्रीनिवास जी बहुत ही बड़े पैमाने पर इन मिठाईयों को बनाते व बेचते हैं। इनके हाथ की बनाई हुई मिठाईयाँ ‘तिरुपति बालाजी’ में जाकर प्रसाद का रूप ले लेती हैं। विजयवाड़ा का एक आम शहरी बालाजी के नाम को अच्छी तरह से जानता है। लोग बालाजी की मिठाईयाँ अपने दिन प्रतिदिन के खाने में सम्मिलित करते हैं। विजयवाड़ा एक छोटा शहर ज़रूर है लेकिन यहाँ पर मिठाई का एक अच्छा कल्चर स्थापित हो चुका है इसमें सभी तरह की मिठाईयाँ देखी जा सकती हैं। इसका ज्ञान हमें विजयवाड़ा में हुई मीटिंग से मिला, जितने भी निर्माता इस मीटिंग में आए थे वो सब ही आगे बढ़ना चाहते थे और नई-नई तकनीकों को जानना चाहते थे।

श्रीनिवास जी की फ़ैक्ट्री देखने के बाद हम उनके कुछ शोरूम्स पर गए। जहाँ के इंटीरियर को देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि हम शायद किसी हैदराबाद या बैंगलोर के शोरूम को देख रहे हैं। उसी तरह से इंटीरियर और एक्सटीरियर पर श्रीनिवास जी ने अपना इन्वेस्टमेंट किया है। ‘मिठाई पोटलम’ की नयी फ़ैक्ट्री भी इसी तरह से श्रीनिवास जी और उनके पार्टनर्स ने पूरी तरह सजाई है मानो किसी बहुत बड़े ब्रैंड को लांच करने की तैयारी हो रही हो , और हो भी क्यों न क्योंकि इनका इरादा 50 शोरूम्स खोलने का है तो पीछे की तैयारी भी मज़बूत और सिस्टेमेटिक होना अनिवार्य है।

थोड़ी ही देर बाद मीटिंग में हम पहुंच गए जहां पर विजयवाड़ा और आस-पास से आये हुए निर्माता एकत्रित हुए थे। मीटिंग में कई मुद्दों पर चर्चा रही मगर प्रमुखता से एक ही बात समझ में आई कि आंध्र का मिठाई उद्योग आने वाले समय में काफ़ी आगे बढ़ने वाला है और ये पूरे दक्षिण भारत को डोमिनेट करेगा। मीटिंग के तुरंत बाद हमें काकीनाडा के लिए निकलना था जहाँ हेमंत गेहलोत हमारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। मगर मल्ली बाबू का आदेश था कि रस्ते में पड़ने वाले तपेश्वरम हो कर ही हम होटल जाएँ। कुछ ही घंटों में हम तपेश्वरम पहुंच गए और हमारा स्वागत बिल्कुल फ़िल्मी अंदाज़ में हुआ। 

मुख्य द्वार पर ही हमारे पोस्टर्स लगाए गए थे और पुष्प वर्षा के लिए कन्याओं को खड़ा किया गया था और यहाँ से मिला हमारा फूल टाइम फ़ोटो ग्राफ़र दोस्त ‘‘उप्पलपति रामाभद्र राजू” जिसने हमें सिर्फ़ वॉशरूम में ही नहीं शूट किया वरना वो अगले 24 घंटे साथ ही था। मल्ली बाबू का प्रेम हर क़दम पर हमें मिल रहा था पूरी फ़ैक्ट्री देखने के बाद हम उनके घर गए और बहुत ही स्वादिष्ट आंध्रा स्टाइल डिनर किया जो कम स्पाइसी बोलने के बाद भी ज़बरदस्त स्पाइसी था। यहाँ पर हेमंत भी आ गये थे और मल्ली बाबू के साथ उनको अच्छी ट्यूनिंग देखने को मिली। उल्लेखनीय है कि पहली बार मैं ने कुछ अपने हाथों से बनाया और वो था तपेश्वरम खाजा। मल्ली बाबू का आग्रह था कि मैं ही उसको काट कर अपने हाथों से तलूं और मैं ने किया भी, जिसका स्वाद भी सब को बहुत पसंद आया। 

हेमंत न सिर्फ़ एक 28 साला नौजवान हैं बल्कि बिज़नेस के साथ-साथ गाड़ियों के शौकीन भी हैं। पुनीत के साथ दोस्ती होना पक्की थी दोनों की आदतें काफ़ी मिलती हैं। जब ‘सुरुचि‘ से निकले तो मेरी पसंदीदा गाड़ी ‘थार‘ खड़ी थी जिसकी चाबी हेमंत मुझे देते हुए बोले कि आप ही इसको चलाएंगे, मानो मेरी सभी मनोकामनाएं पूरी हुई और वहां से थार को उड़ाते हुए हम थोड़ी देर में काकीनाडा जो मिनी हैदराबाद जैसा दीखता था, पहुंच गए। काफ़ी देर तक बाते करने के बाद सोने चले गए और अलगे दिन मॉर्निंग वाक पर पुनीत के साथ ये ही डिस्कशन रहा के 5,00,000 की आबादी वाला ये शहर इतना सुन्दर और मेट्रोपोलिटन जैसा क्यों लग रहा है हमारे न्च् में तो 15 लाख वाले शहर भी गाँव लगते हैं। 

हेमंत होटल आ गये और हम उनके शोरूम को देखने निकल गए। शोरूम तो अच्छा होना ही था मगर जो याद रहा वो था La Vinto नामक कैफ़ेटेरिया जिसको हेमंत ने मुंबई और हैदराबाद के स्तर का बनाया है। जिसका मेनू भी इन्हीं शहरों के स्टैंडर्ड के हिसाब से था।  गोल्डन टी का रेट सिर्फ़ रू 600 था वहां जिसकी बिक्री भी होती है । ये सब हमारे लिए तो चैकाने वाला था और पुनीत ने तो किचन तक देख डाला जहाँ पर ‘ऑल इम्पोर्टेड एप्लायंसेज और इक्विपमेंट्स‘ लगे थे।  हेमंत ने बहुत दूर की सोच के साथ ये इन्वेस्टमेंट किया है जिसको कोविड समय में भी स्लो स्टार्ट मिल ही गयी और अब अच्छा चल रहा है। ‘महेंद्र मिठाई वाला’ एक जाना-माना नाम है काकीनाडा वासियों के लिए, जहाँ पर लगभग सभी तरह की मिठाई से लेकर स्नैक्स और बेक्री-पट्टीसेरी के प्रोडक्ट्स मिल जाते हैं। 

थोड़ी ही देर में राजू फ़ोटो ग्राफ़र को लिए मल्ली बाबू भी आ गये। हमने कई तरह के कॉन्टिनेंटल व्यंजनों के साथ La Vinto पर लंच किया और वहां से हम काकीनाडा स्थित ‘सुरुचि’ के शोरूम्स पर गए। सभी शोरूम्स में अच्छा इंटीरियर और रौनक़ तो अब आम बात सी लगने लगी है। ये ट्रेंड हर दिन अब आगे बढ़ रहा है। आज जब कोई मिठाई वाला हमें मिलता है तो ये आम सवाल होता है कि आप के कितने शोरूम हैं और यक़ीन जानिए 1 शोरूम वाले बहुत ही कम मिले हैं और अगर मिले हैं तो उनका नज़रिया भी यही है कि आगे बढ़ना है और अनेक शाखाएं खोलनी हैं। मतलब सब आज कल इसी दिशा में सोच और बढ़ रहे हैं। 

यहाँ से गाड़ियों का काफ़िला काकीनाडा बीच की तरफ़ निकल पड़ा जहाँ राजू ने इस तरह से शूटिंग की कि मानों किसी फ़िल्म की शूटिंग चल रही हो। काफ़ी मनोरंजन और फ़ोटोग्राफ़ी के बाद हम वापस होटल आगये जहाँ पर शाम 5 बजे मीटिंग रखी गयी थी। यहाँ पर काकीनाडा और आस-पास के अन्य निर्माताओं से भेंट हुई जो रात तक चलती रही। हेमंत ने भी मेहमान नवाज़ी की कोई कसर नहीं छोड़ी, देर रात तक साथ रहे और काकीनाडा स्टाइल का डिनर करवाने के बाद ही गए। 

काकीनाडा की बहुत अच्छी यादों के साथ हम अगले दिन मल्ली बाबू की गाड़ी से ही आगे विशाखापटनम निकल गए जिसका छोटा नाम वाइज़ाक भी है। अब तक सफ़र इतना अच्छा रहा कि ऐसा लगता था कि अब न जाने वाइज़ाक में क्या होगा बड़ा शहर है और आम तौर पर बड़े शहरों में इस तरह कि गोष्ठियों में लोग कम ही रूचि लेते हैं। वहां के हमारे मेज़बान थे श्री प्रभाकर जी जो कि हेमंत की तरह ही यंग और टैलेंटेड व्यक्ति हैं और उनके पास ज्ञान का भंडार है। काफ़ी सिस्टेमेटिक तरीक़े से अपने काम को चलाते हैं और इनका बिज़नेस ‘सर्वानी स्वीट्स‘ के नाम से जाना जाता है। प्रभाकर हमें रिसीव करने नीचे ही होटल में आगए और 3 बजे का टाईम मीटिंग का बताया बस तुरंत ही होटल के कमरे में जाकर फ्ऱेश हुए और मीटिंग में अवतरित हो गए।

मीटिंग का नज़ारा अभी तक के टूर के हिसाब से अप्रत्याशित था और अच्छी तादाद में मिठाई व नमकीन उत्पादक वहां आए हुए थे। कई ऐसे चेहरे भी थे जिनसे बीते सालों में फ़ोन या फिर व्हाट्सप्प पर बातें होती रही थीं। सबसे अच्छी बात ये थी कि सभी अच्छा व्यापार करना जानते थे और ज़्यादातर लोगों के कई-कई शोरूम व आउटलेट्स वाइज़ाक में थे। चर्चा में मुख्यता हमने फ़ूड सेफ़्टी, ऑटोमेशन और पैकेजिंग पर बातें कीं और कई सवालों का सामना भी किया।

मुझे यकीन है कि मैंने उनके उत्तर सही और अपेक्षित तरीक़े से दिए होंगे। यहाँ पर भी उत्साह जोधपुर वाला ही मिला और लगभग सभी ने अपने-अपने शोरूम्स पर आने का न्योता दिया। परन्तु मुश्किल ये थी कि हमने यही सोचते हुए कि एक ही दिन का काम है, शाम की फ़्लाईट लेली थी।

जाना तो मुझे घर ही था परन्तु दो प्राणी हमारे काफ़िले में आए थे जो चाहते थे कि मैं उनके साथ दिल्ली वापस जाऊं और वहां से मुंबई। उसका कारण उनका प्यार तो था ही क्योंकि अभी मन भरा नहीं था और साथ यह वजह भी थी कि दिल्ली में अगले दिन हमारे परम प्रिये मंकानी ब्रदर्सपुनीत के ऑफ़िस आने वाले थे। तो पुनीत (जो कि उत्तम दर्जे के मेहमान नवाज़ हैं) ने अपने घर पर डिनर रखा था और उनकी इच्छा यह थी कि मैं ये डिनर मंकानी बंधुओं के साथ अटेंड करूँ। अब दोस्ती है तो निभानी भी पड़ती है। मैंने हाँ करदी और दिल्ली के शाम के टिकट्स साथ में ही करवा दिए। यहाँ दुविधा ये थी कि मन था सभी के शोरूम्स पर जाया जाये तो हमने कुछ वादे निभाने की कोशिश कर ही डाली। थोड़े से समय में ही हम लड्डू गोपाल के शोरूम पर जा पहुंचे जहाँ पर प्रशांत जी हमारा इंतज़ार कर रहे थे। 

वाइज़ाक में ये उम्मीद नहीं थी कि दिल्ली वाली भीड़ देखी जाये मगर लड्डू गोपाल का शोरूम दिल्ली के टक्कर पर बना और भीड़भाड़ वाला था। ना-ना करते भी चार-पांच स्टफ़्ड नान हम छोलों की सब्ज़ी के साथ खा ही गए और साथ में प्रशांत जी ने कुछ मिठाईयाँ भी टेस्ट करवाई और कुछ साथ में पैक भी करवा दीं।

वहां से जल्दी-जल्दी में हम एयरपोर्ट के लिए निकल गए मगर रास्ते में ही प्रभाकर के फ़ोन आने लगे कि मेरे दफ़्तर तो ज़रूर आना होगा। शरू से उन्होंने अपने ड्राइवर को हमारे साथ लगा रखा था जो हमें गाइड करते हुए उनके ऑफ़िस ले गया और वहां कुछ समय बिताने के बाद हम एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए। बस शायद फ़्लाईट को हमारा ही इंतज़ार था और रात 2 बजे हम पुनीत के घर पर जा धमके, वहीं रात्रि विश्राम किया।

सफ़र अभी बाक़ी था क्योंकि इसका अंत तो मेरे गृह शहर मुंबई जा कर ही होना था। अगले दिन सुबह पुनीत के दफ़्तर में पटना से आये अमित व संदीप मंकानी जी से भेंट हुई और काफ़ी वक़्त उनके साथ व्यतीत हुआ। दिन में कुछ समय मिला तो मैं और अतिरेक, मधुसूदन अग्रवाल जी, हल्दीराम के दफ़्तर चले गए और साथ ले गए मल्ली बाबू का खाजा और हेमंत की कुछ मिठाईयाँ जिनमें उनका विश्व प्रसिद्धि पुथारेकुलू भी था। मधु बाबू को बहुत पसंद आया और कुछ दिन बाद पता चला कि मल्ली बाबू को तारीफ़ करने के लिए उनका फ़ोन आगया। मल्ली बाबू गद-गद हो गए मानो जैसे उनकी मनोकामना पूरी हो गयी हो। बस कुछ वक़्त मधु बाबू के साथ गुज़ार कर हम वापस पुनीत के घर चले गए और रात्रि-भोज किया और अगले दिन सुबह को दिल्ली से अलविदा ली।

इस तरह हमारा आंध्र का भ्रमण हैदराबाद और दिल्ली के बीच में दबा नहीं बल्कि यादगार बन गया। सभी मिठाई निर्माताओं का एक दूसरे के लिए प्रेम और आदर हमेशा के लिए एक मिसाल है और मुझे उम्मीद है कि ये हमेशा क़ायम रहेगा। और मेरे इसी तरह के सफ़र चलते रहेंगे। अगली बार दीवाली के बाद गुजरात का सफ़र करना अभी बाक़ी है। वो सफ़रनामा हम मिलकर जयपुर में ही साथ में पढ़ेंगे।

आप सभी से अनुरोध है कि जयपुर ज़रूर आएं और WMNC 2021 को सफ़ल बनाएं।  मैं आपके द्वार तक आया, अब आपको मेरे लिए आना होगा और जहाँ अभी तक नहीं पहुंच पाया हूँ वहां जल्द ही जाऊंगा। सफ़र चलता रहेगा जब तक है जान !!!

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