मैं अब तक अपने सफ़रनामों में भारत के अलग-अलग राज्य एवं उनके प्रमुख शहरों का वर्णन करता आया हूँ जिसमें भारतीय सांस्कृतिक पकवान एवं उसके ट्रेंड्स कि महत्वपूर्ण जानकारी को साझा करता आया हूँ जिस में मिठाई व नमकीन सभी प्रकार के व्यंजन सम्मिलित रहे हैं। लेकिन आज मैं आपको एक ऐसे सफ़र पर ले जाना चाहता हूँ जहाँ केवल एक ही देश या उसके राज्य या शहर कि ही बात नहीं होगी बल्कि यहाँ मैं विश्व कि सुप्रसिद्ध देशों की सांस्कृतिक और उनके अनोखे ट्रेंड्स से आप को रूबरू और परिचित कराऊंगा। साथ में उन देशों कि मिठाई व नमकीन इंडस्ट्री में उपयोग में लायी जाने वाली टेक्नोलॉजी का वर्णन करूँगा। यह सफ़र अपने आप में नए आयाम स्थापित करने वाला सफ़र सिद्ध होगा।
इस बार के सफ़रनामे को हम अंतर्राष्ट्रीय सफ़रनामा कहें तो ग़लत नहीं होगा। रिपोर्टिंग दुबई से होने वाली है और आप सब के लिए कुछ ग्लोबल ट्रेंड्स प्रस्तुत होने वाले हैं तो आप लोग अपनी कमर की पेटी बांध लें और बाक़ी सभी फ़्लाइट के नियमों का पालन करें।
जनवरी के माह में ही यह निर्धारित था कि हम सब दुबई जायेंगे, गल्फ़ूड प्रदर्शनी, जो विश्व की सबसे बड़ी खाद्य प्रदर्शनी का ख़िताब अपने नाम कर चुकी है, जिसे फ़रवरी में होना निश्चित था। जनवरी के हालात से हम सब वाक़िफ़ हैं, एक पैनिक का माहौल था और Covid की थर्ड वेव अपनी चरम सीमा पर थी और मानों लगता था कि कहीं सेकंड वेव वाली हालत न बन जाए। गल्फ़ूड में जाने का भी इसी कारणवश असमंजस बना हुआ था। इस प्लान के मुख्य कर्ता-धर्ता तो मनोहरलाल जी अग्रवाल, ही थे जिन्होंने इसको अंजाम तक ले जाने का ज़िम्मा अपने परम मित्र अज्जू भाई यानि अजय अग्रवाल, AJ पैकेजिंग, हैदराबाद के ज़िम्मे दिया था। लगभग प्रतिदिन अज्जू भाई के फ़ोन आते और यही पूछते कि क्या हम जा पाएंगे!!
आख़िरकार वो दिन आ ही गया कि हम सब दुबई गए। इरादा तो पूरे हफ़्ते साथ का था परन्तु पिता जी की सेहत को देखते हुए मैंने सिर्फ़ 3 दिन इन महान लोगों के साथ रहने का निर्णय लिया। साथ थे मधु सुदन जी अग्रवाल, लालाजी के छोटे भाई, विकास शर्मा और मौसम कालरा, HMPL, फ़रीदाबाद। एक अच्छा ग्रुप जो आने वाले दिनों में साथ रहने, खाने, और घूमने वाला था। इनका एक ही मक़सद होता है नए ट्रेंड्स को देखना और उनको भारत में लाना।
मैं ख़ुद भी लालाजी के साथ लग-भग आधी दुनिया देख चूका हूँ इन्हीं प्रदर्शनी में जो पूरे विश्व की फ़ूड इंडस्ट्री को नई-नई राहें दिखाती हैं। क़दम-क़दम पर लालाजी के चाहने वालों से भेंट होती रहती है और क़ाफ़िला बड़ा होता जाता है। अगर हम 5 लोग इसको शुरू करते हैं तो दोपहर तक यह 20 से 25 लोगों का बन जाता है और लालाजी की यह ख़ासियत है कि वह सब को साथ रखते हैं। आम तौर पर जब हम डिनर या लंच के लिए जाते हैं तो कम से कम 15 से 20 कुर्सियों वाली टेबल की उपलब्धता जांचनी पड़ती है।
यूँ तो मैं अगर सारी बातों का उल्लेख करूँ तो पूरा सफ़रनामा इस समूह की बातों में ही पूरा हो जायेगा, यह भी यक़ीन जानिये कि बहुत ही ख़ुशी और मज़ाख़ का माहौल बना रहता है, परन्तु मुझे इस सफ़रनामे में किये अनुभवों को आपके सामने वर्णित करना है जो आपके काम आएंगे।
सबसे पहले तो यह कि आज मिठाई व नमकीन उद्योग उस मक़ाम पर खड़ा है जहाँ से इसके हाथ में एक ही तरफ़ जाने का टिकट है। यानी अगर हम आगे नहीं बढ़ते हैं तो कहीं के कहीं रह जायेंगे। एक तरह से यह इंडस्ट्री के लिए मुनाफ़े का ही सौदा है। आज हमारे मिठाई व नमकीन उद्योग के युवा अपनी इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के लिए उत्साहित हैं। यह सभी अच्छी शिक्षा के बाद अपने दादा और पर-दादा के व्यापार को अब अपने तरीकों से चलाना चाहते हैं और इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है कि जिन लोगों ने अपनी नई पीढ़ी पर भरोसा किया है उनको आम तौर पर परिणाम अच्छे ही मिले हैं।
एक ऐसे ही दोस्त ने कहा था, ” भाई जी, कल जब मैं इतना सक्षम नहीं रहूँगा तब नुक़सान होने से अच्छा है कि मेरा बेटा मेरे सामने ही नुक़सान कर दे तो मैं भरपाई कर सकता हूँ”। यानी अपनी नई पीढ़ी को प्रयोग करने में सपोर्ट करें और आगे बढ़ने का मौक़ा दें। यही युवा और युवतियाँ दूसरे देशों से नए-नए ट्रेंड्स लेकर देश में उनको परिचित करेंगे और न सिर्फ़ अपने व्यापार को आगे बढ़ाएंगे बल्कि इस पूरे सेक्टर को आगे लेकर जाएंगे। जब बड़े-बड़े व्यापारी कुछ नया सीखने की चाह में दूसरे देशों में जाते हैं तो यह युवा क्यों न जाएँ और क्यों न नए ट्रेंड्स को अपने व्यापार से परिचित करें।
मैं तो यह मानता हूँ कि शायद हमारे पूर्वज ज़्यादा ग्रहण करने वाले रहें होंगे वरना आज ईरान से चला ‘समसा’ भारत का ‘समोसा’ न बनता और अरब से चली ‘जलापिया’ भारत की ‘जलेबी’ न बन पाती। ऐसे कितने ही भारत में खाने की चीज़ें हैं जो कहीं न कहीं से आई हैं और आज भारतीय धरोहर बन चुकी हैं।
आज से 25 वर्ष पहले जब आटोमेटिक फ्राइंग लाइनस इंडिया में लाई गयीं थीं तो इन्हीं में से कुछ दिग्गजों ने इन्हें अपने यहाँ लगवाने की पहल की थी। कल की वो आलू चिप्स को तलने की आटोमेटिक कढ़ाईयाँ आज फ़ूड इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा बिकने वाली मशीन बन गयी हैं और आज उनमें क्या नहीं तला जाता, यह 400 से 500 तरह की तो सिर्फ़ नमकीन तलने में सक्षम हैं। यह एक साहसिक क़दम है जो पूरी इंडस्ट्री को हमेशा के लिए बदल गया। तो यह सब लिखने का कारण यही है कि हमें नई चीज़ों को समझने के लिए गल्फ़ूड जैसी प्रदर्शनियों में घर के युवाओं और युवतियों को साथ लेकर जाना ही चाहिए।
इस सफ़र की शुरुवात भी दुबई के होटल से करता हूँ जहाँ हम सब नाश्ते की टेबल पर एकत्रित होते हैं और दिन भर क्या करना है यह प्लान करते हैं। इस बार लालाजी के बचपन के दोस्त गणेश अग्रवाल जी भी साथ थे जो ‘सर्वो फूड्स’ के मालिक हैं और हल्दीराम समूह को कई प्रकार के प्रोडक्ट्स बना कर देते हैं, यूँ कहें कि हल्दीराम परिवार का आशीर्वाद गणेश जी पर सदा से बना हुआ है। इनका बेटा रवि अग्रवाल ड्राई फ्रूट्स की ट्रेडिंग में है और लालाजी के विदेश दौरों पर उनका दाहिना हाथ बनकर मदद करता है, वहीं सौरभ अग्रवाल, गणेश जी का भतीजा मधु बाबू का राइट हैंड मैन है। सबकी पहचान करना ज़रूरी है क्योंकि यह सब मेरे साथ हाल ही में दुबई दौरे पर थे और अभी यादें ताज़ा ही हैं।
हम सब एक साथ ही पहले से बुक किये टेम्पो ट्रैवलर से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की ओर निकल पड़े। दुबई दुनिया के आधुनिकतम देशों में से एक है तथा UAE का सरताज है। अलग ही दुनिया है और सबसे मज़े की बात यह है कि भारत जैसा लगता है पर देखने में नहीं, पर जब हम बाहर निकलते हैं और लोगों से मिलते हैं तो सांझी विरासत की ख़ुशबू आती है। थोड़ी ही देर में हम दुबई के सबसे आलीशान होटल ‘ओबेरॉय’ से निकल कर गलफूड अटेंड करने उसके आयोजन स्थल DWTC पहुंच गए ।
रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पहले ही करवा ली थी तो सीधे अंदर ही जाना था।
गल्फ़ूड को कई हिस्सों में बांटा गया है जिससे आने वालों के लिए कोई असुविधा न हो और वो अपने टारगेट पर जा कर लोगों से मिल सकें। हर पविलियन अलग होता है और हर पविलियन के कारपेट का रंग भी जुदा होता है ताकि आगंतुकों को याद रहे कि हम कहाँ गए और कहाँ नहीं। शो का आकार इतना विशाल है कि हम चाह कर भी पूरा शो 7 दिन में भी नहीं घूम पाते और हर साल कुछ न कुछ रह ही जाता है।
मैं इस शो में लगभग पिछले 15 साल से आ रहा हूँ बस हम सफ़र बदलते रहे हैं और अब ये इच्छा है कि लालाजी और सभी दोस्तों का साथ बना रहे।
पहला पड़ाव था इंटरनेशनल पविलियन और घुसते ही USA के स्टाल्स का सामना हुआ, यूँ तो USA हर चीज़ में आगे है पर हमारे ग्रुप के लिए स्नैक्स फ़ूड के स्टाल्स प्रमुख थे जहाँ दुनिया की सबसे आधुनिकतम मशीनों से बनाये गए स्नैक्स प्रस्तुत किये जा रहे थे। यूँ तो हम सब भी स्नैक्स से वाक़िफ़ हैं और लगभग सभी इनको छोटे मंझोले या बड़े स्तर पर बनाते हैं परन्तु यहाँ का नज़ारा अलग ही था और हम सब नए-नए प्रकार के चिप्स व स्नैक्स देख रहे थे, जो अभी भारत में शायद आयातित माल की दुकानों पर भी न मिल पाएं। सब्ज़ियों के स्नैक्स, कॉर्न से बने नाना प्रकार के स्नैक्स और दालों व मिल्लेट्स से बने स्नैक्स, सभी का ये मानना था कि इस तरह के प्रयोग भारत में भी बड़े स्तर पर होने चाहिए ताकि हैल्थी फ़ूड ट्रेंड्स भारत में गति पकड़ें।
आने वाला ज़माना इन्हीं सबका है वरना आये दिन आने वाली फ़ूड रेगुलेशंस की अपडेट्स हमारे धंधे को ताले लगवा देंगी। अभी हाल ही में पेपर में पढ़ा है कि हाई सोडियम यानी नमक, शकर और फ़ैट वाली वस्तुओं पर सरकार ज़्यादा GST वसूलने की तैयारी में है।
USA के ही इलाक़े में पड़ा USA बादाम, पिस्ता, प्रूनस, वाल्नट्स और कई तरह के ड्राई फ्रूट्स के स्टॉल जो हम सभी के काम के थे। अब ये देखिये सभी संगठन किस तरह से अपने प्रोडक्ट्स को विदेशों में प्रमोट कर रहे हैं ऐसे तो हम अपनी चाय और कॉफ़ी को भी प्रमोट नहीं करते, भारतीय काजू और फलों के बारे में तो भूल ही जाईये। मैं हमेशा सरकार को लिखता रहता हूँ कि क्यों न हम उसकी मदद से भारतीय मिठाईयों और नमकीन को पूरे विश्व में प्रमोट करें और पूरी दुनिया को दिखाएँ कि हम क्या बनाते हैं।
थोड़ी-थोड़ी देर हर स्टॉल पर मिलते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे और एक के बाद एक देश के पविलियन्स आते जा रहे थे, फ्रांस, जर्मनी, इटली भी गुज़र गए जब हम स्पेन पर पहुंचे तो उन स्टाल्स में स्पेनिश कॉर्न के स्टाल्स भी थे, स्पेनिश कॉर्न आज की तारीख़ में सब से ज़्यादा अच्छी क्वालिटी का माना जाता है और हम भारतीयों को इसके स्वाद की पहले से आदत है तो इससे बने प्रोडक्ट्स को बेचना ज़्यादा मुश्किल भी न होगा।
इसी तरह से अलग-अलग देशों से होते हुए हम भारत के इलाक़े में प्रवेश कर गए जो इस साल उतना बड़ा नहीं था जितना हर साल होता है। कई जानने वालों से भेंट होने लगी और बीच में पड़ा बीकाजी का स्टाल जहाँ पर लालाजी और पूरे ग्रुप का गरम जोशी से स्वागत हुआ। ज़्यादा तर डिस्प्ले में फ्रोज़ेन फ़ूड्स को रखा गया था और जानने पर मालूम हुआ कि UAE कि मार्किट में ‘बीकाजी’ का अच्छा दबदबा है। जैसा समोसा उन्होंने अपने स्टॉल पर खिलाया वैसे आम तौर पर हम इंडिया में भी सभी जगहों पर नहीं खा पाते हैं। फ्रोज़ेन फ़ूड दुनिया में भारत के झंडे गाढ़ रहा है। जो कुछ भी स्नैक्स और चाट प्रोडक्ट्स हम भारत में आम तौर पर खाते हैं उनकी विदेशों में बहुत मांग है और कुशल कारीगर न होने की वजह से लोग इन प्रोडक्ट से वंचित रह जाते थे, जो आज इनको फ्रोज़ेन रूप में पा लेते हैं।
बस पैकेट खोलिये, तलिये या माइक्रोवेव में गरम करिये और खाने का स्वाद लीजिये। आने वाले समय में पूरा विश्व भारतीय पराठों और समोसों को सराहएगा और आप ही होंगे जो इसको सप्लाई करेंगे ,बशर्ते आप सही टेक्नोलॉजीज़ का सहारा लें और अच्छी मशीनों में इन्वेस्ट करें। कई और भी स्टॉल इसी तरह के प्रोडक्ट्स को भारतीय अंदाज़ में आने वालों को खिला रहे थे। कई हींग वाले और कई चावल वालों के भी स्टॉल थे जहाँ पकी हुई उम्दा स्वाद की बिरयानी खिलाई जा रही थी और विदेशी लोग इसका आनंद ले रहे थे। यही ख़ासियत है दुबई के गलफूड की। अब हर स्टॉल का वर्णन करना तो मुश्किल है पर घूमते -घूमते शाम हो चली थी और हम सब को वादे के अनुसार पार्किंग पॉइंट पर मिलना था ताकि सब लोग एकत्रित हो कर दुबई में लगा दुबई एक्सपो देखने जा सकें।
थोड़ी ही देर में सब होटल पहुंच गए और दुबई एक्सपो जो लगभग बिज़नेस ‘बे-एरिया’ से एक घंटे की दूरी पर था वहां के लिए निकल पड़े। जैसा कि मैंने पहले भी कई बार लिखा और बोला है कि हमारे मनोहरलाल जी के संपर्क पूरे विश्व में हैं और लोग इनका आदर दिल से करते हैं। एक्सपो पहुंचते ही ‘फ्रेस्को नामक’, नूज़ीलैण्ड की कंपनी के भारतीय हेड अनूप डिसिल्वा बाहर ही स्वागत के लिए खड़े थे। उन्होंने हमारे पासेस भी एडवांस में निकल रखे थे तो व्यावहारिक तरीक़े से हम VIPs की तरह सीधे अंदर ही पहुंच गए। वहाँ से हमारा पूरा ग्रुप नूज़ीलैण्ड के पविलियन में प्रवेश कर गया जहाँ नूज़ीलैण्ड के अम्बैसेडर और काउंसल जनरल को देख कर मुझे अचम्भा हुआ मगर ये सब लालाजी से मिलने आये थे और एक रात्रि भोज का आयोजन भी रखा था।
काफ़ी देर मिलने और बातों के बाद डिनर सर्व हुआ जो हम सभी के लिए कुछ ज़्यादा ही स्वादिष्ट या यूँ कहूं कि स्वाद अपने जैसा नहीं था। और उसके बाद अम्बैसेडर साहब के साथ बड़े ही अच्छे माहौल में हम सब नूज़ीलैण्ड का पविलियन देखने साथ आगे बढ़े और उसका आनंद लिया। अनूप ने दुबई एक्सपो में घूमने वाली बग्गियों का इंतेज़ाम किया हुआ था जिन्होंने पूरे विश्व के पविलियन्स को हमें बाहर से घुमाया, क्योंकि ज़्यादा समय नहीं था तो हमने सरा-सरी तौर पर पूरा दुबई एक्सपो बाहर से ही देखा। भारतीय पविलियन को घूमने की इच्छा बहुत थी मगर जिससे भी पूछा सबने यही कहा कि हमारे देश का पविलियन उतना अच्छा नहीं है जितना इसको होना था और हम सब उसको बाहर से देख कर ही अंदाज़ा लगा सकते थे कि ना ही जाएँ तो अच्छा है।
काफ़ी देर घूमने और फ़ोटोग्राफ़ी के बाद हम वहाँ से निकले। सभी को भूक ज़ोर से लगी थी और रात काफ़ी हो चली थी बस उम्मीद की एक ही किरण थी, ‘अज्जू भाई’ जो ग्रुप के साथ नहीं आये थे, दिन में काफ़ी चहल पहल के बाद वो थक गए थे तो होटल पर ही थे। तुरंत लालाजी ने अज्जू भाई को फ़ोन कर खाने का इंतेज़ाम करने को बोला और सौभाग्यवश वो ‘कामथ होटल’ पर डिनर ही कर रहे थे। वहाँ से अज्जू भाई ने कुछ नार्थ और कुछ साउथ इंडियन पकवानों को पार्सल कराया और हमारे पहुंचने से पहले ही उसको टेबल पर लगवा दिया और जो छक कर हमने खाया वो कभी भूल नहीं सकते। अज्जू भाई का जो अहसान विदेश की धरती पर लिया है तो विदेश में ही उतारेंगे, ऐसा मैं सोच रहा हूँ। यह पढ़कर अज्जू भाई का फ़ोन ज़रूर आएगा, मुझे पूरा यक़ीन है।
अगला दिन भी उसी तरह से निकला और नाश्ते की मेज़ पर मिलने के बाद हम सब DWTC की ओर निकल गए। आज का टारगेट था ‘शैख़ सईद हॉल’ जहाँ पर अरब, ईरान और साउथ ईस्टर्न कॉन्ट्रीज़ के स्टॉल थे। क़ाफ़िला उधर ही हो लिया और ईरान के स्टॉल पर जाते ही केसर और पिस्ते के स्टाल्स पर चर्चाएं आरम्भ हो गयीं । वहाँ से आगे बढ़कर तुर्की के स्टाल्स पर बक्लावे का स्वाद लिया गया, सऊदी अरब के स्टाल्स पर खजूरों का मुआयना किया। आगे बढ़कर पहुंचे फिलस्तीन के इलाक़े में जहाँ अब तक की सबसे बड़ी मुंगफ़ली के दाने देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और रवि और लालाजी ने वहाँ काफ़ी देर बात भी की। थोड़ी ही देर बाद दोपहर हो चुकी थी और लालाजी का किसी दोस्त के साथ लंच का वादा था, हमने सोचा थोड़ा ब्रेक ले लेते हैं और लालाजी अपना लंच कर लेंगे मगर होना तो वही है जो मनोहरलाल जी बोलेंगे।
मनोहरलाल जी ने आदेश दिया कि लंच सभी को साथ करना है। बिलकुल पड़ोस में ‘IBIS होटल’ है सब उसकी लॉबी में खड़े थे जब लालाजी के दोस्त उनसे मिलने पहुंचे, हम सब को मिला कर कुछ 25 लोगों का क़ाफ़िला बन चुका था, जिसको खाना खिलने के लिए भी काफ़ी जगह की ज़रूरत थी। थोड़े विराम के बाद जगह मिली और सबने स्वादिष्ट भोजन का मज़ा लिया। इन दिग्गजों का यह प्रेम और इंडस्ट्री के सभी लोगों को साथ रखने की आदत इनको हर तरफ़ से कामयाबियों के शिखर पर ले जा रही है। बाक़ी आप सब इनके प्रेम और बड़े दिल को जानते ही हैं।
खाना ख़त्म करने के बाद हम ब्रांडेड फूड्स के पविलियन की ओर निकल पड़े जिसमें हमें दुनिया के ‘बेस्ट पैक्ड फूड्स’ को देखने का मौक़ा मिला। नाना प्रकार की पैकेजिंग, डिज़ाइन और पैक करने के माध्यम और पैकेजिंग का अपने आप में किसी भी ब्रांड को कामियाब करने में बड़ा रोल होता है। दुनिया का सबसे ज़्यादा बिकने वाला पेय पदार्थ कोकाकोला भी अपने डिज़ाइनस और पैकेजिंग को लगातार समय-समय पर बदलता रहता है। इससे कंस्यूमर बोर नहीं होता और अपने पुराने ब्रांड्स को ही फॉलो करता रहता है। इसके विपरीत अगर हम पैकेजिंग में बदलाव नहीं करते हैं तो कई ऐसे मौके आते हैं जहाँ कंस्यूमर छिटक सकता है और वो दूसरे ब्रांड की झोली में गिर सकता है। आज पूरे विश्व में हर लीडिंग कंपनी अपने यहाँ डिज़ाइनिंग और पैकेजिंग पर एक अच्छा ख़ासा बजट खर्च करतीं हैं।
इन स्टॉलस पर घुमते-घुमते कई ऐसी भारतीय कम्पनियाँ भी मिलीं जो किसी भी ग्लोबल कंपनी से पीछे नहीं हैं और विश्व स्तर पर खेल रही हैं। सर्व प्रमुख उदाहरण है AMUL जो कि भारत का डंका पूरे विश्व में बजवा रहा है और हल्दीराम का नाम भी अग्रिम श्रेणी में ही आता है। कहते हैं कि अगर किसी विदेशी रिटेल चैन में हल्दीराम के प्रोडक्ट्स शेल्फ पर नहीं मिलते तो इंडियंस उस स्टोर में जाना पसंद नहीं करते। इसी एक्सपो के कॉरिडोर्स में एक स्टॉल और मिला जो था विक्रम अग्रवाल जी का, करनिटोस, यह न सिर्फ़ भारत में अपनी केटेगरी में लीडर हैं बल्कि पूरे विश्व में इस ब्रांड को बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। बस यूँ ही घुमते-घुमते शाम होने लगी और वादे के अनुसार सब 5 बजे पिकअप पॉइंट पर एकत्रित हुए।
आज शाम का टारगेट था दुबई मॉल के किसी प्रमुख रेस्टारेंट में डिनर का और कुछ मॉल में घूमना भी था, सब होटल की ओर निकल गए और थोड़े विश्राम के बाद हम उसी टेम्पो ट्रेवलर से दुबई मॉल निकल गए। रवि के साथ मैंने मॉल का काफ़ी हिस्सा देख डाला जब तक सब डिनर को आर्डर करते हम अपने टार्गेट शोरूम्स पर कुछ न कुछ शॉपिंग करके आ ही गए। मुश्किल ये थी कि 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे का दिन था और हमारा ग्रुप भी काफ़ी बड़ा था खाना न अब और न तब आया।
लगभग 1 घंटा इंतज़ार करने के बाद विकास शर्मा, रवि और सौरव ने खुद ही सर्विस का ज़िम्मा उठाया और डिनर सर्व करवाया, खाना स्वादिष्ट था तो सब पिछले ग़म भूल गए और अपने खाने में व्यस्त हो गए। खाना समाप्त करने के बाद, कुछ घूम कर सब होटल वापस आगये और सारे रास्ते अज्जू भाई के चुटकुले और गणेश जी कि उन पर टिप्पणियां चलती रहीं, बीच-बीच में लालाजी और मधु बाबू भी अपने वक्तव्य रखते रहे। अंततः हम ‘ओबरॉय’ पहुंच गए और जाकर थोड़ी देर गपशप के बाद सोने चले गए।
अगले दिन की सुबह भी वैसी ही रही सुबह के नाश्ते का आनंद लेने के बाद सब साथ में ही DWTC की ओर निकल गए, यह मेरा इस सफ़र का अंतिम दिवस था और लालाजी को 2 दिन और रुकना था साथ में इस बार श्रीमती सुमित्रा अग्रवाल भी आई हुई थीं और हर शाम वो हम सब के साथ ही थीं। वे भी लालाजी की तरह शालीन स्वभाव की हैं। पहुंचने के बाद कुछ इंडियन स्टॉल पर जाने का मौक़ा मिला जो इंडियन पविलियन से बाहर थे।
इनमें प्रमुख थे ‘बोलास’ काजू वाले, काफ़ी अच्छा स्टॉल इनका वहाँ लगा हुआ था जहाँ ये पूरे विश्व के आगंतुकों को भारतीय काजू और कॉफ़ी से रूबरू करा रहे थे। इसी तरह से नज़दीक ही कुछ इटैलियन फ़्लेवर्स के स्टाल भी मिले जिनके साथ सभी भारतीय मिठाईयों का संगम एक अच्छा प्रयोग दिख रहा था। फ़ाब्री एक जाना माना नाम है रेडी फ़्लेवर्स की दुनिया में जिसको भारत में पुनीत दुग्गल रिप्रेजेंट करते हैं। इनको लगभग सभी भारतीय मिठाई निर्माता किसी न किसी रूप में जानते हैं।
कई मिठाई निर्माताओं के साथ मिलकर इन्होंने कई मिठाईयों के फ़्यूशन बनाये हैं जो यंग जनरेशन के कंस्यूमर को काफ़ी पसंद आते हैं। इसी डिश में ‘डेल्टा न्यूट्रिटिव’ मुंबई भी काफ़ी आगे निकल आया है। बेकरियों को कई दशकों से गाइड कर रहे सिंघवी बंधुओं ने अब मिठाई इंडस्ट्री में भी क़दम रखा है और उन्हें अच्छे परिणाम मिले हैं।
बस इसी तरह से यह दिन भी निकल गया और शाम को सबको DWTC से ही अलविदा बोल कर मैं अपनी भांजी के घर कुछ देर के लिए चला गया जिसका घर एयरपोर्ट के नज़दीक था और थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे एयरपोर्ट ड्राप कर दिया। अंतिम क्षण तक लालाजी का मन भरा नहीं था और वो बड़े ही प्रेम से बोल रहे थे 2 दिन और रुक जाते। उनसे क्षमा मांग कर निकल गया क्योंकि पिता जी को अभी पूरी तरह से बीमारी से उभरने में समय लग रहा है और मेरा साथ होना ज़रूरी था। इस 3 दिन के सफ़र में 4 बार RTPCR और PCR टेस्ट करवाने के बाद 16 फरवरी की सुबह मैं मुंबई वापस पहुंच गया।