हर एक देश, नगर का अपना एक इतिहास होता है। वैसे ही महाराष्ट्र के नाशिक शहर को सिटी ऑफ़ वाईन और वहां की गोदावरी नदी को दक्षिण गंगा के नाम से जाना जाता है।
पीछे 70-80 साल से नासिक शहर को और एक पहचान मिली है जो है बुधा हलवाई जलेबीवाले जिन्होंने महाराष्ट्रीयन पारंपरिक मिठाईयों की गरिमा को अभी भी जीवित रखा है।
बुधा लक्ष्मण वाघ जिन्होंने 1953 में मनोहर मिठाई नाम से अपने उद्योग से शुरुआत की थी और आगे चलकर उनकी मिठाई के अनोखे स्वाद ने ही उनका नाम धारण कर लिया और लोग उन्हें बुधा हलवाई जलेबीवाले के नाम से जानने लगे। बुधाजी अग्रवाल स्वीट्स नामक एक दुकान पर महज़ 1 रुपये तनख़्वाह पर काम किया करते थे जो सिर्फ़ सुबह में जलेबियाँ बेचा करते थे। बुधाजी ने जलेबी शाम के वक़्त भी बनाने की सोची और उनकी यह तरकीब से उनका व्यापार बढ़ता गया और फिर धीरे-धीरे उन्होंने गुलाब जामुन, श्रीखंड, बासुंदी, खोया, पेड़ा, खुरचन वडी दही, घी आदि बनाने लगे, लेकिन आज तक उनकी ख़़ासियत जलेबी बनी हुई है।
अब जलेबी में क्या ख़ासियत हो सकती है जबकि जलेबी तो हर जगह बनती है? ऐसा सवाल आपके मन में आना स्वाभाविक है। तो आपके इस प्रश्न का उत्तर भी है। उनकी यह जलेबी शुद्ध घी में तली जाती है और गरम-गरम ही खिलाई जाती है। जलेबी 10 दिन तक जमी रहती है, नरम नहीं होती है। जलेबी को स्वादिष्ट बनाने के लिए चाशनी में जायफ़ल और केसर के मसाले डाले जाते है। इसीलिए ग्राहक जलेबी पार्सल ले जाने पर ज़्यादा फ़ोकस करते हैं। ग्राहकों को कभी भी बासी जलेबी नहीं परोसी जाती है।
बुधा हलवाई की जलेबी आप उपवास में भी खा सकते है, क्योंकि शुद्ध घी में तली हुई उनकी यह जिलेबियाँ पूरी प्रमाणिकता और सात्विकता का ख़्याल रख कर आलू से बनाई जाती है। आषाढ़ी एकादशी और महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर उनके दुकान पर पाँव रखने को भी जगह नहीं रहती इतना जमावड़ा होता है।
बुधा हलवाई के मालिक से जब हमने बात की और उनकी इस सफ़लता का राज़ पूछा तो सारा श्रेय ग्राहकों को देते हुए उन्होंने कहा कि ष्ग्राहक हमारे भगवान हैं। उनकी इच्छाओं और उम्मीदों को पूरा करने का मतलब है कि हमने कुछ हासिल किया है। हम ग्राहकों को कभी निराश नहीं करते है। बुधा हलवाई जलेबी खाने के शौक़ीनों के लिए सही जगह है। कई खान-पान शौकीन विदेश में भी जलेबी के पार्सल ले जाते हैं। इस दुकान की कोई शाखा नहीं है। इसीलिए यदि आप जलेबी खाना चाहते हैं, तो आपको इस ही दुकान पर अवश्य आना होगा !”