कोई भी देश, राज्य, शहर अपने संस्कृति, इतिहास, भौगोलिक स्थिति और वहां के लोगों के स्वभाव से जाना जाता है।
इसी विभिन्नता को एक करके ही विरासत बनती है और निरंतर चलती रहती है। बंगाल शहर भी कुछ ऐसा ही है। बंगाल की भाषा, स्वभाव, भौगोलिक स्थिति, संस्कृति और जाना जाता है बंगाल की मिठाईयों को लेकर। आज पुरे विश्व में बंगाली मिठाई का बोलबाला है। हमें नहीं लगता कि मिठाईयाँ के बिना कोई बंगाली संस्कृति की कल्पना भी कर सकता हो । बंगाली मिठाईयाँ बंगाल की सांस्कृतिक और सामाजिक मेलजोल का एक अभिन्न और वास्तव में एक आवश्यक हिस्सा है।
आज हमारे हिस्ट्री ऑफ द प्रोडक्ट (History of the Product) में जिसके बारे में हम बात करने वाले है वो मिठाई तो सरकार द्वारा भी अधिकृत और GI Tag से प्रमाणित की गई है। GI Tag भारत में भौगोलिक संकेतक टैग का संक्षिप्त नाम है। यह 15 सितंबर 2003 से लागू हुआ। बंगाल के बर्धवान शहर से सीताभोग और मिहिदाना इन दोनों मिठाइयों का नाम जुड़ा है। बर्धमान की इस मिठाई को 29 अप्रैल 2017 को पश्चिम बंगाल का GI Tag मिला।
सीताभोग के नामकरण से पौराणिक मिथ्या यह है की मिथिला की राजकुमारी और अयोध्या के राजा राम की पत्नी सीता को यह विषेश मिठाई बहुत पसंद थी और इसलिए इसका नाम उनके नाम पर रखा गया। हालांकि सीताभोग को सीताषोल चावल से बनाया जाता था (शायद जिससे इसका नाम पड़ा था), लेकिन आजकल इसे गोबिंदभोग चावल से बदल दिया गया है, जिसे खरीदना आसान है।
सीताभोग की उत्पत्ति की एक दिलचस्प कहानी है। स्वर्गीय नागेंद्रनाथ नाग के अनुसार, उनके दादा स्वर्गीय खेत्रनाथ नाग ने महाराजा स्वर्गीय महताबचंद बहादुर के शासन के दौरान सीताभोग और मिहिदाना मिठाई का आविष्कार किया। इस आविष्कार के बहत्तर (72) साल बाद, १९०४ में जब लॉर्ड कर्जन के बर्धवान आने और इन दोनों मिठाईयों के मूल्यांकन के बाद सीताभोग और मिहिदाना का नाम पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया। बंगाल अंग्रेजों द्वारा उपनिवेषित होने वाला पहला क्षेत्र था, जिसके परिणामस्वरूप लगभग दो सौ वर्षों तक एक संघ बना रहा। इन दो सौ सालों में, अंग्रेजों ने काफी हद तक बंगाल के खान-पाक के मानचित्र (food map) को प्रभावित करने में कामयाबी हासिल की। इसमें कोई शक नहीं कि दोहरे आविष्कार से जुड़े इस औपनिवेशिक इतिहास ने इन मिठाईयों को ग्लैमर और पूरे विश्व में प्रसिद्धि में इजाफा हुआ है।
बंगाल के कई सारी जगह पर आपको सीताभोग मिल जाएगा लेकिन अपने अनूठे और पारंपरिक स्वाद से पिछले पचास साल से यहाँ के रहिवासियों का दिल जीत रहे हैं वो हैं सुर्ज्या कुमार मोदक। सुर्ज्या कुमार मोदक उस समय के पूर्वी भारत के एक प्रसिद्ध मिठाई निर्माता थे। जलभरा सन्देश जैसी रमणीय मिठाई का आविष्कार उनके नाम पे दर्ज है। 247 जी. टी. रोड (पूर्व) बारासात, चंदनागोर में अपनी मूल दुकान पर आज तक सभी मूल व्यंजनों को सफलतापूर्वक बना रहे हैं । जो व्यापार स्वर्गीय सुर्ज्या कुमार मोदक के नाम के तहत शुरू किया गया था वो आज भी उनके परपोते सैबल मोदक के निपुण देखरेख में चल रहा है। बंगाल की सारी पारंपरिक मिठाईयाँ यहाँ बनाई जाती हैं।
चने और चावल के आटे को आवश्यकतानुसार दूध में मिलकर उसकी लोई बनाकर विशेष छलनी से छान कर तला जाता है और फिर उससे रातभर चासनी में भिगोकर रखते हैं जहाँ हर्ब्स और स्पाईसेस पहले से ही मिले हुए होते हैं। सुबह उसे छानकर छोटे गुलाब जामुन, काजू, बादाम, पिस्ता से गार्निश करके सीता भोग परोसने के लिए तैयार होता है। सीताभोग को बड़े मनभावन रूप में पेश करना इनकी खासियत है, जैसे कभी स्वान, गणेश या आपके मनचाहे आकार में वो पेष करते हैं। सीताभोग के साथ साथ जलभरा सन्देश, मोतीचूर सन्देश, खिरपुल्ली सन्देश, राजनंदिनी, अमृतो पटुरी, रबड़ी, चनार पायेश यह उनके मुख्य उत्पाद हैं। सुर्ज्या कुमार मोदक बंगाली मिठाईयों के लिए एक रमणीय स्थान है, जो उन्हें आने वाले त्यौहारी मौसम के लिए आदर्श बनाती हैं।