मिठाई और नमकीन इंडस्ट्री को एक नजर से देखता हुआ चने के आटे से बना ‘बेसन
मिठाई और नमकीन दोनों क्षेत्रों में उपयोग होने वाला बेसन का कमाल यह है की चाहे आप बेसन से मिठाई बनाइये या फिर नमकीन पकवान, हर व्यंजन से हम सभी का दिल जीत लेता है, और स्वाद अपरम्पार!!!!!
बेसन, चने से बना आटा होता है जो लगभग एशियाई देशों में हर रसोई घर के मिल ही जाता है। बेसन भारतीय उपमहाद्वीप के व्यंजनों में एक प्रमुख घटक है, जिसमें भारतीय, बांग्लादेशी, बर्मी, नेपाली, पाकिस्तानी और श्रीलंकाई व्यंजन शामिल हैं। हर व्यंजन अपने आप में सेहत से भरपूर और स्वादिष्ट है। मल्टीग्रैन आटे में एक हिस्सा चने के आटे का होता है। इसका मतलब यह है की चने से बना यह आटा बहुत चमत्का री है क्योंकि यह स्वास्थ के लिए लाभदायक है, अनगिनत फ़ायदे हैं।
चने का आटा, गरबानज़ो बीन के आटे के रूप में भी जाना जाता है। सदियों से भारतीय खाना पकाने में एक प्रधान सामग्री है। बेसन आमतौर पर बंगाल ग्राम नामक कड-दाने से बनाया जाता है। गरबानज़ो बीन का आटा सफ़ेद छोले को पीसकर बनाया जाता है और यह भी एक प्रकार की बेसन की वैराइटी है।
बेसन में घुलनशील फ़ाइबर होता है, जो आपके दिल को स्वस्थ रखता है। बेसन के फ़ाइबर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रण में रखते हैं और यह हृदय के उचित कामकाज और स्वस्थ रक्त परिसंचरण में मदद करता है। बेसन में पूरे गेहूं के आटे की तुलना में अधिक अच्छा वसा और प्रोटीन होता है। यह जटिल कार्बोहाइड्रेट, फ़ोलेट में समृद्ध है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है। बेसन का सेवन वज़न कम करने में मदद करता है, आपकी प्रतिरक्षा का निर्माण करता है और आपके दिल को स्वस्थ रखता है। तो, अगली बार जब आप कढ़ी खाएं या बेसन की रोटी खाएं तो बिना किसी झिझक के इसका सेवन करें क्योंकि इससे आपका वज़न नहीं बढ़ेगा। बेसन के आटे में मौजूद फ़ाइबर पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। यह पाचन सिस्टम को धीमा करने में मदद करता है। यह आपको भरा हुआ महसूस करने में मदद करता है। इसके धीमे पाचन गुण के कारण शरीर में शुगर का स्तर नियंत्रण में रहता है।
विषेशताएं
बेसन में कार्बोहाइड्रेट का उच्च अनुपात, अन्य आटे की तुलना में उच्च फ़ाइबर, ग्लूटेन- फ्ऱी और अन्य आटे की तुलना में प्रोटीन ज़्यादा होता है।
पारम्परिक व्यंजन
भारतीय उपमहाद्वीप में बेसन लोकप्रिय है, और इसका उपयोग निम्नलिखित खाने बनाने के लिए किया जाता हैः
तरह-तरह के स्नैक्स, सेव, भजीयेध्पकोड़े, बीकानेरी भुजिया, बोंडा, बूंदी, पापड़, चक्ली, चीला (बेसन डोसा), ढोकलाध्खमान, कढ़ी, जुंकाध्पिठला, लड्डू, चना बर्फ़ी, सोन पापड़ी, मैसूर पाक, पतिसा, हलवा इत्याद। बेसन के घोल से बने चीले, भारत में एक लोकप्रिय स्ट्रीट फ़ूड हैं।
बेसन भारतीय थाली में कुछ सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रीयों में से एक है। खाद्य उद्योग में बेसन को एक उच्च स्थान देते हुए आईये आज हम बात करते हैं बेसन के निर्माताओं से और जानते हैं उनसे बेसन के बारे में अधिक जानकारीः
शुरुआत करते हैं चेतन जैन से जो राजधानी बेसन के MD हैं। राजधानी बेसन किसी परिचय का मोहताज नहीं है, हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा इस ब्रैंड से वाक़िफ़ है।
“मिठाई व नमकीन टाईम्स” ने अपने पहले सवाल में चेतन जी से यह जानने की कोशिश की के बेसन की कौन-कौन सी वैराइटीज़ होती हैं ?
बड़े उल्हास से साथ चेतन जी ने कहा के यूँ तो बेसन बारीक से लेकर दरदरा कण (grits) के आकार तक मिलता है। आम रसोई घर में बारीक बेसन इस्तेमाल होता है लेकिन जब हम बात करते हैं फ़ैक्ट्री प्रोडक्शन की तो जैसा हमारे पास ऑर्डर आता है, हम उस ही प्रकार का बेसन पीस कर अपने ग्राहक को देते हैं। कहने का मतलब यह है की बेसन की पिसाई पर निर्भर करता है की इस से हमारा ग्राहक क्या बनाएगा। बेसन की क्वालिटी उसके दाने के हिसाब से डिफ़ाइन होती है। बेसन को पहले हम सूजी से भी ज़्यादा मोटा दाना बनाते हैं, उसके बाद बहुत फ़ाइन बेसन भी बनाते हैं जिसे सुपर फ़ाइन ग्रेड भी कहा जाता है। अलग-अलग एॅप्लिकेशन्स के हिसाब से बेसन की पिसाई होती है।
उसके बीच में कोई लिमिट नहीं यानी जिस को जैसी क्वालिटी का चाहिए है बिल्कुल वैसा बना कर देते हैं। नॉर्मली हम दैनिक आधार (daily basis) पर 7 से 8 वैराइटीज़ के बेसन बनाते हैं। लेकिन इसमें भी कोई लिमिट नहीं है, जैसी क्लाइंट की मांग होती है हम वही क्वालिटी बनाकर प्रदान करते हैं। मोटा या बारीक, मेश के हिसाब से दाना रखते हैं और जैसी मांग आती है वैसे ही कस्टमाईज़ होता है। मिठाईयों में जो बेसन इस्तेमाल होता है उसका दाना बहुत मोटा होता है। मोटा बेसन आप को रोज़ाना इस्तेमाल में नहीं दिखेगा क्योंकि यह सिर्फ़ फ़ैक्ट्री में ही इस्तेमाल होता है, मुख्य बात यह है की इन सब चीजों की रेंज बहुत बड़ी है।
मशहूर नामों में से एक ब्रैंड है फ़ॉर्च्यून बेसन का जिसे बनाते हैं अडानी विल्मर । अजय मोटवानी, अडानी विल्मर में चीफ़ मार्केटिंग अफ़सर हैं। अजय जी ने अपने ब्रैंड की उल्लेखना करते हुए कहा की फ़ॉर्च्यून बेसन 25 से अधिक गुणवत्ता परीक्षणों से गुजरता है, हालांकि, उपभोक्ता द्वारा पकाते समय बेसन की गुणवत्ता का बेहतर मूल्यांकन किया जा सकता है। हल्दिया, नागपुर, नीमच और अलवर में अडानी विल्मर की बेसन उत्पादक इकाईयां FSSAI प्रमाणित हैं। जहां तक किस्मों का संबंध है, बेसन का वर्गीकरण नीचे उल्लेखनीय हैः
सुपरफ़ाइन बेसनः यह एक बहुत ही महीन संसाधित बेसन है जिसका उपयोग कई गुजराती व्यंजनों जैसे फाफड़ा, खमन, गोटा, खांडवी, आदि को तैयार करने के लिए किया जाता है।
दरदरा बेसनः यह एक अर्ध-ठीक संसाधित बेसन है, जो स्वादिष्ट लड्डू, पकोड़ा, कढ़ी, बेसन बर्फ़ी, चीला, और बहुत कुछ बनाने के लिए आदर्श है।
बारीक बेसनः यह एक चिकना और बारीक संसाधित बेसन है जिसका उपयोग ज़्यादातर नमकीन, भुजिया, गाठिया, पापड़ी, आदि बनाने के लिए किया जाता है।
मोटा बेसनः यह ज़रा ज़्यादा मोटा पिसा हुआ बेसन होता है, विशेष रूप से स्वादिष्ट बूंदी लड्डू बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
मोतीचूर बेसनः यह बेसन भी मोटा पिसा हुआ होता है जो मोतीचूर के लड्डू, केसर के लड्डू आदि बनाने के लिए एकदम सही है।
सुनील जिंदल, R.B. Milling Pvt Ltd, दिल्ली, और पारस बेसन नामक ब्रैंड के मालिक हैं। सुनील जी ने बेसन की कई वैराइटीज़ का वर्णन किया जो ख़रीदार की आवश्यक्ता के आधार पर उपलब्ध है। बेसन का चयन काफ़ी हद तक इस की पिसाई (बारीक/ मोटा ) पर निर्भर करता है क्योंकि प्रत्येक निर्माता को अपने द्वारा बनाए जा रहे उत्पाद की अपनी आवश्यक्ता होती है। बेसन का नाम उस क्षेत्र के अनुसार मिलता है जहां उत्पादन बनाया जाता है, उदाहरण के लिए ढोकला-बेसन, पकोड़ा-बेसन। इसीलिए जो जहाँ रहता है बेसन के प्रोडक्ट्स को उस ही नाम से जाना जाता है।
वहीं अपूर्व अग्रवाल, Agroha Enterprises Pvt Ltd, Indore और श्रीहरी बेसन ब्रैंड के डायरेक्टर ने अपने विचार पाठकों के समक्ष रखे। ‘‘भारतीय थाली में स्नैक्स के रूप में बेसन को बहुतयात में उपभोग किया जाता है। आजकल शुद्ध बेसन के साथ में मिलावटी बेसन (मल्टीग्रैन) का चलन बहुत बढ़ गया है। बेसन की गुणवत्ता मापने के लिए पैरामीटर्स तो बहुत है पर इसका सही आकलन सिर्फ़ कढ़ाई में और सामग्री बनाते समय ही हो सकता है। बेसन की वैराइटीज़ शुद्ध बेसन, मिलावटी (मल्टीग्रैन) बेसन ,नमकीन स्पेशल, खमंड स्पेशल, आदि उपयोग में ली जाती है।
32 साल के अनुभव से साथ नरेंद्र पोरवाल, मनमोहन बेसन मील प्र. लिमिटेड के फ़ाउन्डर हैं जो छत्रल, अहमदाबाद, गुजरात में स्थित हैं। मनमोहन बेसन की ख़ासियत-सुपर फ़ाइन और मोटा बेसन है। कंपनी का दावा है कि वर्तमान में वह गुणवत्ता के अनुसार नंबर एक है भारत के अग्रणी बेसन निर्माताओं में से एक हैं, जिसका संयंत्र प्रति दिन 150 टन उत्पादन की क्षमता के साथ पूरी तरह से स्वचालित है।
MNT ने बेसन की गुणवत्ता की जानकारी हासिल करने के लिए सवाल नरेंद्र जी से किया और उन्होंने उत्साह पूर्वक उत्तर दिया की भारतीय रसोई में बेसन सबसे अधिक उपयोग होने वाली सामग्री में से एक है। खाद्य उद्योग में उपयोग की जाने वाली बेसन की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए बेसन 100% शुद्ध चना दाल का होना आवश्यक है। बेसन दो प्रकार के होते हैं सुपर फ़ाइंन और मोटा बेसन। ज़्यादातर लोग नमकीन बनाने के लिए सुपर फ़ाइन बेसन का इस्तेमाल करते हैं, इसके बारीक होने से कम तेल का उपयोग होता है। इस से बने व्यंजन ज़्यादा दिन ताज़ा, स्वादिष्ट और करारे रहते हैं। मोटा बेसन मिठाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है जैसे बेसन के लड्डू, बर्फ़ी इत्यादि।
अंकित बढ़ाया, लकड़ा दाल–बेसन उत्पादन केंद्र, जयपुर से हैं। अंकित जी मानते हैं की बेसन को अंगिनत पकवान बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। आज के जो हालात चल रहे हैं, मिलावटी (contaminated) बेसन का चलन बहुत बढ़ता गया है और यह प्रतिक्रिया इंसान की सेहत के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है। बेसन की गुणवन्ता नापने के लिए कई प्रकार के मापदंड हैं, परन्तु मिलावटी के पैरामीटर्स की जाँच लैब में हो सकती है। अगर सही मायने में देखा जाये तो इसे सिर्फ़ कढ़ाई में पकवान बनते समय ही देखा जा सकता है और मिलावटी बेसन की अवधि ज़्यादा समय तक नहीं चलती है। बेसन खमंड, फाफड़ा, लड्डू आदि वैरायटी में उपलब्ध हैं।
चलते हैं दूसरे सवाल पर जहाँ हम सब मानते हैं कि बेसन सबसे ज़्यादा उपयोगी खाद्य सामग्रीयों में से एक है और ये पौश्टिक भी होता है परन्तु किसी भी मिठाई या नमकीनध्फ़रसान में इसके हेल्थ बेनिफ़िट्स को नहीं उल्लेखित किया जाता है। अगर कंस्यूमर को बेसन के हेल्थ बेनिफ़िटस से आगाह किया जाये तो बेसन के प्रोडक्ट्स को फ़ायदा होगा?
“हम बेसन उत्पादों का उपभोग करते हैं, और जब हम उनके उपयोग का सही वर्णन करते हैं, तो हम निश्चित रूप से उनके फ़ायदे भी बता सकते हैं। जैसे हमने ब्रैंड का बेसन बेचा है तो उसमें उसके बेनिफ़िट्स भी मेंशन करना चाहिए उसके कंटेंट लिस्ट पर। अगर देसी घी में आप बेसन के लड्डू बनाते हैं और चीनी के बजाये गुड़ या ऐसी कोई चीज़ इस्तेमाल करें तो वह बहुत हैल्थी मिठाई हो जाती है, उसमें कोई भी चीज़ नुक़्सान वाली नहीं है। फिर उसी प्रकार आप ऐसे स्नैक्स बनाएं जिसके अंदर खाद्य तेल की मात्रा कम हो और बूस्टिंग प्रोसेस हो डीप फ्ऱाई से हटकर, तो उसके भी बहुत से फ़ायदे हैं क्योंकि बेसन में ख़ुद प्रोटीन की मात्रा ज़्यादा पायी जाती है जो 20 से 25 प्रतिशत तक है। इसमें एक ख़ास बात यह है की यह शुगर के मरीज़ की बॉडी में शुगर की मात्रा को नहीं बढ़ने देता। शुगर के मरीज़ों के लिए बेसन से बने खाने हैल्थी साबित होंगे। चना हो या बेसन या कोई भी अनाज हो, बेसन का व्दम व िजीम सवूमेज ळसलबमउपब प्दकमग चतवकनबजे’ है”, चेतन जी ने विस्तारित रूप से विवरण किया।
अजय जी ने कहा के बेसन उत्पाद मुख्य रूप से स्वाद पर निर्भर हैं । हालाँकि, आजकल, प्रवृत्ति में एक बदलाव भी पाया जाता है, जिसमें उपभोक्ता हाथ की स्वच्छता के बारे में अधिक जागरूक और चिंतित हैं, और चावल, गेहूं का आटा, बेसन, दालों जैसी खुली वस्तुओं की ख़रीद का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं। हम उन्हें यह आश्वासन देना चाहेंगे कि फ़ॉर्च्यून उत्पाद हाथ से अछूते हैं। इसके अलावा, उत्पाद द्वारा दिए जाने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जानकारी उपभोक्ताओं को सूचित करने में सहायता करेगी।
‘‘जहां तक बेसन की गुणवत्ता का सवाल है, एक अच्छा प्रचार निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर इसकी खपत को बढ़ाने में मदद करेगा। इससे हमें उपभोक्ताओं को इसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूक करने में भी मदद मिलेगी‘‘, सुनील जी ने कहा।
सुनील जी के साथ हामी भरते हुए अपूर्व जी ने कहा की बेशक बेसन के हेल्थ बेनिफ़िट्स बहुत है जिसकी जानकारी कंस्यूमर तक पहुंचना आवश्यक है। बेसन के हेल्थ बेनिफ़िट्स का प्रचार करने से काफ़ी हद तक फ़ायदा होगा। बेसन से बने अनेक हेल्थी प्रोडक्ट्स में डिमांड बढ़ेगी और खपत में वृद्धि होगी।
नरेंद्र जी ने बहुत सही विवरण दिया, “हम सब जानते हैं की खाद्य सामग्रीओं में सबसे ज़्यादा उपयोग बेसन का होता है। यह पौष्टिक भी होते हैं, क्योंकि बेसन प्रोटीनयुक्त शुद्ध शाकाहारी है। भारत एक शाकाहारी देश है यहां ज़्यादातर लोग शाकाहारी है, जिनको और किसी तरीक़े से प्रोटीन नहीं मिलता हैं और प्रोटीन शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है, वह दालों के ज़रिए मिलता हैं। दालो में सबसे ज़्यादा प्राप्त है चना और चना दाल का बनता है बेसन। लोगों ने नमकीन के ज़रिए स्वाद के साथ शरीर में प्रोटीन प्राप्त करने का रास्ता ढूंढ लिया है”।
‘‘बेसन के बने हुए प्रोडक्ट्स वास्तव में स्वास्थ के लिए बहुत ही कारगर हैं और उपभोगता भी इसके प्रति सजक होने लगे है। और अगर बेसन के हेल्थ बेनिफ़िट्स से जागरूक किया जाए तो उपभोक्ताओं को इस का फ़ायदा ज़रूर मिलेगा‘‘, अंकित जी ने उच्चारण किया।
बेसन की पदोन्नति
बेसन फ़ाइबर से भरपूर होता है, डायबिटीज़ के लिए कारगर साबित होता है, एल्लेर्जिस से दूर रखता है और वेट लौस व त्वचा के लिए भी अच्छा माना जाता हैं ।
MNT का तीसरा प्रश्न था क्या आप को लगता हैं की सारे निर्माताओं को एकजुट होकर बेसन को as a healthy food प्रमोट करने में एक ठोस क़दम उठाना चाहिए?
चेतन जी ने अपनी राय दी के बेसन एक हेल्थी प्रोडक्ट्स तो हैं ही और अगर निर्माता उसके बेनिफ़िट्स को भी साथ साथ उजागर करें तो बेशक कंस्यूमर्स तक यह इन्फ़ॉर्मेशन पहुंचेगी। बेसन शुगर को जल्दी बॉडी में रिलीज़ नहीं करता है इसीलिए डाईबेटिज़ के मरीज़ को बेसन की बनी हुई चीजें खानी चाहिये। सारांश यह है कि अगर हेल्थ बेनिफ़िट्स के साथ इस का प्रिपरेशन प्रोसेस भी हाइलाईट किया जाये तो कंस्यूमर्स को एक हेल्थी प्रोडक्ट्स भी मिलेगा और स्वास्थ भी सही रहेगा।
अजय जी का मानना है कि आजकल, प्रमुख चुनौती उपभोक्ताओं को शिक्षित करना है, विशेष रूप से जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जो लगभग 65.5% प्रतिशत हैं। ब्रेंडेड उत्पादों को ख़रीदने और उन्हें खुली वस्तुओं के बजाय पैक्ड वस्तुओं के लिए जाने के लाभों के बारे में शिक्षित करना है। भारत एक बहुत विशाल बाज़ार है, और हम अभी भी पैक्ड और खुले उत्पादों के बीच बहुत बड़ा अंतर पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आमतौर पर अस्वच्छ, घटिया और मिलावटी उत्पाद मिलते हैं। इस गैप को कम करना होगा।
सुनील जी ने बात का खुलासा किया, “हालांकि हमारे उद्योग को अभी पूरी तरह से संगठित होना बाक़ी है, अगर हम बेसन को इसके गुणों और स्वास्थ्य लाभों के बारे में बढ़ावा देते हैं तो निश्चित रूप से हमें भी बेहतर रिटर्न्स मिलेंगे। इस तरह हम उपभोक्ताओं को दैनिक आधार पर अपना सेवन बढ़ाने और बेसन से जुड़ी स्वास्थ्य और जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं”।
सहजता से अपूर्व जी ने अपना बयांन दिया के ‘‘बेसन एक हेल्थी फू़ड के साथ.साथ एक दवा के रूप में भी काम करता है जो त्वचा रोग में कारगर साबित होता है। बेसन का प्रचार बहुत ज़रूरी है ताके कंस्यूमर्स को इस से 100 प्रतिशत बेनिफ़िट्स मिले चाहे वो फू़ड प्रोडक्ट्स हो या ब्यूटी प्रोडक्ट्स हो या दवा के रूप में। हर हाल में फ़ायदा कंस्यूमर्स का ही होगा।
लोगों की सेहत को मद्दे नज़र रखते हुए नरेंद्र जी ने अपनी चिंता जताई के, “आज के फ़ास्ट फ़़ूड के जमाने में लोग पिज़्ज़ा, बर्गर, सैंडविच और कई तरह के फ़ूड आईटम्स कंज़्यूम कर रहे हैं जिसमें ज़्यादातर ग्लूटेन पाया जाता है और यह ग्लूटेन शरीर के लिए काफ़ी हानिकारक है। बेसन ग्लूटेन-फ्ऱी और हाई प्रोटीन प्रोडक्ट है, इसलिए आज की युवा पीढ़ी और लोगों को जागृत करने के लिए सरकार फ़ूड डिपार्टमेंट और बेसन मील एसोसिएशन के साथ मिलकर जागरुकता प्रोग्राम चलाना चाहिए ‘‘बेसन से बनी चीज़ें खाएं और जंक फ़ूड से बचें”।
बेसन के काफ़ी सारे गुणों की प्रशंसा करते हुए अंकित जी को बताया के बेसन वास्तव में देखा जाये तो एक हेल्थी और कम्पलीट फ़ूड है। बेसन का सेवन इस्तेमाल करने से हृदय स्वस्थ रहता है, डाईबेटिज़ कंट्रोल में रहती है और त्वचा को निखारने के लिए बहुत कारगर साबित होता है। यूं कहना गलत न होगा के बेसन बहुत से गुणों का पैकेज है।
सवालों का आनुक्रमिकता को आगे बढ़ाते हुए निर्माताओं से पूछा उनकी फॅ़क्टरीज़ में बेसन की कितनी खपत है? इस में कितना पार्ट ब्रैंडेड बेसन और कितना बल्क बायर्स के लिए सप्लाई होता है ?
अपने व्यवसाय की व्याप्ति को बताते हुए चेतन जी कहा, ‘‘हमारा सारा बिज़नेस ब्रैंडेड है, यहाँ तक की हम छोटे पैक भी ब्रैंडेड ही बनाते हैं। मूल रूप से हमारा डिस्टिंक्शन ब्रैंडेड या नॉन-ब्रैंडेड का नहीं है, क्योंकि हमारा कंस्यूमर्स पैक यानी सीधे लोगों के घर तक जाने वाली पैकिंग जो लगभग 25 प्रतिशत है और 75 प्रतिशत थोक में जाता है, और इस का भी कुछ हिस्सा रिटेल मार्केट में बिकते है। राजधानी बेसन पैक्स छोटे स्टॉक में भी बिकते हैं और डायरेक्ट बड़ी फै़क्ट्री में भी जाते हैं कमर्शियल और institutional use के लिए। हमारे ब्रैंड को बेचने के लिए छोटे डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं, या तो फिर रिटेल शॉप में बिकेंगे। हमारे हिसाब से 30 किलोग्राम के ऊपर के पैकिंग को हम थोक का माल कहते हैं‘‘।
अडानी विल्मर के प्लांट्स की स्थानीय लोकेशन को बताते हुए अजय जी ने जवाब दिया के हमारे पास चार स्थानों पर इकाईयाँ हैं जो अलवर, हल्दिया, नागपुर और नीमच हैं। कुल उत्पादन में CP और BP की खपत समान अनुपात में होती है।
पारस बेसन की खपत सुनील जी ने हमें इन्फ़ॉर्म किया कि उनकी कंपनी में बेसन के बल्क ऑर्डर्स और जनरल ऑर्डर्स भी हैंडल किये जाते हैं। यहाँ हम बात कर रहे हैं 60-40 रेश्यो की, 60 प्रतिशत बल्क आर्डर और institutional बायर्ज़ हैं और बाक़ी 40 प्रतिशत ऑर्डर्स आम ट्रेडर्स के होते हैं।
अपूर्व जी ने बताया की श्रीहरि बेसन ज़्यादातर बल्क ऑर्डर्स या थोक बिक्री के होते हैं। ‘‘हम प्रीमियम शुद्ध चना बेसन के निर्माता हंै हम रोज़ 100 मेट्रिक टन बेसन का निर्माण करते हंै जो कि मुख्यतः बल्क बायर्स के लिए सप्लाई होता है। यह बेसन इंस्टीटूशनल और कमर्शियल इस्तेमाल के काम आता है”।
हमारा मनमोहन बेसन दैनिक 125 टन का उत्पादन है, जिस में से 100 टन बेसन की थोक बिक्री है बाकी 25 टन रीटेल में उपयोग होता है, ऐसा नरेंद्र जी ने खुलासा किया।
अंकित जी ने अपनी खपत के बारे में बताया की फै़क्ट्री में शत-प्रतिशत शुद्ध चना बेसन बनाया जाता है। लकड़ा दाल मील के 100 प्रतिशत शुद्ध बेसन में से 70 प्रतिशत उत्पादन बल्क में सप्लाई होता और बाक़ी 30 प्रतिशत जनरल ट्रेडर्स और रिटेल में जाता है।
एक सवाल MNT ने जो अर्थशास्त्र (economics) से जुड़ा हुआ है, अपने साक्षात्कारों से किया के क़ीमतों के उतार–चढ़ाव देखकर निर्माता अपना कोटा और बफ़र स्टॉक को कैसे बनाए रखना चाहिए ताकि अनिश्चित क़ीमतें उनके उत्पादन को प्रभावित न करें?
फ़ूड वेस्टेज को मद्दे नज़र रखते हुए चेतन जी ने अपना अनुभव इस तरह शेयर किया कि एक उत्पादक के रूप में हम पर ऐसी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है की हमें कोई विशेष मात्रा में स्टॉक बना कर रखना है और ना ही ऐसा गवर्नमेंट की तरफ़ से कोई नियम या क़ानून है के हम अनलिमिटेड स्टॉक नहीं रख सकते। हमें सरकार की तरफ़ से उदार स्टॉक सीमा दी गयी है और कोई चैलेंज भी नहीं है।
‘‘हाँ, लेकिन यह बात सही है की अगर मार्केट में मांग कम है तो हमें उस स्टॉक को जमा करने से नुक़सान का भी सामना करना पड़ता है। यह बात ज़रूर है की हम इतना चना अपनी फै़क्ट्री में मौजूद रखते हैं जो हमें मिले हुए ऑर्डर को पूरा कर सके, क्योंकि कोविड के चलते हालत बहुत ज़्यादा ख़राब हो गए हैं, इसलिए हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। कई बार ऐसा हुआ के स्टॉक हमारे गोडाउन में पड़ा है, कर्फ़्यू की वजह से लोडिंग में दिक़्क़त आयी और हम उसको बहार नहीं निकल पाए। वह चीज़ मौजूद होने के बावजूद, हमारा कस्टमर हमारे पास नहीं आ पाया सप्लाई बंद होने की वजह से तो हमारा भी नुक़्सान और हमारे ग्राहक का भी नुक़्सान हुआ। उस के बाद हमने यह फै़सला लिया कि हमारे मील के अंदर ेनििपबपमदज ेजवबा मौजूद रहे, अगर वह मंडी या गोडाउन में पड़ा रहे और ज़रूरत पर काम ना आ सके तो बेकार है। इसीलिए अब हम ज़्यादा स्टॉक अपनी फै़क्ट्री में रखते हैं ताकि अपने कस्टमर्स के ऑर्डर्स को 100 प्रतिशत संतुष्ट कर सकें”।
अजय जी ने अनिश्चित बाज़ार के वर्णन और स्थिति के आधार पर बताया की कच्चे माल की क़ीमत में दैनिक आधार पर उतार-चढ़ाव होता रहता है, और हमें बाज़ार की स्थिति के अनुसार क़ीमत को समायोजित करना पड़ता है। चना दाल एक कृषि उत्पाद होने के कारण इसकी क़ीमत हमेशा अस्थिर रहती है। क़ीमतों में बहुत अधिक अनियमिताएं हैं और यह सरकारी हस्तक्षेप के कारण है। इसलिए क़ीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए, हम 1-2 महीने का स्टॉक रखते हैं। कभी-कभी हमें सरकारी हस्तक्षेप के कारण केवल 15 दिनों का ही स्टॉक रखना पड़ता है।
एक निर्माता जिसे दैनिक आधार पर रॉ मटेरियल को ख़रीदना होता है जिसमें सरकारी हस्तक्षेप भी शामिल होता है, उस निर्माता को अपना निर्णय स्वयं करना होता है की उसे सबसे अधिक लाभ किस में है, ऐसा सुनील जी का मानना है।
जहाँ तक रॉ मटिरियल की क़ीमतों का सवाल है, रेट्स के उतार-चढ़ाव पुरे वर्ष चलते रहते हैं। निर्माता सिर्फ़ अपने सेल्स पैटर्न के अनुसार स्टॉक कम या ज़्यादा कर सकते हैं, जैसे किसी भी त्यौहारी सीज़न में स्टॉक को बफ़र करें और बाक़ी समय एवरेज स्टॉक मेंटेन करें, ऐसी सलाह दी अपूर्व जी ने। वहीं नरेंद्र जी का भी यही मानना हैं के बेसन निर्माता अपने उत्पादन क्षमता का 15 दिन का स्टॉक रखना चाहिए ।
क़ीमतों और स्टॉक के बारे में अंकित जी ने उत्तर दिया की रेट्स की बात करें तो वह साल भर उप्पर-नीचे होते रहते हैं। निर्माता को अपनी बिक्री के हिसाब से अपने माल का स्टॉक रखना चाहिए। बेसन का सीज़न और डिमांड पुरे साल चलती है। शादी समारोह में इसका काम ज़्यादा बढ़ जाता है। उस समय इसका स्टॉक बढ़ा कर रखें और सेल्स बिक्री के अनुसार इसका एवरेज स्टॉक बना कर रखें।
अतः सुनील जी ने FSNM के ज़रिये अपना एक सन्देश ज़रूर पहुंचने की कोशिश की हैः
Show original message
को मेरा संदेश यह है कि यदि आप बेसन को एक उत्पाद के रूप में बढ़ावा देने पर विचार कर रहे हैं तो इस उत्पाद को नई ऊंचाईयां मिलेंगी और मिठाईयों में नए आविष्कारों के प्रति उपभोक्ता अधिक जागरूक होंगे। इस गतिविधि से बेसन की मिठाईयों की खपत बढ़ेगी जहां चॉकलेट धीरे-धीरे पारंपरिक भारतीय मिठाई उद्योग में अपनी जगह बना रही है। इस तरह हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा पैदा कर सकते हैं। हमें अधिक से अधिक नए रूप के साथ पारम्परिक मिठाईयां बनाने चाहिए जो स्वाद के साथ साथ हेल्थी भी हों।
दो रूप हैं बेसन के:
भारतीय व्यंजन, बेसन के सिर्फ़ दो रूप को पहचानते हैं। ज़्यादातर बारीक पीसा हुए बेसन और थोड़ा सा दरदरा पीसा बेसन, इसकी पिसाई पर निर्भर करता है के इस का उपयोग किस पकवान में किया जाए।
दिल के लिए अच्छाः
बेसन में ट्रांस फै़ट नहीं होता है, इसमें स्वस्थ असंतृप्त वसा और उच्च घुलनषील फाइबर सामग्री होती है जो हृदय स्वास्थ्य में
सुधार करती है, और यही कारण है बेसन को एक सुपरफू़ड मानते है।
बेसन बनाने की प्रक्रिया बहुत आसान है सबसे पहले चने की दाल को धूल मिट्टी से रिक्त किया जाता है। इसके बाद नमी दूर करने के लिए ब्लोअर से चने की दाल को हवा देकर सुखाया जाता है। इसके बाद चने की दाल को पलवराईज़र मषीन मे डाल कर पीस लिया जाता है और तोल कर पैकिगं की जाती है।
आपने देखा होगा बाजार में कई बड़ी बड़ी कंम्पनियां बेसन बनाने के प्लाटं लगाए हुए हैं और बड़े पैमानें पर चने के बेसन का उत्पादन कर रही है जिससे आज के समय मे उनकी अच्छी ख़ासी पकड़ हैै।
भारत ने लगभग 12,000 टन बेसन का निर्यात किया है जिसकी क़ीमत रु 7800 लाख, वर्श 2015-16 (APEDA) में रही। बेसन का निर्यात मुख्य रूप से USA, UK, ऑस्ट्रेलिया, कुवैत, कॅनाडा, न्यूज़ीलैंड, UAE, सिंगापुर, सऊदी अरब, ओमान और अन्य देशों में होता है।