“अनोखे स्वाद से परिपूर्ण है कुंदन मिष्ठान भण्डार की बाल मिठाई”

स्थापित सन 1947 ई0

 मुरादाबाद से ‘कुंदन मिष्ठान भण्डार’ के मालिक अनिल कुमार अरोरा जी ने बताया कि हमारे पूर्वज पंजाब के ज़िला गुजरा वाला के रामनगर, लाहौर से आये थे। पहले हम रेवड़ी बनाया करते थे। फिर वह लोग पार्टीशन के बाद रामनगर आगये और यहाँ आकर हमारे दादा जी और ताऊ जी ने इस व्यवसाय को सन 1947 ई0 में स्थापित किया था। उन्होंने यहाँ आकर दो दुकानें किराये पर लीं जिसे ‘शादीलाल कुन्दनलाल’ के नाम से शुरू किया। संयोग की बात यह है कि लाहौर से एक रामनगर छोड़ कर और मुरादाबाद के रामनगर आ बसे।

शादीलाल हमारे स्वर्गीय दादा जी का नाम था और कुंदन लाल हमारे ताऊ थे। फिर जब पार्टनरशिप में दुकान बनी तो उसका नाम ‘प्रकाश मिष्ठान भण्डार’ हुआ। अंत में वह ‘कुंदन मिष्ठान भण्डार’ के नाम से चली और आज तक उसी नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने बाल मिठाई को सन 1948 ई0 से बनाना शुरू किया। वक़्त के साथ जैसे हर चीज़ में तबदीली आती है बस उसी तरह इसमें भी थोड़े बहुत परिवर्तन आते रहे। 

अब हम बात करते हैं बाल मिठाई की, यह मिठाई अधिकतर उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िला तथा कुमाऊं ज़िलों में प्रसिद्ध है और यहीं के ख़ास कारीगर हैं जो इसे बना सकते है। यहाँ से हटकर अगर हम किसी दूसरे क्षेत्र में देखें तो लोग इसे बनाना नहीं जानते।

इसको बनाने में सिर्फ़ मावा, शक्कर और इलाइची का उपयोग किया जाता है और इसी का स्वाद इसको सही तापमान पर भूनने के पश्चात् उभरता है। बाल मिठाई की भुनाई में कम से कम 2 घंटे लगते हैं, इसमें लगभग 150 ग्राम असली घी पड़ता है क्योंकि मावा इतनी शुद्ध क्वालिटी का इस्तेमाल होता है कि उसमें ख़ुद ही बहुत घी पाया जाता है, उसको जितना पकाया जाता है वह उतना ही घी छोड़ता जाता है।

मावा कई प्रकार में पाया जाता है जैसे दानेदार, बत्ती, चिकना, इत्यादि लेकिन हम इसमें खेतों वाले मावे का इस्तेमाल करते हैं और मावे की न्यूनतम क्वालिटी बनाए रखने के लिए हमने अपनी फैक्ट्री में ही एक लैब बना रखी है जिसकी मदद से अपनी मिठाईयों की क्वालिटी मेन्टेन रखते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का कोई कृत्रिम खाद्य पदार्थ इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसमें जो भी स्वाद होता है वह नेचुरल होता है।

बनाने के तरीक़े में भी वक़्त के साथ बदलाव आया यानि पहले यह कोयले या लकड़ियों की भट्टी पर बनाई जाती थी फिर गैस की भट्टी आई और अब बॉयलर्स आ गए हैं, लेकिन ख़ास कर इसे आज भी गैस पर ही बनाया जाता है, जिस से इसकी धीमी आंच पर सही तापमान पर भुनाई की जाती है और यह धीरे-धीरे गहरा भूरे रंग का हो जाता है जिससे यह चॉकलेट की तरह बन जाता है। अगर इसे तेज़ आंच पर पकाया जाये तो यह जल जाएगा और इसका स्वाद भी ख़राब हो जाएगा। एक और ख़ास बात उन्होंने यह भी बताई कि, इसकी भुनाई आज भी हाथों से की जाती है इसमें किसी तरह के ऑटोमेशन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है ताकि उसका टेक्सचर बना रहे और स्वाद में कोई बदलाव न आए।

मौसम के प्रभाव के हिसाब से देखें तो कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता क्यों कि पहले ही इसको इतना पकाया जाता है कि इसमें किसी तरह की कोई नमी बाक़ी नहीं रहती जिसके कारण इसमें फंगस लगने का कोई ख़तरा नहीं होता, चाहे वह गर्मी का मौसम हो या बारिश का। सिर्फ़ सर्दी के मौसम में इसको थोड़ा सॉफ़्ट बनाना पड़ता है अथवा यह खाने में थोड़ी कड़क हो जाती है और गर्मी में इसको थोड़ा कड़क बनाना पड़ता है जिससे कि यह सॉफ़्ट ना रह जाये। 

इसकी शेल्फ़-लाइफ 10 दिन की होती है और हम हर बॉक्स पर लिख देते हैं कि इसे न तो हवा में खुला छोड़ा जाये और न ही इसे फ्रिज में स्टोर किया जाये, इस से इसके टेक्सचर और स्वाद में फ़र्क़ आ जाता है। इसे नार्मल रूम टेम्परेचर पर ढांक कर ही रखा जाना चाहिए है।