इस बार सफ़रनामे में पहले धन्यवाद फिर आगे की लिखाई। सभी पाठकों का बहुत-बहुत शुक्रिया के वो सब मेरे लिखे हुए हर सफ़रनामे को रूचि के साथ पड़ते हैं और मुझे अपने विचार अलग-अलग माध्यमों से पहुंचा देते हैं। एक लेखक की कमाई ही उसके लिखे गए लेखों की प्रशंसा होती है। यूँ तो मैं कोई प्रोफ़ेशनल राईटर नहीं हूँ और न बनना चाहता हूँ लेकिन अपने ख़्यालों को और विभिन्न यात्राओं के अनुभवों का संग्रह आप तक पहुँचता हूँ, उसी को सफ़रनामा कहता हूँ सीधी-साधी बोलती भाषा में, और शायद यही आपको पसंद भी है।
सफ़रनामे की 24वीं श्रंखला जब लिखने बैठा तो यह समझ पाना भी मुश्किल हो रहा है की क्या-क्या लिखूँ और क्या-क्या छोड़ दूँ। मगर यह तो सही नहीं होगा कि कुछ छोड़ दूँ, चलो संक्षेप में बताता चलूँ कि कहाँ-कहाँ गया और क्या-क्या खाया।
हाल ही में कोलकाता जाना ज़्यादा हो गया है, वजह आप सब जानते हैं, अगला WMNC कोलकाता में है और तैयारी काफ़ी बड़े पैमाने पर करनी है और वहाँ की काफ़ी ज़िम्मेदारियाँ धीमान दा, K-C-Das ने ले रखी हैं मगर बहुत से ऐसे काम हैं जहाँ टेक्नीकी दिक़्क़तें आ जाती हैं, अगर शुरू से ध्यान नही दिया जाये तो। धीमान दा को फ़ोन कर दिया था कि मैं सुबह को कोलकाता पहुंच जाऊंगा। WMNC चंडीगढ़ से ही धीमान दा का निर्देश था कि जल्दी कोलकाता में मीटिंग रखनी है साथ ही मुखरोचक चनाचूर के मालिक प्रणब चंद्र जी जिनको हम सब प्रणब दा बुलाते हैं और उनके सुपुत्र प्रतीक का भी अनुरोध था के उनकी फ़ैक्ट्री भी विज़िट करूँ जब कोलकाता आऊँ और उन्होंने कोलकाता के व्यापारियों का एक वार्षिक मिलन भी रखा था अपने घर पर वो भी ज्वाइन करूँ। बस, यह सब बातों को मन में लिए मैं सुबह कोलकाता पहुंच गया और धीमान दा को फ़ोन किया मुखोरोचक चलने के लिए।
मुखरोचक ने अपनी यात्रा 1950 में टॉलीगंज ट्राम डिपो (कोलकाता) में स्वर्गीय श्री पंचानन चंद्रा द्वारा अपने पुत्र स्वर्गीय श्री निर्मलेंदु चंद्रा के साथ शुरू की थी। पंचानन चंद्र एक आभूषण व्यापारी थे, जिन्हें अपने व्यापार भागीदारों द्वारा धोखा दिए जाने के कारण अपने व्यवसाय में भारी नुक़्सान उठाना पड़ा। सौभाग्य से उन्होंने एक ज्योतिषी से मुलाक़ात की जिसने उन्हें अपने बेटे के साथ चनाचूर (नमकीन) व्यवसाय शुरू करने का सुझाव दिया।
उस समय चनाचूर की शायद ही कोई अवधारणा थी। चनाचूर क्रांति की शुरुआत सबसे पहले मुखरोचक ने की थी। इसकी यात्रा की शुरुआत के बाद से मुखरोचक हमेशा सभी विशेष रूप से बंगाली फ़िल्म हस्तियों के पसंदीदा रहे हैं क्योंकि टॉलीगंज में दुकान टॉलीवुड के बीच में स्थित है।
धीमान दा ने मुझे एक कॉमन पॉइंट पर आने को कहा जो नज़दीक ही था। मैंने मौका पाकर अपने दुसरे मित्र रजनीकांत बलसारिया जी को कॉल किया के लगे हाथों समय का सदुपयोग करूँ और उनके शोरूम के भी दर्शन कर लूँ।
रजनीकांत जी ने खुली बाँहों से स्वागत किया और यह देख कर अच्छा लगा और खुशी हुई के इतनी सुबह भी न सिर्फ़ वो बल्कि उनके सुपुत्र पुनीत भी साथ थे। शोरूम में काफ़ी हलचल थी और पहली मंज़िल पर भी घमा-घमी का माहौल था। लग रहा था के काम अच्छा चल रहा है और हो भी क्यों न, एक तो कोलकाता और दूसरा कोई मेहनती इंसान मेहनत करे तो परिणाम सुखद ही होता है। कई मिठाईयों और नाश्तों से स्वागत हुआ मगर जो सबसे अच्छी और अनोखी बात लगी वो थी गिफ़्टिंग आर्टिकल्स की भरमार।
हम तो ये सोचते थे के बड़े-लेवल का गिफ़्टिंग सिर्फ़ नॉर्थ और वो भी चंडीगढ़-पंजाब में ही होता है। थोड़ा बहुत देहली तक इसका प्रभाव होगा मगर यहाँ आकर ज्ञात हुआ के कोलकाता में भी अच्छा काम है और ख़ास तौर पर गोकुल स्वीट्स, रजनीकांत जी के यहाँ तो काफ़ी फ़ोकस्ड तरीके़ से इस पर काम हो रहा है। मिठाईयों और मॉडर्न स्नैकिंग में भी गोकुल स्वीट्स का अच्छा बोल बाला है और रजनी जी खुले और अच्छे मन से काम कर रहे हैं।
कुछ देर ही गुज़री थी धीमान दा का कॉल आ गया कि वो अमुख जगह पर पहुंचने वाले हैं, बस रजनी भाई से विदा ली और निकल गए हम मुखोरोचक की फ़ैक्टरी और प्रणब दा के घर जो एक ही कंपाउंड में हैं। सिटी सेंटर से लगभग एक घंटे की दूरी पर हम मुखोरोचक जा पहुंचे जहाँ पर पूरे कोलकाता के व्यापारियों का ताँता लगा था और सभी रविवार का अवकाश होने के कारण बहुत ही रिलैक्स्ड मूड में थे।
प्रणब दा, प्रतीक और संगीता ने सबसे मिलवाया और ये ज्ञात हुआ के धीमान दा का रुतबा किसी सेलिब्रिटी जैसा है इन कोलकाता वासियों के दरमियान। धीमान दा ने बताया था के वो नेशनल लेवल तक तबला बजा चुके हैं और इस कला में निपुण हैं। कभी न कभी तो मौक़ा मिल ही जायेगा उनको सुनने का! आये हुए मेहमानों से धीमान दा को मिलने का काफ़ी उत्साह था और मैं उत्साहित था प्रणब दा की फै़क्ट्री-कम-घर-कम-फ़ार्महाउस कम-गार्डन्स को देखने के लिए। यूँ तो कोलकाता में बड़े बड़े काली माता के भक्त होते हैं मगर इन जैसे कम ही होंगे। घर ही में आलीशान मंदिर है माता जी का और उससे जुड़ी हर व्यवस्था का। भव्य मंदिर के सामने म्यूज़िकल फ़ाउंटेन, पुजारियों से लेकर भक्तों तक के लिए आलीशान कमरे जिन में कम से कम 100 लोग आराम से रह सकें, ऐसी व्यवस्था उनके घर पर ही है।
अपना तालाब, सब्जियों के बागीचे और साथ में गौशाला में हर नस्ल की गायों का संग्रह। ये सब देख कर दिल बाग-बाग हो गया। लगभग पूरे ही दिन वहां गपशप में गुज़ारा, कई मिठाई व नमकीन निर्माता भी साथ आये हुए थे, जिनके साथ कई विषयों पर चर्चा होती रही। नीलांजन घोष, मिठाई के मालिक और मिष्टी उद्योग संगठन, के सेक्रेटरी, साथ में शुभोजित बांचाराम से, सम्राट दा, सतीश मोइरा, को मिला कर हम कुल 25 लोग तो सिर्फ़ मिठाई-नमकीन इंडस्ट्री से ही थे उस पूरी गैदरिंग में।
प्रतीक दा ने फ़ैक्ट्री विज़िट भी करवाई और अनोखी बात यह लगी के सनरू1950 से इनका व्यवसाय चल रहा है जिसको श्री निर्मलेंदु चंद्र जी ने शुरू किया था और अपने आप में सिर्फ़ एक ही ब्रैंड ऐसा होगा जो आज भी उनका फोटो अपने पैकेट पर लगता है और इसी वजह से उनकी ज़्यादातर सेल होती है। प्रतीक ने बताया के आज भी गाओं-खेड़े में लोग पढ़े बिना ही उनके फोटो देख कर प्रोडक्ट ख़रीदते हैं। सनरू1950 में जो कार्य हाथों से किया जाता था, आज प्रणब दा के निर्देशन में फ़ुल्ली-आटोमेटिक लाईन्स पर हो रहा है। आज मुखोरोचक, बंगाली चनाचूर का सबसे बड़ा उत्पादक और विक्रेता है। इनका प्रोडक्ट पूरे विश्व में निर्यात भी होता है।
शाम को सब के साथ प्रणब दा के आलीशान ड्रॉइंग रूम में बैठकर मीटिंग हुई और WMNC 2023 की रूप रेखा तैयार करली। समय निकलने का था मगर आपको तो मालूम है जब मैं निकलता हूँ तो पहुंचने पर भी कुछ न कुछ खाना होता रहता है यहाँ भी और निकलने पर भी। प्रणब दा के घर पर ही शुभोजित ने एलान कर दिया के डिनर साथ में होगा।
धीमान दा ने भी हामी भर ली और हम सब JW Marriott जा पहुंचे। जब दो बंगाली साथ हों और एक मुम्बईया – न्च् वाला हो तो खाना अच्छा मिलने की गारंटी लेना मुश्किल काम नहीं है। बस शानदार डिनर के बाद शुभोजी ने होटल पर ड्रॉप कर दिया और अगले दिन कोलकाता से हैदराबाद कुछ घंटे रुकने के बाद मैं मुंबई पहुंच गया।
क़ाफ़िला अभी थमा नहीं था। कुछ दिन बाद से ही सत्यम अरोड़ा, “कुंदन’स” के फ़ोन आने लगे। उनका सबसे भव्य शोरूम तैयार हो चूका था और उसका उद्घाटन होने जा रहा था। क्योंकि गजरौला-अमरोहा ज़िले में ही आता है और अमरोहा जाते समय हाईवे पर ही पड़ता है तो मैंने यह शोरूम 2 बार बनने वाली स्थिति में भी देखा था। मेरे पिताजी और माता जी मुंबई आये हुए थे उनको छोड़ कर कहीं निकलना मुश्किल होता है तो मैंने सत्यम को सरप्राईज़ गेस्ट भेज दिया उद्घाटन वाले दिन श्रीमती अफ़शीन नक़वी।
सभी लोग मिल कर खुश हुए मगर मेरा जाना डिउ ही रहा। कुछ दिन बाद दोनों को अमरोहा छोड़ना था तो मैंने दीप्ता गुप्ता जी को कॉल किया के अगर आप भी साथ चलें तो कुंदन’स पर जाने का मज़ा अलग ही होगा। दीप्ता जी ने भी हाँ कर दी और सत्यम को भी हमने बता दिया। बस दिल्ली लैंड करते ही सीधे निकल पड़े गजरौला स्थित कुंदनस के भव्य शोरूम की ओर जहाँ सत्यम के साथ-साथ अतिरेक भी आये हुए थे।
दीप्ता जी ने जो इस इंडस्ट्री को दिया है वह बहुत कम लोग दे पाते हैं। यूँ तो दिग्गजों की कमी नहीं है मिठाई व्यापर में मगर कुछ ऐसे छिपे हुए पिल्लर्स ;चपससंतेद्ध होते हैं जो दिखते कम हैं और काम ज़्यादा करते हैं, उनमें से एक हैं दीप्ता जी। और पहले दिन से मेरा भी और मिठाई व् नमकीन टाईम्स का ये ही प्रयास रहा है के हम ऐसे छुपे रुस्तमों को सब के सामने लाएं।
मैं ये पूरी ज़िम्मेदारी से कह सकता हूँ के अगर आज भारत के टॉप 10 शोरूम्स को देखा जाए तो उस में पांच दीप्ता जी के निर्देशन में बने होंगे। वैसे तो सब जानते हैं दीप्ता जी को मगर जो नहीं जानते उनको बताता चलूँ के वो कोई आर्किटेक्ट या इंटीरियर डिज़ाईनर नहीं बल्कि हैंड-होल्डर की तरह कम करते हैं, बेस किचन से लेकर इंटीरियर और सर्विसिंग से लेकर बिलिंग तक सब कुछ दीप्ता जी अपनी सेट टीम से करवाते हैं और आपके पार्टनर की तरह प्रोजेक्ट्स को खड़ा करते हैं। अगर दीप्ता जी हाथ आजायें तो अपनी खुशनसीबी है और गारंटी है के आप कामियाबी को ज़रूर छुएंगे।
कुंदनस पर अच्छा स्वागत हुआ और दीप्ता जी के साथ सत्यम ने पूरे शोरूम का कोना-कोना घुमाया। ऐसे आलीशान शोरूम पर मैंने एक असवह बनाया था जो FSNM छमूे नामक यूट्यूब चेंनल पर उपलब्ध है। इस शोरूम का थीम जंगल सफ़ारी पर है। क्योंकि सत्यम काशीपुर उत्तराखंड से हैं जो जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का द्वार है। सत्यम ने उसी दिशा में जाने वाले यात्रियों को जंगल वाली फ़ीलिंग देने के लिए ये थीम बनवाई है जो कस्टमर्स को पसंद आ रही है। अगर आप यूट्यूब चैनल विज़िट करें तो ज़्यादा जानकारी वहाँ पर मिलेगी। जहाँ तक यहाँ के खानों और नाश्तों का सवाल है, मैं सभी मिठाई व् रेस्टॉरों के चाहने वालों से कहूंगा के एक बार जरूर जाये कुंदनस फिर आप बार बार जायेंगे। यहाँ की सर्विंग स्टाईल का अंदाज़ अनोखा है और सभी मिठाईयाँ एक से बढ़ कर एक हैं। मलाई रस्सगुल्ला और बाल मिठाई पैक करवाना न भूलें जो के हमेशा यादगार रहेंगे।
अमरोहा से वापस आते ही, WMNC यूथ फ़ोरम 3, गोवा की तारिख़ की घोषणा हो गई और हम सब उसकी तैयारी में लग गए। समस्त भारत से यूथ गोवा आने वाला था तो पहले से ही पता था के ये यूथ फ़ोरम अपने पुराने सभी रेकॉर्ड्स तोड़ेगा। और हुआ भी यही न सिर्फ़ पार्टियाँ ज़ोरदार हुई बल्कि FSNM की FCL क्रिकेट लीग भी ज़ोरदार रही। पूरे भारत से आये हुए मिठाई-नमकीन निर्माताओं ने गोवा में धूम मचा दी। जिस क्लब में जाओ या जिस रेस्टॉरों में जाओ सब पहले से बुक और फुल और वहां मिठाई वाले ही नज़र आ रहे थे। पिछले साल की तरह 4 टीमों में बांटा गया था सभी खेलने वालों को। भुजिया क्रैकर्स, डोढ़ा डॉन्स, लड्डू लवर्स और समोसा स्मैशर्स।
यूँ तो इवेंट दो दिन का ही था मगर कई मंडलियों ने क़िला 2-3 दिन पहले की संभाल लिया था और पार्टियों का दौर चल रहा था। मैं भी एक दिन पहले ही पहुंच गया था और मुझ से भी पहले दीपक, पुनीत, अतिरेक और विपिन सब पहुंच चुके थे। कई ग्रुप जैसे आगरा-अलीगढ़ की मण्डली, दिल्ली-पंजाब वालों की मण्डली, साउथ के स्टार, मुंबई-महाराष्ट्र के कलाकार और पूरे भारत के जगह-जगह से आये हुए यूथ अपने समय पर आते रहे और चेक-इन करते रहे और होटल भरता रहा। मगर ज़लज़ला तो गुजरात की टीम ने पहले से ही मचा रखा था जिसमें 3-4 लोग तो ऐसे थे जिनको आने से 2 दिन पहले भी नहीं पता था के वो आएँगे। दीपक ने ख़ाली टिकट्स भेजे और कहा एयरपोर्ट पर मिलो। भाई का दबदबा इतना है के सब गोवा आगये। मगर इस बार के मुख्य अतिथि रहे सबके चहिते कमलेश भाई कंदोई अहमदाबाद से, गिरीश भारती वृन्दावन से और मुकेश भाई पवन कचैरी जामनगर से।
FCL के एक दिन पहले की रात सेलिब्रेशन की थी और सबने सी-पेबल्स नामक क्लब में डिनर और पार्टी की जहाँ जमकर नज़ारों और संगीत का मिलाजुला उत्साह रहा। दिन भी काफ़ी व्यस्त रहा, क्योंकि कोई ऑफ़िशल प्रोग्राम नहीं था तो सबने अपने अपने ग्रुप्स में निकल कर गोवा के बीचों का आनंद लिया। हमारी टोली भी कलंगुट बीच पर गई और काफ़ी वोटर स्पोर्ट्स में हिस्सा लिया और बहुत आनंदित हुए। ये पता चला के जब मिठाई वालों के हाथ में करछी होती है तो वो दुनिया को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ते पर जब ये करछी हाथ से अलग हो जाये और वो गोवा जैसी जगह पहुंच जाये तो वो खुद को खुश करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते।
यह नज़ारा था गोवा के बीचों पर भी और ख़ास तौर पर कलंगुट बीच पर। हमारी नय्या में सवार महानुभावों ने तो अपनी कोड वाली भाषा ही बना ली थी जिसको इस्तेमाल करने का आजीवन वचन दिलवाया ललित भाई-जूना मुलीवाला स्वीट्स, गुजरात, वचन लेने वालों के नाम पुनीत दुग्गल, दीपक किशनचंद, अतिरेक मित्तल, विपिन अग्गरवाल, तरंग देसाई,-कष्णा स्वीट्स, दाहोद, वीरेन देसाई-बैंगलोर, सुमित बाफ़ना, उज्जैन, वरुण अरोरा, श्रीमिश्रीलाल जोधपुर, नरेश सोलंकी रेखा मिठाई, चेन्नई और परम पूजनीय, श्री हेमंत गेहलोत, का कीनाडा से। वैसे तो आप ये कोड वाली भाषा को जब ही समझेंगे जब आप ये ग्रुप ज्वाइन करेंगे, मगर अगर इन में से कोई आपको श्हरिओमश्-श्हरिओमश् करता हुआ मिले तो समझलेना बहुत अच्छा व्यक्ति है (समझे)। इस श्हरिओमश् जाप के जनक हैं ललित भाई, बाकी़ कहानी मिलने पर बताऊंगा।
उधर अमित गोयल, गोपालदास पेठेवाले, आगरा की अध्यक्षता में दूसरा ग्रुप क़हर ढाए हुए था, प्राइवेट यॉट्स और फुल ऑन पार्टी, जय भाई, श्री दाऊजी, मुदित गोयल कुंजीलाल और साथ में तुषार गुप्ता, बृजरासयन, आगरा। इस बार कई नए और काफ़ी यंग जनरेशन के मेंबर्स ने भी ज्वाइन किया जैसे श्याम वीरानी, बालाजी नमकीन, नीरज अग्रवाल, हल्दीराम और दर्शित हड़वानी, गोकुल नमकीन राजकोट। निर्मल शर्मा, शिवशक्ति स्वीट्स, सूरत, जो सभी के लिए नाश्ते का इंतेज़ाम सूरत से ही करके लाये थे जिस में थेपले और चटनी से ले कर मिठाई सब कुछ था।
अगले दिन, दिन के पहले हिस्से में एक डिस्कशन पैनल रखा था जहाँ पर कई लोगों ने अपने पाने-पहलु रखे व्यापर को आगे बढ़ाने के लिए और लम्बी चर्चा रही। अभिषेक बजाज, सिंधी स्वीट्स, दुसरे दिन आये लेकिन एक ही दिन में कई दिनों का मज़ा लेकर गए। लंच के तुरंत बाद होटल के आगे बसें लगा दी गयीं और सभी खिलाड़ी अपनी-अपनी टीम की जर्सियां पहन कर मैदान की ओर निकल पड़े।
पहला मैच लड्डू लवर्स और भुजिआ क्रैकर्स का था। रोमांचक मुक़ाबले में आख़री गेंद पर लड्डुओं ने ये मैच भुजिया को हरा दिया। भुजिया की मज़बूत टीम लड्डु से हर गई ये सभी के लिए अचरज की बात थी मगर माहौल और भी गरम हो गया जब, भुजिया ने पिछले बार के FCL विजेता समोसा स्मैशर्स को केवल 9 गंदे खेल कर हरा दिया। जो स्कोर समोसों ने बनाया था उसको केवल 9 गेंदों में ख़त्म कर दिया। ये देख सभी टीमों में खलबली थी के क्या ये कप भुजिया लेजायेंगे ? उधर एक और रोमांचक मुक़ाबले में समोसों ने डोढ़ा डॉन्स को पराजित कर दिया और सभी समीकरण बिगड़ दिया मगर अगले ही मैच में डोढ़ा ने भुजिआ को आख़री बॉल पर चैका लगा कर मैच अपने कब्ज़े में कर लिया और फ़ाईनल्स में एंट्री ली। उधर डोढ़ा दूसरा मैच लड्डुओं से जीत फ़ाईनल में आ गया और भुजिआ जो हर मैच में आख़री गेंदों तक लड़े लेकिन फ़ाईनल्स तक ना पहुंच पाए। इस तरह से फ़ाईनल मुक़ाबला डोढ़ा और समोसा के बीच में एक बार फिर से हुआ।
कप्तान वीरेन देसाई ने अपनी पूरी तैयारी कर रखी थी, शुरू में भुजिआ से शर्मनाक हार शायद एक दिखावा थी मगर डोढ़ा डॉन्स भी कम नहीं थे। टॉस जितने के बाद भी कप्तान नविन गुप्ता ने गेंदबाज़ी का फैसला किया। उधर पहले से खेलते हुए सोमोसों ने एक विशाल स्कोर खड़ा कर डाला 5 ओवेर्स में 44 रन, डोढ़ा ने अपनी स्ट्रेटेजी के हिसाब से चलते हुए आख़री गेंद पर छक्का मार कर ये FCL का टूर्नामेंट अपने नाम किया और पिछले साल समोसों के हाथों मिली हार का बदला भी ले लिया। टीम के ओनर कैप ग्रुप, के पुनीत दुग्गल ने जब ट्रॉफ़ी उठाई तो खिलाड़ियों ने उनको गोद में उठा लिया।
एक रोमांचक दिन का समापन हुआ, और भोले-भाले, थके-मांदे खिलाड़ी अपने अपने नाईट क्लब्स में चले गए और पूरी रात जश्न का माहौल रहा। जश्न का ज़्यादा ब्यौरा मैं नहीं दे सकता क्योंकि मैंने रात की फ़्लाईट वापस मुंबई की ले ली थीं और देर रात घर पहुंच गया।