परिश्रम और स्वाद की जिनकी श्रृंखला है अखंड वो है चितले’स श्रीखंड। 

इस महीने के सत्र में हिस्ट्री ऑफ प्रोडक्ट में  हम उस व्यंजन और उसके उस उत्पादन निर्माता का उल्लेख करने वाले है जिसकी उत्पति का अपना ही एक इतिहास है और उस इतिहास के गौरव का मान रखते हुए जिन्होंने अपने प्रमाणिकता, अद्भुत स्वाद और परंपरा का मूल रखते हुए अपनी पहचान बनाई है। महाराष्ट्र के पुणे शहर की अपनी एक पहचान है। महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी, विद्येचे माहेरघर (शैक्षणिक क्षेत्र का पीहर) ऐसी विशेष उपाधियाँ या फिर ष्पुणे तिथे काय उणेष् (पुणे है तो किस चीज़ की कमी) इस तरह की ठिठोली हो इन सबके साथ ही पुणे की एक और भी पहचान है वो है चितले बंधू  मिठाईवाले   । चितले बाकरवड़ी के साथ साथ श्रीखंड में चितले के सिवा किसी अन्य ब्रांड का नाम ध्यान में नहीं आता। श्री भास्कर गणेश चितले जी ने 1939 में सांगली जिल़े के भीलवाड़ी गांव में दूध का कारोबार शुरू किया था। तबसे चितले की यह दुग्धगंगा अविरत रूप से प्रवाहित है। आज चितले डेरी श्री गिरीश चितले के निर्देशन में नई नई  तकनीक आज़मा कर नवीनतम उत्पाद निर्माण कर रहे है। 

चितले श्रीखंड की ख़ास बात यह है की पारंपरिक मूल को वैसे ही रख, स्वछता और गुणवत्ता से भरपूर उनका यह उत्पाद मुँह में रखते ही एक आत्मिक आनंद की अनुभूति दे जाता है। 

ऐसे तो श्रीखंड भारत की सबसे पुरानी मिठाईयों में से एक है। पौराणिक  दंतकथा का आधार ले तो महाभारत पर्व में जब पांडव अज्ञातवास में थे तब भीम ने बल्लावाचार्य के रूप में इस व्यंजन का निर्माण किया और श्रीकृष्ण के नाम पे इसका नाम शिकरणी रखा जो आगे चलके श्रीखंड हुआ। श्रीखंड शब्द संस्कृत में श्शिकरिणीश् यानि दही और अन्य स्वादवर्धक पदार्थ जैसे केसर, फल, मेवे मिलाये गये हों, से आया है। इसकी उत्पत्ति शीर (दूध) और खांड (चीनी) से भी मानी जाती है।

11वीं शताब्दी के कन्नड़ कवि चवुंदराय द्वितीय ने कृषि पर अपनी पुस्तक लोकोपकारा में श्रीखंड उर्फ़ शिखरिणी के रूप में के लिए एक नुस्ख़ा दिया है। 1508 में लिखी गयी सुपाशास्त्र में भी श्रीखंड का उल्लेख है। श्रीखंड के बारे में एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, श्रीखंड का आविष्कार चरवाहों ने किया था। रात भर यात्रा करते समय अपने दही को अधिक आसानी से ले जाने के लिए, उन्होंने इसका मट्ठा छान लिया। चूँकि छाना हुआ दही सुबह तक खट्टा हो गया था, उन्होंने इसे और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें चीनी और मेवे मिलाए, और श्रीखंड का जन्म हुआ। खाद्य इतिहासकार के. टी. आचार्य के अनुसार, श्रीखंड सबसे पहले 500 ईसा पूर्व के आसपास बनाया गया था। उनकी किताब इंडियन फूडरू ए हिस्टोरिकल कम्पैनियन में इसके बारे में लिखा हुआ है। पहली बार लगभग 500 ईसा पूर्व में श्रीखंड के बारे लिखित प्रमाण लिखा गया था।

श्रीखंड को बनाने के लिए दही को मलमल कपडे़ में बाँध कर एक दबाव देकर उसमे से पानी निकाल देते है। तैयार दही को चक्का कहते है फिर तैयार चक्के को उसमे चीनी मिलाके मसल के आवश्यक्ता नुसार मावा, स्वादवर्धक बनके के श्रीखंड बनाया जाता है। 

श्रीखंड एक आरोग्यवर्धक व्यंजन है जिसकी उपयुक्तता के बारे में बहुत कम लोग जानते है। श्रीखंड एक उत्तम प्रोबायोटिक्स है जो खाने से उपयुक्त पोषण  शोषण करने में मदत करता है। विटामिन बी समूह की मात्रा इसमें भरपूर है। डेरी उत्पाद में आने की वजह से प्रोटीनयुक्त है। उत्तम पाचक भी है। केवल श्रीखंड की कटोरी आपके साधे खाने को राजसी ठाट दे देता है। 
श्रीखंड को अनेक स्वाद में ढाल सकते है। केसर, इलाईची, बादाम जैसे क्लासिक स्वाद हो या फ्रूट फ़्लेवर में मैंगो श्रीखंड, अनानस श्रीखंड , स्ट्रॉबेरी श्रीखंड से लेकर टूटी फ्रूटी श्रीखंड, रोझ श्रीखंड और मनचाहे स्वाद में बना सकते है। श्रीखंड वैसे तो महाराष्ट्र और गुजरात इन दो राज्यों की अधिकारित मिठाई जानी जाती है। 

आज 2023 में चितले ब्रांड एक बरगद के पेड़ सदृश क्रमशः चितले डेयरी, चितले बंधु मिठाईवाले, चितले फूड्स और चितले एग्रो जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उभरा है। भास्कर चितले द्वारा स्थापित यह व्यवसाय अब उनके चैथी पीढ़ी के सुपूर्त है। पूर्व काल में भीलवाड़ी जैसे छोटे से गाँव में शुरू हुआ दूध का व्यवसाय समय के परिवर्तनों को अपनाते हुए एक बड़े उद्योग के रूप में विकसित हो गया है। इसलिए चितले डेयरी की यह यात्रा निश्चित रूप से हर महाराष्ट्रीय और हर उस नव उद्योजक जो व्यवसाय क्षेत्र में कुछ करने का जज़्बा रखते है उनके के लिए बहुत प्रेरक है।