जब हमने अहमदाबाद के ‘भोगीलाल मूलचंद कंदोई’ के मालिक श्री कमलेश कंदोई जी से उनकी ख़ास मिठाई मोहनथाल के सन्दर्भ में कुछ प्रश्न किये तो उनके दिए गए दिलचस्प जवाबों ने इस मिठाई के बारे में
महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
कमलेश जी ने बताया, ‘‘हमारा यह प्रोडक्ट सन 1845 ई0 से मार्केट में है। हमारे पूर्वजों ने जब इस दुकान की शुरुआत की उस वक़्त सारी चीज़ें शुद्ध देसी घी में बनाई जाती थीं। मोहनथाल, मैसूर पाक, मग़ज़ और खारी पूरी यह सब उत्पाद ज़्यादा थे। फिर धीरे-धीरे मार्केट का सेल्स बदलने लगा-खोये की मिठाई बनने लगी, दूध की मिठाई, छेने की मिठाई, काजू की मिठाई, इत्यादि। शुद्ध देसी घी से बने, हमारे जितने भी प्रोडक्ट्स हैं सब हमारी मोनोपोली है। यह मिठाईयाँ जल्दी ख़राब नहीं होतीं और इनकी शेल्फ-लाईफ़ भी ज़्यादा होती है।
कमलेश जी का कहना है कि विरासत में मिली मिठाई का स्वाद आज तक बिल्कुल नहीं बदला और आज भी इसका वही स्वाद है जो पहले इनके पूर्वज बनाया करते थे। लोग बदल गए, खाने वाले बदल गए, बनाने वाले भी बदल गए लेकिन इसका स्वाद आज भी नही बदला क्योंकि इसमें इनके पूर्वजों का आशीर्वाद शामिल है।
आगे बात करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले वह इसे लकड़ी कि भट्टी पर बनाते थे, फिर डीज़ल कि भट्टी आ गई और अब गैस की, लेकिन स्वाद में कोई बदलाव नहीं आया। कंदोई स्वीट्स के सारे प्रोडक्ट्स इन-हाउस बनते हैं। उन्होंने साझा किया कि चने की दाल भी इन्हीं के यहां दली जाती है।
आटे का कितना मोटा दाना चाहिए, अपनी आवश्यक्ता के अनुसार उसको बना लेते हैं। इंग्रेडिएंट्स भी इन-हाउस ही बनाते हैं, कौन सी चीज़ कितनी मात्रा (proportion) में इस्तेमाल करना है, वह सब पूर्व की भांति निश्चित है। चाहे वह केसर का इस्तेमाल हो या इलाइची का टच, सब कुछ अटल है कभी भी किसी भी चीज़ की मात्रा में कोई तबदीली नहीं होती।
इंग्रेडिएंट्स में कोई फेर बदल नहीं होता। बनावट में फ़र्क़ हो सकता है जैसे कोई ज़्यादा सेक देता है कोई कम सेकता है, और इस तरह भुनाई में दाना टूट जाता है लेकिन कंदोई स्वीट्स में हर कार्य का वक़्त तय है। भोगीलाल में काम करने वाले 35 से 40 साल पुराने कारीगर हैं और वह भली भांति जानते हैं कि इसको कितने तापमान में कितनी देर सेकना है, कितने देर में इसे बर्नर पर से हटाना है, उसका दाना टूटना नहीं चाहिए, इत्यादि। कई नए कारीगर इनके पास आते रहते हैं लेकिन उन्हें मोहनथाल बनाने नहीं देते हैं क्योंकि उन्हें मोहनथाल बनाने का अनुभव नहीं है। जब नए कारीगरों को पुराने कारीगर के पास काम करते हुए अनुभव हो जाता है और वह मोहनथाल की विधि समझ जाते हैं तभी उन्हें इसे बनाने की अनुमति दी जाती है। मोहनथाल बनाने कि ख़ूबसूरती यही है कि उसका दाना टूटना नहीं चाहिए और वह कड़क भी नहीं रहना चाहिए ताकि खाने में तकलीफ़ न हो, यही मोहनथाल का एकाधिकार (monopoly) है।
कमलेश जी ने बताया, “अगर मौसम के हिसाब से देखा जाये तो हमारा यह प्रोडक्ट ख़राब होने वाला नहीं है क्योंकि इसे शुद्ध देसी घी में बनाया जाता है जिसमें केसर, इलाइची, दूध, बेसन, जैसी सामग्री का उपयोग किया जाता है। ऐसा नहीं है कि यह गर्मियों में बिगड़ जाये बल्कि गर्मी में यह थोड़ा नरम और मुलायम रहता है घी की वजह से बल्कि यह और भी स्वादिष्ट हो जाता है क्योंकि इसमें घी का उपयोग अत्यधिक मात्रा में किया जाता है। गर्मी में इसे थोड़ा कड़क ही बनाना पड़ता है। सर्द मौसम में घी जम जाता है तो इसके बनावट (texture) में फ़र्क़ आ जाता है। हम मोहनथाल को सर्दियों में थोड़ा नरम ही बनाते हैं क्योंकि बाद में यह सख़्त हो जाता है। मौसम के हिसाब से इन सब चीज़ों का ख़ास ख़्याल रखा जाता है लेकिन स्वाद इसका एक ही होगा चाहे आप इसे जिस मौसम में खाएं‘‘। चाहे मौसम बदले या टेक्सचर, लेकिन स्वाद न बदले क्योंकि कमलेश जी के यहाँ अहमदाबाद से बाहर जाने वाले ऑर्डर्स काफ़ी तादाद में रहते हैं और सभी कस्टमर्स इनसे सदा संतुष्ट रहते हैं।
हम अपने कारीगरों को मोहनथाल बनाने की ख़ास ट्रेनिंग देते हैं हमारे यहाँ काम करने वाला हर कारीगर हमारी फै़मिली का सदस्य होता है।