कल भी, आज भी, और आगे भी… ठंडी मिठास के स्वाद से सजे भारत के विंटेज/प्राचीन आईस्क्रीम पार्लर
आईस्क्रीम टाईम्स के इस मार्च एडिशन में जहां हम भारत के टॉप 25 आईस्क्रीम ब्रैंड को प्रकाशित कर रहे हैं, तो हमारी टीम ने सोचा की क्यों न हमारे पाठकों को इतिहास के पन्नों को पलटते हुए एक शब्दमयी विंटेज टूर पर ले जाएँ जिसके ज़रिये उन्हें भारत के सबसे पुराने यानि विंटेज आईस्क्रीम शॉप या पार्लर की जानकारी हो और साथ ही हमने इनमें से कुछ आईस्क्रीम पार्लर के ओनर्स से भी उनकी भावनायें जानने की कोशिश की जो हम आपके साथ यहां पर साँझा करेंगे।
भारत, एक शानदार संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत का देश, जहां कई ऐसी पुरानी आईस्क्रीम की दुकानें हैं जो इस देश के ऐतिहासिक पारंपरिक स्वाद को आपके सामने प्रस्तुत करती हैं। ये दुकानें विभिन्न शहरों में स्थित हैं और अपने दशकों पुराने स्वाद और अनूठे रंगों के साथ अपनी विशेष पहचान बना रखी हैं। अब भारत में आईस्क्रीम का उगम की बात करें तो आईस्क्रीम का सफर कुछ अद्वितीय किस्सों से भरा हुआ है। फ्रांस के शासक नीरो को फलों से बनी आईस्क्रीम का शौक था, और भारत में यह पहुंची मुग़ल बादशाहों के साथ। 1851 में इंसुलेटेड आइस हाउस के आविष्कार से इसे बड़े पैमाने पर बनाने का तरीका मिला, जिससे यह आम आदमी से लेकर हर किसी की पहुंच में आई।
ताज आईस्क्रीम, मुंबई (1887)
इसका संदर्भ लेते हुए पहला आईस्क्रीम शॉप जो हमें याद आया वो है भिंडी बाज़ार में स्तिथ ताज आईस्क्रीम की दुकान जो 1800 के दशक से ग्राहकों को सेवा प्रदान कर रही है। अपने पुराने ज़माने के, हाथ से बनाए गए (hand- churned) स्वादों के लिए मशहूर है। 1887 में, गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी शहर के निवासी वलीजी जलालजी ने एक नाव में कई समुद्री मील की यात्रा करके बॉम्बे (अब मुंबई) के तटों तक पहुंचकर एक मीठा व्यंजन बनाने का उद्यम शुरू किया। उन्होंने अनानास, अंगूर और चीकू को दूध, खजूर, और मिट्टी के बर्तनों में मिलाकर ठंडा करके यह व्यंजन बनाया। जब हमने ताज आईस्क्रीम के अभी के ओनर आमिर आईस्क्रीमवाला जो इस व्यवसाय की छट्टी पीढ़ी है तब उन्होंने बताया की बिना एडिटिव्स के असली सामग्री से बना, ताज आईस्क्रीम का प्रत्येक स्कूप ताजे फलों का स्वाद देता है जिसके दीवाने मधुबाला से लेकर अब्बास – मस्तान जैसे दिग्गज रह चुके हैं।
वाडीलाल इंडस्ट्रीज (1907)
आज के प्रतिष्ठित आईस्क्रीम ब्रैंड में वाडीलाल आईस्क्रीम एक लीजेंड के रूप में प्रस्थापित है। गुजरात के Vadilal Brand ने हाथ से चलने वाली देसी तकनीक का इस्तेमाल करके आईस्क्रीम बनाने और बेचने की शुरुआत की थी। आज इनके पास अपने ग्राहकों के लिए आईस्क्रीम के 200 से ज्यादा फ्लेवर्स मौजूद हैं। 1907 में वाडीलाल की शुरुआत, अहमदाबाद के वाडीलाल गांधी ने की थी। उन दिनों वह सोडा बेचने के साथ-साथ पारंपरिक ‘कोठी तकनीक’ का इस्तेमाल करके आईस्क्रीम बनाया करते थे। शुरुआत में उन्होंने बर्फ, नमक, और दूध को मिलाकर, हाथ से चलने वाली मशीन का उपयोग करके आईस्क्रीम बनाई जाती थी। उस समय में वाडीलाल गांधी थर्मोकोल के डिब्बों में आईस्क्रीम को पैक करके होम डिलीवरी भी किया करते थे। आज वाडीलाल के कई आउटलेट हैं और साथ ही विंटेज आईस्क्रीम की लिस्ट में उनका नाम भी आता है।
अप्सरा आईस्क्रीम, मुंबई (1971)
अप्सरा आईस्क्रीम के मैनेजिंग पार्टनर केयूर शाह ने बताया की 1971 में दक्षिण मुंबई के वालकेश्वर से अप्सरा आईस्क्रीम की शुरुआत हुई और वह अब भी ब्रैंड का प्रमुख स्टोर वहीं है। 2014 में दूसरी पीढ़ी ने इस व्यवसाय में प्रवेश किया और मुंबई के प्रमुख स्थानों में स्टोर्स और फिर फ्रेंचाइज़ मॉडल की विस्तार किया। 2015 में नवी मुंबई के नेरुल में पहला फ्रेंचाइसी आउटलेट खोला और अब तक 125+ आउटलेट्स हो गए। बढ़ती मांग के साथ, ठाणे में 10,000 वर्ग फुट की फैक्ट्री स्थापित की गई, जहां से आईस्क्रीम का निर्माण और वितरण होता है। अप्सरा आईस्क्रीम ने अगस्त 2021 में 50वीं वर्षगांठ मनाते हुए आज 50+ स्वादों और 125+ आउटलेट्स के साथ एक लंबा सफर तय कर चुकी है।
के. रुस्तम, मुंबई (1953)
1953 में, के. रुस्तम ने पहले एक डिपार्टमेंटल स्टोर में कपड़ों और दवाइयों की पेशकश करने के बाद, पपीता और अखरोट क्रंच जैसे स्वादों के साथ फ्रोजन डेसर्ट का कारोबार शुरू किया। उन्होंने बड़े, पुराने जमाने के कंटेनरों का उपयोग स्वादों को संग्रहित करने के लिए किया और उन्होंने कीमतों को उचित रखा। उस समय, आईस्क्रीम चीनी मिट्टी की प्लेटों में परोसी जाती थी, जो चोरी हो जाती थीं या काम करना मुश्किल होता था। बाद में, मालिकों ने वेफर्स के साथ नवाचार किया और अपनी रचनाओं को यात्रा के लिए अधिक अनुकूल बनाया। आज भी, कीमतों में मामूली बढ़ोतरी के अलावा कुछ नहीं बदला है और उनकी टॉफ़ी क्रंच, मैंगो डिलाइट, नारियल क्रंच और नेस्कैफे यह फ्लेवर आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। हाल ही में, “Most Iconic Ice Creams Of The World’s TasteAtlas List” में उनका नाम शामिल हो गया है।
ब्राह्मण सोडा फैक्ट्री (1934)
मैसूरु के ओल्ड बैक रोड के मुख्य बाजार में स्थित, ब्राह्मण सोडा फैक्ट्री, 1934 में स्थापित, ताजगी के साथ परंपरा का मिश्रण है। तीसरी पीढ़ी श्री मुरली और उनके भाई ब्राह्मण सोडा फैक्ट्री चलाते हैं। पुराने ज़माने की छाप छोड़ती इस जगह की स्पेशलिटी है इनका सरसापैरिला सोडा और जिंजर मिल्क और हैंडमेड वैनिला आईस्क्रीम जिसे खाते ही एक मलमली स्पर्श का एहसास होता है। तेज सेवा और पुरानी यादों के स्पर्श के साथ, ब्राह्मण सोडा फैक्ट्री मैसूर में आज भी लोगों को ठंडी मिठास को तृप्त कर रही है।
फेमस आईस्क्रीम, हैदराबाद (1951)
पुराने शहर के सबसे लोकप्रिय मिठाई स्थलों में से एक, फेमस आईस्क्रीम का नाम हैदराबाद के आखिरी निज़ाम के बेटे मोअज्जम जाह के नाम पर रखा गया है। मोअज्जमजही बाजार में स्थित – जो आज भी पुरानी दुकानों से भरा हुआ है यह आईस्क्रीम पार्लर अपने हाथ से बनाए गए, मौसमी व्यंजन के लिए जाना जाता है। पहली बार 1950 के दशक में स्थापित, स्थानीय लोग लंबे समय से यहां के एडिक्टिव-फ्री फेल्वर्स के बारे में उत्सुक रहे हैं, जिनमें से सबसे अधिक पसंदीदा आम, चीकू, कस्टर्ड सेब और चॉकलेट के स्वाद हैं। यहां का वातावरण भी काफी शांत है, प्लास्टिक की कुर्सियाँ और पुराने ज़माने की मेज़ों से पुराने ज़माने की वास्तुकला दिखाई देती है।
लेकव्यू मिल्क बार, (1930) & कॉर्नर हाउस (1982) बेंगलुरु
लेकव्यू मिल्क बार, (1930) बेंगलुरु का एक पॉपुलर मिल्क बार और आईस्क्रीम पार्लर है। यह आउटलेट जो 1900 के दशक में एंग्लिश नेटिव जेम्स मीडो चार्ल्स द्वारा शुरू किया गया था। स्वतंत्रता के बाद, व्रजलाल जमनादास ने नए स्वादों को जोड़कर इसे और भी बढ़ाया और अभी उनकी आगे की जनरेशन इस बिज़नेस संभाल रही है। बटरस्कॉच, स्ट्रॉबेरी, और चॉकलेट फज जैसे स्वादिष्ट फ्लेवर के लिए यह जगह मशहूर है। यहां का बनाना स्प्लिट एक मस्ट-ट्राई (must-try) है और उनके मिल्कशेक्स और सैंडविच भी लोग बहुत पसंद करते हैं।
बंगलुरु से विंटेज आईस्क्रीम शॉप्स में 1982 से कॉर्नर हाउस भी है यह आईस्क्रीम पार्लर बैंगलोर का एक प्रसिद्ध स्थान है, जो पहले एक फास्ट फ़ूड कैफे के रूप में शुरू हुआ था, औऱ फिर 1980 के दशक से कई बार रीमॉडल होकर पूरी तरह डिजर्ट प्रणीत आउटलेट के रूप में बदल गया ।
सुजाता मस्तानी, पुणे (1967)
1967 में सुजाता मस्तानी ने अपनी यात्रा शुरू की, और आज यह पुणे की शान और पहचान बनी हुई है। गर्मियों में इसकी कतारें कभी भी कम नहीं होतीं हैं, और सुजाता मस्तानी के स्वाद के लिए कतार में खड़ा होना बड़ा ही कष्ट दायक अनुभव है। सुजाता मस्तानी ने न केवल आईस्क्रीम का स्वाद बढ़ाया है, बल्कि इसने सबसे पौष्टिक प्रक्रिया का अनुसरण करके एक प्रमुख आहार में विकसित किया है। यह ब्रैंड प्राकृतिक, स्वादिष्ट और स्वस्थ सामग्री का उपयोग करता है जो हर सेवा को एक अद्वितीय अनुभव में बदलता है।
आइडियल आईस्क्रीम, मैंगलोर (1975)
आइडियल आईस्क्रीम भारतीय आईस्क्रीम उद्योग में एक अत्यधिक सम्मानित ब्रैंड है और बेजोड़ गुणवत्ता और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। तटीय कर्नाटक में अपनी जड़ों के साथ, आइडियल ने मैंगलोर को भारत की आईस्क्रीम राजधानी के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1975 में स्वर्गीय श्री एस. प्रभाकर कामथ ने आइडियल आईस्क्रीम की स्थापना की। इस ब्रैंड की शुरुआत एक मामूली आईस्क्रीम पार्लर से हुई जो पिछले 47 वर्षों में गुणवत्ता, स्वाद, नवीनता, और सामर्थ्य के सिद्धांतों पर सबसे पसंदीदा और मूल्यवान ब्रैंड्स में से एक बन गया है।
निरूला‘स, नई दिल्ली (1977)
निरूला’स की शुरुआत 1977 में चचेरे भाई दीपक और ललित निरूला ने शुरू किया था, निरूला एक फास्ट फूड और आईस्क्रीम चैन ब्रैंड है। दिल्लीवालों के लिये यह उनका अपना पहला आईस्क्रीम पार्लर था जहां लोग विदेशी व्यंजन के साथ 21 स्वादों की आईस्क्रीम का आनंद लेते थे। कुछ कारणवश कुछ सालों में निरुला के कई आउटलेट्स बंद हो गए, लेकिन 2000 में मलेशिया के Navis the PE fund ने इसे खरीदा और 2017 में BanyanTree Growth Capital ने इसे पुनः स्थापित किया। अब नए आईस्क्रीम स्वादों के साथ-साथ मोमोज और डिमसम्स जैसे नए आइटम शामिल हैं, और मेनू को डिलीवरी फ्रेंडली बनाया गया है। उत्पादों में प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है। निरुला के मालिक संजीव सिंघल के मार्गदर्शन पर निरुला को नवजीवन देने का काम प्रगतिपथ पर है। पर आज भी दिल्लीवासियों के दिलों में निरूला’स आईस्क्रीम के प्रति नॉस्टल्जिक यादें और प्यार हमेशा से जीवित है।
जलमहल आईस्क्रीम पार्लर, जयपुर (1982)
जयपुर के एक प्रसिद्ध और पुराने आईस्क्रीम पार्लर, जल महल, स्वर्गीय महेंद्र सिंह की योजना से शुरू हुआ था ताकि क्षेत्र को सबसे लाजवाब आईस्क्रीम मिल सके। कई सालों तक कई बदलाव होने के बावजूद, इस आयकॉनिक जगह की गुणवत्ता हमेशा से बरकरार है। मेन्यू में हॉट चॉकलेट फज, अर्थक्वेक संडे (Earthquake Sunday), चेरी बेरी संडे, फ्रूट लूप संडे आईस्क्रीम, और कई और लोकप्रिय विकल्प हैं। यहाँ आप आईस्क्रीम केक भी ले सकते हैं और मेन्यू में शुगर-फ्री, एगलेस विकल्प भी हैं। जयपुर शहर में भेट देने वाली जगह में इस जगह का नाम भी अवश्य होना चाहिए।
कुरेमाल कुल्फी – दिल्ली 6 – (1906)
दिल्ली वालों के दिल में सदियों से बसी ऐसी ही एक विंटेज आईस्कीम की दुकान है जो सौ साल से अपनी पारंपरिक विरासत को संजोके बैठी है और सिर्फ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रूप से विकसित हो रही है। 1900 के शुरुआती दिनों में हरियाणा स्थित किरोरीमल जो की कुरेमाल जी के नाम से जाने जाते थे, दिल्ली की गर्मियों में इस व्यवसाय की शुरुआत की। बॉलीवुड के प्रमुख सेलेब्रिटीज जैसे अमिताभ बच्चन के पार्टियों से लेकर राष्ट्रपति भवन और विदेशी शादियों में खास कुल्फियों की पेशकश करना, कुरेमाल जी के वर्षों के संघर्ष ने आज कुरेमाल’स कुल्फी को एक ब्रैंड का रूप दिया।
कुरेमाल कुल्फ़ी’स के विद्यमान डायरेक्टर और इस पीढ़ी के चौथे जनरेशन के सदस्य विशाल शर्मा जी ने बताया की दिल्ली में बढ़ते हुए ग्राहक आधार को देखते हुए, कुरेमाल जी ने अपने बेटे मोहनलालजी के साथ कुल्फी निर्माण में बदलाव किया। 1920 के दशक में, उन्हें शादियों के लिए ऑर्डर मिलने लगे, और 1940 में चावड़ी बाजार में अपना पहला आउटलेट खोला। व्यापर का विस्तार होते होते, 1950 के दशक तक लगभाग 15 अलग-अलग स्वादों को शामिल किया और आज 50 से अधिक स्वादों तक बढ़ गया है।
1980 के दशक में, कुरेमाल कुल्फी’स ने स्टफ्ड कुल्फिस का अविष्कार किया जो एक विशेष ताजा फल और दूध का इस्तमाल करते हुए बनायीं गयी। इसलिए आज भी अगर कोई non-Delhiites दिल्ली जाने का प्लान करता है तो “दिल्ली जाओ तो दिल्ली 6 की चाट और कुरेमाल’स की कुल्फी जरूर खाना” यह सलाह दी जाती है।
तो यह था आईस्क्रीम टाईम्स की टीम की तरफ से हमारे पाठकों के लिए एक शब्दों में पिरोयी हुई एक वर्चुअल टूर। आशा करते हैं की आपको इस लेख के जरिये इतिहास के पन्नों से खोजें गए अनमोल मिठास की ठंड से भरे विंटेज पालर्स को जानने के आनंद मिला होगा।
तो यदि आप ऊपर दिए गये शहरों को भेट दे रहे हैं, तो इन शॉप्स को जरुरु विजिट करें क्यूंकि इस विरासत को संजोके रखने की जिम्मेदारी हमारी भी है तभी तो इस लेख का शीर्षक वास्तव में सच होगा … कल भी, आज भी और आगे भी …