भारतीय मिठाई इंडस्ट्री पारम्परिक धरोहर को बचाने में कामयाब हुई है या नहीं ? Dharmendra Khatri

जब हमने धर्मेंद्र खत्री से संपर्क किया और उनसे उनके ख़ास प्रोडक्ट के बारे में पूछा। उन्होंने हमें यह बताया कि रतलामी सेव बनाने में उनकी यह दूसरी पीढ़ी है। उनके पिता जी ने यह कारोबार सन 19790 में शुरू किया था। 

उनका दावा है, ‘‘रतलामी सेव का हमने आज भी वही पुराना स्वाद बरक़रार रखा है। यह उनका मुख्य प्रोडक्ट है, बाक़ी बिकने वाली नमकीन में और भी कई वैराइटी हैं परन्तु इस प्रोडक्ट को सबसे ज़्यादा लोकप्रियता प्राप्त है”। गुजरात के दाहोद में इनका कारोबार है, इनकी शॉप से लोग नमकीन को बाहर ले जाते हैं, वह अपने रिश्तेदारों को उपहार के रूप में देते हैं। वह कहते हैं कि “हमारे ग्राहक रतलामी सेव के स्वाद को बहुत पसंद करते हैं और हमारे पास आकर सबसे ज़्यादा सेव को ही वरीयता देते हैं।

उन्होंने हमसे अपने इस ख़ास प्रोडक्ट बनाने की विधि तथा सामग्री को साझा किया और यह भी बताया की इसमें उत्तम क्वालिटी का बेसन इस्तेमाल होता है, जो कि देसी चने से तैयार कराया जाता है।

अव्वल दर्जे के बेसन के साथ-साथ लौंग, काली मिर्च और हींग इसके महत्वपूर्ण सामग्री है, जो इसमें जान डालते हैं। इन सब इंग्रेडिएंट्स की वजह से ही इसका स्वाद उभरता है और इसको सही तापमान पर पकाने से इसका यह फ़्लेवर स्वाद के रूप में बाहर आता है। ‘‘जो भी खाता है उसको भा जाता है, ऐसा है हमारा रतलामी सेव‘‘

मौसम का प्रभाव बिल्कुल भी नहीं पड़ता नमकीन पर क्योंकि नमकीन डीप फ्ऱाई होकर बनती है तो उसमें किसी तरह की कोई नमी बाक़ी नहीं रहती। हमारा रतलामी सेव हमें पूरे साल एक जैसा ही कारोबार देता है और इसकी लोकप्रियता इतनी है कि लोगों ने इसे उपहार बना लिया है और खू़ब एक दूसरे से साझा करते हैं। सिर्फ़ दाहोद ही नहीं बल्कि दूर-दूर तक हमारा यह प्रोडक्ट जाता है, यूँ समझ लीजिये पूरे भारत में। ख़ास दीपावली के अवसर पर यह नमकीन ज़्यादा खायी जाती है और जैसा मैंने पहले भी बताया कि नमकीन के समस्त प्रोडक्ट्स में ख़ास है।

हमारी मिठाई में सोन पापड़ी भी बहुत प्रसिद्ध है जो सबसे ज़्यादा बिकती है। सोन पापड़ी बनाने में हमें 30 साल की महारत हासिल है।

यह बिल्कुल ही नरम और रेशेदार होती है, मुँह में डालो तो तुरंत ही घुल जाती है। जो 30 साल पहले हमने इसको बनाना शुरू किया था आज भी वह वही स्वाद रखती है और रेशेदार क्योंकि टेक्सचर में ही इसकी सारी जान होती है। उसका रेशा जितना बारीक होगा उतनी ही बढ़िया रहेगी। इसको बनाने का तरीक़ा बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जब तक वह अच्छे से बनेगा रेशा सही आएगा तभी स्वाद बढ़ेगा।

उसको सटीक समय में और सटीक तापमान में बनाया जाता है। सोन पापड़ी की ख़ासियत ही यही है कि अगर हम उसका आधा हिस्सा भी मुँह में डाल लें तो वह मुँह में मानिए रस घुल जाता है।