WMNC 2022 चंडीगढ़ से वापस आने के बाद मेरा सबसे पहला टूर हुआ भावनगर का जो कई सालों से टालता चला जा रहा था। बैजू भाई मेहता, दासपेंडावाला के नाम से विश्व में प्रख्यात हैं और आप सभी जानते हैं कि बैजू भाई न सिर्फ़ मेरे अच्छे दोस्त हैं, बल्कि FSNM रेगुलेटरी समिति के चेयरमैन भी हैं और साथ ही FSNM के एक मुख्य एग्ज़ीक्यूटिव समिति मेंबर भी हैं। दूसरी ओर उनकी गिनती भारत के जाने माने मिठाई वालों में उनके पेड़े के साथ-साथ उनकी सुव्यवस्थित फ़ैक्ट्री को लेकर भी है जो अपने आप में ना सिर्फ़ पूरा इतिहास संजोय हुए है बल्कि आधुनिकता और कारीगरी का एक बेमिसाल जोड़ है।
गुजरात जाऊँ और कमलेश भाई कंदोई और दीपक किशनचंद को न बताऊँ, तो शायद बोर्डेर पर ही रोक लिया जाऊँगा। इसीलिए दीपक को पहले ही कॉल कर दिया था कि मैं भावनगर जा रहा हूँ और अगले ही दिन दीपक का भी फ़ोन आ गया कि वो और कमलेश भाई भी साथ चलेंगे, इसी बहाने बैजू भाई की फ़ैक्ट्री भी देख लेंगे। कमलेश भाई से मिलना था और साथ ही बैजू भाई की फ़ैक्ट्री के दर्शन हो जायेंगे यह सोच कर मैंने अहमदाबाद की फ़्लाइट ली ताकि वहाँ से हम साथ by-road भावनगर जाएँ। इससे कुछ दिन पहले ही मैं बैजू भाई से मिला था जिसका विवरण मैं देता चलूँ।
बैजू भाई, जैसा कि मैंने कहा के हमारी रेगुलेटरी टीम के चेयरमैन हैं, उन्होंने मुझे चंडीगढ़ से आने के कुछ दिन बाद कॉल किया कि यूनियन हेल्थ मिनिस्टर, मनसुख भाई मंडाविया से मिलने की कोशिश जो कई महीनो से चल रही है, हो सकता है जल्दी मिलना हो, ष्कौन-कौन आ सकता है?ष् मैंने भी कह दिया आप जितने बोलें उतने लोग आजायेंगे।
वैसे आप लोगों पर भरोसा है, मैंने ऐसे ही हवा बाज़ी नहीं की थी। अगले ही दिन लगभग 4 बजे कॉल आया के कल मिनिस्टर साहब से मीटिंग है आप सबको बुला लो। बस मैंने आनन-फ़ानन में सबको कॉल किये और लगभग सारे ही मुख्य एग्ज़ीक्यूटिव कमिटी मेंबर्स दिल्ली सुबह 11 बजे तक पहुंच गए। सही मायनों में ये असंभव था के साउथ इंडिया को छोड़ कर पूरे भारत से लोग आये थे और साउथ इसीलिए भी नहीं था क्योंकि मैंने यह सोच कर कॉल नहीं किया के सर्दियों का टाईम है और अभी हाल ही में सब चंडीगढ़ से वापस गए हैं।
एक बड़ा डेलीगेशन हल्दीराम’स के केनौट प्लेस स्थित शोरूम पर निर्धारित समय पर उपस्थित था। इस डेलीगेशन में चंडीगढ़ से नीरज बजाज जी, सिंधी स्वीट्स; सुखपाल जी बाबा डेरी वालेय साथ में उत्तम स्वीट्स से बलविंदर जी राजस्थान से राहुल शर्मा, DMB; उत्तराखंड से सत्यम अरोरा, कुंदन; उत्तर प्रदेश से पुष्पेंद्र शर्मा और विनय दीक्षित, मिठास; साथ में अतिरेक मित्तल; दिल्ली से पारस शर्मा, सिबाब्रत साहू के साथ, हीरा स्वीट्स; विनय नागपाल, साई राम स्वीट्स दिल्ली से और विपिन अग्रवाल, सैफ़रन एक्सपर्ट; बंगाल से धीमान दा, K-C-Das कोलकाताय धनबाद, झारखण्ड से विकास जी बजानिया न्यू बॉम्बे स्वीट्स से; गुरुग्राम हरियाणा से हमारे सुनील दत्त जी कथूरिया, ऊँ स्वीट्स वाले; गुजरात से खुद बैजू भाई मेहता, दर्शील मेहता के साथ और हमारे आज के होस्ट मधुसूदन जी अग्रवाल हल्दीरामस दिल्ली से और साथ में पावर हाउस कहलाने वाले अशोक कुमार त्यागी जी; क्वालिटी एक्सपर्ट नीलू खुराना HSI दिल्ली से मैं खुद महाराष्ट्र से और मेरे साथ शशांक जोशी जी पुणे, चितले बंधू से और प्रदीप जैन जी मुंबई से साथ थे श्याम सुन्दर अग्रवाल जी बीकानेरवाला ग्रुप के CMD जिनको सभी प्यार से बाबू भाई बुलाते हैं। और साथ थे वीरेंदर जैन साहब जिनकी अध्यक्षता में FSNM के सभी लोग साथ आये थे। मेरी सिर्फ़ एक कॉल पर ये सब अगले 18 घंटों में एक जगह पर एकत्रित थे और अपने अजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक थे।
सभी लोग बड़ी तैयारी से आये थे और हल्दीराम’ पर लगभग प्रातः 9 बजे से ही जुटना शुरू हो गए थे। डॉ. त्यागी, बैजू भाई, दीक्षित जी, शशांक जोशी और जैन साहब अपने अपने पॉइंट्स रख रहे थे। जब लगभग सभी लोग पहुंच गए तो हमने अपनी मीटिंग को कैसे मॉडरेट करना है कि रूपरेखा बनाई और सभी मुख्य जानकारों को कुछ न कुछ ऐसा पॉइंट दिया जो उनको रखना होगा ताकि एक ही बिंदु को हम रिपीट न करें। बहुत ही सिस्टेमेटिक तरीक़े से सब कुछ
निर्धारित किया गया था। पिछली कई मीटिंगों से सबक़ लेते हुए हम कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे इस मीटिंग में।
एजेंडा तो आप सबको मालूम ही है, फ्ऱट ऑफ लेबल्लिंग का नियम जो FSSAI की ओर से थोपा जा रहा है साथ में पुराने इशू बेस्ट बिफ़ोर डेट वाला और सबसे चलैंजिंग काम मिठाई और नमकीनों के स्टैंडर्ड्स जो FSSAI से वादा करने के बाद भी FSSAI हमारे माफ़िक़ नहीं बना रही। इन्हीं सब बातों को लेकर बैजू भाई, शशांक जी और बाक़ी सब लोग मिनिस्टर साहब से मिलना चाहते थे।
वहाँ जाकर ये ज्ञात हुआ के मिनिस्टर साहब किसी और चुनौती के कारण बिज़ी हैं और वो सिर्फ़ बैजू भाई मेहता और मुझे ही मिल पाएंगे और ज़्यादा से ज़्यादा एक व्यक्ति और अंदर जा सकता है। अब मुश्किल ये थी कि बाबू भाई और मधु बाबू, डॉ त्यागी के होते हुए हम अंदर जाये, तो ठीक नही होगा और अगर हम नही जाएँ तो पिछली मीटिंगों की बातों और आगे की तैयारी की प्रैक्टिस करके आये हुए लोग बाहर ही रह जायेगे। दुविधा को देखते हुए बैजू भाई ने मिनिस्टर साहब के PS को हमारे रूम में बुला कर सबसे मिलवाया और हमने उनके चैम्बर में जाकर गुहार लगाई ष्कि ये सब पूरे भारत से आये हुए हैं बिना मिले जाना तो हमारे प्रयास तो निरर्थक कर देगाष्। कुछ और बिंदुओं पर भी रोशनी डाली तब उन्होंने कहा ष्अच्छा, मैं पूछता हूँष्, शायद मिनिस्टर साहब ने भी ये भाप लिया था के डेलीगेशन बड़ा है इनको टालना सही नहीं होगा, हमसे कहा गया के थोड़ा वेट कीजिये मिनिस्टर साहब सबसे मिलेंगे, तब जा कर बैजू भाई और शशांक जी के चेहरे पर ख़ुशी दिखाई दी।
आम तौर पर लोगों को इस तरह की मीटिंगस से कुछ ज़्यादा हासिल होता हुआ नहीं दिखता है और हो सकता है कि आप पाठकों को भी ये ही लग रहा होगा मगर जो मीटिंग में हुआ वो यादगार हो गया। ज़्यादा डिटेल्स मैं नहीं दे सकता क्योंकि अभी कई निर्णय आने बाक़ी हैं मगर उम्मीद से बढ़ कर उन्होने हमारा साथ देने का वादा किया। मीटिंग में आते ही उन्होंने बैजू भाई को पूछा ष्बोलियेए क्या दिक़्क़त है?ष्ए बिना वक़्त ख़राब किए बैजू भाई ने अपना लिखा हुआ पूरा भाषण पढ़ दिया और एक-एक बात क्लियर कर दी, बीच-बीच में श्याम सुन्दर जी ने भी अपने पॉइंट्स रख दिए और उन सब के जवाब में मिनिस्टर साहब ने बहुत पॉजिटिव बातें कहीं, इसी कारण किसी और को कुछ बोलने की ज़रुरत नहीं हुई। ये मीटिंग अप्रत्याशित थी और जब इसका परिणाम आएगा तो आप सबको खुल कर जानकारी दी जाएगी।
ये तो FSNM की एकजुटता का एक छोटा सा उदाहरण था जहाँ ये प्रदर्शित हुआ कि अगर इंडस्ट्री पर कोई आंच आएगी तो हमारे दिगज्जों से लेकर युवा सब एक जगह साथ खड़े हो सकते हैं और इस इंडस्ट्री के नगीने बैजू भाई और शशांक जोशी जैसे लोग हमें सदा सही राह दिखाते रहेंगे। FSNM की ताक़त इसका हर मेंबर है और इन्हीं चुने हुए मोतियों से मिलकर बनती है FSNM की माला जिसको अगर मज़बूत ज़ंजीर भी बनाना पड़े तो बन जाएगी जिसकी हर कड़ी खुद में एक मज़बूती का उदाहरण है। बस मीटिंग ख़त्म होते ही एक छोटा-सा रिव्यु नीचे लॉबी में लिया और सब निकल गए अपने अपने रास्ते !!
मैं वापस आपको अपने गुजरात के सफ़र पर ले चलूँ। दिल्ली वाली मीटिंग के बाद बैजू भाई और दर्शील भाई से मिलना होने वाला था तो काफ़ी उत्सुकता थी उनकी फ़ैक्ट्री देखने की। मैं फ़्लाइट से अहमदाबाद पहुंच गया जहाँ पर मुझे दीपक किशनचंद ने एयरपोर्ट से ही पिक कर लिया और हम कमलेश भाई के घर चले गए। अपने रॉयल अंदाज़ में कमलेश भाई तैयार ही बैठे थे। थोड़ी चाय नाश्ते के बाद हमने भावनगर का रास्ता पकड़ लिया और गपशप के साथ सफ़र कटने लगा। राजकोट से सीधे भावनगर पहुचंे हमारे निखिल शाह जो Vikalp Techno Center के MD हैं और उनसे मुलाक़त हमारी वहीं तय पाई थी।
FSNM को बढ़ाने में ये सफ़र मेरे बहुत काम आये हैं। जब भी कहीं जाता हूँ तो कई नए लोग मिलते हैं और हमारी कहानी सुनकर साथ हो जाते हैं।
इसमें दीपक, अतिरेक, विपिन और पुनीत जैसों का बहुत बड़ा रोल रहा है। इन्होंने अपनी गाड़ी के पहियों को सदा FSNM की सेवा में लगा रखा है और बिना किसी संकोच के हमेशा साथ देते ही रहते हैं। इस सफ़र में भी दीपक साथ थे और अपनी तरफ़ से FSNM को कुछ न कुछ फ़ायदा पहुंचने में व्यस्त रहते हैं। तीन घंटों का सफ़र मानों पता ही नहीं चला हम भावनगर पहुंच भी गए मगर रस्ते में कमलेश भाई ने एक छोटा-सा ब्रेक कराया ‘गैलोप्स नामक फ़ूड पॉइंट पर जहाँ की भावनगरी गाठिया और चाय का स्वाद अभी तक जुबाँ पर है।
बैजू भाई की फ़ैक्ट्री विज़िट भी एक तीर्थ यात्रा की तरह ही थी और मैं सभी को रेकमेंड करूँगा के वह ज़रूर जाएं अगर आप भावनगर के आसपास भी हैं तो। दासपेंडावाला की फै़क्ट्री मानो जैसे भावनगर की पहली बिल्डिंग हो या फिर किसी रक्षक की तरह मुहाने पर ही खड़ी हो। विशाल बिल्डिंग जिसके कई विंग्स अलग-अलग डिपार्टमेंट्स में बाटे गये हैं।
जब हम पहुंचे तो एंट्री पर ही हमारा स्वागत हुआ और बैजू भाई ने एक बहुत अच्छा-सा स्वागत नोट मेंन-डोर पर लगा रखा था। बस थोड़ी देर मिलने-झूलने के बाद हमने फ़ैक्ट्री का भ्रमण किया और पाया के गुणवक्ता और फूड क्वालिटी को अगर बेस्ट रखना है तो हाईजीन का ख़्याल कैसे रखना है। एक-एक पेड़े का पीस बहुत ही मेहनत और लगन से बनाया जाता है। बड़े पैमाने पर सिस्टेमेटिक तरीके़ से रॉ-मैटेरियल्स को स्टोर करना, भट्टियों को लगाना और उन पर सिकाई करना, फिर पेड़े के मिक्सचर को मशीन द्वारा रूप देना और ऑटोमेशन के साथ बिना हाथ लगाए उसकी पैकेजिंग होना, इन सब बातों का ध्यान बहुत ही अच्छे तरीक़े से बैजू भाई की फै़क्ट्री में किया गया है। सबसे अच्छी बात ये लगी के पैकिंग और पैकेजिंग रॉ मैटेरियल्स की बिल्डिंग सेफ़्टी नॉर्म्स को ध्यान में रखते हुए मुख्य बिल्डिंग से अलग बनाई गई है।
बैजू भाई के पेड़े तो कई बार खाये हैं जो अपनी कैटेगरी में सदा ही नंबर वन रहते हैं। मगर आज हमने खाये ताज़े-ताज़े पेड़े जिनका स्वाद हमेशा याद रहेगा। कमलेश भाई जो खुद भी एक एक्सपर्ट हैं उन्होंने भी बैजू भाई से कई चीज़ों पर चर्चा की और सिस्टम को समझा। न भूलने वाली बात ये भी है कि ये दासपेंडावाला की फै़क्ट्री बैजू भाई के अनुसार फुल्ली-आटोमेटिक है यानि अगर वो महीने दो महीने के लिए भी कहीं बाहर चले जाएँ और दर्शील भी न हों तब भीSOPs इस तरह से सेट हैं के कोई भी काम नहीं रुकेगा। ये हमारे लिए और पूरी इंडस्ट्री के लिए एक उदाहरण है के किस तरह से हमे अपने कामों को ऑटो-पायलट पर डाल कर निश्चिन्त हो जाना है। इसके पीछे ज़रूर कई महीने और साल लगे होंगे मेहता फॅमिली के, मगर इसका परिणाम सुखद है।
हम सबको इसी दिशा में ध्यान देना होगा कि क्या हमारे बिना भी हमारी फै़क्टरीज़ चाहे वो नमकीन की हो या मिठाई की, चल सकती हैं या फिर आज भी हम छोटे-छोटे रॉ-मैटेरियल्स के आर्डर अपने सप्प्लायर्स को देते रहते हैं, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में। बैजू भाई के अनुसार न सिर्फ़ आगे की तैयारी पूर्ण रूप से रहती है बल्कि पिछले कई दशकों का भी रिकॉर्ड एक बटन दबाने पर मिल जायेगा।
बस वहाँ से हम बैजू भाई के घर चले गए। कुछ ही महीनों पहले उनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया था, उनके पिता जी से मिलने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ जो आज भी रोज़ फ़ैक्ट्री जाते हैं और पूरी व्यवस्था को बनाने में मुख्य रोल प्ले करते हैं। कुछ गपशप और भाभी जी के किचन से मिली चाय-सैंडविच को एन्जॉय करने के बाद हम अहमदाबाद की ओर निकल गए जहाँ से मुझे दिल्ली जाना था अगली सुबह।