ठिठुर-ठिठुर कर ठंड से, होती है बेहाल।
कौन लूट कर ले गया ‘पश्मीना’ की शाल ।।
बस ऐसे ही कुछ तरह स्वागत होता है जब धुंध की चादर धीरे धीरे पुरे देश को अपने चपेट में लेती है। हर तरफ सर्द मौसम, कहीं भुरभुराती बर्फ़, रंगबिरंगे स्वेटर, शाल का बैकग्राउंड बस ऐसा ही कुछ माहौल हो जाता है और शुरू हो जाती है कड़कड़ाती ठंड से अंदरूनी तौर से बचने की तैयारी। मौसमी सब्जियां, फलों के साथ साथ मिठाई के रूप में रसोई और बाज़ार सजने लगते हैं। इस महीने के ‘हिस्ट्री ऑफ़ मंथ’ पर हम ऐसे ही ठंड के महीने में बननेवाली मिठाई से आपका परिचय कराने वाले हैं।
पश्चिम बंगाल के माज़िलपुर के प्राचीन शहर की स्थानीय और पीठासीन देवता माँ जॉयचंडी के नाम से जाने जानेवाला जॉयचंडीनगर जो आगे चलके जॉयनगर के नाम से पहचाने जाने लगा और प्रसिद्ध हुआ अपने ख़ास उत्पादन मोआ के रूप में। जॉयनगर को लोकप्रिय रूप से ‘मोआ का पालना’ के रूप में जाना जाता है, यह एक अनोखी शीतकालीन मिठाई है जिसे बंगालियों द्वारा उच्च सम्मान में रखा जाता है।
बताया जाता है कि मोआ उद्योग की शुरुआत 1904 ई. में जॉयनगर के दास पारा के स्थानीय निवासी स्वर्गीय आशुतोष दास द्वारा की गयी थी। मोआ की स्थानीय बाज़ार में बहुत कम स्वीकार्यता थी और इसलिए दिवंगत आशुतोष दास और अन्य लोग अपने सिर पर मोआ से भरी गन्ने की बड़ी टोकरी लेकर विभिन्न गांवों में जाते थे। राधाबल्लव डोल एक प्रसिद्ध त्यौहार होता था जिसमें बंगाल की कई प्रसिद्ध हस्तियां शामिल होती थीं और यहीं पर स्वर्गीय आशुतोष दास की क़िस्मत आख़िरकार चमकी जब स्थानीय लोगों ने उनके स्वादिष्ट मोआ का स्वाद चखा। ‘जॉयनगर का मोआ’ जल्द ही पसंदीदा बन गया और बंगाल के विभिन्न हिस्सों में इसके विभिन्न संस्करण बनाए गए।
मोआ उद्योग बंगाल के सबसे पुराने कुटीर उद्योगों में से एक है और बेहद मेहनत वाला काम है। नोलेन गुड़ (खजूर के रस से गुड़) का निर्माण यहां किया जाता है और यह मोआ बनाने के लिए मुख्य घटक है। मोआ खोई (मुरमुरे), नोलेन गुड़, गावा घी, काजू, खोया खीर, इलायची और किशमिश के मिश्रण से बनाया गया मिष्ठान है।
जद्दोजेहद खजूर के पेड़ से प्रातः
सुबह रस निकलने से होती है। शूली (रस को इकठा करने वालों को शूली कहा जाता है) सबसे पहले खजूर के पेड़ों के तनों पर कोणीय चीरा लगाते हैं और चीरे वाले स्थान पर एक नोल (पाइप) लगा देते हैं और उसके सिरे पर एक मिट्टी का बर्तन लगा देते हैं। खजूर का रस धीरे-धीरे पाइप के माध्यम से बर्तन में गिरता है। इस प्रक्रिया को 4-5 दिनों के बाद दोहराया जाता है क्योंकि संग्रह की इस विधि में नोलेन गुड़ की सर्वोत्तम गुणवत्ता और धुएँ के रंग का चमकीला स्वाद आता है। फिर सुनहरे रंग के रस को धीमी गति से उबालकर गाढ़ा चिपचिपा गुड़ बनाया जाता है जिसे नोलेन गुड़ कहा जाता है (एक लीटर नोलेन गुड़ 10 लीटर खजूर के पेड़ के रस को उबालने से प्राप्त होता है)। खोई (मुरमुरे) कनकचूर धान को भूनकर तैयार किया जाता है जिसकी खेती सर्दियों के मौसम में जॉयनगर और उसके आसपास बहुत कम क्षेत्रों में जैविक तरीके से की जाती है। तापमान कम होने पर खोई को एक बड़े लोहे के बर्तन में लकड़ी की करछुल का उपयोग करके नोलेन गुड़ में मिलाया जाता है। मोआ बनाने के लिए खोया खीर, पिस्ता, काजू, किशमिश, इलायची पाउडर और गावा घी विशिष्ट मात्रा में मिलाया जाता है। मिश्रण के ठंडा होने पर मोआ को आकार देने के लिए हाथों में ढेरसारा घी लगाया जाता है और उसे लड्डू का आकर दे दिया जाता है।
मोआ को जो बात ख़ास बनाती है वह यह है कि खोई (मुरमुरे) के अन्य गुणों के विपरीत मुंह में पिघल जाती है। कनकचूर एक सुगंधित और विशेष किस्म का पतला चावल है जिसकी खेती पश्चिम बंगाल में की जाती है। कनकचुरखोई की इस विशेष गुणवत्ता की खेती सर्दियों के दौरान जॉयनगर और उसके आसपास बहुत कम इलाकों में जैविक रूप से की जाती है। जॉयनगर में उत्पादित कनकचुरखोई और नोलेन गुड़ की दुर्लभता मोआ को बेहद ख़ास बनाती है और अन्यत्र इसकी नकल करना लगभग असंभव है।
श्यामसुंदर स्वीट्स बहारू की सबसे पुरानी मिठाई की दुकानों में से एक है जो प्रामाणिक जॉयनगरेर मोआ बेचती है। यह दुकान 1978 में गोपाल चंद्र घोष के संरक्षण में शुरू हुई और वर्तमान में उनके दो बेटे रंजीत और बब्लू द्वारा संचालित है। वे हर दिन मोआ के लगभग 10,000 टुकड़े निकालते हैं । आपूर्ति श्रृंखला को चालू रखने के लिए सर्दियों के महीनों के दौरान कुशल और अकुशल श्रमिकों की भर्ती की जाती है। लगभग एक सदी पहले जॉयनगर के दो युवाओं, पूर्णचंद्र घोष (पूर्णा) और नित्यगोपाल सरकार (बुचकी) ने बहारू के किसान के समान नुस्खा अपनाया और स्थानीय शीतकालीन बाज़ारों में उत्पाद बेचना शुरू कर दिया। जल्द ही इसे लोकप्रियता मिलने लगी और इसे बुचकिर मोआ के नाम से जाना जाने लगा, जो बाद में जॉयनगरेर मोआ में बदल गया। 1929 में, उन्होंने एक दुकान खोली, जिसका नाम श्री कृष्ण मिष्ठान भंडार रखा, जो अभी भी चल रही है और अभी भी पूर्णचंद्र घोष के वंशजों द्वारा संचालित है। यह सबसे पुरानी और पारंपरिक और प्रामाणिक मोआ बेचनेवाली दुकान है।
जॉयनगर मोआ को 2015 में भौगोलिक संकेत टैग (GI Tag) से सम्मानित किया गया है। यह अत्याधिक समृद्ध मिठाई केवल जॉयनगर में ही बनाई जाती है पर विश्वस्तर पर इसे बेचा जाता है।