शुद्ध घी को उचित विज्ञापन के माध्यम से विश्व स्तर पर लाया जा सकता है

असली घी से जुड़ी जानकारी, जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

  • भारत में वनस्पति घी का बाज़ार 2024 में रू. 40,653 करोड़ रुपये पहुंच ने की सम्भावना, बढ़ती आबादी और हाई इनकम के तहत डिमांड में वृद्धि
  • घी मार्केट डेटा ऑफ इंडिया के अनुसार, असली घी का बाजार 2020 में रू. 2374 बिलियन (2,37,400 करोड़) के मूल्य पर पहुंचा।

घी, भारतीय खाना पकाने में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, दूध के ठोस पदार्थ और मक्खन से पानी निकालने के बाद बचा हुआ शुद्ध मक्खन वसा है। उत्तम स्वाद के साथ घी बहुत सुगंधित है और तरल दूध के बाद भारत में दूसरे सबसे बड़े खपत वाले डेरी उत्पाद का प्रतिनिधित्व करता है।

घी की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘घृत’ से हुई है और इसका उपयोग प्राचीन भारत में हुआ था और इसका उपयोग न केवल भोजन में बल्कि पारंपरिक चिकित्सा और धार्मिक अनुश्ठानों के लिए भी किया जाता था। यह चलन आज भी हिंदुस्तान की कई परम्पराओं में पाई जाती है।

‘घी मार्केट डेटा ऑफ़ इंडिया’ के अनुसार, असली घी का बाज़ार 2020 में रू. 2,374 बिलियन के मूल्य पर पहुंचा। इस वृद्धि का श्रेय महामारी को जाता है जिसमें घर बैठे लगभग सब ने घर में पके अनोखे व्यंजन बनाकर खाये हैं। सेहत से भरपूर असली घी जिसे देसी घी भी कहा जाता है, अपने अनोखे स्वाद और खु़श्बू में पके खाने से सब को लुभा लेता है।

वित्तीय वर्ष 2020 में लगभग 170 हज़ार मैट्रिक टन उत्पादन के साथ, इसकी खपत देश के उत्तरी क्षेत्र में सबसे अधिक हुई। वर्तमान में, उत्तर प्रदेश के कुल घी बाज़ार के सबसे बड़े बाज़ार का प्रतिनिधित्व करता है। इसके बाद पंजाब, हरयाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश का स्थान है।

हमेशा से ही असली घी को लेकर थोड़ा सा विवाद रहा है, ज़्यादातर यह विवाद सेहत से जुड़े होने के कारण, लोगों ने इस का उपयोग खाने में बहुत कम रखा है। 

सब से बड़ी बहस तो यही है की: असली घी खाने से वज़न बढ़ता है या घटता है?

आयुर्वेद की मानें तो उचित तरीके़ से घी का सेवन करें तो वज़न घटाने में घी काफ़ी कारगर साबित होता है। क्योंकि यह तैलीय खाद्य पदार्थ है, इस कारण लोगों में इसके बारे में यही धारणा है कि इससे वज़न बढ़ता है।

दरअसल घी दूध का ही एक रुप है। गाय या भैंस का दूध एक संपूर्ण आहार माना जाता है। दूध से बना दही, छास, लस्सी, पनीर, छेना इत्यादि सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। इसलिए आयुर्वेद यह तर्क देता है कि दूध और उससे बना घी भी लाभकारी होता है और यह वजन कम करने के साथ शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

आयुर्वेद और जानकारों के अनुसार देसी घी का सेवन करना लाभदायक होता है क्योंकि ये आपके शरीर में अतिरिक्त चर्बी यानी फ़ैट को कम करता है। वास्तव में घी में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के पाचक तंत्र को उत्तेजित करता है। जब आपका पाचक तंत्र बेहतर होता है तो आपके शरीर में अतिरिक्त चर्बी तेज़ी से कम होती है। घी पचने में भले थोड़ा भारी होता है लेकिन यह पाचक तंत्र को बेहतर करता है इसलिए घी वज़न घटाने में सहायक होता है और साथ ही घी इम्यून सिस्टम को भी बेहतर बनाता है।

देसी घी में ओमेगा-3, फै़टी एसिड और लिनोलिक एसिड होता है जो शरीर की चर्बी को कम करने में सहायता करते हैं और साथ ही ये पेट के हीस्से की चर्बी को भी तेज़ी से जलाता है। 1 चम्‍मच रोज़ ख़ाली पेट घी खाने से स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों को दूर भी भगाता है। यदि आपको घी का लाभ उठाना हो तो इसे ख़ाली पेट ही खाएं। साथ ही गरम दूध में एक चम्मच घी मिलाकर रात में खाने से क़ब्ज़ की शिकायत दूर होती है।

देसी घी स्वास्थ के हिसाब से काफ़ी अच्छा माना जाता है। यह ना सिर्फ़ आपके खाने के स्वाद को बढ़ाता है बल्कि वज़न भी तेज़ी से कम करने में सहायक होता है।

असली घी की पहचान कैसे करें?

असली घी के विषय को लेकर काफ़ी जानकारी मिल जाती है पर अगर विशेषज्ञ की ज़ुबानी हो तो सत्यता की मोहर लग जाती है। आईए मिठाई नमकीन टाईम्स आप को मिलवाते हैं घी के विशेषयज्ञों से और लेते हैं घी से जुड़ी जानकारीः 

सब से पहले हम आप को मिलवाते हैं शिवकिशन अग्रवाल जी और मधुसूदन अग्रवाल जी से जिन्हें वास्तव में परिचय की आवश्यक्ता नहीं है फिर भी मुनासिब रहेगा की हम उनका परिचय आप से कराएं की दोनों हल्दीराम (नागपुर) और हल्दीराम (दिल्ली) के मैनेजिंग डायरेक्टर और वाइस प्रेसीडेंट क्रमश: हैं।

हमारा पहला सवाल हल्दीराम बंधू से यह रहा की असली घी की क्या पहचान है जो आम जनता को मालूम होनी चाहिए और घी की गुणवक्ता (क्वालिटी) अगर सही न हो तो मिठाई पर क्या प्रभाव पड़ता है?

हमारे सवाल को सराहते हुए शिवकिशन जी ने बड़े ही अच्छे अंदाज़ में कहा की पहचान तो बहुत सरल है, गाय का घी अलग होता है और भैंस का घी अलग। दोनों घी में खु़शबू और स्वाद होने चाहिए। गाय के घी में ख़ुशबू ज़्यादा होती है। जो घी के व्यवसाय में होता है उसको इसका फ़र्क़ जल्दी समझ में आता है क्योंकि वह घी का जानकार होता है। घी की धार से बता देता है के घी कैसा है। दोनों घी के फ़ोटो से भी पता लग जाता है कौन सा घी किसका है। घी चाहे गाय का हो या भैंस का, दोनों ही बहुत बढ़िया होते हैं। भैंस के घी में दाना ज़्यादा होता है गाय के घी की तुलना में, लेकिन धार्मिक रूप से गाय के घी को शुद्ध माना जाता है। भारतीय पारम्परिक मिठाईयाँ दोनों घी में बना सकते हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरयाणा, दिल्ली में भैंस के दूध की उत्पादकता अधिक है, तो यह बात बहुत महत्तवपूर्ण् है की भैंस के घी का उपयोग इन राज्य में सब से अधिक है। गुजरात, राजस्थान और साउथ इंडिया में गाय का पालन ज़्यादा है इसीलिए गाय का घी का उपयोग भी वहां अधिक है”।

और आगे जानकारी देते हुए शिवकिशन जी ने बताया की घी में मिलावट का भी पता लग जाता है। कनस्तर खुलते ही खु़श्बू से अनुमान कर सकते हैं की घी में मिलावट है या नहीं। यह भी पता चल जाता है घी नया है या पुराना। पुराने घी की ख़ु़शबू की अलग पहचान है और नए की अलग। अगर घी थोड़ा सा ज़्यादा गरम हो जाये तो उस में भी फ़र्क़ आ जाता है, उसमें कड़वाहट आ जाती है। गरम करते वक़्त सही टेम्परेचर मेन्टेन करना बहुत ज़रूरी होता है ताके पकवान का स्वाद बरक़रार रहे।

जब MNT ने अर्टिफिशियल एसेंस के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही तो मधुसूदन बाबू  ने बताया, “ किया के एसेंस तो आजकल सब चीज़ में बनने लगे हैं, और घी में भी एसेंस डाले जाते हैं। अगर किसी ने असली घी की नक़ल करने की कोशिश की है और उस में एसेंस का उपयोग किया है तो पता चल ही जाता है के घी असली है या नक़ली। जो अनाड़ी हैं, या जिनको असली घी की पहचान नहीं है तो वह लोग इस बात से अनजान रहते हैं लेकिन घी का जो माहिर होता है वह एकदम से इस चीटिंग को पकड़ लेता है। और जो रेगुलर घी खाने वाला होता है उसे महसूस हो जाता है असली-नक़ली का फ़र्क।

शिवकिशन जी ने आगे बताया के दिल्ली वालों को इस का फ़र्क़ बहुत जल्दी मालूम हो जाता है क्योंकि उनका खाना ही असली घी में बनता है जैसे दाल में तड़का, असली घी में सब्ज़ी बनती है, पराठे पर मक्खन, उनको पता चलता है के घी कैसा है।

हसंते हुए मधुसूदन बाबू ने बताया के नॉर्थ वालों को असली घी की बखूबी पहचान है।

दो नो भाइयों ने एक आवाज़ में कहा के खाने-पीने के शौक़ीन होते हैं नॉर्थ वाले। राजस्थान में भी यही बात है, उनका खाना भी असली घी में बनता है।

चलिए अब आगे बढ़ते हैं और यही सवाल हम ने अनिल सैनी से किया जो भँवरीयलाल मिठाईवाला, MHOW (MP) के ओनर हैं। अनिल सैनी जी का मानना है की जैसे हमारे पूर्वज थे, या पुराने स्वीट्स मेकर थे, वो असली घी की गहरी पहचान रखते थे, आज की ज़ुबान में हम उनको घी के sensors कह सकते हैं.. अनिल जी ने हंसकर उत्तर दिया।

“कोई भी मिठाई बनाने वाला अगर घी ख़रीदने जाएगा चाहे वह आम व्यक्ति ही क्यों न हो अगर वह खुला हुआ घी ख़रीद रहा है, तो सबसे पहले वह घी में ऊँगली डुबो कर अपनी हथेली के पीछे के हिस्से में मलेगा और सूंघेगा तो उसी वक़्त उसकी खु़शबु से समझ जायेगा की घी असली है या मिलावट वाला और दूसरी चीज़ वह देखेगा वह होगा उसका रंग उससे मालूम हो जाता है की घी कैसा है। असली घी दानेदार होना चाहिए और उसकी बेहतरीन ख़ुशबु और देखने में आपको कितना प्रभावित कर रहा है, उस से अंदाज़ा हो जाता है की घी कितना बढ़िया है।

घी की चर्चा को अब मोड़ देते हैं कमलेश बेचरलाल कंदोई की ओर जो कंदोई भोगीलाल मूलचंद (कंदोई स्वीट्स), अहमदाबाद के मालिक हैं।

देसी घी की पहचान को अपनी तरह जांचते हुए, कमलेश जी ने कहा की डुप्लीकेट घी तो डुप्लीकेट ही रहेगा, उस में असली घी की क्वालिटी कहाँ से आएगी? पुरानी कहावत है ओल्ड इज़ गोल्ड, ओरिजिनल हमेशा ओरिजिनल रहेगा।

हमारे यहाँ घी पुरानी रीती से निकला जाता है। दूध से मलाई निकाली जाती है और मलाई से मक्खन। इस मक्खन को बड़े कढ़ाव में उबाल कर दानेदार घी बनाया जाता है। जब घी में उबाल आने लगे तो एक सिमित समय पर कढ़ाव को आंच से हटा लिया जाता है ताकि घी में ज़रा सी भी जलने की बू न आए। पैक्ड घी खुलते ही बहुत सोंधी सी ख़ुशबू फैल जाती है और यही दानेदार घी असली होने की पहचान है। शुद्ध देसी घी की शुद्धता की महक हर एक को पसंद आती है और भूक बढ़ाती है।

श्री राधे डेरी फार्म व फूड प्रा. लि का ब्रेनडेड घी का नाम है ‘वास्तु घी’ जिसके ओनर हैं भूपत भाई सुखड़ीआ। 

भूपत भाई सुखड़ीआ जी का मानना है की गाय का घी काफ़ी हद तक इसकी सुगंध, बनावट और स्वाद से पहचाना जाता है।

“अतिरिक्त और वास्तविक, प्रामाणिक घी की पहचान करने में सक्षम होने के लिए मेरा मानना है कि यह एक अंतर्निहित विशेषता है जो उस संस्कृति में रहता है जहां घी बनाया जाता है। यदि घी जो अपने गुणवत्ता के पैमाने पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता है, तो उसके परिणाम से मिठाई की शेल्फ-लाईफ़ कम हो जाएगी, साथ ही उसे वह प्रामाणिक स्वाद नहीं मिलेगा जो मिठाई का आदर्श है, इससे मिठाई के स्वाद पर बहुत बड़ा असर पड़ता है”।

आगे बढ़ते हुए हमने तरुण अग्रवाल जी, जो भोले बाबा डेरी से हैं, जिनका ब्रैंड धौलपुर घी काफ़ी मशहूर है, देसी घी को पहचानने का राज़ जाना।

तरुण जी ने बहुत शिक्षाप्रद जवाब दिया- “यह बिल्कुल सच है कि भारतीय मिठाईयाँ और देसी घी का चोली दाम का साथ है। बिना घी के हम भारतीय मिठाईयों की कल्पना भी नहीं कर सकते। आम आदमी को यह मालूम होना चाहिए कि असली घी की पहचान क्या है और बिना लैबोरेट्री में जाये हम कैसे पता लगा सकते हैं कि इसकी गुणवत्ता सही है या नहीं। अगर हम एक चम्मच घी को पतीले में गर्म कर लें और वह तुरंत पिघल जाता है तथा भूरे रंग में बदल जाता है तो हम कह सकते हैं कि यह घी ठीक है।

“अगर हम एक चम्मच घी अपनी हथेली पर डालें और वह तुरंत पिघलना शुरू कर दे तो समझे कि घी ठीक है। अगर घी हथेलियों पर रगड़ते ही जमने लगे और उसकी खुशबू आना बन्द हो जाए तो वह घी नक़ली है। अगर घी सही न हो तो मिठाई पर इसका बहुत ही दुष्प्रभाव पड़ता है, मिठाई जल्दी ख़राब होने लगती है तथा उस मिठाई से ग्राहक को बदहज़मी या पेट से सम्बन्धित बीमारी हो सकती है। आखि़रकार हम यह कह सकते हैं कि यह एक विश्वास और ज़िम्मेदारी का मामला है। घी व मिठाई वहीं से लें जिस ब्रैंड पर आपको विश्वास हो और जो आपको ईमानदार लगता हो”।

संदीप अग्रवाल, क्रीमी फूड्स नामक कंपनी जो प्रसिद्द मधुसूदन घी बनता है उनसे भी असली घी की पहचान पूछी। संदीप जी ने बताया की घी की सबसे बड़ी क्वालिटी ये है कि जैसे ही मिठाई मुँह में रखी, रखते ही घुल जानी चाहिए और खाने में बेहतरीन स्वाद का आनंद बहुत आवश्यक है। मन करे की एक और खा लिया जाए, बस तो समझ लीजिये की मिठाई शुद्ध घी में बनी है। यदि घी की गुणवत्ता सही नहीं होगी तो मिठाई के स्वाद में आप को तुरंत फ़र्क़ पता चल जायेगा।   

राकेश कुलवाल जी –झंडेवाला फूड्स लिमिटेड, (जयपुर) ‘नमन’ ब्रैंड नाम के तहत एक घी निर्माण कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। नमन घी विशेष रूप से मिठाई की दुकानों के उपयोग के पैटर्न को देखते हुए बनाया गया है। नमन देसी घी से बनी मिठाई की शेल्फ़-लाईफ़ लंबी होती है और इसे 3-4 बार इस्तेमाल किया जा सकता है।

राकेश जी ने बताया की देसी घी भारतीय संस्कृति में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका उपयोग भारतीय व्यंजनों के साथ-साथ पूजा-अर्चना के उद्देश्यों में भी किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार घी को उज्जवल त्वचा और स्वस्थ दिमाग के लिए फ़ायदेमंद बताया गया है। देसी घी से बने व्यंजन परोसे जाने से परिवार के सदस्य या मेहमानों के बीच एक बहुत प्यारा बंधन दिखाई देता है। देसी घी और मिठाई के बीच एक अनोखा ताल-मेल है, एक दूसरे के बिना अधूरे से हैं।

“आज के युग में जब हम घी की बात करते हैं तो आम तौर पर उपभोगक्ता कहते हैं कि क्या यह शुद्ध (असली) है? इसलिए शुद्ध और मिलावटी में अंतर करना बहुत आवश्यक है। आम आदमी आम तौर पर तीन मानकों के आधार पर शुद्ध और मिलावटी घी के बीच अंतर जनता है।

पहलाः घी दानेदार होना चाहिए, दूसराः यह सफे़द होना चाहिए और तीसराः अच्छी सुगंध होनी चाहिए। व्यापारी भी हाथ पर रगड़ कर और दानेदार और सुगंध की जांच करके गुणवत्ता को मापता है। हालांकि यह गलत नहीं है लेकिन अगर देसी घी का लैब टेस्ट कराया जा सकता है तो यह सबसे अच्छा है। 

प्रमोद जोशी जी, राश्ट्रीय सेल्स मैनेजर हैं प्रसिद्द पारस ब्रैंड देसी घी के। पारस कंपनी एक मात्र देसी घी का प्रतिष्ठान है जिसके गाय और भैंस के घी की अलग-अलग जगह मैन्युफ़ैक्चरिंग यूनिट्स हैं। पारस घी के pan India में 6 बड़े मैन्युफै़क्चरिंग प्लांट्स हैं जो 30 लाख लीटर दूध प्रतिदिन संभालते हैं। उनका भी यही कहना है कि घी की शुद्धता की अवश्य जांच होनी चाहिए।

खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए घी का तड़का लगाना हो या फिर दवा के रूप में कई रोगों से पीछा छुड़वाना हो, देसी घी के पास हर मर्ज़ का इलाज है। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब घर पर आने वाला घी शुद्ध हो। ऐसे में यह जानने के लिए कि आपके घर पर आने वाला घी शुद्ध है या नहीं, अपनाएं ये आसान टिप्स एंड ट्रिकस।

  •  उबालकर देखें –

मार्केट से खरीदे हुए घी में से चार से पांच चम्मच घी निकालकर बर्तन में उबाल लें। इसके बाद घी के इस बर्तन को लगभग 24 घंटे के लिए अलग रख दें। अगर 24 घंटे के बाद भी घी दानेदार और महक रहा है तो घी असली है। अगर ये दोनों ही चीज़ें घी में से ग़ायब हैं तो घी नक़ली हो सकता है।

  • नमक का इस्तेमाल-

असली घी की पहचान होने के लिए आप नमक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए एक बर्तन में दो चम्मच घी, 1/2 चम्मच नमक के साथ एक चुटकी हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाकर तैयार किए गए मिश्रण को 20 मिनट के लिए अलग रखकर छोड़ दें। 20 मिनट बाद घी का रंग चेक करें। अगर घी ने कोई रंग नहीं छोड़ा है तो घी असली है लेकिन अगर घी लाल या फिर किसी अन्य रंग का दिखाई दे रहा है तो समझ जाएं घी नक़ली हो सकता है।

  •  पानी का इस्तेमाल-

पानी का इस्तेमाल करके भी आप बड़ी आसानी से घी के असली या नक़ली होने का पता लगा सकते हैं। इसके लिए आप सबसे पहले एक ग्लास में पानी भरकर एक चम्मच घी पानी में डालें। अगर घी पानी के ऊपर तैरने लगे तो समझ जाईये कि घी असली है। अगर घी पानी के नीचे बैठ जाता है तो घी नक़ली हो सकता है।

असली घी की पहचान के बाद मिठाई नमकीन टाईम्स अपने सवालों का कारवां आगे बढ़ाते हुए शिवकिशन जी से अगला सवाल किया की आपके अनुभव के हिसाब से मिठाई निर्माताओं को लैब के अलावा और किस तरह से घी की गुणवक्ता को जांचना चाहिए?

“असली घी में एक स्वाद होता है, एक सौंधापन होता है, जो दूसरे फै़ट्स में नहीं होता है। अगर लैब-टेस्ट की बात करें तो सिर्फ़ घी के अंदर के तत्वों की रिपोर्ट दे सकते हैं लैब वाले। मेरे अनुभव से तो मैं यह कहूँगा कि जो जानकार हैं, जो घी खाते रहते हैं उनको घी की परख बहुत अच्छी होती है”, शिवकिशन जी ने अपनी बात कही।

मधुसूदन बाबू ने कहा, “एक चमचा देसी घी का खाइये और एक चमचा वनस्पति का, फ़ौरन आपको ख़ुद ही पता चल जायेगा असली और वनस्पति का। वनस्पति घी चिकना होता है और असली घी दानेदार। आप सब्जी बनाकर खाइये, दाल मैं असली घी का छौंका लगाइए फिर देखिये खाने का स्वाद कहाँ से कहाँ पहुंचता है” ।

अनिल जी लैब-टेस्ट की ज्ञप्ति देते हुए असली घी में एसेंस के मिलावट की बात की, ‘‘आज कल मार्केट में असली घी के एसेंस आ गए हैं लेकिन कितना भी एसेंस इस्तेमाल करलें, ओरिजिनल तो ओरिजिनल रहेगा। थोड़ा-सा जानकार या रेगुलर घी खानेवाला तुरंत बता देगा असली-नक़ली का फ़र्क़। ज़रा सा घी में फ़र्क़ और मिठाई की दृष्यता बदली! चौथा और सब से अहम् फ़र्क़ है मिठाई की शेल्फ़-लाइफ़। असली घी से मिठाई की शेल्फ़-लाइफ़ बढ़ जाती है”।

“लैब-टेस्ट एक सरकारी ख़ाना-पूर्ति और एक वैज्ञानिक आधार है। लेकिन सही टेस्ट वह है जब हमारी कढ़ाई में घी जाता है हम वहीं उसको परख लेते हैं की यह कितना सही है। कढ़ाई में डालते ही उस में से अगर खट्टी बू आये तो वह कम पका हुआ है। इस घी को दोबारा पकने के बाद घी को 1 किलोग्राम होना चाहिए, लेकिन वह 1 किलो 100 ग्राम रेहता है यानी बेचने वाले का इसमें फ़ायदा होता है। यह कार्य तब होता है जब घी की डिमांड ज़्यादा होती है। 

कम पकने से वह लोग रेट को एडजस्ट कर लेते हैं। हाई टेम्प्रेचर पर पकने की वजह से घी लाल हो जाता है जिससे हमें नुक़सान उठाना पड़ता है, हमारी मिठाई का रंग और टेक्सचर में भी बदलाव आता है। अगर असली चीज़ में नक़ली की मिलावट करदें तो उसका स्वाद बाक़ी नहीं रहता है और ना ही उस में बरकत होती है। हमारे यहाँ असली घी को लक्ष्मी माना जाता है और दिवाली में पूजा की मिठाई असली घी में बनती है। 

“हमारा यह सिद्धांत रहता है की घी सदैव भरोसेमंद विक्रेता से ख़रीदें, भले ही रेट ज़्यादा हो लेकिन उसका प्रोसेस ईमानदारी से करते हैं और अपने ग्राहक को बेस्ट क्वालिटी दें और उनका भरोसा हमारे साथ जुड़ा रहे”।

“हमारे प्रीमाइसेस में जब घी का प्रेषण (consignment) आता है हम उन सब कनस्तर के ब्रैंड और बैच नंबर, CA (Certificate of Analysis) की रिपोर्ट लेते हैं और अपने रिपोर्ट से मैच करते हैं की इस में कोई अंतर तो नहीं है। इस जांच को हम अपने यहाँ कैलिब्रेट करते हैं“।

 “हम ने अपना एक कैलेंडर बना रखा है जैसे के NABL Certificate और FSSAI से एफ़िलियेटेड है और जिस चीज़ की ज़्यादा खपत है उसका हम लैब टेस्ट करा लेते हैं”।

“हम अपने विक्रेता जिनसे हम घी ख़रीदते हैं उनसे मोल-भाव नहीं करते हैं, इससे वह हमारा ख़्याल रखते हैं और चीज़ भी बढ़िया देते हैं। हमारे यहाँ जितना भी रॉ मटेरियल आता है, हम वहां ख़ुद जाकर विज़िट करते हैं और अगर कहीं कुछ ग़लत होता है तो हम उन्हें सही सलाह देते हैं और गाइड करते हैं”।

कमलेश जी ने लैब-टेस्ट के बारे में बताया कि, “हम बस इतना पता लगा सकते हैं कि घी में कौनसे तत्त्व हैं और कितनी मात्रा में हैं। अगर एसेंस भी डाला है तो एकदम से पता नहीं चलेगा लेकिन अगर देसी घी होगा तो ज़रा-सा घी अपने हाथ के ऊपरी हिस्से पर लगाया तो धीरे-धीरे खुश्बू बढ़ती जाएगी।

“गर्मियों में असली घी को ज़्यादा संभालना पड़ता है क्योंकि कई बार घी कच्चा आ जाता है, कम गरम किया हुआ और उस में झाग भी आ जाता है। इस झाग की वजह से घी में खट्टी सुगंध होती है। इस घी को हम दुबारा छान कर गरम करते हैं और यह घी 12 महीने तक अच्छा रहता है। घी को लम्बे समय तक सही रखने के लिए ज़रूरी है के उसको 10 – 15 मिनट गरम करलें और फिर जो फ़ेन या झाग ऊपरी स्तर पर आता हैं उसे छान लेना ज़रूरी है“।

“रेपुटेड ब्रैंड्स के घी में भी अलग सुगंध होती है क्योंकि हर कोई अलग डंग से बनाता है। कोई मलाई से घी डायरेक्ट बनता है, कोई मक्खन निकाल कर फिर घी बनता है, कोई कच्चा रखता है। हर कोई अपने-अपने फ़ार्मूला इस्तेमाल करता है। कई बार तो ऐसा होता है के ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में यह लोग मिक्सिंग करते हैं। अलग-अलग घी लेकर मिक्स करके एसेंस मिला देते हैं, तेल और घी के मिश्रण में 2 बूँद एसेंस डाल देते हैं, खुशबू तो असली घी की होगी लेकिन ज़्यादा देर तक टिकती नहीं है और उसको ख़राब होना ही है”।

कमलेश जी से हमने एक और सवाल पूछा की भैंस और गाय के घी में से सबसे अच्छी मिठाई किस से बनती है?

तब उन्होंने MNT को बताया की बंगाली स्वीट्स गाय के घी में अच्छी बनती हैं।

कुछ लोग तो गाय के घी में से क्रीम निकाल लेते हैं लेकिन इससे मिठाई का टेस्ट और भी ख़राब हो जाता है। इसकी लाइफ़ भी ज़्यादा नहीं होती है। जो प्योर दूध की मिठाई बनती है उसकी खुशबू और टेस्ट दो नो लाजवाब होते हैं। अगर मिठाई देसी घी में बनानी हैं तो भैंस के घी में ही सही बनेगी जो दानेदार होता है, वही बढ़िया घी होता है।

लैब-टेस्ट का सवाल भूपत भाई से भी किया, उनका उत्तर था, प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्ट के अलावा, मिठाई निर्माताओं को ऐसे घी निर्माताओं पर भरोसा करना चाहिए जो गुणवत्ता को बनाए रखने में विश्वास करते हों। उन्हें विश्वसनीय, पेशेवर, संगठित कंपनियों के साथ सहयोग करना चाहिए जो एक ब्रैंड बनाने में विश्वास करते हों, न कि केवल घी का निर्माण करने के उद्देश्य से इसका व्यापार करते हों। कोई व्यक्ति जो ब्रैंड निर्माण की प्रक्रिया के साथ काम करता है, एक उद्देश्य के साथ काम करता है जो इस लक्ष्य को लेकर अपना काम ईमानदारी से करता है, वह कभी भी गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करेगा, इसीलिए मिठाई निर्माताओं को ऐसे निर्माताओं के साथ दीर्घकालिक व्यापार करना चाहिए।

तरुण जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी MNT से शेयर की, “मिठाई निर्माताओं को अगर लैब-टेस्ट के अलावा घी की गुणवक्ता की जांच करनी हो तो वह घी को एक कांच या शीशे के बर्तन में डालें और उसके अन्दर आयोडीन का सॉल्यूशन मिला दे जो घी भूरे रंग का होगा और अगर वह अपना रंग नहीं बदलता है तो वह घी ठीक है। अगर वह अपना रंग बेंगनी रंग में बदल देता है तो उस घी में ज़रूर कोई न कोई मिलावट है। दूसरा तरीक़ा यह है कि घी के अन्दर थोड़ी सी चीनी और थोड़ा सा हाईड्रोक्लोरिक एसिड मिला दें, इन दोनों चीज़ों को मिलाकर घी का रंग लाल या मरून हो जाता है तो समझ लेना चाहिए कि घी में मिलावट है”।

लैब-टेस्ट से सम्बंधित संदीप जी ने अपना विचार रखा, ‘‘सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा की हम लोग पहले RM वैल्यू टेस्ट करके घी की गुणवत्ता निकाला करते थे लेकिन अब मिलावट-ख़ोरों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है, इसलिए अब लेटेस्ट टेक्नोलॉजी में डबल वॉशिंग RM की सही लैब रिपोर्टिंग है जिस किसी को भी इसके बारे में अधिक जानकारी चाहिए वो हमारे कस्टमर केयर नंबर 9599959269 पर हमसे संपर्क कर सकते हैं या हमें ccaremsghee@gmail.com  पर ईमेल भेज सकते हैं। लैब टेस्ट रिपोर्ट अंतिम निष्कर्श पर आने के लिए सबसे प्रामाणिक रिपोर्ट है।

प्रमोद जी ने बताया कि, “हमारे घी की विशेषता है की वर्षपर्यन्त RM का घी उपलब्ध कराते हैं। जिस में हलवाई 3-4 घान कोई भी मिठाई की आराम से निकाल सकते हैं और मिठाई में चमक बनी रहती है और घी काला नहीं पड़ता है। चूँकि घी 30 RM का होता है इसलिए इसकी शेल्फ़-लाइफ़ साल भर होती है और FFA (acidity) नहीं बढ़ती है”। यही पैमाना है घी की शुद्धता को नापने का“। 

राकेश जी ने लैब-टेस्ट के प्रश्न का कुछ इस तरह से उत्तर दिया, ‘‘FSSAI ने विभिन्न parameters पर कुछ बेंचमार्क तय किए हैं जिन पर शुद्धता को मापा जा सकता है। मिठाई की ताज़गी में देसी घी की शुद्धता बहुत अहम भूमिका निभाती है। देसी घी की अच्छी गुणवत्ता न केवल मिठाई की शेल्फ़-लाइफ़ को बढ़ाती है बल्कि मिठाई में एक अतिरिक्त स्वाद भी जोड़ती है। मिठाई की दुकानों का उद्देश्य ग्राहक को गुणवत्तापूर्ण मिठाई उपलब्ध कराना है और साथ ही लाभ अर्जित करना है। यह तभी किया जा सकता है जब ग्राहक स्थायी और निरंतर हों और ये ग्राहक तभी स्थायी और निरंतर हो सकते हैं जब देसी घी से बनी मिठाई अच्छे घी की गुणवत्ता और स्वाद की हो।

स्वास्थ और देसी घी का सेवनः

TV और social media की तहत घी और घी से बनी खादय सामग्री को आम तौर पर मीडिया ने अस्वस्थ और हानिकारक दर्शाया है और सबको घी कम खाने की सलाह देता है। MNT ने सोचा की क्यों न यह सवाल अपने interviewees से पूँछलें? आगे बढ़कर हमने अपना सवाल रख ही दिया की क्या घी निर्माताओं को FSNM और मिठाई निर्माताओं के साथ जुड़ कर घी का प्रचार आम जनता तक पहुंचना चाहिए?

मधुसूदन बाबू ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा के असली घी खाने से कोई परेशानी नहीं है और मीडिया वालों को तो कोई बात मिलनी चाहिए नाम ख़राब करने का कि घी खाना सेहत के लिए ठीक नहीं है। शिवकिशन जी ने कहा के सब के विचार अलग-अलग होते हैं, डॉक्टर्स के विचार अलग हैं वह कहते हैं की गाय का घी खाया करो उससे दिल मज़बूत होता है, दिल के रोग नहीं होंगे, कोलेस्ट्रॉल अपने नियंत्रण में रहेगा।

शिवकिशन जी ने यह भी सलाह दी की, “ज़्यादती हर चीज़ की सही नहीं, हर चीज़ हिसाब से और लिमिट में ठीक रहती है। हम लोग घी भी खाते हैं, मिठाई भी खाते हैं लेकिन ऊपरवाले का कृपा है के हम लोगों  को कोई ऐसी बिमारी नहीं है क्योंकि हर खाना लिमिट में है। और जहाँ तक घी का सवाल है, मैं लगभग 100 ग्राम घी दिन का खा लेता हूँ। क्योंकि जब घी के टिन आते हैं तो उनको चखना पड़ता है, इसलिए घी का सेवन हो जाता है। घी खाने से पाचन शक्ति भी मज़बूत होती है“। 

मधुसूदन बाबू ने बताया कि, “पहले तो बिलौने का घी आता था और लगभग 100 टिन आया करते थे, उनको चखना पड़ता था लेकिन अब तो डेरी से आता है जो एक ही बैच का बना होता है फिर भी चखना पड़ता है”।

मधुसूदन बाबू ने हँसते हुए कहा के, “चखने चखने में कितना घी पी जाते हैं और यह सब मुमकिन है क्योँकि पाचन शक्ति अच्छी है!! पुराने खाये हुए हैं इसीलिए!!

अनिल जी देसी घी को प्रमोट करने में पीछे नहीं हैं। उनका मानना है की मार्केट में आये हुए नए ओलिव तेल और रिफ़िनेड तेल वालों ने अपनी बिक्री और निजी मक़सद को बढ़ावा देने के लिए देसी घी को बदनाम किया है। जिस तरह मिठाई को बदनाम कर के चॉकलेट को आगे बढ़ाया वैसे ही घी को बदनाम करने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। WHO या Best Advisory Borad of Food की तरफ़ से, उन्होंने घी को मान्यता दी है की घी शरीर के लिए बहुत ही बेहतरीन चीज़ है। 

अगर मैं विज्ञानी तौर पर बात करूँ तो घी में unsaturated fats होते हैं जो शरीर के लिए फ़ायदेमंद होते हैं। असली घी का हमारे शरीर में जाना बहुत ही आवयश्क है, यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। असली घी को दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसमें बहुत से विटामिन्स, एंटीऑक्सिडेंट्स (antioxidents) और हेअल्थी फ़ैट्स पाए जाते हैं।

देसी घी से जुड़ी स्वास्थ को लेकर कमलेश जी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कमलेश जी कहते हैं कि, “हर काम की ज़्यादती हानिकारक होती है, खाने के सिस्टम में भी वही बात है ज़्यादा खाओगे तो हानिकारक तो होगा ही। जैसा हमारा मोहनथाल बनता है एकदम ओरिजिनल तो उस में घी डाला जाता है, शकर है, ड्राई फ्रूट्स हैं, इलाइची, चना दाल, तो यह सब चीजें शुद्ध और ओरिजिनल होती है और खाने में लाजवाब।

“काठियावाड़ से बहुत घी सूरत, मुंबई आता है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब का घी वहीं पर इस्तेमाल हो जाता है। पंजाब, हरयाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में भैंस के दूध का ही घी ज़्यादा इस्तेमाल होता है क्योँकि उनको वही पसंद है। गुजरात में घी सिलेक्शन के अलग पैरामीटर हैं। गुजरात में गाय के घी का उत्पादन ज़्यादा है और नॉर्थ में भैंस का। गुजरात में गिर गाय की तादात ज़्यादा है इसीलिए गाय का घी पसंद करते हैं। 

“FSNM और बाक़ी निर्माताओं  को असली घी के लाभ का प्रचार बिल्कुल करना चाहिए। जैसे-जैसे सीज़न आता है, FSNM अपना advertisement करना शुरू कर देते हैं और बार-बार दिखते रहते हैं। हमको भी कुछ ऐसा करना चाहिए के जैसे ही सीज़न स्टार्ट होता है सब लोग विज्ञापन अभियान शुरू करदें, कि घी खाना सेहत के लिए अच्छा है, उस के लाभदायक बताएं और अपना प्रोडक्ट तो  वैसे भी हेअल्थी है। हम सब में एकता होना बहुत ज़रूरी है और एक साथ सब लोग एक राय होकर प्रचार करें, विज्ञापन करें, घी को गुणवत्ता बताये तो लोगों तक घी के स्वास्थ सुविधाएं पहुंचाएँ।

घी से जुड़ी बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए भूपत भाई ने घी और इसके सेवन के बारे में कई परम्पराएं बताईं हैं जो मानव शरीर में इसके वास्तविक लाभों के विपरीत हैं। उदाहरण के लिए, लोग मानते हैं किः

1.घी को पचाना मुष्किल हैः

इसके विपरीत घी प्राकृतिक ब्यूटिरिक एसिड वाले कुछ उत्पादों में से एक है, जिसमें सूजन को कम करने और भोजन के उचित पाचन का समर्थन करने के लिए प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने की क्षमता है। मल त्याग को नियंत्रित करने वाला, देसी घी क़ब्ज़ को दूर रखने में सहायता करता है। आयुर्वेद के अनुसार, गाय का घी पाचन तंत्र को चिकनाई देता है और गैस्ट्रिक एसिड को उत्तेजित करता है जिससे पेट की श्लेष्मा परत को बनाए रखने और मरम्मत करने में सहायता मिलती है, इस प्रकार घी पाचन में सहायता करता है और आँतों के स्वास्थ्य को बनाए रखता है।

2.घी खाने से वजन बढ़ता हैः

यह तो देसी घी से जुड़ी ग़लत फे़हमी में से एक है। बहुत से लोग वज़न बढ़ने के डर से घी के सेवन से परहेज़ करते हैं और घी नहीं खाने का विकल्प चुनते हैं, लेकिन सच यह है कि घी में संयुग्मित लिनोलिक एसिड वज़न घटाने में सहायता करता है, इसीलिए वज़न नहीं बढ़ने देता है और साथ ही प्लाक (plague) के गठन को रोक कर आँतों को भी मज़बूत करता है। दाल में थोड़ा सा देसी घी या एक चम्मच अपनी रोटी पर लगा कर खाने से आपको फ़िट रहने में सहायता मिलती है।

3.घी से हो सकता है हृदय संबंधी रोगः

दिल की बीमारी होने के डर से अक्सर लोग घी खाने से परहेज़ करते हैं। गाय का घी एंटीऑक्सिडेंट, संयुग्मित लिनोलिक एसिड और विटामिन A, E और D जैसे प्रमुख fat soluble विटामिन से भरा होता है, जो arteries के भीतरी जमाव को रोककर हृदय रोगों की शुरुआत को रोकता है।

गाय का घी भी आयुर्वेद दवा बनाने में प्रयुक्त सामग्री में से एक है, वास्तव में हम कुछ आयुर्वेद दवा निर्माताओं के आपूर्तिकर्ता भी हैं।

“हमें देसी घी का प्रमोशन शत प्रतिशत (100 %) करना चाहिए। घी निर्माताओं को घी के लाभों को दर्शाने के लिए सहयोग करना चाहिए और हमें निश्चित रूप से FSNM जैसे संस्थानों का सहयोग देकर हर एक तक पहुंचने के लिए प्रभावी अभियानों की योजना बनानी चाहिए,” कमलेश जी ने अपना प्रस्ताव रखा।

घी को एक हेअल्थी प्रोडक्ट का एलान करते हुए तरुण ने बताया, ‘‘देखा गया है कि आम तौर पर आज की युवा पीढ़ी और डॉक्टर्स यह सोचते हैं कि देसी घी से बनी खाद्य सामग्री स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। पुराने जमाने में घी को अमृत माना गया है, जो शरीर के लिये बहुत लाभदायक है। जिस तरह से त्वचा पर क्रीम लगाने से त्वचा में नमी आती है ठीक उसी तरह घी हमारे शरीर के अन्दरूनी अंगों को नमी तथा शक्ति प्रदान करता है। घी के अन्दर काफ़ी सारी वाइटमिन्स, मिनरल्स और बहुत से प्रकार के तत्व होते हैं जो हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। मैं बिल्कुल नहीं मानता कि घी हमारे शरीर के लिये हानिकारक पदार्थ है। घी निर्माताओं को FSNM व मिठाई निर्माताओं के साथ मिलकर घी का प्रचार व घी से बनी हुई मिठाईयों का प्रचार व उससे जुड़े हुये लाभों को आम जनता तक पहुँचाना बहुत ज़रूरी है, इससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी”।

संदीप ने हामी भरी और कहा, ‘‘हाँ जी, बिल्कुल हमें FSNM के साथ असली घी का प्रमोशन और विज्ञापन दोनों करना चाहिए और अब तो लेटेस्ट अमेरिकन रिपोर्ट ने भी बता दिया है कि देसी घी सेहत के लिए अच्छा होता है”।

राकेश जी ने वैज्ञानिक अप्रोच के साथ जवाब दिया की, “बहुत से लोग घी से बनी मिठाई खाने से डरते हैं, ख़ासकर महानगरों में। यह एक myth (ग़लत धारणा) है कि घी खाने से वज़न बढ़ता है। किसी भी चीज़ का ग़लत तरीके़ से सेवन करने से सेहत को नुक़सान होता है। उदाहरण के लिए बहुत अधिक नमक का सेवन करने से उच्च रक्तचाप होगा और बहुत अधिक चीनी का सेवन करने से शुगर की बीमारी होगी। इसलिए संतुलित आहार बहुत ज़रूरी है। अब हमें इस बात को बढ़ावा देना चाहिए कि आहार योजना में किसी भी तरह से घी का सेवन बहुत महत्वपूर्ण है। इसके आयुर्वेदिक लाभ भी हैं। पुराने दिनों में जब हम अपनी दादी के घर जाते थे तो हमारी दादी हमारी दाल की कटोरी में एक चम्मच घी भरकर खिलाती थीं, यह दर्शाता है दादी का प्यार, स्नेह, चिंता आपके स्वास्थ्य के लिए। इसे इसी तरह प्रचारित किया जाना चाहिए। मीडिया के विभिन्न रूपों के माध्यम से बहुत सारी नकारात्मक ख़बरें जैसे नक़ल और मिलावट की ख़बरें प्रसारित की गई हैं। और किसी भी स्रोत के माध्यम से कुछ भी सकारात्मक नहीं दिखाया गया है, इससे उपभोक्ता के मन में देसी घी और देसी घी से बनी मिठाईयों के प्रति संदेह पैदा हो गया है।

प्रमोद जी भी घी को प्रमोट करने में पीछे नहीं हैं। वह तैयार हैं कि घी को बिल्कुल प्रमोट किया जा सकता है। “आज पारस घी 64 देशों में अपने उत्पाद निर्यात करती है और 2019 में Second Best exporter का अवॉर्ड भी मिला। Middle East में तो घी का प्रयोग दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर कह सकते हैं की विदेशों में देशी घी का भविष्य उज्जवल है”।

अगला सवाल MNT का रहा कुछ इस तरह के पष्चिमी देशों में घी ज़्यादातर नहीं खाया जाता तो क्या असली घी को पूरी दुनिया में एक हेल्थी फै़ट की तरह प्रमोट किया जा सकता है?

शिवकिशन जी दुनिया परखे हुए हैं। उन्होंने यह बताया की यूरोप-अमेरिका में मक्खन (Butter) ज़्यादा खाया जाता है। उनके खाने आमतौर पर फीके होते हैं, ज़्यादा स्वाद वाले खाने नहीं खाते हैं तो उनको घी के स्वाद का पता ही नहीं है।

मधुसूदन बाबू ने बताया के, “गाय के घी को वेस्टर्न वर्ल्ड में प्रमोट कर सकते हैं क्योंकि उनकी डेरी में गाय ज़्यादा होती हैं और भैंस के घी में फै़ट कंटेंट ज़्यादा हैं। नैचुरली गाय के घी में बेनिफ़िट्स बहुत हैं और उसके कई फ़ायदे हैं जो हम लोग उसे हेअल्थी प्रोडक्ट का प्रचार करके वहां प्रमोट कर सकते हैं। जैसे हम लोग अपनी मिठाईयाँ एक्सपोर्ट कर रहे हैं वैसे ही गाय का घी एक्सपोर्ट कर सकते हैं, कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन गवर्नमेंट प्रोटोकॉल को मद्दे नज़र रखते हुए डेरी प्रोडक्ट्स को एक्सपोर्ट करने की इजाज़त नहीं है इसीलिए सप्लाई अभी नहीं हो सकती है।   

शिवकिशन जी ने यह भी बताया के अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में दूध के उत्पादन ज़बरदस्त है लेकिन उस दूध को प्रोसेस करके चीज़ (Cheese) बनाया जाता है। वहॉँ के लोग बाक़़ी डेरी प्रोडक्ट्स से बटर और चीज़ को ज़्यादा पसंद करते हैं।

 “हम तो यही राय देते हैं के मिठाईयाँ देसी घी की सब से अच्छी होती हैं और देसी घी खाने में नुक़्सान नहीं करता। चाव से खाओगे तो शरीर को भी लगेगा”, अंतः में शिवकिशन जी ने अपनी राय पेश की ।

अनिल जी कहते हैं की, “देसी घी का प्रचार अंतराष्ट्रीय लेवल पर एक हेअल्थी कुकिंग मीडीयम के नाम से ज़रूर होना चाहिए। विदेशों में दूध का मास प्रोडक्शन है लेकिन वह अपना सारा दूध चीज़ और बटर बनाने में लगा देते हैं या तो फिर पिने में और कोई ज़्यादा प्रोडक्ट नहीं है लेकिन हमारे हिंदुस्तान में दूध की खपत ज़्यादा है। विदेशी इसका बटर-आयल (Butter oil) बना देते हैं। बटर-आयल भी एक तरह का मक्खन होता है लेकिन उसको पकाया नहीं जाता है और यह विदेश से आयात किया जाता है। बटर-आयल को सस्ते घी के तौर पर बेचा जाता है लेकिन यह नक़ली भी नहीं होता लेकिन उस श्रेणी का भी नहीं होता जो हम घी बनाते हैं। बस आप यूँ समझ सकते हैं दिल की तस्सली के लिए यह घी है। हमारे देश में दूध कम नहीं है फिर भी हमें घी बहार से इम्पोर्ट करना पड़ता है, क्यों ? हमारे देश में दूध की खपत बहुत ज़्यादा है।

भारत में भैंस के दूध का घी बनाये तो उस में लागत बहुत ज़्यादा होती है। किसी सीज़न में घी की ज़रूरत बहुत होती है तो उस में कुछ कंपनी वाले अपने रेट को एडजस्ट करने के लिए बटर-आयल मिल देते हैं। इम्पोर्ट होने के बाद, बटर-आयल बहुत दिनों तक कोल्ड स्टोरेज में पड़ा रहता है, जैसे जैसे डिमांड आती रहती हैं उसे गरम कर के घी बना कर उसी रेट पर बेचते हैं। लेकिन वह उतना फ़ायदे मंद नहीं होता और शेल्फ-लाइफ़ भी कम होती है ।

कमलेश जी ने भी वही कहा जो सब ने कहा की यूरोप और अमेरिका में घी का चलन नहीं है, वह लोग बटर को ज़्यादा प्रिफ़र करते हैं । लेकिन अगर हम लोग घी को सही तरीक़े से पेस्चराइज करें इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड के हिसाब से और एक अच्छा ब्रैंड बनाकर विदेशों में सप्लाई करें तो डेफिनिटेली भारत बहुत बढ़िया एक्सपोर्ट मार्केट बन सकता है।

भारत में जब पर्यटक आते हैं, घी में बनी मिठाई को बहुत पसंद करते है। अच्छा लगता है और खुशी होती सुनकर जब पोसिटिव रेस्पॉन्स देते हैं। डेनमार्क, जर्मनी, अमेरिका, कनाडा में बहुत बड़े-बड़े डेरी फार्म्स हैं और दूध भी बहुत होता है, लेकिन वहां क्रीम का उपयोग ज़्यादातर चीज़ बनाने में होता है, वह लोग घी बनाते ही नहीं हैं क्योँकि वह फैट्स नहीं खाते।

“अंतः असली घी सेहत के लिए बहुत अच्छा है और उसके फ़ायदे भी बहुत है। असली घी में बनी मिठाईयाँ नुक़्सान नहीं देतीं। वनस्पति  में मिलावट बहुत होता है। उसे में कई प्रकार के घी मिक्स किये जाते हैं, कौन-कौन से इंग्रेडिएंट्स मिक्स करते हैं पता नहीं जो हम को नुक्सान दे सकते हैं। बड़ा मिठाई वाला हो चाहे छोटा, रेड़ीवाला हो या दुकानदार, अगर सही और असली इंग्रेडिएंट्स अपने पकवान में यूज़ करेंगे तो आप अपने ग्राहक का विश्वास जीत सकते हो। मिलावट मत करो, मेरा यह कहने का मतलब है के थोड़ा बनाओ लेकिन अच्छा बनाओ, मेरा  यह पक्का यक़ीन है के जब आप क्वालिटी देंगे तो आपका ग्राहक आप के पास दुबारा ज़रूर आएगा।

MNT को अपनी बात बताते हुए भूपत भाई ने अपना द्रश्टिकोण पेश किया की वास्तव में दुनिया के पष्चिमी भाग में लोग अब भारत से ज़्यादा गाय के घी के लाभों के बारे में अधिक जागरूक हैं। यही बात से संदीप भी सहमत हैं।

उन होने भी यही कहा की अब वेस्टर्न वर्ल्ड में घी फिर से प्रचलन में आ गया है और बढ़ते हुए क्रम की ओर है, तो हाँ घी को पूरी दुनिया में हैल्थी फैट की तरह प्रोमोट किया जा सकता है। भूपत भाई ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के पश्चिमी हिस्से में गाय के घी की खपत में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है। यह दुखद है लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में घी की उत्पत्ति होने के बावजूद भारतीयों ने हमेशा इसके महत्व को कम समझा और बड़े पैमाने पर पश्चिमी संस्कृति का पालन किया है। जो लोग फिट रहने के विचार का समर्थन करते हैं, उन्होंने ज़ैतून के तेल आदि का सेवन करने के मामले में पश्चिमी लोगों की पैरवी कर रहे हैं और अब जब पश्चिमी लोगों ने जै़तून के तेल को गाय के घी से बदलना शुरू कर दिया है, तो अचानक भारतीयों ने भी इसका पालन करना शुरू कर दिया है”।

“देसी घी को पूरी तरह से दुनिया भर में प्रचारित किया जाना चाहिए। घी में मौजूद मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड आहार फै़ट का एक जरिया है, जो फैट कोशिकाओं को ऊर्जा जलाने में मदद करता है और दुबले शरीर के निर्माण को बढ़ावा देता है। अपने आहार में एक चम्मच घी शामिल करने से आपकी कमर, कूल्हों और जांघों की ज़िद्दी चर्बी कम हो सकती है। हाई स्मोक पॉइंट (high smoking point) अच्छे फै़ट को मुक्त कणों में बदलने से रोकता है जो सूजन और हृदय स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। घी में कई तेलों की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर पकाना (लगभग 250°C) होता है, इसलिए इसे खाना पकाने के लिए सबसे सुरक्षित माध्यम माना जाता है और डीप-फ्राइंग और stir-फ्राइंग के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प माना जाता है।

घी का सेवन carcinogen detoxification को बढ़ाता है और कैंसर के बढ़ने की संभावना को कम करता है, इस प्रकार यह कैंसर के ख़तरे को कम करता है। एक एजेंट के रूप में कार्य करना जो उच्च ग्लूकोस स्तरों के स्तर की पाचन शक्ति को संतुलित करता है, यह इंसुलिन के उत्पादन को उत्तेजित करता है, इससे शुगर को नियंत्रण में रखने में मदद मिलती है। दो चम्मच घी लेने से भी महिलाओं में हार्मोनल संतुलन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है”।

 तरुण जी ने अपना कहा MNT के सामने रखा, ‘‘पाश्चात्य दुनिया में घी पर इसलिये ज़ोर नहीं दिया जाता है क्योँकि वह लोग अपने यहाँ बने हुये तमाम तरह के वेजीटेबिल ऑयल व ओलिव (व्सपअम) ऑयल की मांग दुनिया में बढ़ा सकें जबकि सत्य यह है कि हमारे शरीर के लिये दूध से बनी बसा (घी या बटर) सर्वोत्तम है। अतः हमें घी को पूरी दुनिया में हेल्थी फ़ैट की तरह प्रमोट करना चाहिये”।

राकेश जी ने व्याख्यात्मक-रूप से कहा, “अगर हम पश्चिमी देशों की बात करें तो घी को स्वस्थ वसा के रूप में बढ़ावा देने के बजाय हमें इसे स्वस्थ भोजन और इसके लाभों के रूप में बढ़ावा देना चाहिए। सबसे पहले हमें उन्हें प्रसंस्करण के लिए संग्रह के स्वच्छता स्रोत के साथ शिक्षित करना चाहिए और अपनी आहार योजना में अच्छे वसा का सेवन न करने से आपको क्या नुक्सान है वो बताना चाहिए”।

“अगर मैं संक्षेप में कहूं तो दो चीजें सबसे ज़्यादा प्रभावित करती हैंः

1. घी की नकारात्मक मार्केटिंग

2. बाज़ार में जो मिलावट हो रही है उसे मीडिया द्वारा उजागर किया जा रहा है”

हमारा आखि़री सवाल घी के निर्माताओं से रहा। हमने उनकी कंपनी में बने घी की विषेशताओं पर प्रका डालने की आग्रह किया और इस का उत्तर उन्होंने बख़ूबी दियाः

भूपत भाई सुखड़िया ने विस्तार में अपना परिचय दिया, ‘‘2015 में हमारा संगठन सूरत, गुजरात में स्थित श्री राधे डेयरी फार्म एंड फूड्स प्राइवेट लिमिटेड (वास्तु डेरी) में हुआ। हम डेरी व्यवसाय में हैं जहां हम गाय का देसी घी, दूध और बेकरी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। पिछले 5 वर्षों में हम अपने ब्रैंड वास्तु घी के लिए भारत के 21 राज्यों में 900 से ज़्यादा वितरकों के वितरण नेटवर्क के साथ वास्तव में तेज़ गति से बढ़ने में सक्षम हैं। हम सरकारी framework और guiidelines के तहत काम करते हैं। हम FSSAI, ISO प्रमाणित हैं। हमारे पास AGMARK विशेष ग्रेड है। हमारा अपना दूध संग्रह केंद्र है। पूरी निर्माण प्रक्रिया इन-हाउस है। हमारे कारख़ाने में तैनात प्रौद्योगिकी और मशीनरी सभी स्वचालित हैं और शून्य संपर्क प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

तरुण अग्रवाल अपने सुविचार का बयान किया, ‘‘आखि़र में, मैं यही कहना चाहूंगा कि घी निर्मता के तौर पर हमारे यहाँ बनी घी की विषेशता यह है कि इसे हाथों से छूये बिना एडवांस मशीनों के द्वारा अच्छी दूध की क्वालिटी व अच्छी नीयत से बनाया जाता है। मैं व्यक्तिगत तौर पर यह मानता हूँ कि कोई भी बड़ी कम्पनी अपनी ब्रैंड-वैल्यू के संग और अपने सम्मान के संग नहीं खेल सकती है और जिस कम्पनी से तमाम परिवार जुड़े हुए  हैं, उन परिवारों के संग धोखा नहीं करेगी। हमारी यह सोच है कि हम वही चीज़ ग्राहक को खिलायें जिसे हम खु़द खाना पसंद करते हैं व अपने परिवार को भी खिला सकें”।

संदीप अग्रवाल ने भी अपना परिचय दिया, ‘‘हम पिछले 28 वर्षों से घी का उत्पादन करते आ रहे हैं। हमारे घी की सबसे बड़ी पहचान ये है की आज मधुसूदन देसी घी अपनी कसौटी पर खरा उतरा है इसका मुख्य कारण ये है कि हम दूध सीधे किसान भाइयों से ख़रीदते हैं जिससे हमारे बीच कोई बिचैलिया नहीं होता, इससे हमें शुद्ध दूध मिलता है, यही वजह है हमारा घी बाज़ार में उपलब्ध अन्य देसी घी के RM वैल्यू में सर्वश्रेष्ठ पाया जाता है”।