प्राचीनतम शहर काशी, प्रयागराज  से ले कर आधुनिक शहर  देहरादून का सफ़रनामा 26.0

मिठाईयों के स्वाद और गुणवक्ता की चरम सीमा-वाराणसी, प्रयागराज और देहरादून

हर सफ़रनामा कुछ न कुछ ऐसी यादें छोड़ जाता है जिसको मैं कभी भुला नहीं सकता, मगर ये सफ़रनामा कुछ ज़्यादा ही ख़ास था क्योंकि इस में भारत के प्राचीनतम शहर वाराणसी-बनारस, प्रयागराज (इलाहाबाद) और नवीनतम शहरों में से एक देहरादून का भ्रमण हुआ। 

गुवाहाटी से मुझे किसी अत्य आवश्यक काम के लिए मुंबई वापस आना पड़ा जिसको मैंने 2 दिनों में निपटा दिया और निकल गया वापस नए अनछुए पहलूओं को समझने, वाराणसी। वाराणसी का वर्णन अगर मैं करूँ तो छोटा मुँह बड़ी बात होगी इसका उल्लेख सभी ग्रंथों में है। ये पूरे विश्व की सभ्यताओं के सबसे पुराने शहरों में से एक है। मगर यहाँ के मिठाई वाले अलग ही हैं, कुछ पुराने तरीक़ों को बचाये और संभाले खड़े हैं मगर व्यस्त बहुत हैं और कुछ मॉडर्न तारीक़ों से अपना कारोबार आगे बढ़ने में लगे हैं।

पूछने पर मालूम हुआ के यहाँ की मिठाईयों का इतिहास बहुत ही अलग है। चाहे हो बनारसी पान या चाहे हो यहाँ के अलग-अलग तरहाँ के भोजन, मगर जो बात यहाँ के मलईय्यो में है वो किसी में नहीं। बनारसी मलइय्यो अनूठी स्वादिष्टता से भरी हुई मिठाई है जो बनारस और बाहर से आये लोगों के दिलों को चुरा लेती है। इस मिठाई को तैयार करने की विधि विशेषता से भरी है, जिसमें ओस की बूँदों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। 

यह मिठाई सिर्फ़ ठंड के मौसम में ही बनाई जाती है और इसकी खुश्बू और ख़ास टेक्सचर इसे अनोखा बनाती हैं। जब इसे एक बार खाते हैं, तो इसकी मिठास और लाजवाब ताज़गी के चलते, इस मिठाई का लुभाव हमेशा बना रहता है। बनारस के चर्चित मलइय्यो मिठाई का स्वाद पूरे भारत में लोकप्रिय है और यह विशेष त्यौहारों और समारोहों पर भी अपनी ख़ास पहचान बनाए रखती है।

जाना गर्मी के मौसम में हुआ था तो मलइय्यो तो नहीं मिली मगर कई ऐसी मिठाईयों को खाने का मौक़ा मिला जो बड़ी ही स्वादिष्ट थीं। बनारसी मिठाईयों पर बंगाली मिठाईयों का भी काफ़ी प्रभाव है, ये भी देखने को मिला। बस मुंबई से सुबह की फ़्लाइट ले कर मैं लगभग 12 बजे वाराणसी की धरती को जा लगा।

पहले ही बात हो गयी थी पुनीत से की वो भी लगभग इसी समय पर दिल्ली से आ जायेगा तो मैं ने एयरपोर्ट पर ही प्रतीक्षा करना बेहतर समझा। पुनीत की टीम पहले से ही आफ़ताब के साथ वाराणसी में थी तो वो लोग हमें लेने एयरपोर्ट ही आ गये। कुछ ही देर बाद पुनीत नज़र आये और साथ में प्रकट हुए विपिन जी जिनको मैं गुवाहाटी में छोड़ कर आया था। इनकी भी दाद देनी होगी के दो ही दिनों में दिल्ली जा कर आ गये। 

बस क़ाफ़िला यहीं से बन गया और आने लगे बनारसी दोस्तों के फ़ोन। राजेश स्वीट्स के मालिक रोहित यादव सबसे पहले थे जिन्होंने जानकारी ली। हमारा क़ाफ़िला श्री अन्नपूर्णा स्वीट्स की ओर निकल पड़ा जहाँ परम मित्र उमंग झुंझुनवाला प्रतीक्षा में थे। उमंग अपने पुश्तैनी कारोबार को ही आगे बढ़ा रहे हैं। इनके मिठाई के कारोबार के अलावा अपना होटल, बैंकेट हॉल और सबसे ज़्यादा ज़रूरी बेकरी भी है। बेकरी के प्रोडक्ट्स को देख कर ये नहीं लगता था के वे बनारस में बनाई गयीं हैं। किसी भी आधुनिक शहर जैसे बेंगलुरु या हैदराबाद जैसी ही क्वालिटी और फ़ेशियल लुक्स थे। बस उमंग बाहर ही खड़े थे, मिलना पहले भी हुआ था मगर खुल कर आज बैठे थे अपनी-अपनी बातें रखने उमंग  ने बताया के एक दिन पहले ही उनके घर में नई मेहमान आई है, उनकी बेटी। सुनकर बहुत अच्छा लगा और सबने बधाई भी दी।

अत्यंत स्वादिष्ट भोजन खाने के बाद उमंग ने निराला पेय पिलाया, जो था बनारसी पान वाला मोहितो। बातों ही बातों में उमंग  ने बताया के वे इस क्षेत्र के सबसे बड़े ब्रैंड निर्माता भी हैं और ये ही बात मुझे अपने मिठाई नमकीन व्यापार की अच्छी लगती है के हम नया कुछ करने से पीछे नहीं हटते। ख़ास तौर पर अगर फूड इंडस्ट्री में कुछ भी नया करना हो तो हमारे युवा सदा आगे रहते हैं और इसीलिए मैं इस फूड इंडस्ट्री के वर्टिकल को ”इंजन ऑफ़ दी फूड इंडस्ट्री” बुलाता हूँ और मंचों पर भी यही कहकर पुकारता हूँ। 

खाने के बाद हम ऊपर ही श्री अन्नपूर्णा के बैंकेट हॉल में चले गए जहाँ उमंग ने अच्छा मीटिंग का इंतेज़ाम कर रखा था और धीरे-धीरे वाराणसी और आसपास के ज़िलों से मिठाई व नमकीन निर्माता आने लगे। इन में सबसे प्रमुख थे हर्ष जलान, गणेश मिष्ठान, गोरखपुर। हर्ष भाई, उमंग और रोहित की तरह एक अच्छे मित्र हैं और FSNM के पुराने सदस्य भी हैं। अब तो मुझे ये भी याद नहीं रहता के कौन कब मेंबर बना मगर ये ज़रूर पता रहता है के हमारे एक न एक झंडे उठाने वाला सेनापति हर ज़िले में होता ही है। ये आप सबका प्यार है और अपने व्यापार को बचाने और बढ़ाने की निर्णायक लड़ाई है। निर्णायक मैं इस लिए कह रहा हूँ के अब कोई दूसरा मौक़ा नहीं मिलेगा, हमे इसी दशक में सभी को पछाड़ कर आगे निकलना होगा अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए। 

FSNM सदा आपके लिए लड़ने को तैयार है और एक-एक करके लगभग सभी मोर्चों पर फ़तह मिल रही है। इसमें बहुत बड़ा योगदान हमारे रेगुलेटरी टीम के चेयरपर्सन डॉ. बैजू भाई मेहता और टैक्सेशन टीम के सदस्य संजय सिंघानिया जी का है। FSNM किसी कॉर्पोरेट संस्था की तरह न कभी सामने आई है और न इसके मूल-भूत ढांचे में है। हम सदा ज़मीन से जुड़े लोगों की संस्था ही बने रहें तो बेहतर होगा। और ये ही हमारी लगातार उपलब्धियों का कारण भी है। 

लोग जुड़ते गए और मीटिंग का आग़ाज़ हुआ, कई मुद्दों पर चर्चा रही और ये समझ में आया के वाराणसी के मिठाई निर्माताओं को अब आधुनिक तकनीकों का सहारा लेना होगा और न सिर्फ़ प्रोडक्शन पर ध्यान देना होगा बल्कि पैकेजिंग को भी सुधारना होगा। बस मीटिंग ख़त्म हुई और हम निकल गए रोहित के साथ उनके राजेश स्वीट्स के शोरूम्स को देखने। शाम भी हो चली थी  रोहित की पत्नी तानिया जो के खुद एक इंटीरियर डिज़ाइनर हैं ने बहुत ही सुंदरता के साथ काफ़ी कम जगह में मिठाई का शोरूम और एक कैफ़े बनाया है, जिसको देख कर लगा के कुछ नया देखा। इंटीरियर में उन्होंने अच्छे रंगों का प्रयोग किया है और उसकी छत्त कुछ इस तरह से डेकोरेट की है जैसे लगे के एक कैफे़ ऊपर भी है मगर उल्टा लटका हुआ। यानि वही सब टेबल-कुर्सी, प्लेट-चमचे छत्त में भी लगे हैं मगर उलटे। बड़ा ही नया प्रयोग है और मुझे पूरा यक़ीन है कि ग्राहकों को भी पसंद आता होगा।

कुछ देर बिताने और मिठाईयों का स्वाद लेने के बाद हम निकल गए बनारसी पान खाने जो के  रोहित के अनुसार बनारस के सबसे उम्दा बनारसी पान की दुकान थी। पान बहुत अच्छा लगा और उससे भी अच्छा लगा उनका खिलाने का अंदाज़। वहाँ से हम डिनर के लिए निकल गए और देर रात को होटल में जाकर आराम किया। यहाँ से हमने अपने बनारसी दोस्तों को अलविदा कहा और अगली सुबह निकल गए प्रयागराज की ओर। रास्ता बहुत ही सुन्दर था और साथ में पुनीत और विपिन जी थे। मैं गाड़ी को ड्राईव कर रहा था और क्योंकि हाल ही में पुनीत का घोड़े से गिरने की वजह से एक्सीडेंट हुआ था और उनके बाएं हाथ में प्लास्टर बंधा था, फ्रै़क्चर की वजह से। फ्ऱैक्चर कलाई में हुआ था तो थोड़ा संगीन मामला था। मैं पुनीत को पूरे रास्ते यही समझाता रहा के थोड़ा ध्यान रखा करें अब हम लोग 40 की उम्र पार कर चुके हैं और शरीर का ध्यान रखना ज़रूरी है। इसका जवाब मुझे ऋषीकेश में मिला, क्या मिला मैं आपको आगे बताऊंगा। 

इलाहाबादियों का अंदाज़ अलग ही होता है चाहे वो हों अकबर इलाहाबादी और चाहे वो हों अमिताभ बच्चन !! यहाँ एक से बढ़ कर एक मिठाईवाले, या यूँ कहें के उत्तर प्रदेश के अकबर और अमिताभ यहीं बस्ते हैं। भगवानदास हों या हों नेतराम, या हों क़ादरी या हीरा स्वीट्स, सब एक से बढ़ कर एक स्वादिष्ट मिठाईयों को खिलाने वाले। मीटिंग में पहुंचने से पहले ही द्वार पर सबका जमावड़ा था और स्वागत भी भव्य। बस मीटिंग में दाखि़ल हुए और सबसे मिलना शुरू हो गया। 

कई पुराने मिलने वाले और कई नए चेहरे, सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। यहाँ के बारीक मोतीचूर के लड्डू, काली गाजर का हलवा, ख़स्ता-दम-आलू, समोसे, इमरती, सब कुछ वही पुराने टेस्ट वाले और पुरानी यादों को ताज़ा करने वाले। अभी तक मैं फ़्यूज़न की बात करता हूँ, आधुनिक लुक्स की बात करता हूँ, मगर इस धरोहर को बचाना भी एक कला है जो इलाहाबादियों ने बखूबी संभाल कर रखी है।

मीटिंग ख़त्म होते ही निकल गए अंकित गुप्ता, भगवानदास प्रह्लाद दस एंड सन्स के शोरूम पर। वही पुराने स्वादों को खा कर मंत्र-मुग्ध हो गए साथ आये सभी लोग। काफ़ी चीजें जैसे ख़स्ता, लड्डू, जलेबी, समोसे खाने के बाद हम निकल गए हीरा स्वीट्स पर जहाँ की नारियल की मिठाई सबसे ज़्यादा स्वादिष्ट लगी। सदियों पुरानी सड़क किनारे की दुकान और नाम बड़े-बड़े देश के मिठाई वालों की श्रेणी में, यही है इलाहाबाद के हीरा स्वीट्स। 

रोहित केसरवानी ने बताया नज़दीक ही एक आधुनिक शोरूम भी तैयार हो रहा है जिसकी ज़रुरत उनसे ज़्यादा इलाहाबादियों को है। यहाँ से हम गए नेतराम स्वीट्स पर लगभग 150 साल पुराने शहर के बीचो-बीच सर-सीना चैड़ा करके खड़ी है और ये बोल रही है के हम हैं पुराने स्वादों के संभालने वाले आओ और चखो वो जो तुम्हारे बुजुर्गों ने खाया होगा जब वे कुंभ के मेले में यहाँ आये होंगे, प्रयागराज, दशकों पहले।

समय कम था और मुझे शाम को लखनऊ पहुंचना था तो मैं यहाँ से जल्दी निकलना ही बेहतर समझा, मगर ये सोचना गलत था क्योंकि जब आएं इलाहाबाद तो सैनिक स्वीट्स को कैसे भूल जाये। यहाँ की दूध की मिठाईयों का अनोखा और स्वाद की सारी सीमायें लगने वाला होती हैं। ये मुझे वहाँ जा कर ही मालूम हुआ। संजय कुशवाहा बाहर ही प्रतीक्षा में खड़े थे और लगा रखी थी मिठाईयों की लाइन हमारे स्वागत में। अब आप ही बोलिये इतने महानतम जगहों से जब मैं आया तो जगह कहाँ होगी पेट में? मगर ना-ना करके भी 2-4 मिठाईयाँ तो चख ही डालीं। दूध की सारी मिठाईयाँ एक से बढ़ कर एक किसी भी बंगाल के कारीगर को ले आएं, और खिला दें, अगर कोई गलती निकल जाये तो बात रही। मैं उन पर भी लेख लिखने का वादा करता हूँ। मुंबईया भाषा में, ”एक नंबर की मिठाईयाँ खाई सैनिक स्वीट्स पर”। 

बाहर निकले तो सामने ही क़ादरी साहब खड़े थे, ”चलिए हमरे यहाँ भी” बस समय व्यर्थ न जाये, निकल गए क़ादरी स्वीट्स की ओर। ये वाला शोरूम उनके घर के बाहर ही है, कई मिठाईयाँ को खाया मगर उनकी लोस-बादाम मिठाई की बात ही अलग थी। बताते हैं कि ये सदियों से उनके बुजुर्गों के नाम पर बिकती चली आ रही है, जो भारत के सभी कोनों में कूरियर से सप्लाई होती है और अनगिनत विदेशी इसको बड़ी मात्रा में खाड़ी के देशों में ले जाते हैं। 

क़ादरी साहब के अनुसार वहाँ के अरबी लोग इसको बहुत पसंद करते हैं। ये भी बताते चलें के उनके ही बुजुर्गों ने काली-गाजर का हलवा भी बनाया था जो आज तक इलाहाबाद वासियों के दिल के नज़दीक है। अंकित गुप्ता ने मुझे पिछली बार भी चंडीगढ़ में ये खिलवाया था जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है। इस बार अंकित से कॉल करके मँगवा लूंगा, सर्दियों में। 

ये सिर्फ़ 2 दिन की ही दिन-चर्या है और आप देखिये मिठाईयों का कंज़म्पशन मेरे से ज़्यादा कोई करता है भला, पूरे भारत में ? यूँ ही नहीं लोग करते हमसे इतना प्यार। बस यहाँ से लखनऊ का रास्ता पकड़ा और एक दिन विश्राम किया अपनी कज़िन के घर निकल पड़े हम देहरादून की ओर। सही मानों में देहरादून की यात्रा निजी थी मगर कुछ भी निजी नहीं होता जब आप जैसे दोस्त और चाहने वाले भारत के हर कोने में उपस्थित हों। मेरा परिवार लखनऊ में ही था सब साथ में देहरादून एयरपोर्ट से ऋषीकेश चले गये। वहाँ मेरा और अतिरेक का अपॉइंटमेंट था डॉ. हरी नारायण नम्बूदरीपद के साथ पंचकर्मा के लिए। 

अतिरेक वहीं एयरपोर्ट पर ही मिल गए और साथ हम चले गए अपने इलाज करवाने ऋषीकेश, माँ गंगा के किनारे। बहुत अच्छा सुहाना मौसम था और नज़ारे भी एक से बढ़ कर एक। वहीं का खाना और वहीं का इलाज और बाहर का कुछ भी नहीं केवल व्यायाम और पैदल सैर, यही बाहर जा कर किया जा सकता था।

दो दिनों में ही हमें अपने मिठाई वाले याद आने लगे और लगा दिया फ़ोन सुमित खंडेलवाल, आनंदम स्वीट्स देहरादून को। न सिर्फ़ ये बल्कि इनके पिताजी भी बहुत अच्छे मित्र हैं जो के कहीं बाहर गए हुए थे काम से। वापस आते ही उनका कॉल आया के आप आईये देहरादून। बच्चे भी कुछ घूमना चाहते थे और मैं भी एक ही रूटीन से थक गया था तो हम नें देहरादून जाने का मन बनाया। डॉ. साहब से वादा लिया के वहाँ सिर्फ़ दाल-खिचड़ी ही खाएंगे। बड़ी मुश्किल से डॉ साहब तैयार हुए और हम आज़ाद हुए जेल से। सोचा था बच्चों के साथ सिर्फ़ घूमना ही घूमना होगा और आनंद गुप्ता जी के साथ मिलना पर वहाँ का नज़ारा अलग ही था। पूरा मिठाई व नमकीन समाज वहाँ एक घंटे के नोटिस पर आनंदम स्वीट्स में हमारी प्रतीक्षा में था।

ये कोई औपचारिक मीटिंग भी नहीं थी मगर इसको आनंद जी ने महा-औपचारिक बना डाला और सबको देख कर मानो मुझे लगा के क्या मैं इतने प्रेम के ल़ायक भी हूँ या नहीं? और आज भी यही सोचता हूँ के इस आदर और सत्कार को मैं लिखता चला जाऊँ ताकि आने वाली पीढ़ी इसे एक डॉक्युमनेटरी की तरह पढ़े और याद रखे की हमारी मिठाईयों की संस्कृति को बचाने की कोशिश कैसे शुरू हुई थी। 

देहरादून में सभी को मिल कर अच्छा लगा, और ऐसे मित्रों से मिलना हुआ जिनसे बात तो होती थी मगर मिलना नहीं हुआ था, प्रदीप खुराना, “5-स्टार स्वीट्स” और नितिन जी ”कुमार स्वीट्स”। देहरदून को अगर मैं मिनी-चंडीगढ़ कहूं तो ग़लत न होगा। क्या बेहतरीन मिठाईयों के शोरूम हैं!! किसी दिल्ली वाले को भी इन्सेक्युर कर दें वो आलिशान शोरूम बना रखे हैं आनदं, 5 स्टार और कुमार ने। मिठाईयों का रिवाज बहुत अच्छा है। रेट्स बहुत अच्छे हैं और सबसे बड़ी बात आपस में बहुत ही मधुर रिश्ते हैं सभी मिठाई वालों के। गुप्ता जी की एक आवाज़ पर सब आगये और मुझे मिलकर अपने व्यापार के बारे में सबने कुछ न कुछ बताया। गुप्ता जी ने तो गढ़वाली टोपी ही पहना कर मुझे गढ़वाली बना दिया!! 

आनंदम की मिल्क चॉकलेट और बाल मिठाई बहुत ही स्वादिष्ट लगी, साथ में उनका आलीशान रेस्टोरेंट मानो कह रहा हो के कौनसा 5 स्टार होटल है जो मुझे पीछे कर सके। 

एक नयी मिठाई खाई जो पुराने बेस पर बानी थी या शायद पुरानी विधि को ही जिंदा किया था खुराना जी ने, 5 स्टार स्वीट्स के चने के लड्डू वो भी चने के छिलकों के साथ बनाते हैं। अब यहाँ जा कर मेरा और अतिरेक का मन विचलित हो गया और खुराना साहब के सहारनपुरी अंदाज़ में अपनी क़सम को तोड़ने पर मजबूर कर दिया और एक-एक लड्डू तो हम वहीं खा गए और बाक़ी हमने आश्रम पर वापस जाने पर खाये। ये प्रेम और यहाँ की मिठाईयों का स्वाद मैं सदा याद रखूँगा। फिर देर रात वापस पहुंच गए हम अपने ठिकाने पर। 

जैसे के मैंने बताया के किस तरह से मैं पुनीत को उपदेश देता रहा उनके फ्ऱैक्चर को लेकर मगर दुसरे ही दिन आश्रम में बच्चों के साथ खेलते हुए मेरा भी फ्ऱैक्चर हो गया ठीक उसी जगह पर जहाँ पुनीत का हाथ हुआ था, कलाई में। अपने ही उपदेश अपने गले में पढ़ गए!!। 

आज जब मैं ये लेख लिख रहा हूँ तब मेरा प्लास्टर कट चुका है और दोनों हाथ सही सलामत हैं। पिछ्ला सफ़रनामा टूटे हाथ से लिखा था, ये बात भी दर्ज करता चलूँ इतिहास के पन्नों पर। आगे और भी रोमांचक सफ़र हैं जो मैं लिखता रहूँगा, आपका साथ दिन बा दिन मिलता रहता है और आपके मैसेज भी मिलते हैं, मेरी ये ही कमाई है, और हाँ, अपना WMNC इवेंट है, ज़रूर आईयेगा, कोलकाता, 17.19 दिसंबर 2023.