भारतीय मिठाई इंडस्ट्री पारम्परिक धरोहर को बचाने में कामयाब हुई है या नहीं ? Ajay Agarwal

हमने जब एक ख़ास मिठाई घेवर के बारे में जानकारी के लिए राजस्थान की नगरी जयपुर में LMB स्वीट्स के मालिक अजय अग्रवाल से संपर्क किया तो उन्होंने इस मिठाई के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी प्रदान की। इसमें घेवर के इतिहास से लेकर उसकी बनावट और स्वाद के बारे में बताया। घेवर का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा  कि यह 150 वर्षों से हमारे बीच एक ख़ास मिठाई के रूप में जाना जाता है। यह मिठाई हमारे यहां पर्शिया से आयी थी लेकिन उस समय यह किसी और रूप में थी जब यह हमारे पास राजस्थान में आयी तो हमने इसे अपने हिसाब से तैयार किया।

इसके बारे में बहुत ज़्यादा कुछ तथ्य नहीं है लेकिन जयपुर के जिस परिवार ने इसे बनाना शुरू किया उसके बाद यह राजस्थान में बनाया जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि उस समय यह शाही पकवानों में शामिल था और शाही दस्तरख़्वान तक ही सीमित था।

अजय अग्रवाल का मानना है कि वह घेवर बनाकर अपने पूर्वजों की विरासत आगे बढ़ा रहे हैं। यूँ तो उनका परिवार सन 1727 ई0 से मिठाई बना रहा है लेकिन घेवर की मिठाई उनकी 10 पीढ़ियों से चली आ रही है। राजस्थान सरकार से घेवर के लिए GI Tag की मांग की गयी है जिसके लिए 16 मई को एक बैठक की गयी।

जैसे -जैसे समय बीत रहा है घेवर में बदलाव जारी है जो बेहतरी की ओर बढ़ रहा है। राजस्थान में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में घेवर का आकर्षण किसी से छुपा नहीं है।  हर ख़रीदार घेवर की तरफ लपकता है , इसी कारण यह एक ख़ास मिठाई के रूप में जाना जाता है। घेवर की लोकप्रियता का आधार उसका स्वाद ही है। 

अजय का कहना है कि LMB फैमिली ने हमेशा से ही घेवर में नए-नए प्रयोग किये हैं , जैसे कि उसमें पनीर मिला कर पनीर  घेवर बनाना हो। यह काम सन 1965 ई0 में पहली बार किया गया। पूछे जाने पर कि इस तरह से इनोवेशन करने के पीछे क्या मक़सद था , उन्होंने बताया कि इसके स्वाद को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने यह क़दम उठाए।

उनके अनुसार उनके दादा रसगुल्ला मिठाई से काफ़ी प्रेरित थे और वह चाहते थे कि घेवर में भी कुछ इसी तरह कि स्पोंजिनेस आये और खाने वाले को इसके स्पोंजिनेस सहित स्वाद का एहसास हो। उनके पूर्वज का नाम जो तीसरी जनरेशन के थे, स्वर्गीय माली रामजी गुड़ावत था , जो इस पनीर युक्त घेवर के अविष्कारक थे। वर्तमान में घेवर पनीर युक्त टेक्सचर उनके दादा की 8 से 10 सालों कि मेहनत का फल है, जिसका आज तक हम स्वाद ले रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ,”आज के समय में स्वास्थ को मद्देन नज़र रखते हुए हमने इसमें मिठास की मात्रा को कम कर दिया है। क्योंकि घेवर एक ऐसी मिठाई है कि जो ब्रेकफ़ास्ट से लेकर डिनर तक लोग खाना पसंद करते हैं”। वह आगे बताते हैं कि घेवर में नया ट्रेंड आया है कि घेवर पर रबड़ी की टॉपिंग की जाने लगी है और यह 30 सालों से हो रहा है। इसे घेवर में नया बदलाव कहें  या फिर स्वाद में बढ़ोतरी , दोनों ही बातें सही होंगी।  घेवर की इस मिठाई का प्रसार राजस्थान के अलावा देश के और राज्यों में भी होने लगा है और अब यह बढ़ता ही जायेगा। यह बिना चाशनी वाला घेवर भी बनाते हैं जिसे लोग कॉर्नफ़्लेक्स के बदले में खाना पसंद करते हैं।

घेवर पर मौसम का असर पूछे जाने पर अजय ने बताया कि, “LMB में हम घेवर के हर बॉक्स पर 24 घंटे 365 दिन बिकने वाली मिठाई मेंशन करते हैं। इसकी सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि घेवर का स्वाद बिल्कुल बदल जाता है , मौसम के बदलते ही। तीज के माह में यानी बरसात के मौसम में इसका स्वाद ज़्यादा उभर कर आता है और लोगों में घेवर कि मांग भी बेहद बढ़ जाती है। हद्द तो यह है कि लोग इसे खाने के समय खा कर अपना पेट भर लिया करते हैं। है न यह बिल्कुल अनोखी बात !!